कथित किसान आंदोलन की अगुवाई करने वाले नेता हरियाणा में अराजकता फैलाकर अपना राजनीतिक हित साधने के कुत्सित प्रयासों में जुटे हुए हैं। इसी को लेकर दो किसान नेताओं राकेश टिकैत और गुरनाम सिंह चढूनी के बीच टकराव हो रहा है।
22 जनवरी 2021 की बात है। दिल्ली के विज्ञान भवन में किसानों और सरकार की बातचीत चल रही थी। देश-विदेश के तमाम मीडिया चैनल के प्रतिनिधि यहां डटे हुए थे। हर किसी की नजर इसी पर टिकी हुई थी। तभी किसान नेता अंदर से बाहर आए। उत्सुकता से पत्रकारों ने पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’ उन्होंने बताया, ‘‘सरकार तीनों कृषि कानूनों को डेढ़ साल के लिए स्थगित कर इन पर विचार करने को तैयार है। सरकार का प्रस्ताव तो बहुत अच्छा है। किसान इस बात को समझ रहे थे, लेकिन इससे स्वयंभू किसान नेताओं के मंसूबे पूरे नहीं होते थे। लिहाजा, उन्होंने ऐलान किया कि वे सरकार के प्रस्ताव को नहीं मानेंगे। किसान आंदोलन का यह ‘टर्निंग प्वाइंट’ था। नतीजा, लालकिला पर कब्जा करने की कोशिश हुई। तब से लेकर अभी तक आंदोलन की आड़ में हंगामा करने की हर संभव कोशिश की जा रही है, जिसमें साथ दे रहे हैं, विपक्षी दल। विपक्षी दल अपनी जमीन खो चुके हैं। उनके पास मुद्दा नहीं है। इसलिए अब वे किसानों के भेष में हंगामा कर माहौल खराब करने की कोशिश में जुटे हुए हैं। दूसरी ओर, किसान नेता का किरदार निभा रहे हरियाणा के गुरनाम सिंह चढूनी, उत्तर प्रदेश के राकेश टिकैत और योगेंद्र यादव का चाल-चरित्र भी किसानों के बीच उजागर हो गया। किसानों को यह बात समझ में आ गई कि किसान नेता अपना हित साध रहे हैं। इसलिए हरियाणा, उत्तर प्रदेश और पंजाब के किसान अपने-अपने घरों को लौट गए। अपनी जमीन खिसकती देख कर अब ये किसान नेता वह हंगामा कर माहौल को खराब करने की कोशिश कर रहे हैं। वे प्रशासन और पुलिस को उकसा रहे हैं, जिससे हरियाणा में अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न हो।
.. और गुरनाम को टोहाना से भागना पड़ा
बीते दिनों हरियाणा के हिसार और टोहाना में जो हुआ, वह अराजकत फैलाने की इसी कड़ी का एक हिस्सा है। दरअसल, हिसार में ओपी जिंदल मॉर्डन स्कूल में बने चौधरी देवीलाल संजीवनी अस्पताल का उद्घाटन हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल को करना था। मुख्यमंत्री 500 बेड वाले अस्थाई अस्पताल का उद्घाटन करके चले गए। इसके बाद कुछ असामाजिक तत्व खुद को किसान बताते हुए अस्पताल में घुसने लगे। जब पुलिस ने रोका तो उन्होंने हमला बोल दिया। इसमें डीएसपी समेत कई पुलिसकर्मी घायल हो गए। पुलिस ने बहुत संयम दिखाते हुए स्थिति को संभाला। टोहाना में भी असामाजिक तत्वों ने कानून को हाथ में लिया। यहां एक मई को सरकार के गठबंधन दल जननायक जनता पार्टी के विधायक देवेंद्र बबली गाड़ी से जा रहे थे, तभी उनकी गाड़ी पर हमला बोला गया। हमले में गाड़ी का शीशा टूट गया, लेकिन विधायक बाल-बाल बच गए। इस घटना के बाद असामाजिक तत्व दो गुटों में बंट गए। एक गुट ने टोहाना में गुरनाम सिंह चढूनी का जमकर विरोध किया, जिससे चढूनी को टोहाना से भागना पड़ा।
युवा किसान संघ हरियाणा के प्रदेशाध्यक्ष प्रदीप चौहान सवाल करते हैं, ‘‘इस आंदोलन में किसान हैं कहां? यह असामाजिक तत्वों का जमावड़ा भर है। किसान इनके साथ हैं ही नहीं। टोहाना में जो हुआ, इससे साबित हो रहा है कि ये सभी शरारती तत्व हैं, जो कानून को अपने हाथ में लेने की कोशिश कर रहे थे। गुरनाम सिंह चढूनी खुद को फंसता देख मौके से भाग निकले। फिर सोशल मीडिया पर वीडियो जारी कर टोहाना की घटना को शरारती तत्वों की करतूत बताया। लेकिन बाद में फिर चढूनी टोहाना क्यों पहुंचे? क्योंकि उन्हें पता है, किसानों को उनकी सच्चाई का पता चल गया है।’’ प्रदीप आगे बताते हैं, ‘‘चढूनी ऐसे अराजक तत्वों के दम पर ही राजनीति कर सकते हैं। इसलिए पहले आरोप लगाए और फिर उनके बीच पहुंच गए। चढूनी सोशल मीडिया पर जो वीडियो डालते हैं, वे भड़काने वाले हैं। एक वीडियो में वह उत्तर प्रदेश के किसानों को किसानों को हंगामा करने के लिए उकसाते दिख रह हैं। ऐसा नहीं कि प्रदेश की जनता और किसान इस सच को जानते नहीं, उन्हें सब पता।’’
गेहूं खरीद व्यवस्था से किसान खुश
समालखा के 38 वर्षीय किसान किरण दीप ने बताया कि इस बार हरियाणा सरकार ने जो गेहूं खरीद की व्यवस्था की, उससे किसानों को बहुत लाभ हुआ। किसानों को सीधा भुगतान हुआ और उन्हें पैसे के लिए आढ़तियों के चक्कर नहीं काटने पड़े। इससे बेहतर और हो क्या सकता है। लेकिन तथाकथित नेता इस व्यवस्था का विरोध कर रहे हैं ताकि आढ़ती और बिचौलिये मिल कर किसान के नाम पर होने वाली सरकारी खरीद का लाभ स्वयं उठा सकें। किरण दीप का कहना है कि तथाकथित किसान नेता किसानों को उलझाए रखना चाहते हैं, ताकि उनकी राजनीति चलती रहे। यदि किसान के लिए व्यवस्था आसान हो गई, जैसा कि सरकार कर रही है तो इनकी राजनीति और चंदा उगाही का धंधा खत्म हो जाएगा। हंगामा खड़ा करने का सबसे बड़ा कारण यही है।
आंदोलन में युवती का यौन उत्पीड़न
सामाजिक कार्यकर्ता दीपक कंबोज बताते हैं कि इसी साल मई में टिकरी बॉर्डर पर पश्चिम बंगाल की युवती का यौन उत्पीड़न हुआ। बाद में उसकी कोविड से मौत हो गई। योगेंद्र यादव को युवती के पिता ने सारी बात बताई, इसके बाद भी मामले को दबाने की कोशिश हुई। हालांकि बाद में युवती के पिता ने बहादुरगढ़ पुलिस से मामले की शिकायत की। इसके बाद छह लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया। फिलहाल एक एसआईटी इस मामले की जांच कर रही है। योगेंद्र यादव से भी पूछताछ हो चुकी है। दीपक कंबोज पूछते हैं कि इस घटना से क्या मतलब निकाला जाए? ये आंदोलनकारी हैं या असामाजिक तत्व? इससे भी बड़ी बात, किस तरह से ऐसे तत्वों को बचाने की कोशिश हुई। यह योगेंद्र यादव जैसे लोगों की सोच पर सवाल खड़ा करता है। होना तो यह चाहिए था कि पीड़िता को इंसाफ मिले, लेकिन इसके विपरीत घटना दबाने की कोशिश की गई ताकि आरोपियों को बचाया जा सके। इससे ज्यादा शर्मनाक और क्या हो सकता है?
सियासी फायदा उठाने की फिराक में टिकैत-चढूनी
भाकियू के राकेश टिकैत की उत्तर प्रदेश में कोई पकड़ नहीं है। इसलिए वह हरियाणा में अपने लिए संभावना तलाश रहे हैं। इधर, हरियाणा में गुरनाम सिंह चढूनी राजनीतिक तौर पर सक्रिय होने चाहते हैं। इसलिए मौका मिलते ही दोनों एक-दूसरे के खिलाफ डट जाते हैं। कई मौकों पर यह देखने को मिला है। दीपक कंबोज बताते हैं कि टिकैत व चढूनी दोनों को किसानों से कोई मतलब नहीं है। वह बस अपनी राजनीति चमकाना चाह रहे हैं। इसलिए हरियाणा का माहौल खराब कर रहे हैं। इनमें यह होड़ लगी हुई है कि कौन यहां गड़बड़ी करा कर ज्यादा से ज्यादा चंदा उगाही कर सकता है। इससे ज्यादा इनका कोई वास्ता नहीं है। उत्तर प्रदेश के किसान टिकैत की कारगुजारियों से परिचित हैं, इसलिए वे हरियाणा में सक्रिय होना चाह रहे हैं। लेकिन उनकी सक्रियता चढूनी को बर्दाश्त नहीं हो रही है।
बहरहाल, किसान आंदोलन की आड़ में स्वार्थी लोगों का जमावड़ा है, जो हरियाणा का माहौल खराब करने पर तुले हुए हैं। वे लगातार साजिश रच रहे हैं। इन्हें आम आदमी की जान की कोई चिंता नहीं है। प्रदेश की जनता चाहती है कि सरकार इनके खिलाफ ठोस व कानूनी कार्रवाई करे, ताकि इन्हें सबक मिल सके।
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