फतेहपुर जनपद का ललौली गांव मुस्लिम बाहुल्य है. इस गांव के लोगों ने कोरोना वायरस के प्रति लापरवाही की. कोरोना प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया और ना ही वैक्सीन लगवाया. कोरोना वायरस के लक्षण को सर्दी – जुकाम बता कर उसे नजरअंदाज करते रहे. नतीजा यह हुआ है कि अप्रैल के महीने में कई लोगों की मृत्यु हो गई. अनुमान है कि सौ से अधिक लोगों की मृत्यु हुई है. प्रशासन ने जांच के आदेश दिए हैं.
वर्ष 2020 के मार्च माह में कोरोना वायरस भारत में आया था. तब से अब तक इस देश में मुसलमान यह मानने को तैयार नहीं हैं कि कोरोना वायरस, एक संक्रामक और जानलेवा बीमारी है. चाहे वो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पढ़े – लिखे प्रोफ़ेसर हों या फिर फतेहपुर जनपद के ललौली गावं के ग्रामीण. मुस्लिम बाहुल्य ललौली गांव में लोगों को कोरोना का लक्षण था मगर उन लोगों ने जांच नहीं कराया. सर्दी –जुखाम और खांसी बता कर कोरोना संक्रमण को झुठलाते रहे. इस हठधर्मिता का अत्यंत भयावह परिणाम हुआ. बताया जा रहा है कि कोरोना संक्रमण से सौ से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई. ये लोग कोरोना प्रोटोकॉल का पालन नहीं कर रहे थे और ना ही वैक्सीन लगवा रहे थे. जिलाधिकारी फतेहपुर ने जांच के आदेश दिए हैं.
ललौली ग्राम के प्रधान शमीम अहमद के अनुसार, जुकाम और मौसमी बुखार मान कर लोगों ने कोरोना संक्रमण को नजर अंदाज किया. 10 अप्रैल को पहले मरीज की मृत्यु हुई थी. इसके बाद मरने वालों की संख्या बढ़ने लगी. उसके बाद प्रतिदिन एक से दो मरीजों की मृत्यु होने लगी. ललौली गांव के सुफियान के घर में 4 लोगों की मृत्यु हुई. सभी को कोरोना का लक्षण था मगर किसी ने जांच नहीं कराया. 23 अप्रैल का दिन गावं के लिए अत्यंत भयानक साबित हुआ. करीब पचास हजार आबादी वाले इस गांव में एक ही दिन में 7 लोगों की मृत्यु हो गई. इस गांव में 10 कब्रिस्तान हैं. एक कब्रिस्तान में 30 शव दफन किये गए. जिलाधिकारी फतेहपुर अपूर्वा दुबे का कहना है कि ललौली गावं में कई लोगों के मृत्यु की सूचना प्राप्त हुई है. उपजिलाधिकारी को जांच करने के आदेश दिए गए हैं.
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