प्रो. रसाल सिंह
पिछले 2 वर्षों की अल्पावधि में ही जम्मू-कश्मीर में ज़मीनी बदलाव नज़र आने लगा है। कुछ काम हो गया है और बहुत-सा काम होना बाकी है। विकास और बदलाव की ये तमाम परियोजनाएं और प्रकल्प प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के निर्देश पर उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के नेतृत्व में कार्यान्वित किये जा रहे हैं।
पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्षा और जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने एक बार फिर से आपत्तिजनक और गैर-जिम्मेदाराना बयान दिया है। अपनी पार्टी के 22वें स्थापना दिवस (28 जुलाई) के अवसर पर बोलते हुए महबूबा ने घाटी में आग भड़काने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को कश्मीरियों से जो कुछ छीना है, उसे सूद समेत लौटाना पड़ेगा। इसी तरह उनका एक और बयान काफी विवादास्पद था, जिसमें उन्होंने जम्मू-कश्मीर में 5 अगस्त, 2019 से पहले की स्थिति की बहाली तक तिरंगा न फहराने की कसम खायी थी। हालांकि, गुपकार गठजोड़ में अकेले पड़ जाने और राष्ट्रीय स्तर पर हुई फजीहत के दबाव में उन्हें अपना बयान वापस लेना पड़ा था। महबूबा की बौखलाहट और बिलबिलाहट अस्वाभाविक नहीं है। हमेशा अलगाववाद और भेदभाव की राजनीति करने वाली महबूबा और उनकी पार्टी अपने अस्तित्व-संकट से जूझ रहे हैं और खात्मे के कगार पर हैं। गुपकार गठजोड़ में भी वे अलग-थलग पड़ती जा रही हैं। 24 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आयोजित जम्मू-कश्मीर के प्रमुख नेताओं की सर्वदलीय बैठक में इसकी बानगी साफतौर पर दिखी। जहां फारूक अब्दुल्ला, गुलाम नबी आजाद और सज्जाद लोन जैसे नेता छोटी-मोटी असहमतियों के बावजूद नयी संवैधानिक स्थिति को स्वीकारते हुए जम्मू-कश्मीर को मुख्यधारा से जोड़ना चाहते हैं; वहीं, महबूबा अपनी अलगाववादी ढफली पर हिंसा, स्वायत्तता, अराजकता और आतंकवाद का बेसुरा राग अलाप रही हैं।
आज़ादी से लेकर 5 अगस्त, 2019 तक जम्मू-कश्मीर प्रदेश का अधिसंख्य समाज कश्मीर के नेतृत्व वाली सरकार की कश्मीर-केंद्रित भेदभावपूर्ण नीति का शिकार रहा था। यह भेदभाव विकास-योजनाओं से लेकर लोकतांत्रिक भागीदारी तक और SC, ST, OBC के संवैधानिक अधिकारों और बहन-बेटियों के न्यायसंगत अधिकारों की अवहेलना तक व्याप्त था। अमर बलिदानी डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, शेरे-डुग्गर पंडित प्रेमनाथ डोगरा, महाराजा हरिसिंह, ब्रिगेडियर राजिंदर सिंह और ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान जैसे महान सपूतों के संघर्ष और त्याग के परिणामस्वरूप जम्मू-कश्मीर की एकात्मता और विकास का सपना साकार हो सका है। 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 और धारा 35A की समाप्ति के बाद जम्मू-कश्मीर के वर्षों से उपेक्षित वंचित वर्गों को न्याय देने का काम प्रारंभ हुआ है। जम्मू-कश्मीर में नयी सुबह हुई है और अनेक सकारात्मक बदलावों की शुरुआत हुई है। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित प्रेमनाथ डोगरा ने जम्मू-कश्मीर को राष्ट्रीय चिंता और चिंतन का केंद्र बनाने के लिए लगातार संघर्ष करते हुए अनेक आंदोलन किये। उन्होंने जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ न्याय और समानता सुनिश्चित करने के लिए अनवरत जनजागरण भी किया।
पिछले 2 वर्षों की अल्पावधि में ही जम्मू-कश्मीर में ज़मीनी बदलाव नज़र आने लगा है। कुछ काम हो गया है और बहुत-सा काम होना बाकी है। विकास और बदलाव की ये तमाम परियोजनाएं और प्रकल्प प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के निर्देश पर उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के नेतृत्व में कार्यान्वित किये जा रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में अभी तक हुए मुख्य बदलाव कुछ इस प्रकार हैं- 28 वर्ष की लंबी प्रतीक्षा के बाद यहां पिछले साल से त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था पूरी तरह लागू हो गयी है। स्थानीय निकायों को वे सभी अधिकार और संसाधन मिल गये हैं जो देशभर में मिलते हैं। जम्मू-कश्मीर में ST वर्ग (गुज्जर बक्करवाल, गद्दी, सिप्पी आदि) को राजनीतिक आरक्षण का लाभ मिला है, जिससे इस वर्ग के विकास के रास्ते खुले हैं। ग्राम पंचायत, क्षेत्र विकास परिषद् और जिला विकास परिषद् चुनावों के माध्यम से ज़मीनी लोकतंत्र में ST वर्ग की उल्लेखनीय भागीदारी हुई है। जम्मू-कश्मीर के अन्य पिछड़े वर्गों को आरक्षण देकर सामाजिक-न्याय सुनिश्चित किया गया है।
संविधान-शिल्पी डॉ. भीमराव आम्बेडकर का यही सपना था कि भारत में समतामूलक और न्यायपूर्ण व्यवस्था हो। कहीं भी जाति-धर्म, क्षेत्र और लिंग आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं हो। 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर की संवैधानिक स्थिति में हुए परिवर्तन के बाद बाबा साहेब आम्बेडकर का यह स्वप्न देश के अन्य भागों की तरह जम्मू-कश्मीर में भी साकार होने की पहल हुई है। जम्मू-कश्मीर में अधिकारों से वंचित बहनों-बेटियों को न्याय मिला है। इससे पहले जिनका विवाह प्रदेश से बाहर हो जाता था, उन्हें उनके जन्मजात अधिकारों तक से वंचित कर दिया जाता था। स्वाधीन भारत में लैंगिक भेदभाव का यह शर्मनाक उदाहरण था। हमारे सभी संविधान-निर्माताओं ने संविधान बनाते समय ‘एक व्यक्ति-एक मत’ का प्रावधान करते हुए संयुक्त राज्य अमेरिका से भी पहले महिलाओं को मताधिकार देकर दूरदर्शिता, प्रगतिशीलता और लोकतांत्रिक मूल्यों में गहरी आस्था का परिचय दिया था। किसी भी प्रकार के भेदभाव के विरुद्ध स्वतंत्रता, समानता और बंधुता ही उनके मार्गदर्शक सिद्धांत थे। जम्मू-कश्मीर अनुच्छेद 370 और धारा 35ए के तहत मिले अस्थायी और संक्रमणकालीन विशेषाधिकारों की आड़ में इन सिद्धांतों की अवहेलना करता आ रहा था। अब वहां भारत का संविधान पूरी तरह लागू होने से आमूलचूल सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन की प्रस्तावना हुई है। सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विषमता और भेदभाव किसी भी समाज के लिए अभिशाप है। जम्मू-कश्मीर में इस अभिशाप-मुक्ति की दिशा में गंभीर पहल हुई है। इसी के चलते जम्मू-कश्मीर में बसे हुए लाखों दलितों विशेषकर वाल्मीकि समाज, पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थियों, गोरखाओं और पीओजेके के विस्थापितों को सम्मान, समान अवसर और मतदान जैसे मूल अधिकार और सुविधाएं मिली हैं।
नयी औद्योगिक नीति लागू होने और निवेशक सम्मेलनों के आयोजन से स्थानीय लोगों को रोजगार के अधिकाधिक अवसर उपलब्ध कराने की शुरुआत हुई है। साथ ही, नई भाषा नीति लागू करके अधिसंख्य जम्मू-कश्मीरवासियों की मातृभाषाओं-डोगरी, कश्मीरी और हिंदी को राजभाषा (शासन-प्रशासन की भाषा) का दर्जा देकर स्थानीय लोगों को मुख्यधारा से जोड़ने का काम हुआ है। अभी तक आतंकवाद और भेदभाव के शिकार रहे पर्यटन उद्योग को पुनः विकसित किया जा रहा है। हाल तक उपेक्षित और नज़रंदाज़ किये गए पर्यटन-स्थलों के विकास पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। इस श्रृंखला में जम्मू-कश्मीर शासन और तिरुपति तिरुमल देवस्थानम् के संयुक्त प्रयासों के परिणामस्वरूप श्री वेंकटेश्वर भगवान के भव्य मंदिर का निर्माण, देविका नदी और शिवखोड़ी गुफा जैसे पवित्र-स्थलों का पुनरुद्धार किया जा रहा है।
आतंकवादी और देश-विरोधी गतिविधियों में शामिल सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जा रही है। जिस थाली में खाते हैं उसी में छेद करके आतंकवादियों के पनाहगार बने एक दर्जन से अधिक सरकारीकर्मी बर्खास्त किये जा चुके हैं और सैकड़ों के खिलाफ ख़ुफ़िया जाँच चल रही है। मुस्तैद सुरक्षा बलों द्वारा आतंकवादियों और अलगाववादियों की नकेल कसने और हवाला फंडिंग रुकने से राष्ट्रविरोधी हिंसक गतिविधियों में निर्णायक गिरावट आई है। उल्लेखनीय है कि 5 अगस्त, 2019 के बाद से आतंकवादी वारदातें 59 प्रतिशत तक कम हुई हैं।
दूरदराज और दुर्गम क्षेत्रों में रहने वाले जम्मू-कश्मीरवासियों को बिजली, पानी, सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी आधारभूत सुविधायें मुहैया कराने पर तेजी से काम हो रहा है। प्रधानमंत्री रोजगार पैकेज के अंतर्गत कश्मीरी विस्थापितों के लिए रोजगार और आवास की व्यवस्था प्राथमिकता के आधार पर हो रही है। उनके पुनर्वास के लिए सुरक्षित और सुविधायुक्त आवासीय परिसर बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी प्रदान की गयी है। ई-फाइलिंग के जरिये अर्धवार्षिक 'दरबार-मूव' की भारी-भरकम और खर्चीली कवायद को समाप्त किया गया है। शासन-प्रशासन को जवाबदेह और संवेदनशील बनाया जा रहा है। विभिन्न कार्यों के समयबद्ध निपटारे और समस्याओं के त्वरित समाधान के लिए ‘सिटिजंस चार्टर’ लागू किया गया है। इससे निष्क्रिय और टालू सरकारीकर्मी हरकत में आ रहे हैं। सरकारी नौकरियों, मेडिकल, इंजीनियरिंग और प्रबंधन जैसे व्यावसायिक पाठ्यक्रमों और विकास-योजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार और भेदभाव की भी समाप्ति की जा रही है। रोशनी एक्ट और शस्त्र लाइसेंस घोटाले में धर-पकड़ हो रही है।
जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में गठित परिसीमन आयोग द्वारा विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन करके उन्हें संतुलित और न्यायसंगत बनाया जा रहा है। अच्छी बात यह है कि पहले इस आयोग का बहिष्कार करने वाले नेशनल कॉन्फ्रेंस जैसे दल भी इस लोकतान्त्रिक प्रक्रिया में भाग लेकर इसे समग्र और समावेशी बना रहे हैं।
एकात्मता दिवस विकास और बदलाव के इस सपने को साकार करने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले महापुरुषों को याद करने का दिन है। उनके जीवन-संघर्ष और चिंतन को आत्मसात करके और भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता को समर्पित होकर ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी जा सकती है। "एक विधान, एक निशान, सबको समता और सम्मान" न सिर्फ जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में देश के नीति-नियंताओं का पाथेय बने, बल्कि सम्पूर्ण भारतवर्ष के लिए इसे लागू करने की आवश्यकता है। पाक अधिक्रांत जम्मू—कश्मीर भी इसका अपवाद नहीं है, क्योंकि 26 अक्टूबर, 1948 को महाराजा हरिसिंह ने जिस जम्मू-कश्मीर रियासत का अधिमिलन भारतीय अधिराज्य में किया था, पाक-अधिक्रान्त जम्मू-कश्मीर भी उसका अभिन्न और अविभाज्य अंग है। पाकिस्तानी फौज और आईएसआई द्वारा गिलगित-बाल्टिस्तान के लोगों पर ढाये जा रहे जुल्मोसितम से निकलने वाली करुण-पुकार को लंबे समय तक अनसुना नहीं किया जा सकता है।
(लेखक जम्मू केंद्रीय विश्वविद्यालय में अधिष्ठाता, छात्र कल्याण हैं।)
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