पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अफगानिस्तान में अशांति के लिए अमेरिका को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने बुधवार को कहा कि अमेरिकी सेना की विफलता के कारण आज अफगानिस्तान इस स्थिति में पहुंचा है।
पीबीएस न्यूज आवर से एक साक्षात्कार में अफगानिस्तान के प्रति पाकिस्तान के दृष्टिकोण और अमेरिका के साथ उसके संबंधों पर पूछे गए सवालों के जवाब में इमरान ने यह बात कही। यह पूछने पर कि अफगानिस्तान के हालात का आकलन वह कैसे करते हैं, इमरान ने कहा कि वास्तव में वाशिंगटन ने अफगानिस्तान के हालात को खराब कर दिया है। उन्होंने "सबसे पहले उन्होंने अफगानिस्तान में एक सैन्य समाधान की तलाश करने की कोशिश की, जो कि था ही नहीं। … और मेरे जैसे लोग, जो अफगानिस्तान के इतिहास को जानते हैं और कहते रहे कि इसका कोई सैन्य समाधान नहीं है, उन्हें अमेरिका विरोधी कहा गया। मुझे तालिबान खान कहा जाता था।”
तालिबान को मजबूर करना मुश्किल
पीएम इमरान ने यह भी कहा कि अमेरिका 20 साल तक अफगानिस्तान में रहा, लेकिन उन्हें नहीं मालूम कि इसके पीछे अमेरिका का क्या उद्देश्य था। इमरान ने कहा, "मुझे नहीं पता कि अफगानिस्तान में क्या उद्देश्य था, राष्ट्र निर्माण करना था, लोकतंत्र या महिलाओं को आजाद करना था। कारण जो भी हो, जिस तरह से वे वहां गए, उससे कोई समाधान नहीं निकलने वाला था।”
उन्होंने अमेरिका के इस समाधान से निपटने के तरीके पर भी अफसोस जताया। इमरान ने कहा कि आखिरकार जब वे इस नतीजे पर पहुंचे कि इसका कोई सैन्य समाधान नहीं है, तब तक दुर्भाग्य से अमेरिकी और नाटो सेनाएं सौदेबाजी का मौका गंवा चुकी थीं। अफगानिस्तान में जब 1,50,000 नाटो सैनिक थे, उस समय अमेरिका को राजनीतिक समाधान का प्रयास करना चाहिए था।
पीएम इमरान ने कहा, "एक बार उन्होंने सैनिकों की संख्या घटाकर बमुश्किल 10,000 तक कर दिया था और जब उन्होंने बाहर निकलने की तारीख दी, तो तालिबान ने सोचा कि वे जीत गए हैं। इस समय समूह को समझौता करने के लिए कहना या राजनीतिक समाधान निकालने के लिए "उन्हें मजबूर करना" मुश्किल है, क्योंकि वे (तालिबान) सोचते हैं कि वे जीत गए हैं।"
आतंकी भेजने की बात बकवास
पाकिस्तान में तालिबान के पनाहगाहों की मौजूदगी के दावों और अफगानिस्तान में तालिबान की मदद के लिए 10,000 आतंकियों को भेजने संबंधी रपटों पर उन्होंने कहा, 10,000 तालिबान या जैसा कि अफगान सरकार कहती है, जिहादी लड़ाके सीमा पार हो गए हैं, पूरी तरह से बकवास है। वे हमें इसका सबूत क्यों नहीं देते? सुरक्षित पनाहगाहों के सवाल पर इमरान ने आश्चर्य जता कि पाकिस्तान में आतंकियों के पनाहगाह कहां हैं? इमरान ने समझाया कि पाकिस्तान में 30 लाख पश्तून शरणार्थी रहते हैं, जो तालिबान की तरह ही जातीय समूह है। पाकिस्तान में 5,00,000 और 1,00,000 या इससे अधिक शिविर हैं। तालिबान कोई सैन्य संगठन नहीं है। वे सामान्य नागरिक हैं। यदि इन शिविरों में कुछ नागरिक हैं, तो पाकिस्तान इन लोगों का शिकार कैसे करेगा? आप उन्हें पनाहगाह कैसे कह सकते हैं? यह पूछने पर कि वाशिंगटन और अन्य संगठनों का दावा है कि पाकिस्तान ने अफगान तालिबान की मदद की है, इमरान ने कहा कि आरोपों को बेबुनियाद करार देते हुए संघर्ष का इतिहास समझाया। साथ ही, स्पष्ट किया 11 सितंबर, 2001 को न्यूयॉर्क में हुए आतंकी हमले से पाकिस्तान का कोई संबंध नहीं है। इस हमले में कोई पाकिस्तानी शामिल नहीं थी और अलकायदा अफगानिस्तान में था। उन्होंने कहा कि जब पाकिस्तान ने आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में अमेरिका के साथ जाने का फैसला किया तो उनका देश तबाह हो गया। पाकिस्तान के 70,000 लोग मारे गए और अर्थव्यवस्था 150 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ।
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