लक्षद्वीप के लोगों को भारतीय भावना को ताक पर रखकर सरकार की ओर से मुफ्त उपहार चाहिए। सभी सुख—सुविधाएं चाहिए। पर नियम—कानून वह अपने चलाएंगे। विविधता की संस्कृति को ठेंगा दिखाकर मजहबी फसल तैयार करेंगे। यही सब वजहे हैं जब वर्तमान प्रशासक ने उनकी ऊट-पटांग मांगों को मानना बंद कर दिया है तो उनका विरोध शुरू हो गया
1970 के दशक के बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लक्षद्वीप की अपनी यात्रा के दौरान कवरत्ती के लोगों से पूछा, "आपको क्या चाहिए।" उन्होंने कहा कि हमारे पास सब कुछ है लेकिन ट्रेन नहीं है। अगले साल तक मुश्किल से छह किमी लंबे और 300 मीटर चौड़े द्वीप कवरत्ती में रेलवे लाइन पहुंच गई; और इंदिरा नगर नाम का एक रेलवे स्टेशन भी। लक्षद्वीप के निवासियों के साथ ऐसा ही रहा है और वे जो चाहते थे, वह मिलता था।
उल्लेखनीय है कि 2011 की जनगणना के अनुसार द्वीप की जनसंख्या 65,000 के करीब है। यदि आप एक परिवार में चार सदस्य मानें, तो यहां कुल 16,250 परिवार हैं। इनमें से करीब 8000 लोग स्थायी, अनुबंधित और आकस्मिक कार्मिकों के रूप में सरकार से सीधे मासिक आय अर्जित करते हैं। मतलब कि हर दूसरे परिवार से कोई न कोई सीधे सरकार से वेतन पा रहा है।
कुल 32 वर्ग किमी के क्षेत्रफल के साथ देश की सबसे छोटी जनसंख्या वाले इस केंद्रशासित क्षेत्र में किसी भी अन्य राज्य की ही तरह एक प्रशासक, सलाहकार, वित्त, गृह, राजस्व और वन सचिव, एक सांसद, कलेक्टर, एसपी और लगभग सभी विभाग हैं। यदि यह केंद्रशासित क्षेत्र किसी अन्य राज्य का हिस्सा होता तो यह किसी जिले के एक उप-मंडल या उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में एक तहसील जितना बड़ा भी नहीं होता। फिर, इतने छोटे केंद्र शासित प्रदेश को इतनी बड़ी प्रशासनिक मशीनरी की आवश्यकता क्यों है ? इसका एकमात्र तर्कहीन कारण सरकारी रोजगार है। कांग्रेस सरकारों और सबसे लंबे समय तक यहां से सांसद रहे पी.एम.सईद.की यही नीति रही है। बुनियादी शिक्षा पूरी करने के बाद हर द्वीपवासी के लिए किसी न किसी विभाग में एक नौकरी आरक्षित है। बेहतर शैक्षणिक योग्यता वालों को निश्चित रूप से सरकारी नौकरी मिल जाती है। दूसरों को किसी भी सरकारी विभाग द्वारा ठेका रोजगार या आकस्मिक मजदूर के रूप में ले लिया जाता है। सभी नौकरियां द्वीपवासियों के लिए आरक्षित हैं। "विभागीय रूप से परिभाषित कौशलों" के आधार पर संविदा कर्मचारियों को कम से कम 20,000 रुपये प्रति माह तथा अस्थायी श्रमिकों को 10,000 रुपये या इससे अधिक मिलते हैं।
पैसे का होता दुरुपयोग
सभी स्थायी कर्मचारियों को भौगोलिक दृष्टि से कठिन इलाके के चलते ऊंचे भत्ते दिए जाते हैं। अपने ही द्वीप में काम करने वाले किसी द्वीपवासी को ये भत्ते क्यों मिलने चाहिए ? लक्षद्वीप के सरकारी कर्मचारी, खासकर शिक्षक और डॉक्टर देश में सबसे ज्यादा वेतन पाते हैं। कोई भी व्यक्ति जिसने लक्षद्वीप जाकर वहां के सरकारी तंत्र को करीब से देखा है, वह इस निष्कर्ष पर पहुंच सकता है कि उपर्युक्त श्रम बल द्वारा अर्जित आय के बदले उनके द्वारा खर्च किए गए मानव घंटे देश में सबसे कम हैं।
एक ऐसी जगह जो अपने सभी खाद्य स्रोतों के लिए पूरी तरह से केरल पर निर्भर है, वहां भारी-भरकम कृषि, पशुपालन और आपूर्ति विभाग क्यों हैं ? नारियल के अलावा शायद ही कोई कृषि होती है। कुछ द्वीपों में केरल के नारियल तोड़ने वाले नारियल तोड़ते हैं। एक भी द्वीपवासी कठिन परिश्रम नहीं करता है। सभी पीडब्ल्यूडी मजदूर, नारियल तोड़ने वाले, चाय की दुकानों के कर्मचारी, मैकेनिक, बढ़ई, प्लंबर और इलेक्ट्रीशियन गैर-द्वीपवासी ही हैं। वहां शायद ही कोई निजी उद्योग या उद्यम है। यहां तक कि पर्यटकों के लिए झोपड़ियां और होटल भी सरकार द्वारा चलाए जाते हैं, जिनमें ज्यादातर कर्मचारी लक्षद्वीप के निवासी होते हैं।
सरकारी पैसे पर पल रहे एनजीओ
इसके अलावा लक्षद्वीप पर कई गैर सरकारी संगठन फालतू के सरकारी खर्च पर पलते हैं। सभी पीडब्ल्यूडी ठेकेदार लक्षद्वीप के हैं। पर्यटन, बंदरगाह, जहाजरानी और उद्योग यहां पैसा डुबाने वाली मशीनें हैं, जिनका राजस्व व्यय की तुलना में लगभग शून्य है। यहां का 50 प्रतिशत नारियल बर्बाद हो जाता है तो वहीं सूक्ष्म उद्योग भी नहीं हैं। प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक सुंदरता से भरी जगह होने के बाद भी इसे पर्यटन उद्योग के नक्शे में कोई जगह हासिल नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों ? क्या यह पिछली सरकारों की विफलता नहीं है ?
राजस्व शून्य, खर्चा अथाह
लक्षद्वीप का सालाना बजट 1,500 करोड़ रुपये है। यानी प्रत्येक द्वीप पर सरकार द्वारा प्रति व्यक्ति व्यय लगभग 2.30 लाख रुपये है। मतलब कि चार लोगों के परिवार पर लगभग 9.25 लाख के करीब। क्या कोई अन्य भारतीय राज्य/केंद्र शासित क्षेत्र अपने लोगों पर इतना खर्च कर रहा है, वह भी शून्य राजस्व पर ? यह पैसा कैसे खर्च किया जाता है ? जरूरत से ज्यादा कर्मचारियों को नियोजित करने वाले विभागों के वेतन के अलावा, प्रशासन द्वीपवासियों को सभी प्रकार की सब्सिडी प्रदान करता है। द्वीपवासियों को सब कुछ मुफ्त में दिया जाता है। यहां के सभी द्वीपों में डीज़ल से एक यूनिट बिजली की उत्पादन लागत लगभग 30 रुपये है, लेकिन इसे न के बराबर मूल्य पर वितरित किया जाता है। एक जहाज की टिकट में मुख्य भूमि से और वापस जाने के लिए मुश्किल से 150 रुपये खर्च होते हैं। द्वीपवासियों के लिए हेलीकॉप्टर और हवाई जहाज से उड़ान का किराया क्रमशः रु. 1,000 और रु. 5,000 से अधिक नहीं है। हेलीकॉप्टर और हवाई कंपनियों को किराये में अंतर का भुगतान सरकार द्वारा किया जाता है।
मजहब के नाम पर अलगाव
हर विभाग अधि-नियोजित है। केंद्र शासित क्षेत्र में अपनी जनसंख्या के सापेक्ष सरकारी कर्मचारियों की संख्या अधिक है। लक्षद्वीप में शिक्षक-छात्र अनुपात भी सबसे ऊंचा है, जबकि शिक्षा के परिणाम देश में सबसे नीचे की श्रेणी में है। जब सरकार द्वारा स्वीकृत शिक्षकों के सभी पद भर जाते हैं, तो विभाग संविदा शिक्षकों की नियुक्ति करता है। शिक्षकों के व्यक्तिगत शिक्षण घंटे सभी राज्यों की तुलना में सबसे कम हैं। दो महीने की गर्मी की छुट्टी के अलावा रमजान में एक महीने की छुट्टी रहती है। इस्लामी महत्व के सभी दिन यहां छुट्टियां रहती हैं। पाठ्य पुस्तकें निःशुल्क दी जाती हैं। इतना ही नहीं, यहां छात्रों को नोटबुक, वर्दी और साइकिल मुफ्त में दी जाती है और अनुसूचित जनजाति के रूप में वर्गीकृत होने के कारण उन्हें प्रशासन द्वारा प्रशिक्षु भत्ता और छात्रवृत्ति के रूप में पैसा मिलता है। अब नए प्रशासक द्वारा हाल ही में किए गए बदलाव के पहले तक, छात्रों को हर दिन चिकन, मटन, बीफ, मछली और अंडे के साथ मांसाहारी भोजन परोसा जाता रहा। ऐसे में सवाल यह उठता है कि देश के अन्य किसी राज्य में सरकारी स्कूल के छात्रों को ऐसी सुविधाएं प्राप्त हैं ?
योग्यता की अनदेखी
लक्षद्वीप देश का एकमात्र ऐसा स्थान है, जहां मुस्लिम समुदाय को अनुसूचित जनजाति के रूप में अधिसूचित किया गया है। पूरे भारत में और विशेष रूप से केरल में सभी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में लक्षद्वीप के छात्रों के लिए सीटें आरक्षित हैं। केरल के सभी मेडिकल कॉलेजों में लक्षद्वीप के छात्रों के लिए सीटें आरक्षित हैं। इसलिए लक्षद्वीप से चिकित्सा जगत में आने वाले डॉक्टर, नर्स, फार्मासिस्ट और पैरामेडिकल स्टाफ योग्यता नहीं "पात्रता" के आधार पर आते हैं जिसकी वजह से लक्षद्वीप में स्वास्थ्य सेवाओं का बुनियादी ढांचा सबसे खराब श्रेणी का है। जब तक आपके पास एक सक्षम चिकित्सा बिरादरी नहीं होगी, चिकित्सा क्षेत्र के बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए मूल्यवान सलाह कैसे दी जा सकती है? यहां के डॉक्टर बिना किसी गंभीर विश्लेषण या प्रतिबद्धता के लगभग सभी नवजात प्रसव और गंभीर मामलों को तुरंत मेडिकल एम्बुलेंस के सहारे कोच्चि रेफर कर देते हैं। इन फैसलों पर किसी की जवाबदेही नहीं है। और इस पर होने वाले खर्च का भुगतान कौन करता है ? सरकार।
बहाया पानी की तरह पैसा
दिसंबर, 2020 तक लक्षद्वीप एकमात्र कोविड-मुक्त केंद्र शासित क्षेत्र/राज्य बना रहा। यह कैसे हुआ ? विस्तृत जांच करने पर यह पाया गया कि प्रशासन ने लक्षद्वीप और मुख्य भूमि के बीच लोगों की आवाजाही के लिए एक मानक कार्य प्रक्रिया (एसओपी) जारी की थी जिसके तहत मुख्य भूमि के लिए सभी परमिट रद्द कर दिए गए थे। मुख्य भूमि के निवासियों को वहां जाने की अनुमति नहीं थी। केवल द्वीपवासियों को मुख्यभूमि जाने की अनुमति दी गई थी। उन्हें भी कोच्चि में 14 दिनों के क्वारंटाइन से गुजरना होता था और लक्षद्वीप में वापस जाने से पहले परीक्षण में कोविड नकारात्मक होने की आवश्यकता थी। इसी जांच में पता चला एसओपी के अनुसार उपरोक्त क्वारंटाइन बनाए रखने के लिए प्रशासन ने केरल में निजी होटल किराए पर लिए थे। इस क्वारंटाइन में रहने के बाद द्वीपों की यात्रा करने वाले प्रत्येक द्वीप निवासी को मुफ्त भोजन, मुफ्त परीक्षण और मुफ्त परिवहन मिलता था। प्रशासन की ओर से हर महीने करीब एक करोड़ रुपये इस पर खर्च किए जाते थे। जब द्वीपवासियों के लिए खुद को भुगतान करने की योजना बनाई गई तो उन्होंने विरोध शुरू कर दिया। एक साल तक प्रशासन ने यह व्यवस्था जारी रखी। इस पर सरकारी खर्च क्यों हुआ ? मुश्किल से 4000 से 5000 लोगों की आवाजाही के लिए इस पर 10 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। किस दूसरे राज्य/केंद्र शासित प्रदेश ने ऐसा किया गया दिखाई पड़ता है, फिर यहां के लोगों को ऐसी विशेष सुविधा क्यों ?
द्वीपवासियों का खराब रवैया
मुख्य भूमि के लोगों के प्रति द्वीपवासियों का रवैया क्या रहा है ? कई बार देखने में आया कि द्वीपों में फंसे मुख्यभूमि के लोगों के साथ दुर्व्यवहार तक की कई घटनाएं आईं। कोरोना जैसे लक्षणों से पीड़ित केरल के निवासियों को बुनियादी चिकित्सा सुविधाओं से वंचित कर दिया गया। द्वीपों में फंसे मुख्यभूमि के श्रमिकों को वहां रहने की अनुमति तक नहीं थी।
केंद्र सरकार के कई वरिष्ठ अधिकारियों को भीड़ ने होटलों के कमरों में बंद कर दिया और लोगों ने प्रशासन को ब्लैकमेल कर लॉकडाउन के दौरान मुख्य भूमि वालों को घर वापस भेज दिया। ऐसे भी उदाहरण सामने आए, जब द्वीपों में तैनात रक्षा कर्मियों को कुछ द्वीपों में उतरने की अनुमति नहीं दी गई। मुख्य भूमि में केरल, ओडिशा और बंगाल जैसे राज्यों से आए भूखे-प्यासे मजदूरों को खिलाने के लिए कोई जनप्रतिनिधि आगे नहीं आया। सौभाग्य से वहां एक दयालु प्रशासक और कलेक्टर थे, जिन्होंने तुरंत व्यक्तिगत रूप से ध्यान दिया और उनकी देखभाल करने के आदेश जारी किए।
सेना का करते रहे हैं विरोध
इन द्वीपों पर काम करने वाले नौसेना, तट रक्षक बल और अर्धसैनिक बल के अधिकारियों की मानें तो द्वीपों पर स्थित रक्षा प्रतिष्ठानों को हटाने और जमीनें वापस द्वीपवासियों को सौंपने के लिए स्थानीय लोग लगातार विरोध प्रदर्शन करते रहे हैं। यह तब जबकि अपनी सभी जरूरतों के लिए द्वीपवासी मुख्य भूमि पर निर्भर हैं। कुछ समय पहले केरल विधानसभा ने एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसमें कहा गया कि लक्षद्वीप केरल के साथ सांस्कृतिक संबंध साझा करता है, जबकि स्कूलों में शिक्षा के माध्यम के रूप में इस्तेमाल की जाने वाली मलयालम भाषा और पहनावे के अलावा द्वीप के निवासियों की केरल के साथ कोई सांस्कृतिक समानता या साझा लोकाचार नहीं है। यहां के स्कूलों में शुक्रवार को छुट्टी होती है। भारत में शुक्रवार की छुट्टी कहां होती है ? मालदीव की मछली पकड़ने वाली नौकाओं को लक्षद्वीप के जल क्षेत्र में जाने की अनुमति है और स्थानीय मछुआरे उनके साथ दुर्व्यवहार तक करते हैं। वन विभाग और तट रक्षक बल ने हाल ही में अंतरराष्ट्रीय अपराध सिंडिकेट का खुलासा किया है। उल्लेखनीय है कि किसी भी अन्य भारतीय राज्य से इस जल क्षेत्र में प्रवेश करने वाली नौकाओं को तुरंत जब्त कर लिया जाता है और परमिट उल्लंघन के लिए गरीब मछुआरों को गिरफ्तार कर लिया जाता है। इन द्वीपों के निवासी शायद ही कोई भारतीय त्योहार मनाते हों। हालात यहां तक हैं कि समय—समय पर भारत की दुनिया में कोई न कोई उपलब्धि होती है, पर यहां के लोगों को इससे कोई मतलब नहीं होता और न वे प्रसन्नता व्यक्त करते दिखाई देते।
महात्मा गांधी की प्रतिमा तक नहीं लगने दी
यह वही लक्षदीप है, जहां महात्मा गांधी की प्रतिमा को स्थापित करने की भी अनुमति नहीं मिलने के कारण उसे केरल वापस लाया गया था। ऐसे ही जब द्वीपों में केन्द्रीय विद्यालय खोले गए थे, तब कट्टरपंथियों द्वारा इस्लामी पवित्रता भंग होने के डर से गंभीर विरोध हुए थे। प्रशासन के कड़े रुख के बाद ही यहां स्कूल की शुरुआत हो सकी थी। केरल का मुख्य त्योहार ओणम भी लक्षद्वीप के लोग नहीं मनाते हैं। द्वीप के मजहबी कट्टरपंथियों का मानना है कि ओणम मनाने से उनका इस्लाम खतरे में आ जाएगा। यहां तक कि केरल के फिल्म निर्माताओं को भी मजहबी कट्टरपंथियों के कारण लक्षद्वीप में फिल्मों की शूटिंग में समस्याओं का सामना करना पड़ता है। हो सकता है कि वातानुकूलित कमरों में रहने और केवल शूटिंग के लिए बाहर आने वाले अभिनेता—अभिनेत्रियों को यह पता न होने के कारण ही, वे हाल ही में सोशल मीडिया पर द्वीपवासियों के समर्थन में झंडा उठाए नजर आए हों।
हिन्दू विरोध
यहां के सभी द्वीपों में मंदिर हैं। उन मंदिरों का निर्माण किसने किया ? यहां काम करने वाले मुख्यभूमि केरल के हिंदुओं ने। उनका क्या हुआ ? उनमें से किसी को भी लक्षद्वीप में आत्मसात नहीं किया गया। उन्हें कभी भी लक्षद्वीप में बसने नहीं दिया गया। यहां भूमि का स्वामित्व केवल लक्षद्वीप के निवासियों का। अतीत में प्रशासन द्वारा इसमें परिवर्तन के प्रयासों का द्वीपवासियों ने तुरंत विरोध किया। बीते सालों में मुख्यभूमि के हिंदुओं को धीरे-धीरे यहां से बाहर कर दिया गया है और प्रशासन पर द्वीपवासियों का वर्चस्व है। और यह द्वीपवासी 100 फीसद मुस्लिम हैं। ऐसे में सब कुछ समझा जा सकता है।
पुलिस मामले
लक्षद्वीप में पुलिस मामलों की संख्या कम क्यों है ? यदि इसकी तह में जाएं तो पाते हैं कि यहां के लोगों के खिलाफ शिकायत आती है तो पुलिस मामले दर्ज नहीं करती है। क्योंकि सभी एक दूसरे से संबंधित होते हैं। लेकिन अगर शिकायत किसी मुख्यभूमि निवासी के खिलाफ है तो तुरंत मामला दर्ज होता है और उन्हें पुलिस तथा स्थानीय लोग परेशान करने लगते हैं।
कोरी अफवाह, झूठे आरोप
द्वीपवासियों का आरोप है कि वर्तमान केंद्र सरकार द्वीपों को नष्ट करने की कोशिश कर रही है। लेकिन यह मोदी सरकार ही थी, जिसने अतीत की ब्रिटिश भूमि को द्वीपवासियों को सौंपने का फैसला किया था। वर्तमान सरकार ने इंटरनेट कनेक्टिविटी के लिए हजारों करोड़ की लागत से भूमिगत केबल बनाने का निर्णय लिया है। केवल वर्तमान सरकार के कारण ही लक्षद्वीप में मोबाइल कनेक्टिविटी में सुधार हुआ है। अटल बिहारी वाजपेयी जी के नेतृत्व वाली राजग सरकार के समय ही द्वीपवासियों को बेहतरीन जहाज दिए गए थे। यहां विकास जारी रखने के लिए ही वर्तमान सरकार हजारों करोड़ रुपये के पर्यटन का बुनियादी ढांचा स्थापित करने की योजना बना रही है। कौन सा राज्य या केंद्रशासित क्षेत्र है, जो हजारों करोड़ के पर्यटन निवेश का विरोध करेगा, जिससे हजारों रोजगार अवसर पैदा होंगे ? लक्षद्वीप इस योजना का विरोध क्यों कर रहा है ? क्योंकि द्वीपवासियों को फ्री की लत लग चुकी है। वे परजीवी किस्म के हो चुके हैं। वह सरकारी रोजगार और सरकार द्वारा मिलने वाली योजनाओं का अधिक से अधिक दोहन कैसे किया जा सके, इस तरह की कार्यशौली में विश्वास रखते हैं। हकीकत में देखें तो मुफ्त की सरकारी रोटी तोड़ने में विश्वास रखते हैं, बिना कोई काम किए। यही वजह है कि जब भी कोई नए कानून, कायदे की बात होती तो उन्हें चुभने लगती और वे इसका विरोध करके हल्ला काटना शुरू कर देते।
बहरहाल, कुल मिलाकर बात यह है कि यहां के लोगों को भारतीय भावना को ताक पर रखकर सरकार की ओर से मुफ्त उपहार चाहिए। सभी सुख—सुविधाएं चाहिए। पर नियम—कानून वह अपने चलाएंगे। विविधता की संस्कृति को ठेंगा दिखाकर मजहबी फसल तैयार करेंगे। यही सब वजहे हैं जब वर्तमान प्रशासक ने उनकी ऊट-पटांग मांगों को मानना बंद कर दिया है। इसीलिए उन्हें मोदी द्वारा लक्षद्वीप में भेजे गया "जैव हथियार" तक कहा जा रहा है।
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