उत्तराखंड में वन विभाग ने विश्व पर्यावरण दिवस पर जारी अपनी रिपोर्ट में 1,576 पौधों की प्रजातियों की सूची जारी की है, जिनका संरक्षण किया गया। इनमें करीब 500 औषधीय महत्व की हैं। 53 जड़ी-बूटियों की प्रजाति तो दुनिया में केवल उत्तराखंड में ही मिलती हैं।
उत्तराखंड वन विभाग की अनुसंधान शाखा ने 73 दुर्लभ, संकटग्रस्त और लुप्तप्राय पौधों की प्रजातियों के साथ 54 पौधों की प्रजातियों को संरक्षित किया है। ये पौधे उत्तराखंड और भारतीय हिमालयी क्षेत्र के लिए स्थानिक हैं।
राज्य के वन विभाग की अनुसंधान शाखा ने विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर अपने द्वारा संरक्षित विभिन्न पौधों की प्रजातियों पर एक व्यापक रिपोर्ट जारी की है। विभाग ने कहा कि उत्तराखंड देश का एकमात्र ऐसा राज्य है, जिसने वार्षिक आधार पर इस तरह की रिपोर्ट जारी करना शुरू किया है। अनुसंधान शाखा के प्रमुख संजीव चतुर्वेदी ने कहा, “यह व्यापक रिपोर्ट ‘प्लांट ब्लाइंडनेस’ की अवधारणा का मुकाबला करने, जैव विविधता के लिए संरक्षण संबंधी मुद्दों और खतरों के बारे में जागरुकता पैदा करने के लिए जारी की जा रही है, जिस पर हमारा अस्तित्व निर्भर करता है।”
1,576 पौधों की प्रजातियां की सूची
264 पृष्ठों की रिपोर्ट में उत्तराखंड वन विभाग की अनुसंधान शाखा द्वारा राज्य भर में अपने विभिन्न केंद्रों पर संरक्षित 1,576 पौधों की प्रजातियों की विस्तृत सूची है। इसमें 415 पेड़ों की प्रजातियां शामिल हैं, जिनमें से 107 फिकस प्रजातियां, देवदार की 22 प्रजातियों के अलावा, झाडि़यों की 130 प्रजातियां जिसमें 15 तरह की तुलसी, घास की 87 प्रजातियां, 213 कैकटस और रसीली प्रजातियां, आर्किड, लाइकेन और घास की 87-87 प्रजातियां, बांस की 37, फर्न की 96, जड़ी-बूटी की 130 और 4 पांच जलीय प्रजातियों सहित मॉस की 30 प्रजातियां हैं।
53 दुर्लभ जड़ी-बूटी कहीं और नहीं
रिपोर्ट में कहा गया है कि 1,576 संरक्षित प्रजातियों में से लगभग 500 प्रजातियों में औषधीय महत्व की हैं। कुछ प्रमुख प्रजातियों में तेजपा, कल्पवृक्ष, ब्रह्म कमल, संजीवनी, बद्री तुलसी, तितली आर्किड, स्नो ऑर्किड, कृष्णवता, रुद्राक्ष, लेमनग्रास, केवड़ा, पारसपीपल, सिंदूरी, एपिस और ट्रेमैन शामिल हैं। रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है कि उत्तराखंड और हिमालयी क्षेत्र में पाई जाने वाली लगभग 53 प्रजातियां पूरे विश्व में केवल यहीं पाई जाती हैं। जंगल की कटाई, अवैध निकासी, जंगल की आग, चराई, निर्माण के कारण खतरनाक गति से पौधे विलुप्त हो रहे हैं।
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