प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भेंट करते हुए एंटनी ब्लिंकन
आलोक गोस्वामी
भारत के दो दिन के आधिकारिक दौरे पर 27 जुलाई को नई दिल्ली पहुंचे अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, विदेश मंत्री एस. जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल से अनेक मुद्दों पर चर्चा की। ब्लिंकन की भारत यात्रा अनेक अर्थों में भूराजनीतिक समीकरणों में आ रहे बदलाव को रेखांकित करती है।
प्रधानमंत्री से मुलाकात में यह बात उभर कर आई कि राष्ट्रपति जो बाइडेन भारत के बढ़ते कद को पहचानते हैं और मानते हैं कि दोनों देशों के बीच सामरिक साझेदारी और मजबूत किए जाने की जरूरत है। ब्लिंकन ने भी अपने वक्तव्य में इस बात पर जोर दिया है कि अमेरिका और भारत विश्व के ऐसे दो प्रमुख लोकतंत्र हैं जिनके काम 21वीं सदी और आगे भी विश्व की दिशा तय करेंगे। ब्लिंकन और प्रधानमंत्री मोदी के बीच हुई वार्ता की सार्थकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मुलाकात के बाद स्वयं प्रधानमंत्री ने ट्वीट में लिखा कि 'आज अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन से मिलकर बहुत आनंद हुआ। भारत-अमेरिकी सामरिक साझेदारी के संदर्भ में राष्ट्रपति जो बाइडन की प्रतिबद्धता का मैं स्वागत करता हूं। यह साझेदारी हमारे साझा लोकतांत्रिक मूल्यों को आकार देती है। यह विश्व कल्याण के लिए एक ताकत भी है।’
इससे पूर्व एक कार्यक्रम में ब्लिंकन ने साफ कहा था कि भारतीय और अमेरिकी मानवीय गरिमा, अवसरों में बराबरी, कानून सम्मत शासन, पांथिक स्वतंत्रता सहित मौलिक स्वतंत्रताओं में यकीन रखते हैं।
अफगानिस्तान में बड़ी भूमिका
प्रधानमंत्री से मिलने से पहले, ब्लिंकन ने भारत के विदेश मंत्री जयशंकर से भेंट की। स्वाभाविक तौर पर वार्ता में अफगानिस्तान में रोज बदल रहे हालात की बात आनी ही थी। अमेरिका और भारत की एक बड़ी भूमिका रही है अफगानिस्तान को जिहादी ताकतों से टक्कर लेते हुए अपने पैरों पर खड़ा करने में। वहां विकास के कामों और लोकजीवन में खुशहाली लाने में। अफगानिस्तान की परिस्थितियों, आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल से ब्लिंकन की अलग से भेंट करने का बहुत बड़ा अर्थ है। दोनों के बीच एक घंटा चली बातचीत के दूरगामी परिणाम होने की संभावना है। उनका यह कहना भी बहुत मायने रखता है कि दुनिया में ऐसे कुछ ही रिश्ते हैं जो अमेरिका और भारत के संबंधों से अधिक महत्वपूर्ण हैं। दोनों नेताओं की वार्ता में हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग को और बढ़ाने की बात भी होनी ही थी। दक्षिण चीन सागर में चीन की आक्रामक हरकतों को देखते हुए प्रशांत क्षेत्र सामरिक और रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण हो जाता है। भारत और अमेरिका ने हिन्द महासागर में जून 2021 में संयुक्त युद्धाभ्यास करके एक दमदार संकेत जरूर दिया था, लेकिन उस क्षेत्र में सहयोग को और बढ़ाने की जरूरत विशेषज्ञ पहले ही जता चुके हैं। लिहाजा ब्लिंकन का भारत दौरेे में इस विषय पर बात करना बताता है कि वहां आपसी तालमेल बढ़ाने की दिशा में अमेरिका और भारत गंभीर प्रयास कर रहे हैं। विस्तारवादी चीन महासागर के दूसरे छोर पर तुर्की पर धमक के बूते डोरे डाल ही रहा है और इन दोनों देशों से आए पिछले दिनों के कुछ वक्तव्य उइगरों के दमन ही नहीं, अन्य विषयों पर भी बढ़ती निकटता की गंध देते हैं। क्षेत्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर भी सहमति बनना एक सुखद कूटनीतिक आयाम कहा जा सकता है। यह दिखाता है कि एशिया में भारत के उभार से अमेरिका अपरिचित नहीं है। अपरिचित तो चीन भी नहीं है, लेकिन वह दुनिया की आर्थिक महाशक्ति बनने के अपने सपने के चलते समन्वय नहीं, टकराव की राह अपनाने में ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहा है। लद्दाख में भारत के लिए लगातार चुनौतियां खड़ी करके कोरोना वायरस का कथित साजिशकर्ता अपनी नफरती सोच के साथ दुनिया के सामने उघड़ चुका है।
इस भेंट के बाद हुई दोनों विदेश मंत्रियों की संयुक्त प्रेस वार्ता में ब्लिंकन ने घोषणा की कि कोरोना टीकाकरण के लिए अमेरिका भारत को 2.5 करोड़ डॉलर की राशि देगा। ब्लिंकन ने बताया कि भारत को अमेरिका पहले भी 2 करोड़ डॉलर से ज्यादा की कोरोना सहायता दे चुका है। उन्होंने कहा कि वे भारत और अमेरिका में मिलकर इस महामारी का अंत करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
भारत और अमेरिका के बीच बढ़ते द्विपक्षीय संबधों के परिचायक के रूप में विदेश मंत्री एस. जयशंकर और अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने अफगानिस्तान की स्थिति, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भागीदारी, कोविड-19 महामारी से निपटने के प्रयासों और क्षेत्रीय सुरक्षा मजबूत करने के तौर तरीकों पर व्यापक बातचीत की।
संयुक्त मीडिया ब्रीफिंग में ब्लिंकन ने कहा कि दुनिया में कुछ ही ऐसे संबंध है जो अमेरिका भारत के रिश्ते से अधिक अहम हैं। उन्होंने साथ ही कहा कि दुनिया के अग्रणी लोकतंत्रों के तौर पर ‘हम अपने सभी लोगों' को स्वतंत्रता, समानता एवं अवसरों को लेकर 'अपनी जिम्मेदारियों को गंभीरता से लेते हैं।’ भारत के साथ साझेदारी मजबूत करना अमेरिका की विदेश नीति की शीर्ष प्राथमिकताओं में एक है।
अफगानिस्तान के संदर्भ में ब्लिंकन ने कहा कि भारत और अमेरिका इस सोच के प्रति कटिबद्ध है कि वहां चल रहे संघर्ष का सैन्य हल नहीं हो सकता। वहां समाधान शांतिपूर्ण हो और इसके लिए तालिबान एवं अफगान सरकार के बीच वार्ता होनी जरूरी है। उन्होंने कहा कि भारत और अमेरिका के बीच इस बात पर पूरी सहमति है कि अफगानिस्तान की कोई भी आने वाली सरकार समावेशी और अफगान लोगों का पूरी तरह प्रतिनिधित्व करने वाली हो। आखिरकार यह अफगान नीत और अफगान की अगुआई वाली शांति प्रक्रिया होनी जरूरी है। उन्होंने साफ कहा कि भारत ने अफगानिस्तान के स्थायित्व एवं विकास में अहम योगदान दिया है और देता रहेगा। हम बड़े मुद्दों से मिलकर निपटने में सक्षम बनाती है।
आज अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन से मिलकर बहुत आनंद हुआ। भारत-अमेरिकी सामरिक साझेदारी के संदर्भ में राष्ट्रपति जो बाइडन की प्रतिबद्धता का मैं स्वागत करता हूं। यह साझेदारी हमारे साझा लोकतांत्रिक मूल्यों को आकार देती है। यह विश्व कल्याण के लिए एक ताकत भी है। -नरेन्द्र मोदी, प्रधानमंत्री, भारत
तिब्बती प्रतिनिधिमंडल से भेंट
अमेरिकी विदेश मंत्री ने 28 जुलाई को ही नई दिल्ली में तिब्बत के धर्मगुरु परम पावन दलाई लामा के एक प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की। भारत में निर्वासित तिब्बती सरकार के प्रतिनिधि नगोडुप डोंगचुंग से अपनी भेंट के बाद ब्लिंकन ने अपने ट्विटर हैंडल से उस बैठक की तस्वीरें पोस्ट कीं। विदेश विभाग के एक अधिकारी का कहना है कि ब्लिंकन का तिब्बती प्रतिनिधिमंडल से मिलना चीन के शायद गले न उतरे। डोंगचुंग केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते हैं। निर्वासित तिब्बती सरकार के प्रतिनिधि से मुलाकात करके बाइडेन प्रशासन ने एक तरह से चीन को स्पष्ट संकेत किया है कि वह दलाई लामा और निर्वासति तिब्बत सरकार के प्रति भले कुछ भी दृष्टिकोण रखता हो, पर अमेरिका उनकी बात सुनेगा और उनकी शिकायतों को दूर करने में कूटनीतिक सहयोग देगा। ब्लिंकन का यह कदम एक बड़ा नीतिगत बदलाव दिखाता है क्योंकि इससे पहले अमेरिकी सरकार के नेताओं ने राजधानी दिल्ली में भारत में निर्वासित तिब्बती सरकार के किसी प्रतिनिधि से विशेष भेंट नहीं की थी।
भारत और अमेरिका इस सोच के प्रति कटिबद्ध है कि अफगानिस्तान में चल रहे संघर्ष का सैन्य हल नहीं हो सकता। वहां समाधान शांतिपूर्ण हो और इसके लिए तालिबान एवं अफगान सरकार के बीच वार्ता होनी जरूरी है। अफगानिस्तान की कोई भी आने वाली सरकार समावेशी और अफगान लोगों का पूरी तरह प्रतिनिधित्व करने वाली हो। भारत ने अफगानिस्तान के स्थायित्व एवं विकास में अहम योगदान दिया है और देता रहेगा।
मोटे तौर पर विश्व में आज कूटनीतिक दृष्टि से दो प्रमुख गुट दिखाई दे रहे हैं, एक तरफ वे लोकतांत्रिक देश हैं जो विश्व को सकारात्मक दिशा में बढ़ाने के लिए समन्वय और समझौते की राह पर चल रहे हैं। तो दूसरी ओर वे देश हैं जो कहने को तो लोकतंत्र हैं, लेकिन उनकी नीतियां और कूटनीति विस्तारवाद और दूसरे पर धमक दिखाने तक सीमित रहती हैं। इस पक्ष में सहयोग और समन्वय जैसे शब्द बेमानी हैं। अमेरिका और भारत का निकट भविष्य में अनेक क्षेत्रों में सहयोग करने का संकल्प वैश्विक परिदृश्य में आ रहे बदलाव को झलकाता है।
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