पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी राजनीतिक विद्वेष पर उतर आई हैं। यही कारण है कि प्रधानमंत्री द्वारा बुलाई जाने वाली मुख्यमंत्रियों की बैठकों में भी नहीं पहुंचतीं। वे बस केंद्र सरकार पर हमला करने के लिए बहाने ढूंढती रहती हैं।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ‘विद्वेष की राजनीति’ में माहिर हैं। केंद्र सरकार के साथ उनकी दुश्मनी तो जगजाहिर है। वह नरेंद्र मोदी सरकार पर हल्ला बोलने के लिए अवसर तलाशती रहती हैं। इसी माह तीन अवसरों पर उन्होंने भाजपा और केंद्र सरकार के प्रति अपना विद्वेष उजागर किया है।
चक्रवाती तूफान यास के कारण बंगाल और ओडिशा में काफी नुकसान हुआ है। इसका जायजा लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 मई को प्रभावित राज्यों का दौरा किया। इस क्रम में पहले वे ओडिशा गए और मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के साथ समीक्षा बैठक की। वहां से पश्चिम बंगाल पहुंचे, जहां मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ पश्चिमी मेदिनीपुर जिले के कलाईकुंडा में दोपहर दो बजे उनकी बैठक थी। लेकिन इस समीक्षा बैठक में शुभेंदु अधिकारी की मौजूदगी से ममता बनर्जी भड़क गईं। उन्होंने बैठक में आने से ही मना कर दिया। बाद में आधा घंटा देरी से बैठक में पहुंचीं, तब तक प्रधानमंत्री मोदी और राज्यपाल जगदीप धनखड़ उनकी प्रतीक्षा में बैठे रहे। बताया जा रहा है कि ममता बनर्जी और राज्य के मुख्य सचिव एक ही परिसर में थे, फिर भी दोनों देरी से पहुंचे। बाद में ममता ने सफाई दी कि उन्हें मालूम नहीं था कि प्रधानमंत्री ने बैठक बुलाई है।
महामारी पर बैठक को ‘अनौपचारिक’ कहा था
इससे पहले कोरोना संकट पर चर्चा के लिए प्रधानमंत्री ने 20 मई को सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों और जिलाधिकारियों की बैठक बुलाई थी। बैठक खत्म होने के बाद ममता बनर्जी मीडिया के समक्ष केंद्र सरकार पर बिफर पड़ीं। उन्होंने बैठक को ‘अनौपचारिक और सुपर फ्लॉप’ करार देते हुए आरोप लगाया कि उनका अपमान किया गया। बैठक में उन्हें बोलने नहीं दिया गया। कोरोना संक्रमण जैसे गंभीर हालात पर चर्चा के लिए बुलाई गई बैठक को ‘अनौपचारिक’ करार देना हास्यास्पद है।
ममता बनर्जी का आरोप था कि बैठक में केवल भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को बोलने का मौका दिया गया। उन्हें और दूसरे राज्यों के कई मुख्यमंत्रियों को कठपुतली की तरह बैठा कर रखा, बोलने का अवसर नहीं दिया। न ही प्रधानमंत्री ने यह जानने की कोशिश कि उनका राज्य कोरोना से कैसे निपट रहा है और न ही ऑक्सीजन की स्थिति के बारे में पूछा। ब्लैक फंगस के बारे में कुछ भी नहीं पूछा। इसे देश के संघीय ढांचे को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करने का आरोप लगाते हुए ममता ने यहां तक कहा था कि ‘प्रधानमंत्री मोदी में असुरक्षा की भावना इतनी अधिक है कि उन्होंने हमारी बात ही नहीं सुनी।’ लेकिन महामारी के प्रति ममता बनर्जी की गंभीरता का पता इसी से लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री का पदभार संभालने के बाद उन्होंने पत्र लिखकर केंद्र सरकार से कोविड-19 में प्रयुक्त होने वाले चिकित्सा उपकरणों और दवाओं पर सभी तरह के करों और सीमा शुरू में छूट देने का आग्रह किया था, जबकि यह कदम पहले ही उठाया जा चुका था।
झूठ भी बोलती हैं दीदी!
हालांकि बैठक में बोलने नहीं देने के ममता के दावे के उलट केंद्रीय अधिकारियों का कहना था कि वह अनर्गल बयानबाजी कर रही थीं। ऐसा नहीं था कि बैठक में केवल भाजपा शासित राज्यों को ही बोलने का मौका दिया गया। छत्तीसगढ़, राजस्थान, केरल और महाराष्ट्र आदि में तो भाजपा की सरकार नहीं है, लेकिन इन राज्यों के जिलाधिकारियों ने बैठक में अपनी बात रखी थी। ममता बनर्जी ने खुद ही उत्तर 24 परगना के जिलाधिकारी को बोलने नहीं दिया था। सच तो यह है कि प्रधानमंत्री के साथ मुख्यमंत्रियों की बैठक चाहे कोरोना महामारी को लेकर हो या इससे पहले अन्य विषयों पर, ममता बनर्जी कभी बैठक में शामिल ही नहीं हुईं।
हिंसा पर चुप्पी, अपने नेता की गिरफ्तारी पर भड़कीं
इसी तरह, 2 मई को जब विधानसभा चुनाव नतीजों की घोषणा हुई तो राज्य के कई हिस्सों में हिंसा भड़की। कई दिनों तक चली इस हिंसा में भाजपा के दर्जनों कार्यकर्ता मारे गए और एक लाख से अधिक लोग पलायन कर गए। लेकिन ममता बनर्जी मूकदर्शक बनकर चुपचाप तमाशा देखती रहीं। जैसे ही नारदा स्टिंग ऑपरेशन मामले में सीबीआई ने उनके दो मंत्रियों सहित तृणमूल कांग्रेस के चार नेताओं को गिरफ्तार किया, ममता बौखला गईं। वे सुबह-सुबह ही केंद्रीय जांच एजेंसी के कार्यालय में जा धमकीं। वहां 6 घंटे तक हंगामा किया। जांच एजेंसी को अपनी गिरफ्तारी के लिए चुनौती देती रहीं। इसी दौरान बड़ी संख्या में तृणमूल कांग्रेस के गुंडों ने सीबीआई कार्यालय को घेर कर पथराव किया। राज्य के कई हिस्सों में भी उन्होंने उत्पात मचाया। तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बनर्जी ने तो राज्यपाल जगदीप धनखड़ पर ही आरोपों की झड़ी लगा दी। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार से सलाह लिए बिना ही बदले की भावना से राज्यपाल ने सीबीआई कार्रवाई की अनुमति दे दी। सच यह है कि राज्यपाल ने सरकार बनने से पूर्व ही सीबीआई को जांच की मंजूरी दे दी थी। यही नहीं, कल्याण बनर्जी राज्यपाल के खिलाफ लगातार अपशब्दों प्रयोग करते रहे।
भाजपा नेताओं के खिलाफ कार्रवाई
नारदा स्टिंग मामले में अपने नेताओं की गिरफ्तारी के बाद ममता बनर्जी बदले की भावना के तहत भाजपा नेताओं के खिलाफ सक्रिय हो गई हैं। इसी के तहत ममता सरकार ने भाजपा नेता अर्जुन सिंह के खिलाफ कथित भ्रष्टाचार के आरोप में जांच शुरू की है। उत्तर 24 परगना के भाटपाड़ा नगरपालिका में कथित भ्रष्टाचार के आरोप में सीआईडी की टीम ने बैरकपुर से सांसद अर्जुन सिंह के घर नोटिस चस्पा किया। इसमें भाजपा सांसद से 25 मई को भवानी भवन स्थित सीआईडी मुख्यालय में पूछताछ के लिए हाजिर होने को कहा गया। भाजपा सांसद का कहना है कि ममता बनर्जी के आदेश पर यह कार्रवाई की जा रही है। साथ ही, कहा कि इस मामले में पहले ही उन्हें सर्वोच्च न्यायालय से राहत मिल चुकी है। वे यह आशंका भी जता चुके हैं कि आने वाले दिनों में भाजपा नेताओं पर ढेरों मुकदमे किए जाएंगे।
न केंद्र की योजना पसंद, न केंद्र का कानून
ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में केंद्र की योजनाओं को लागू नहीं होने देतीं। यहां तक कि केंद्र के कानून के समानांतर वह अपना अलग कानून लागू करती हैं। रियल एस्टेट क्षेत्र को नियंत्रित करने के लिए केंद्र सरकार के रेरा कानून बनाया है, लेकिन ममता बनर्जी ने बंगाल में इसे लागू नहीं किया। इसी की तर्ज पर उन्होंने विधानसभा में वेस्ट बंगाल हाउसिंग इंडस्ट्रीज रेगुलेशन एक्ट (हीरा)-2017 पारित किया था। इसे बीते 4 मई को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार देते हुए निरस्त कर दिया था। साथ ही, कहा था कि राज्य विधायिका ने समानांतर तंत्र लागू करके संसद की विधायी शक्ति पर अतिक्रमण किया है। यह सीधे तौर पर केंद्रीय कानून के खिलाफ है, इसलिए इसे बरकरार नहीं रखा जा सकता।
राज्य की आर्थिक स्थिति खस्ताहाल है। कानून-व्यवस्था की स्थिति बदहाल है। लेकिन ममता बनर्जी को इसकी चिंता नहीं है। विद्वेष की राजनीति से न तो उनका और न ही राज्य के लोगों का भला होने वाला है। भद्रजनों के बंगाल में पूर्व में वामपंथी जो करते रहे, ममता भी वही कर रही हैं। ममता जैसा चाहती हैं, अगर कोई वैसा नहीं करता है तो वह उसे अपना दुश्मन मानने लगती हैं। उन्हें एक मुख्यमंत्री की तरह व्यवहार करना चाहिए, न कि तृणमूल कांग्रेस की मुखिया की तरह। वे केवल तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की मुख्यमंत्री नहीं हैं, यह उन्हें याद रखना चाहिए।
-नागार्जुन
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