प्रशांत भूषण। सर्वोच्च न्यायालय में वकील हैं। इनकी वकीली ठसक ऐसी है कि ये भारत और भारतीयता के विरुद्ध लिखना या बोलना अपना ‘परम कर्तव्य’ मानते हैं
एक हैं प्रशांत भूषण। सर्वोच्च न्यायालय में वकील हैं। इनकी वकीली ठसक ऐसी है कि ये भारत और भारतीयता के विरुद्ध लिखना या बोलना अपना ‘परम कर्तव्य’ मानते हैं और आतंकवादियों, नक्सलियों और दंगाइयों की पैरवी करने में अपनी शान समझते हैं। अपनी बात मनवाने के लिए ये सर्वोच्च न्यायालय से भी झूठ बोलते हैं। झूठी बातों के लिए अदालत में इन्हें अनेक बार डांट भी पड़ चुकी है, फिर भी ये अपनी आदतों से बाज नहीं आते हैं।
ऐसी ही एक डांट की चर्चा इन दिनों देश में हो रही है। 1 मई को सर्वोच्च न्यायालय ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए भूषण के वकील दुष्यंत दवे से कहा, ‘‘कोई भी व्यक्ति टीवी पर कुछ भी देख सकता है। आप कैसे कह सकते हैं कि लोग इसे और उसे नहीं देख सकते हैं।’’
दरअसल, प्रशांत भूषण गुजरात में राजकोट के भक्तिनगर थाने में अपने विरुद्ध दर्ज एक मामले की कार्रवाई को रुकवाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय पहुंचे थे। यह मामला 12 अप्रैल को पूर्व सैन्य अधिकारी कैप्टन जयदेव रजनीकांत जोशी ने प्रशांत के एक ट्वीट को लेकर दर्ज कराया था। प्रशांत ने 28 मार्च को अपने एक ट्वीट में लिखा था, ‘‘जबरन लॉकडाउन के कारण देश को करोड़ों रुपए का नुकसान हो रहा है और सरकार दूरदर्शन पर ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ धारावाहिकों का प्रसारण कर लोगों को अफीम खिला रही है।’’
उनकी यह बात देश के करोड़ों लोगों को पसंद नहीं आई। उनमें से एक हैं कैप्टन जयदेव रजनीकांत जोशी। कैप्टन ने ट्वीट का जवाब देने के साथ ही प्रशांत के विरुद्ध एक एफआईआर दर्ज करवाई थी। अब सर्वोच्च न्यायालय प्रशांत की अर्जी पर दो हफ्ते बाद सुनवाई करेगा। प्रशांत के ट्वीट का समर्थन करने वाले पूर्व आईएएस अधिकारी कन्नन गोपीनाथन और वरिष्ठ पत्रकार एश्लीन मैथ्यू को भी आरोपी बनाया गया है।
प्रशांत बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों और रोहिंग्या मुसलमानों के भारत में रहने की वकालत करते रहे हैं। जब सरकार ने रोहिंग्याओं को निकालने के लिए अभियान चलाया तो यही प्रशांत हैं, जिन्होंने इसे अदालत की चौखट तक पहुंचाया। इसका परिणाम यह हुआ है कि आज भी रोहिंग्या मुसलमानों का मामला अदालत में लटका हुआ है और ये लोग देश के हर हिस्से में आजादी से रह रहे हैं।
कैप्टन जोशी ने दर्ज एफआईआर में आरोप लगाया है कि प्रशांत के ट्वीट से हिंदुओं की धार्मिक भावनाएं आहत हुई हैं। जोशी ने इस संवाददाता से यह भी कहा, ‘‘देश की अदालतें किसी भी हिंदू गवाह को गवाही देने से पहले उसे ‘गीता’ और ‘रामायण’ की शपथ खाने को कहती हैं। यानी ‘गीता’ और ‘रामायण’ की शपथ खाने के बाद कोई भी व्यक्ति झूठ नहीं बोलता है। इतने पवित्र ग्रंथों को ‘अफीम’ बताना, पूरी सनातन संस्कृति का अपमान है। इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।’’
प्रशांत ने पहली बार हिंदुओं की भावनाओं पर चोट नहीं की है। वे ऐसा कई बार कर चुके हैं। यहां तक कि भारत के विरुद्ध भी बोल चुके हैं। अब जब प्रशांत खुद ही अपने विवादास्पद बयानों को लेकर चर्चा में हैं, तो इस बहाने उनके पुराने कथनों और करतूतों की भी पड़ताल जरूरी लग रही है।
श्रीकृष्ण पर अभद्र टिप्पणी
अप्रैल, 2017 में प्रशांत ने भगवान श्रीकृष्ण पर टिप्पणी कर हिंदुओं की भावनाओं पर चोट की थी। उल्लेखनीय है कि उन दिनों उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने मनचलों पर लगाम लगाने के लिए ‘एंटी रोमियो दस्ता’ बनाया था। इसका विरोध करते हुए प्रशांत ने एक ट्वीट किया था। इसमें उन्होंने लिखा था, ‘‘रोमियो ने तो केवल एक महिला से प्यार किया था, जबकि कृष्ण तो पौराणिक काल में भी गोपियों को छेड़ा करते थे। क्या आदित्यनाथ में अपने कार्यकर्ताओं को कृष्ण विरोधी दल बुलाने की हिम्मत है।’’ इस ट्वीट के बाद देश के अनेक हिस्सों में प्रशांत के पुतले जलाए गए थे। कई जगह एफआईआर भी दर्ज हुई थी। अंतत: प्रशांत को माफी मांगनी पड़ी थी।
आतंकवादियों के हमदर्द
16 फरवरी, 2019 को प्रशांत भूषण ने एक ट्वीट करके कुख्यात कश्मीरी आतंकवादी आदिल अहमद डार को बचाने का प्रयास किया था। उन्होंने लिखा था, ‘‘सुरक्षाबलों की मार खाने के बाद आदिल आतंकवादी बना था। यहां यह समझना आवश्यक है कि क्यों कश्मीर में युवा आतंकवाद की राह पर चल रहे हैं और वे मरने के लिए तैयार हो रहे हैं।’’ वास्तव में प्रशांत ने अपने इस ट्वीट से भारतीय सेना के प्रति अपनी गंदी मानसिकता को ही उजागर किया था।
कश्मीर में जनमत संग्रह की मांग
प्रशांत कश्मीर से सेना को हटा देने के भी पक्षधर हैं। 2011 में उन्होंने कश्मीर के संदर्भ में कहा था, ‘‘कश्मीर भारत में रहे या नहीं इसके लिए इस पर वहां के लोगों का मत जानना आवश्यक है।’’ यानी उन्होंने पाकिस्तान की तरह कश्मीर में जनमत संग्रह कराने की बात कही थी। प्रशांत के इस बयान को पाकिस्तान ने लपक लिया था और उसने पूरी दुनिया में कहा था, ‘‘देखो, भारत के अंदर से ही कश्मीर में जनमत संग्रह की बात उठ रही है। पाकिस्तान भी बरसों से यही कह रहा है।’’ इसके बाद देश के लोगों में प्रशांत के प्रति बड़ी नाराजगी देखी गई थी। इसी का नतीजा था कि 13 अक्तूबर, 2011 को सर्वोच्च न्यायालय में उनके कक्ष में घुसकर दो युवाओं ने उनकी पिटाई की थी।
याकूब को बचाने की कोशिश
प्रशांत और उनके कुछ साथियों ने मुम्बई हमले के दोषी आतंकवादी याकूब मेमन को फांसी से बचाने के लिए भी एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था। इन लोगों ने याकूब के बचाव में सर्वोच्च न्यायालय में एक अर्जी लगाई थी। उस पर सुनवाई के लिए 29 जुलाई, 2015 को सुबह 3.20 बजे अदालत लगी थी। ऐसा पहली बार हुआ था। हालांकि अदालत ने उस अर्जी को खारिज कर दिया था और उसी दिन याकूब को नागपुर जेल में फांसी पर चढ़ा दिया गया था। उल्लेखनीय है कि मुम्बई में 12 मार्च, 1993 को 12 धमाके हुए थे, जिनमें 257 लोगों की मौत हुई थी। ऐसे आतंकवादी को बचाने के लिए प्रशांत आगे आते हैं, तो अनेक तरह के सवाल उठते हैं।
विरोध के लिए विरोध
प्रशांत भूषण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भाजपा और मोदी सरकार के घोर विरोधी रहे हैं। चाहे कुछ भी मामला हो, उसका यदि मोदी सरकार से संबंध है, तो वे उसके विरोध में आ ही जाते हैं। एक ऐसा ही दिलचस्प मामला सीबीआई के पूर्व निदेशक आलोक वर्मा का है। जब मोदी सरकार ने वर्मा को सीबीआई का निदेशक बनाने का फैसला लिया तो प्रशांत इसके विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय पहुंच गए। और जब किसी कारणवश सरकार ने वर्मा को निदेशक पद से हटा दिया तो प्रशांत इसके लिए भी सर्वोच्च न्यायालय पहुंचे थे।
राफेल के ‘खेल’ में शामिल
एक झूठी खबर को आधार बनाकर राफेल मामले को लेकर भी प्रशांत सर्वोच्च न्यायालय पहुंचे। सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी याचिका खारिज करते हुए कहा था कि इस मामले की जांच कराने की कोई आवश्यकता नहीं है, तब प्रशांत और उनके साथियों ने सरकार से ही मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की थी। यानी प्रशांत इस मामले को लेकर भी सरकार को बेवजह घेर रहे थे।
प्रशांत ने मई, 2019 में सर्वोच्च न्यायालय में बांग्लादेशियों की पैरवी करते हुए कहा, ‘‘डिटेंशन सेंटर में रहने वालों को विदेशी या बांग्लादेशी बताया जा रहा है, जबकि वे लोग अपने को भारतीय कहते हैं। इन लोगों को हर हफ्ते स्थानीय थाने में हाजिरी लगानी होती है, इसे मासिक कर देना चाहिए। इन लोगों को जमानत के लिए 1,00000 रु. देना पड़ता है, उसकी जगह केवल 10,000 रु. कर देना चाहिए।’’ घुसपैठियों के लिए ऐसी छूट मांगने वाले प्रशांत ने कभी किसी भारतीय के लिए ऐसी सुविधाएं नहीं मांगी होंगी।
घुसपैठियों के दर्दमंद
प्रशांत बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों और रोहिंग्या मुसलमानों के भारत में रहने की वकालत करते रहे हैं। जब सरकार ने रोहिंग्याओं को निकालने के लिए अभियान चलाया तो यही प्रशांत हैं, जिन्होंने इसे अदालत की चौखट तक पहुंचाया। इसका परिणाम यह हुआ है कि आज भी रोहिंग्या मुसलमानों का मामला अदालत में लटका हुआ है और ये लोग देश के हर हिस्से में आजादी से रह रहे हैं।
इसी तरह प्रशांत ने मई, 2019 में सर्वोच्च न्यायालय में बांग्लादेशियों की पैरवी करते हुए कहा, ‘‘डिटेंशन सेंटर में रहने वालों को विदेशी या बांग्लादेशी बताया जा रहा है, जबकि वे लोग अपने को भारतीय कहते हैं। इन लोगों को हर हफ्ते स्थानीय थाने में हाजिरी लगानी होती है, इसे मासिक कर देना चाहिए। इन लोगों को जमानत के लिए 1,00000 रु. देना पड़ता है, उसकी जगह केवल 10,000 रु. कर देना चाहिए।’’ घुसपैठियों के लिए ऐसी छूट मांगने वाले प्रशांत ने कभी किसी भारतीय के लिए ऐसी सुविधाएं नहीं मांगी होंगी।
नक्सलियों के वकील
प्रशांत भूषण नक्सलियों के लिए भी दिल्ली से लेकर रायपुर तक लड़ते हैं। 13 जनवरी, 2010 को उन्होंने रायपुर में नक्सलियों के समर्थन में कहा था, ‘‘ हो सकता है नक्सलियों की ओर से कुछ लोग मारे गए हों, परंतु इसका अनुपात एक के मुकाबले 100 है। अर्थात् यदि पुलिस वाले 100 निर्दोषों को मार रहे हैं, तो एकाध नक्सलियों की ओर से भी मारा जा रहा होगा।’’
‘मैं नहीं जानता आप कौन हैं’
शायद प्रशांत समझते हैं कि उन्हें पूरी दुनिया जानती है और इसलिए वे अपने नाम से किसी पर प्रभाव डाल सकते हैं। लेकिन उनका यह भ्रम 30 जनवरी, 2020 को उस समय टूट गया जब वे मोदी सरकार के खिलाफ सड़क पर प्रदर्शन करने उतरे थे। जब पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की तो वे कहने लगे, ‘‘आप जानते हैं मैं कौन हूं?’’ इस पर एक पुलिस वाले ने कहा,‘‘मैं नहीं जानता आप कौन हैं।’’ इसके बाद उनका चेहरा देखने लायक था।
इस तरह के अनेक प्रसंग और मामले हैं, जो प्रशांत भूषण के वास्तविक चरित्र को उजागर करते हैं। अब आप भी इन्हें अच्छी तरह पहचान लें, ताकि आपको यह पता चले कि कौन भारत के हित में है और कौन भारत का अहित करना चाहता है।
(17 मई, 2020 के अंक से)
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