संतोष कुमार वर्मा
आने वाले समय में पाकिस्तान में बेरोजगारी दर में भारी वृद्धि हो सकती है, जो एक बड़ी आबादी को गरीबी के दुश्चक्र में फंसाए रखेगी। आईएमएफ ने भी गरीबी की स्थिति में एक तेज उलटफेर का अनुमान लगाया है, जिसके अनुसार लगभग 40 प्रतिशत पाकिस्तानी आबादी गरीबी रेखा के नीचे जा सकती है।
भू—मंडलीकरण के इस दौर में जब विश्व आर्थिक उन्नति के नित नए सोपानों को पार करता जा रहा है, वैश्विक वित्तीय आंकड़े जहां उन्नति की नई इबारत लिखने में व्यस्त है, वही ऐसे समय में विश्व की एक बड़ी आबादी अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। ऐसे देशों में दक्षिण एशियाई विकासशील देशों की बहुलता है और पाकिस्तान का इनमें प्रमुख स्थान है। पाकिस्तान जो 1947 में अपने अस्तित्व में आने के बाद एक रूढ़िवादी समाज की स्थापना पर अटक कर रह गया। जहां सरकार की नीतियां जमींदार, बड़े उद्योगपति, नौकरशाह और कुल मिलाकर शहरी और ग्रामीण धनीवर्ग के पक्ष में थीं। ऐसी स्थिति में गरीबों के कल्याण और गरीबी उन्मूलन की बातें केवल रस्म अदायगी बन कर रह गई हैं। अब एक बार फिर इसी क्रम में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने बुधवार को कहा कि सरकार ने धन सृजन और लोगों की क्रय शक्ति में सुधार के माध्यम से समाज के गरीब और कमजोर वर्गों को गरीबी से बाहर निकालने के लिए एक व्यापक रणनीति तैयार की है। उन्होंने कामयाब पाकिस्तान कार्यक्रम की एक बैठक की अध्यक्षता करते हुए चीन के मॉडल की तारीफ की कि किस प्रकार चीन ने पिछले 30 वर्षों के दौरान लाखों लोगों को गरीबी से सफलतापूर्वक बाहर निकाला है। और पाकिस्तान के शासकों के स्वभावानुसार उसका अनुकरण करने कि प्रतिबद्धता व्यक्त की। खान ने बताया कि सरकार ने लोगों की क्रय शक्ति में सुधार के लिए कई कदम उठाए हैं। किसानों और कृषि क्षेत्र को सब्सिडी के रूप में 1.1 खरब रुपये की भारी राशि दी गई है, जिससे देश की 70 प्रतिशत आबादी लाभान्वित हो रही है, जो मुख्यत: ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे हैं।
गरीबी उन्मूलन का सच !
कामयाब पाकिस्तान और एहसास जैसे कार्यक्रमों के द्वारा जहां पाकिस्तान के निर्धनतम वर्ग को समारोहपूर्वक खैरात बांटकर, पाकिस्तान की सरकार इस बात का दंभ भर रही है कि उसने अपने देश में गरीबी उन्मूलन के काम को सफ़लता पूर्वक आगे बढ़ाया है। और आंकड़ों की बाजीगरी द्वारा उन्होंने इसे सिद्ध करने की पुरजोर कोशिश भी की। सरकारी आंकड़ों के अनुसार पाकिस्तान विश्व के शीर्ष 15 देशों में से एक था, जिसने सन 2000 से 2015 के बीच गरीबी की दर में सबसे बड़ी वार्षिक औसत गिरावट दर्ज की। इन आंकड़ों के अनुसार पाकिस्तान 2001 में गरीबी रेखा के नीचे रहने वाली आबादी का प्रतिशत 64.3 था, जो आश्चर्यजनक रूप से अगले 15 सालों में यानी 2015 तक गिरकर 24.3 रह गया। परन्तु यह आंकड़े भी अस्पष्ट सूचनाओं और विश्लेषण पद्धति पर आधारित थे। सटीक और सुसंगत गरीबी अनुमानों की कमी पाकिस्तान में प्रभावशाली गरीबी उन्मूलन नीतियों को तैयार करने में एक प्रमुख बाधा रही है। अगर गरीबी रेखा के आकलन की बात करें तो अलग-अलग क्रय शक्ति समता के साथ मुद्रा रूपांतरण दरों और उसके आकलन की अलग—अलग क्रियाविधियों ने इन आंकड़ों में प्रामाणिकता के अभाव के साथ ही साथ अनेक विसंगतियों को जन्म दिया है। जैसा कि पहले बताया गया कि पाकिस्तान सरकार के आंकड़ों में 2010 से लेकर 2015 के बीच गरीबी की दर में भारी गिरावट दिखाई गई।
पाकिस्तान के प्रमुख अखबार डॉन के अनुसार ठीक इसी समय एक स्वतंत्र नीति थिंक टैंक का अनुमान था कि 2015 में लगभग 38 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे रह रही थी; जिसका स्पष्ट अर्थ है कि 5 करोड़ नहीं बल्कि 6.5 करोड़ से अधिक लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन कर रहे थे। 2016 में सरकार ने पाकिस्तान में गरीबी के आकलन के लिए व्यापक रूप से उपयोग किए जाने वाले वैश्विक गरीबी माप, बहु-आयामी गरीबी सूचकांक को तैयार किया। इसका उद्देश्य तीन मुख्य अभाव संकेतकों पर आधारित था: शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवन स्तर। इसके कारण आंकड़ों में कुछ हद तक प्रमाणिकता आई है।
कोविड 19 और गरीबी की स्थिति
विश्व बैंक द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2020 की अंतिम तिमाही के दौरान आई कोविड-19 महामारी के बढ़ते प्रकोप के कारण आर्थिक गतिविधियों में भारी संकुचन हुआ, जिसके परिणामस्वरूप वित्त वर्ष में जीडीपी विकास दर में गिरावट के कारण आधी कामकाजी आबादी या तो नौकरी खोने या आय में भारी कमी का सामना कर चुकी है और इसका सर्वाधिक दुष्प्रभाव अनौपचारिक और कम-कुशल श्रमिकों को जो प्राथमिक व्यवसायों में संलग्न थे, को उठाना पड़ा है। पाकिस्तान सरकार के वित्त मंत्रालय के ही एक अनुमान के अनुसार ऐसे करीब 2 करोड़ लोगों के बेरोजगार होने की संभावना है। विश्व बैंक का मानना है कि अंतर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा जो प्रति दिन 1.90 डॉलर है (क्रय शक्ति समता के आधार पर, 2011) को आधार मान लें तो कोविड-19 महामारी के चलते 2 करोड़ से अधिक लोगों के गरीबी रेखा में जुड़ने की संभावना है, जिसमें से 40 प्रतिशत परिवार मध्यम से गंभीर प्रकार की खाद्य असुरक्षा से पीड़ित हो सकते हैं।
पाकिस्तान सहित 70 देशों में किये गए यूनाइटेड नेशन डेवलपमेंट प्रोग्राम (यूएनडीपी) के एक हालिया अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि कोविड-19 महामारी, गरीबी के स्तर को 9 साल पीछे के स्तर पर ले जा सकती है। उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था कोविड-19 के पहले से ही गहन वित्तीय संकट से ग्रस्त थी और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) द्वारा प्रायोजित व्यापक आर्थिक स्थिरीकरण कार्यक्रम से गुजर रही है। पाकिस्तान की सरकार का अनुमान है कि उसकी 56.6 प्रतिशत आबादी अब कोविड-19 के कारण सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर हो गई है। पाकिस्तान की लगातार तेजी से बढ़ती आबादी के कारण यहां की लगभग दो-तिहाई जनसंख्या 30 वर्ष से कम आयु की है और इस युवा कार्यबल को लाभपूर्ण रोजगार में अवशोषित करने के लिए कम से कम 7 प्रतिशत की निरंतर जीडीपी विकास दर की आवश्यकता है। जबकि महामारी के बाद यह विकास दर केवल 2 प्रतिशत के आसपास आकर सिमट गई है। ऐसी स्थिति में इस बात की भरपूर संभावना है कि आने वाले समय में पाकिस्तान में बेरोजगारी दर में भारी वृद्धि हो सकती है, जो एक बड़ी आबादी को गरीबी के दुश्चक्र में फंसाए रखेगी। आईएमएफ ने भी गरीबी की स्थिति में एक तेज उलटफेर का अनुमान लगाया है, जिसके अनुसार लगभग 40 प्रतिशत पाकिस्तानी आबादी गरीबी रेखा के नीचे जा सकती है।
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