इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अगस्त 2019 में यह कहते हुए शादी समारोहों में डीजे बजाने पर रोक लगा दी थी कि इससे ध्वनि प्रदूषण होता है। प्रदेश के डीजे संचालकों ने इस आदेश को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।
सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा डीजे पर लगाए गए प्रतिबंध को हटा दिया है। उच्च न्यायालय का फैसला पलटते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि यह आदेश न्यायोचित नहीं है। हालांकि न्यायालय ने अपने आदेश में स्पष्ट तौर से कहा है कि राज्य सरकार से लाइसेंस लेने के बाद ही डीजे बजाया जा सकेगा। इसके अलावा, शीर्ष अदालत ने हिदायत दी है कि डीजे बजाते समय ध्वनि प्रदूषण को लेकर पूर्व में दिए गए उसके निर्देशों का पालन किया जाए।
इसी के साथ इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि वैध तरीके से जारी किए गए लाइसेंसधारक ही प्रदेश में डीजे बजा सकते हैं। राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि 4 जनवरी, 2018 को डीजे और औद्यागिक क्षेत्र में ध्वनि प्रदूषण को लेकर दिशानिर्देश जारी किए गए थे। लेकिन उच्च न्यायालय द्वारा रोक के बाद 2019 से प्रदेश में डीजे नहीं बज रहे हैं। सरकार अच्छी तरह से नियमों का पालन करा रही है।
क्या कहा था उच्च न्यायालय ने?
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अगस्त 2019 में यह कहते हुए शादी समारोहों में डीजे बजाने पर रोक लगा दी थी कि इससे ध्वनि प्रदूषण होता है। प्रदेश के डीजे संचालकों ने इस आदेश को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। डीजे संचालकों का तर्क था कि वे शादी, जन्मदिन पार्टी और खुशी के अन्य मौकों पर अपनी सेवाएं देकर रोजी-रोटी चलाते हैं। उच्च न्यायालय के आदेश से उनकी आजीविका पर संकट आ गया है। याचिका में यह भी कहा गया था कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय का आदेश डीजे के पेशे से जुड़े लोगों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। इस पर शीर्ष अदालत ने अक्तूबर 2019 को डीजे संचालकों को अंतरिम राहत देते हुए उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगा दी थी। इसी के साथ शीर्ष न्यायालय ने कहा था कि संबंधित अधिकारियों को डीजे संचालकों के प्रार्थनपत्र स्वीकार करने होंगे। यदि डीजे संचालक कानून के लिहाज से सारे मानक पूरे करते हैं तो उन्हें डीजे सेवाएं संचालित करने की अनुमति देनी होगी।
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