कम्युनिस्ट चीन में उइगर मुस्लिमों को किस तरह प्रताड़ित किया जा रहा है, यह अब कोई छुपा तथ्य नहीं रहा है। दुनिया भर के नेता और मीडिया जहां इस पर लगातार आवाज उठा रहे हैं, वहीं चीन की हेकड़ी के आगे इस्लामी उम्मा की ‘एकता’ मुंह नहीं खोलती
दस मई, 2021 को न्यूयॉर्क टाइम्स ने एमी क्विन की लिखी एक खबर प्रकाशित की—’चाइना टारगेट्स मुस्लिम वीमेन इन पुश टू सप्रेस बर्थ्स इन शिनजियांग’। इसमें बताया गया कि किस प्रकार चीन शिनजियांग क्षेत्र की मुस्लिम उइगर महिलाओं के जबरन बंध्याकरण की नीति को लागू कर रहा है। इस रपट में बताया गया कि एक ओर चीन में अधिकारी महिलाओं को अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं, क्योंकि वे घटती जन्म दर के कारण आने वाले जनसांख्यिक संकट से चिंतित है और उसे दूर करने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन दूसरी ओर, अपने ही सुदूर पूर्वी क्षेत्र शिनजियांग में जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए मुस्लिम अल्पसंख्यकों पर अपनी उत्पीड़नकारी नीतियों के द्वारा एक जनसांख्यिक बदलाव को व्यवस्थित रूप से लागू करने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे उनकी जनसंख्या वृद्धि रुक जाए। रपट में शिनजियांग के उइगर, कज़ाख और अन्य मुस्लिम महिलाओं और पुरुषों के दर्जनों साक्षात्कार, सरकारी आंकड़े, सरकारी नोटिस और सरकारी मीडिया में रपटों की समीक्षा, इन समुदायों के प्रजनन अधिकारों को नियंत्रित करने के लिए चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा चलाये जा रहे अमानवीय प्रयास सिलसिलेवार बताए गए हैं।
चीन क्या केवल हान के लिए?
चीन एक बहुनस्लीय समूहों का मेल है। राष्ट्र के रूप में यह राष्ट्रीयता के आधार पर अस्तित्व में नहीं आया, बल्कि उत्पीड़न और अवैध कब्जे के द्वारा इसे एक राष्ट्र का आवरण पहनाया गया। आज चीन आधिकारिक रूप से 34 नस्ल समूहों को अल्पसंख्यक जातीय समुदायों के रूप में मान्यता प्रदान करता है और उनके विकास के लिए प्रतिबद्ध होने का स्वांग भी करता है। परन्तु वास्तविकता यह है कि उसने कभी भी इन पर विश्वास नहीं किया है। चीन के शासकों के लिए चीन की एकता—अखंडता की एकमात्र गारंटी हान आबादी का पूरे चीन पर वर्चस्व स्थापित करना रही है। वास्तविकता में 1949 में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना की स्थापना के बाद से चीन में लगातार इन अल्पसंख्यक जातीय समुदायों का उत्पीड़न होता आ रहा है। दुनिया भर के वंचितों की स्वयंभू पैरोकार चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी अपने ही देश के नागरिकों का न केवल उत्पीड़न कर रही है, बल्कि नृशंस नरसंहार करती आ रही है। उसे डर है कि कहीं ये हान प्रभुत्व के लिये ख़तरा न बन जाएं।
जनसांख्यिक परिवर्तन एक राजनीतिक हथियार
इसी नीति के तहत तिब्बत, ‘इनर मंगोलिया’ के साथ ही शिनजियांग क्षेत्र के जनसांख्यिक ढांचे में आमूल हेरफेर करने की कोशिश चीन द्वारा की गई। 1949 के बाद से, चीनी सरकार ने हान चीनी निवासियों की संख्या में नाटकीय रूप से वृद्धि करके सुदूर शिनजियांग क्षेत्र पर नियंत्रण बढ़ा दिया। उल्लेखनीय है कि 1949 में इस क्षेत्र में हान लोग कुल आबादी में केवल 6.7 प्रतिशत थे। परन्तु माओ के उत्पीड़नकारी दौर के अंत यानी 1978 तक इस क्षेत्र में हान आबादी क्षेत्र की कुल जनसंख्या में 41.6 प्रतिशत तक पहुंच गई। 1990 के दशक और 2000 के दशक की शुरुआत में हान समुदाय का इस क्षेत्र में फिर से प्रवासन बढ़ गया। प्रसिद्ध शोधकर्ता एड्रियन जेंज़ की रपट के अनुसार हालांकि 2018 तक जन्म दर कम होने और यहां से पलायन के कारण हान समुदाय की आबादी घटकर 31.6 प्रतिशत रह गई थी। उरुमकी दंगों के बाद से चीनी सुरक्षा के दावे कमजोर पड़े और 2010 से इस क्षेत्र में हान जनसंख्या वृद्धि नकारात्मक ही रही। 2015 और 2018 के बीच शिनजियांग की हान आबादी में 754,000 की गिरावट आई। हान बहुसंख्यक क्षेत्रों की प्राकृतिक जनसंख्या वृद्धि दर में गिरावट को जोड़ने पर यह गिरावट अनुमानित 8,63,000 की है।
वहीँ इस बीच, उइगर आबादी में तीव्र वृद्धि हुई। 2010 में, उच्चतम प्राकृतिक जनसंख्या वृद्धि दर वाले शीर्ष 10 चीनी उपक्षेत्रों में से नौ उइगर और किर्गिज़ क्षेत्र में थे, जिनमें जन्म दर 22.0 प्रतिशत और 27.6 प्रतिशत के बीच थी, जो राष्ट्रीय औसत 4.8 प्रतिशत से लगभग पांच गुनी है। 2005 और 2015 के बीच उइगर की वार्षिक जनसंख्या वृद्धि शिनजियांग में हान आबादी की तुलना में 2.6 गुना अधिक थी। परन्तु हान आबादी में आने वाली इस गिरावट और साथ ही उइगर आबादी में वृद्धि ने चीनी शासकों की चिंता बढ़ा दी| शिनजियांग के हान चीनी अकादमिक और सरकारी विभागों में लगातार उइगरों की जनसंख्या वृद्धि को “अत्यधिक वृद्धि” के रूप में वर्णित किया जाता रहा है।
इसका एक अन्य पहलू भी है। शिनजियांग के सरकारी गलियारों में “मजहबी उग्रवाद” और जनसंख्या वृद्धि के बीच संबंध 2015 से लगातार सामने आने लगे थे। जातीय एकता पर प्रसारित मई 2015 के सरकारी शिक्षण में स्पष्ट रूप से बताया गया कि “मजहबी अतिवाद पुनर्विवाह और अवैध अतिरिक्त जन्मों का सबसे बड़ा कारक है”। इसके साथ ही इस क्षेत्र में इस्लामी आतंकवाद भी जोर पकड़ने लगा था। इन समस्याओं के ‘उपयुक्त समाधान’ के लिए जबरन जनसंख्या नियंत्रण उपायों को लाया गया, जिसका परिणाम यह हुआ कि 2015 तक जो उइगर आबादी तेजी के साथ बढ़ रही थी, अचानक रुक गई और कम होना शुरू हो गई। एड्रियन जेंज़ की रपट के अनुसार, इस क्षेत्र में जन्म दर हाल के वर्षों में गिर गई है, क्योंकि आक्रामक जन्म नियंत्रण प्रक्रियाओं पर अमल बढ़ गया है। रपट के अनुसार शिनजियांग में प्राकृतिक जनसंख्या वृद्धि में नाटकीय रूप से गिरावट आई है; 2015 और 2018 के बीच दो सबसे बड़े उइगर प्रान्तों में जनसंख्या वृद्धि दर में 84 प्रतिशत तक की गिरावट आई, जबकि 2019 में कई अल्पसंख्यक क्षेत्रों में और अधिक गिरावट देखने में आई है। 2020 के लिए, एक उइगर क्षेत्र ने एक अभूतपूर्व निकट-शून्य जन्म दर लक्ष्य निर्धारित किया और इसे “परिवार नियोजन कार्य” के माध्यम से प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया।
उइगर महिलाएं सह रहीं चीनी उत्पीड़न
जनसंख्या नियंत्रण के उपाय इस क्षेत्र की महिलाओं के जीवन और सम्मान के लिए अत्यधिक दुष्कर रहे हैं। कहने को कानूनी रूप से अपेक्षित संख्या से अधिक बच्चों वाली उइगर महिलाएं ही इन ‘उपायों’ के तहत लाई जाती हैं, परन्तु वास्तविकता यह है कि ऐसी महिलाएं जो इस मापदंड के आसपास भी नहीं आतीं उन्हें भी ‘इंट्रा-यूटेराइन डिवाइस’ (आईयूडी) लगाये गए और नसबंदी की सर्जरी कराने के लिए मजबूर किया गया। 2016 के अंत में शुरू हुई एक व्यापक कार्रवाई के बाद से शिनजियांग को एक कठोर पुलिस राज्य बना दिया गया है और परिवार नियोजन कार्यक्रम को ‘आतंकवादी निरोधी कार्यवाही’ के रूप में संचालित किया जा रहा है|
परिवार नियोजन के नियम सरकार द्वारा लगातार कड़े किये जाते रहे हैंं। 2017 में, शिनजियांग की सरकार ने भी सबसे गरीब निवासियों के लिए परिवार नियोजन कानूनों का उल्लंघन करने पर पहले से ही लागू भारी जुर्माने को बढ़ाकर तीन गुना कर दिया, अर्थात दंड के रूप में वार्षिक ‘डिस्पोजेबल’ आय का कम से कम तीन गुना जुर्माने के रूप में सरकार को देना होगा। इस जुर्माने को भरने में असमर्थ होने पर इन्हें निरुद्ध करने के लिए शिविरों में भेज दिया जाता है। इतने पर भी यातना का अंत नहीं होता। एक बार इन शिविरों में, उइगर महिलायें प्रवेश कर जाएं, तो उन पर जबरन ‘इंट्रा-यूटेराइन डिवाइस’ (आईयूडी) और गर्भावस्था की रोकथाम के लिए विभिन्न उपायों का प्रयोग किया जाता है। उल्लेखनीय है कि 2014 में, शिनजियांग में 200,000 से अधिक ‘आईयूडी’ लगाने के मामले हुई थे। 2018 तक इनकी संख्या 60 प्रतिशत से अधिक बढ़कर लगभग 3,30,000 हो गई। इन चीनी ‘आईयूडी’ को भी इस तरह डिजायन किया गया है कि विशेष उपकरणों के बिना इन्हें निकाला भी नहीं जा सकता।
चीन सरकार इस मुहीम में धन की कोई कमी आड़े नहीं आने दे रही है। जेंज़ की रपट बताती है कि 2016 में शिनजियांग सरकार ने जन्म नियंत्रण सर्जरी कार्यक्रम में लाखों डॉलर लगाए और महिलाओं की नसबंदी के लिए नकद प्रोत्साहन योजनायें भी शुरू कीं। जबकि देश के बाकी हिस्सों में नसबंदी की दर गिर गई। इन सम्मिलित प्रयासों का परिणाम यह हुआ कि 2016 से 2018 तक शिनजियांग में महिला नसबंदी की संख्या सात गुना बढ़कर 60,000 से अधिक पर पहुंच गई। ऐसा भी नहीं है कि सम्पूर्ण शिनजियांग में इस नीति को सामान रूप से लागू किया गया हो। शिनजियांग के भीतर ही नीतियों में एकरूपता नहीं है, बल्कि जातीय सकेन्द्रण इसमें मुख्य भूमिका निभा रहा है। हान बहुल उत्तर शिनजियांग की तुलना में उइगर बहुल दक्षिण में यह कठोरता स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। नीतियों में भेदभाव इस हद तक है कि एक हान प्रभुत्व वाला शहर शिहेज़ी, जहां उइगर आबादी कुल के 2 प्रतिशत से भी कम हैं, सरकार अधिक बच्चों के जन्म को प्रोत्साहित करने के लिए अस्पताल में जन्म सेवाओं की सुविधा और सब्सिडी तक प्रदान कर रही है।
इस नीति का उद्देश्य क्या?
सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े थिंक टैंक और सरकार समर्थित अकादमिक लोग विगत वर्षों में ऐसी ‘चेतावनी’ देते आये हैं कि बम विस्फोटों, छुरेबाजी और अन्य मामलों की जड़ में ग्रामीण क्षेत्रों के मजहबी और बड़े इस्लामी परिवार थे। शिनजियांग एकेडमी ऑफ सोशल साइंसेज में इंस्टीट्यूट ऑफ सोशियोलॉजी के प्रमुख द्वारा 2017 में एक शोधपत्र प्रस्तुत किया गया था, जिसके अनुसार ‘बढ़ती मुस्लिम आबादी गरीबी और आतंकवाद के प्रजनन स्थल’ के रूप में काम कर रही थी जो भविष्य में “राजनीतिक जोखिम बढ़ा सकती है”। वहीँ दूसरी ओर बाहरी विशेषज्ञों का मानना है कि जन्म नियंत्रण अभियान उइ्गरों पर उनके विश्वास और पहचान को मिटाने और उन्हें जबरन चीनी आबादी में आत्मसात करने के लिए राज्य-संचालित हमले का हिस्सा है। उन्हें शिविरों में ‘राजनीतिक और मजहबी ज्ञान’ और कारखानों में जबरन श्रम में धकेला जाता है, और उनके बच्चों को अनाथालयों में रखा जाता है। उइगर आबादी को एक विशाल डिजिटल निगरानी तंत्र के द्वारा ट्रैक किया जाता है, जिसमें जीवन की निजता का उल्लंघन आम बात है।
चीन के सामने ‘उम्मा’ चुप!
इन सब तथ्यों के आधार पर स्पष्ट है कि यह चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा अपने शासन के सम्मुख आने वाली किसी भी कथित चुनौती को खत्म करने के लिए चलाया जा रहा प्रपंच है, दमन तथा उत्पीड़न जिसके अनिवार्य उपकरण हैं। चीन प्रारंभ से ही यह नीति अपनाता आ रहा है परन्तु 2013 में शी जिनपिंग के सत्ता में आने के बाद इसकी तीव्रता और निर्ममता में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। आज के विश्व में राजनैतिक मसलों के निपटारे के लिए ऐसे आदिम तरीकों का प्रयोग अमानवीय है। विश्व भर में इसका विरोध किया जा रहा है। परन्तु इस सम्पूर्ण परिदृश्य से इस्लामी दुनिया के वे तथाकथित अगुआ ही नदारद हैं, जो दुनिया भर में इस्लामी हितों की पैरोकारी करने का दम भरते हैं। इसके साथ ही, वैश्विक स्तर पर इस्लामी उम्मा की जो एकता अभी फ्रांस और इजराइल के विरुद्ध देखी गई थी, वह चीन में अपने ‘हम—मजहबियों’ पर हो रहे अत्याचार के विरुद्ध एक आवाज तक उठाने में अक्षम है! भय और प्रलोभन संभवत: इसकी अनुमति नहीं देते और यह नाटक सुविधाजनक मंचों तक ही आरक्षित है!
-एस. वर्मा
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