बालेन्दु शर्मा दाधीच
तकनीकी अब स्वास्थ्य क्षेत्र के हालात बदल देने की दिशा में बढ़ गई है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग और प्रीडिक्टिव एनालिटिक्स जैसी जटिल सी सुनाई देने वाली तकनीकों का प्रयोग करके हजारों को बीमारी का शिकार होने से बचाया जा रहा है।
अगर कोई तकनीकी किसी मरीज को दिल की बीमारी या मोतियाबिंद होने के कुछ साल पहले ही बता दे कि इस व्यक्ति को आगे जाकर ऐसा होने वाला है तो वह कितनी अच्छी बात होगी? मरीज पहले ही संभल जाएगा और डॉक्टर ऐहतियातन इलाज शुरू कर सकेंगे और जीवनशैली तथा खानपान में जरूरी बदलाव करवा सकेंगे। तब शायद वह बीमारी का शिकार हो ही नहीं और अगर हो भी तो बहुत बाद में। माइक्रोसॉफ़्ट और अपोलो हॉस्पिटल्स मिलकर इसी दिशा में काम कर रहे हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग और प्रीडिक्टिव एनालिटिक्स जैसी जटिल सी सुनाई देने वाली तकनीकों का प्रयोग करके हजारों मरीजों को दिल की बीमारी का शिकार होने से बचाया जा रहा है।
स्वास्थ्य अनुमान में कारगर तकनीकी
सेहत के क्षेत्र में तकनीकी की भूमिका सिर्फ उपकरणों, डायग्नोस्टिक्स, विश्लेषण और सहायक तकनीकों जैसी चीजों तक ही सीमित नहीं है। रिपोर्टों और विश्लेषण से भी आगे बढ़कर वह भविष्यवाणी करने की स्थिति में आ गई है। बड़ी मात्रा में पहले से मौजूद मेडिकल डेटा तथा मरीज के निजी डेटा का विश्लेषण करते हुए तकनीक अब भविष्य का अनुमान लगा सकती है और यह अनुमान काफी हद तक सटीक होता है।
इंटरनेट, क्लाउड और कंप्यूटरीकरण की बदौलत आज हमारे पास बहुत ही बड़ी मात्रा में प्रासंगिक डेटा उपलब्ध है, यानी सूचनाओं का संग्रह। दुनिया भर में मेडिकल के क्षेत्र में होने वाली गतिविधियां, जो पहले अकेले में घटित होती थीं और जिनके डेटा सिर्फ शोध आदि के दौरान ही दूसरों को देखने को मिलते थे, अब आसानी से उपलब्ध होने लगे हैं। फिर डेटा को संकलित करने की प्रणालियां भी बहुत विकसित हो चुकी हैं। इंटरनेट और कंप्यूटर सस्ते होने से डेटा का कंप्यूटरीकरण आसान हो चुका है।
अनुभवी डॉक्टरों से बेहतर विश्लेषण
बीमारियों की स्थिति और हृदय रोग से मरीज की मृत्यु की आशंका का पता लगाने में यह तकनीक अनुभवी डॉक्टरों से बेहतर सिद्ध हुई है। लंदन के युनिवर्सिटी कॉलेज के वैज्ञानिकों ने कोरोनरी आर्टरी डिजीज (दिल की धमनियों की बीमारी) के 80,000 मरीजों के स्वास्थ्य डेटा का अध्ययन करके जो मॉडल तैयार किया, वह हृदयरोग विशेषज्ञों और सर्जनों से बेहतर विश्लेषण करता है। जहां विशेषज्ञ उम्र, लिंग, आनुवंशिक कारणों, बीमारी के इतिहास, आदतों, छाती में दर्द जैसे 27 पहलुओं के आधार पर अपने निष्कर्ष निकालते हैं, वहीं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित मॉडल लगभग 600 पहलुओं और पैटर्न का विश्लेषण करके नतीजे देते हैं।
लंदन के इंस्टीट्यूट आॅफ कैंसर रिसर्च और एडिनबरा यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से आनुवंशिक बदलावों का विश्लेषण करके रिवॉल्वर नामक तकनीक का विकास किया है। यह कैंसर के मरीजों के आंकड़ों की तफ्तीश करके सटीक ढंग से बताती है कि उनके कैंसर का अगला बढ़ाव किस दिशा में होने वाला है। इससे डॉक्टर एहतियाती कदम उठा सकते हैं और मरीज का जीवन बचने के आसार बेहतर हो जाते हैं।
तकनीक कर रही नेत्र रोग भविष्यवाणी
एलवी प्रसाद आइ इंस्टीट्यूट के साथ मिलकर माइक्रोसॉफ़्ट ने कुछ महीने पहले माइक्रोसॉफ्ट इंटेलिटेंज नेटवर्क फॉर आइकेयर (माइन) नामक कंसोर्टियम की शुरुआत की थी। इसके तहत आंखों की बीमारियों के मरीजों को मोतियाबिंद या अंधेपन से ग्रस्त होने की कितनी आशंका है, इसका पहले से अनुमान लगाना संभव है। तेलंगाना सरकार के साथ मिलकर माइन प्लेटफॉर्म के तहत बच्चों की आंखों की जांच करके यह पता लगाया जाता है कि कौन से बच्चे नेत्र रोगों की वजह से भविष्य में अंधेपन के शिकार हो सकते हैं। शंकर आइ हॉस्पिटल के साथ चल रही मैत्री नामक परियोजना के तहत भी कर्नाटक में दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को आंखों की बीमारियों से बचाने के लिए तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। ये तकनीकें चिकित्सा क्षेत्र के हालात बदल देंगी क्योंकि वे प्रत्येक इनसान की समस्याओं को अलग-अलग और अद्वितीय तरीके से समझने और उनके कस्टमाइज समाधान पेश करने में
सक्षम हैं। (लेखक सुप्रसिद्ध तकनीक विशेषज्ञ हैं)
Follow Us on Telegram
टिप्पणियाँ