हितेश शंकर
महामारी अभी गई नहीं, परंतु हो-हल्ले को हवा देने वाली राजनीतिक मारामारी एक ‘टीके’ के बाद थम सी गई।
कोरोना और इसके उपचार, दोनों को लेकर राजनीति के नए-नए आयाम रचे जा रहे थे, विपक्ष अपने अजब-अबूझ तर्क-तमाशे के साथ अलग ही रूप में प्रकट हो रहा था, उस समय प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन से लोगों को भ्रमित करने वाली सियासी बीमारी का टीकाकरण बहुत अच्छे से कर दिया।
हाल में जो हो-हल्ला मचा, उसे विडंबना ही कहा जा सकता है। भारत की जिस एकात्मता को दुनिया कई दृष्टिकोणों से देखती है, कई समाधान पाती है और आश्चर्यचकित होती है, उसे राष्ट्रीय संकट के समय कुछ निहित स्वार्थी तत्वों ने मतभिन्नता के अखाड़े में बदलने का षड्यंत्र किया।
प्रधानमंत्री के सम्बोधन ने इस भ्रम का निराकरण और टीके (वैक्सीन) पर राजनीति का पटाक्षेप कर दिया।
महामारी और वैक्सीन की स्थिति
कुछ लोगों ने दवा को अपने हित साधने वाले विमर्श का औजार बना डाला। उसका नमूना है महाराष्ट्र। महाराष्ट्र में एक ओर स्थितियां बेकाबू थीं, दूसरी तरफ सरकार भ्रष्टाचार में लिप्त थी, संक्रमण का खतरा बताते आंकड़े तक नहीं आ रहे थे। यहां स्थितियां बेकाबू होनी सबसे पहले शुरू हुर्इं। राज्य ने पहले महामारी के बारे में केंद्र की चेतावनी को अनसुना किया, फिर आॅक्सीजन संयंत्र लगाने के परामर्श को अनसुना किया। यहां तक जनवरी, फरवरी और मार्च, 2021, इन तीन महीनों में केंद्र्र ने महाराष्ट्र को जितने टीके उपलब्ध कराए, राज्य सरकार ने उनमें से आधे से अधिक का उपयोग ही नहीं किया।
केरल में महामारी के नियंत्रण के एक मॉडल की डुगडुगी पीटी जा रही थी। वैक्सीनेशन की हालत बहुत खराब थी। यहां केंद्र द्वारा उपलब्ध कराई गई वैक्सीन की आधी मात्रा ही उपयोग की गई।
दिल्ली की सरकार महामारी नियंत्रण में पूरी तरह विफल रही। एक तो लगातार अराजकता का माहौल रहा, सरकार आॅक्सीजन प्रबंधन में विफल रही। राज्य सरकार केंद्र से आॅक्सीजन देने की गुहार कर स्वयं को निर्दोष साबित करने और जनता को भ्रमित कर उकसाने का काम करती रही। परंतु उच्च न्यायालय से आॅक्सीजन आॅडिट की बात आने पर दिल्ली सरकार पीछे हट गई और आॅक्सीजन कमी का रोना भी छोड़ दिया। यहां जितनी मौतें हुर्इं, उनमें कितनी हत्याएं कही जाएंगी, इसका आकलन अभी बाकी है। दिल्ली में जो राशन की दुकानों को सुपर स्प्रेडर बता रहे थे, वे सुपर स्प्रेडर धरने के साथ खड़े होकर महामारी को बढ़ा रहे थे! देश की राजधानी में युवाओं का टीकाकरण रोक दिया! टीकाकरण केंद्र बंद कर दिए। केंद्र द्वारा जितनी वैक्सीन उपलब्ध
कराई गई, दिल्ली सरकार उसका आधा भी उपयोग नहीं कर सकी!
राजस्थान में तो और गजब किस्सा हुआ। यहां महामारी को रोकने के लिए केंद्र से भेजी गई वैक्सीन जमीन में गाड़ दी गई। कूड़े में फेंक दिया गया। पंजाब में वेंटिलेटर्स को निजी अस्पतालों को किराये पर देकर पैसे बनाने का खेल हुआ। जब लोगों की जान जा रही थी, सरकार पैसे बनाने में लगी थी। जो टीके मुफ्त में दिए जाने थे, उस पर भी सरकार अपनी झोली भर रही थी।
राज्यों के महामारी नियंत्रण में और टीकाकरण में विफल रहने पर कुछ लोगों ने सवाल खड़े करने शुरू किए कि केंद्र को अपना जिम्मा राज्यों पर नहीं डालना चाहिए। ये वही लोग थे जो पहले कह रहे थे कि केंद्र विकेंद्रीकरण करे और राज्यों को अधिकार दे। विकेंद्रीकरण करने के बाद जब राज्यों ने ये नजारे दिखाए तो केंद्र को मजबूरन फिर कमान अपने हाथों में लेनी पड़ी क्योंकि महामारी के समय उपद्रव करने, लोगों की जान से खेलने की छूट यह लोकतंत्र नहीं देता। इस समय टीकाकरण जरूरी है, साथ ही राजनीति का टीकाकरण भी जरूरी है।
याद रखिए, जनसंख्या की विपुलता और सघनता तथा आधारभूत संरचना की सीमितता के कारण चीनी वायरस संकट के समय दुनिया में सबसे बड़ी चुनौती हमारे सामने है। अच्छी बात यह है कि इसे सबसे तेजी से उसे पार करने वाले भी हम ही हैं। सो, आपदा के समय किसी को उपद्रवी राजनीति की छूट भला कैसे दी जा सकती है!
@hiteshshankar
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