बेंगलुरू चल रही दो दिवसीय अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा के उद्घाटन के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. मनमोहन वैद्य ने मीडिया को जानकारी देते हुए कहा कि कोरोना के कारण निर्मित आपदा में समाज की सहायता के लिए पहले दिन से ही देशभर में स्वयंसेवक सक्रिय थे. संक्रमण के खतरे के बावजूद स्वयंसेवकों ने बड़ी मात्रा में सेवा कार्य किया.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. मनमोहन वैद्य ने कहा कि प्रतिनिधि सभा की बैठक वार्षिक होती है और इसमें हम वर्ष भर के संघ कार्य का सिंहावलोकन करते हैं, तथा अगले साल की तैयारी करते हैं. इस बार सरकार्यवाह का चुनाव भी होने वाला है, तो अगले तीन वर्ष की संघ कार्य की योजना पर भी बैठक में चर्चा होगी. डॉ. मनमोहन वैद्य बेंगलुरू में दो दिवसीय अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा के उद्घाटन के पश्चात बैठक में चर्चा में आने वाले विषयों के संबंध में मीडिया को जानकारी दे रहे थे. उन्होंने कहा कि कोरोना के कारण मार्च माह से जून तक संघ का कार्य पूर्ण बंद था, शाखाएं बंद थीं. जुलाई से धीरे-धीरे शाखाएं लगना प्रारंभ हुई थीं, लेकिन संघ स्वयंसेवक सक्रिय थे. कोरोना के कारण निर्मित आपदा में समाज की सहायता के लिए पहले दिन से ही देशभर में स्वयंसेवक सक्रिय थे. अन्य देशों में जहां वेलफेयर स्टेट प्रभावी है, वहां स्टेट मशीनरी ही सक्रिय होती है. लेकिन यह भारत की विशेषता है कि यहां सरकारी, प्रशासन की सेवाओं के साथ-साथ समाज भी सहयोगी था. बाढ़, भूकंप में सेवा करना अलग बात है, लेकिन कोरोना काल में संक्रमण के खतरे के बावजूद स्वयंसेवकों ने बड़ी मात्रा में सेवा कार्य किया.
उन्होंने बताया कि कोरोना काल में स्वयंसेवकों ने देशभर में सेवा भारती के माध्यम से 92,656 स्थानों पर सेवा कार्य किए, इसमें 5,60,000 कार्यकर्ता सक्रिय रहे, 73 लाख राशन किट वितरित किए, 4.5 करोड़ लोगों को भोजन पैकेट वितरित किए गए, 90 लाख मास्क का वितरण किया, 20 लाख प्रवासी लोगों की सहायता की गई. 2.5 लाख घुमंतू लोगों की सहायता की, 60 हजार यूनिट रक्तदान भी किया. केवल संघ ही नहीं, समाज के अनेक संगठनों, मठ, मंदिर, गुरुद्वारों ने भी समाज की सेवा की. उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष मार्च की तुलना में 89 प्रतिशत शाखाएं पुनः प्रारंभ हो गई हैं. संघ का कार्य देश के सभी जिलों में है. देश में 6495 खंडों (तालुका) में से 85 प्रतिशत में संघ का कार्य है। 58,500 मंडलों में से 40 प्रतिशत में प्रत्यक्ष शाखा है और 20 प्रतिशत में संपर्क है. आने वाले तीन वर्षों में सभी मंडलों तक संघ का कार्य पहुंचे, ऐसा हमारा प्रयास रहेगा.
उन्होंने श्रीराम मंदिर के विषय पर कहा कि यह केवल एक मंदिर नहीं है, श्रीराम भारत की संस्कृति का परिचय हैं, चरित्र है. सोमनाथ मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के समय 1951 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा था – मंदिर हमारे सांस्कृतिक जागरण का केंद्र रहे हैं. आज यहां मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हो रही है, जिस दिन भारत के सांस्कृतिक मूल्य और भारत की समृद्धि उस ऊंचाई तक पहुंचेगी, तभी यह मंदिर निर्माण का कार्य पूर्ण होगा.
इस संदर्भ में देखा जाए तो सारे भारत को एक सूत्र में जोड़ने की भावनात्मक शक्ति श्रीराम हैं. भगवान मानें या ना मानें, लेकिन सांस्कृतिक मूल्यों का प्रतीक अवश्य मानते हैं.
निधि समर्पण अभियान में स्वयंसेवकों का उद्देश्य अधिक निधि एकत्र करना नहीं था. देशभर में अधिक से अधिक गांवों, परिवारों तक पहुंचने का लक्ष्य था. इससे पहले इतना व्यापक जनसंपर्क अभियान नहीं हुआ था. अभियान के तहत स्वयंसेवक 5,45,737 स्थानों पर पहुंचे और लगभग 20 लाख कार्यकर्ता संपर्क अभियान में लगे. अभियान के तहत देश में 12,47,21,000 परिवारों से स्वयंसेवकों ने संपर्क किया. संपूर्ण देश में भावनात्मक एकात्मा का अनुभव हुआ है.
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