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उत्तर प्रदेश विधान सभा में विपक्ष सरकार पर बेवजह के आरोप मढ़कर न केवल सदन की मर्यादा तार-तार कर रहा बल्कि विकास के काम में रोड़े अटका रहा
सुनील राय
जनता अपने प्रतिनिधियों को इस आस के साथ चुनकर भेजती है कि वे विधानसभा में पहुंचकर जनहित के मुद्दों को उठाएंगे। जिन मामलों पर सरकार का ध्यान किन्ही कारणों से नहीं जा पा रहा है या सरकारी अधिकारी मामले में लापरवाही बरत रहे है, उन सभी मामलों पर संबंधित व्यक्ति का ध्यान आकर्षित कराकर उन्हें उनकी परिणति तक पहुंचाना जनप्रतिनिधि का काम होता है। मगर हकीकत में हो कुछ और रहा है। जैसे ही विधानसभा का सत्र शुरू होता है, विपक्ष के नेता इस कदर हंगामा बरपाते हैं कि राज्यपाल का वक्तव्य तक पूरा नहीं हो पाता। क्योंकि विपक्ष के विधायक अपनी मांगों को लेकर अध्यक्ष के सामने नारेबाजी करने लगते हैं। राज्यपाल को पहला और आखिरी वाक्य पढ़ कर वापस लौटना पड़ता है।
जब सरकार हमारी बात नहीं सुनती है तो विपक्ष के पास यही एक हथियार होता है। इस बार जब सत्र शुरू हुआ तो विपक्ष बिजली की दरों में बढ़ोतरी के मुद्दे को उठाना चाहता था। मगर इस मुद्दे को उठाने नहीं दिया जा रहा था, जिसकी वजह से सदन की कार्यवाही बाधित हुई।
—राम गोविन्द, नेता प्रतिपक्ष एवं सपा के वरिष्ठ नेता
इस बार जब शीतकालीन सत्र शुरू हुआ तो पहले और दूसरे दिन विपक्ष ने विधानसभा नहीं चलने दी। विपक्ष प्रश्नोत्तर काल के पहले बिजली की बढ़ी हुई दरों पर चर्चा करना चाहता था। विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित के यह कहने पर कि प्रश्नोत्तर काल के बाद इन विषयों को रख लिया जाए, मगर विपक्ष के विधायक उनकी बात को मानने को तैयार नहीं हुए जिसकी वजह से दो दिन तक विधानसभा का सत्र नहीं चला। जब विधानसभा का कामकाज कुछ सुचारु रूप से चला तो यूपीकोका पर काफी गहमा-गहमी बढ़ गई। विपक्ष ने सपा के वरिष्ठ नेता आजम खान को विधानसभा में बोलने नहीं देने का आरोप मढ़कर हंगामा खड़ा किया और विधानसभा की कार्यवाही का बहिष्कार कर दिया। विधानसभा अध्यक्ष समेत अन्य वरिष्ठ नेताओं के कहने के बावजूद भी कुछ सुधार नहीं हो सका। अफसोस की बात है कि दिन-प्रतिदिन विधानसभा की कार्यवाही में विपक्ष का हंगामा बढ़ता ही चला गया। एक दिन विधानसभा में मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ को कहना पड़ा, ‘‘47 विधायक पूरी विधानसभा को बंधक नहीं बना सकते।’’
उत्तर प्रदेश विधानसभा जैसा हंगामा और हिंसा शायद ही किसी विधानसभा में हुई हो। प्रदेश में जिस समय केशरी नाथ त्रिपाठी विधानसभा अध्यक्ष थे, उस समय एक बार सत्र के दौरान विधायकों में बहस काफी गर्म होती गई और फिर आपसी कहा-सुनी होने लगी। उस समय हर विधायक की सीट के सामने माइक लगा होता था जिसका निचला हिस्सा स्टील का बना हुआ था। देखते ही देखते माइक उखाड़ कर एक दूसरे के ऊपर हमला शुरू हो गया था। इस बीच केशरी नाथ त्रिपाठी, जब अपनी कुर्सी से खड़े होकर सभी को शांत करने की कोशिश कर रहे थे, इसी बीच एक माइक उनके सिर पर आकर लगा। सिर पर काफी चोट आई, जिसकी वजह से खून बहने लगा। उसी के बाद से विधायकों की सीट के सामने लगे उन माइकों को हटवा दिया गया।
उस समय पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने एक भाषण में कहा था,‘‘यह आचरण शोभा नहीं देता, उत्तर प्रदेश की विधानसभा में केशरी नाथ जी लहूलुहान हो गए। जिन विधायकों को जनता चुन कर विधानसभा में भेजती है वे इस प्रकार का आचरण करते हंै, हंगामा करते हैं, विधेयक पेश नहीं होने देते हंै, कागज उछालते है। हर चुनाव के बाद ऐसा देखने में आता है कि काफी चेहरे बदल चुके होते हंै। मुझे ऐसा लगता है कि जबसे टेलीविजन पर जनता अपने चुने हुए प्रतिनिधियों का आचरण देख रही है, उसे काफी फर्क पड़ने लगा है। इसलिए बेहतर होगा कि निर्वाचित प्रतिनिधि मर्यादित आचरण अपनाएं।’’
‘सदन की गरिमा को ठेस न पहुंचाएं जनप्रतिनिधि’
विधानसभा में विपक्ष द्वारा खड़े किए गए हंगामे और सदन की मर्यादा के संदर्भ में उत्तर प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष श्री हृदय नारायण दीक्षित से पाञ्चजन्य प्रतिनिधि ने बात की। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश:-
शीतकालीन सत्र में विपक्ष ने जो हंगामा किया, उसकी वजह क्या थी?
संसदीय परम्परा के अनुसार प्रश्न-उत्तर की कार्यवाही सबसे महत्वपूर्ण होती है। यही वजह है कि सदन की कार्यवाही उससे ही शुरू होती है। विपक्ष के विधायकों द्वारा कुछ विषय उठाने की मांग की गयी। उस पर मैंने कहा कि प्रश्न-उत्तर के बाद यह विषय उठाया जाय। मगर विपक्ष के विधायक इस बात पर अड़ गए कि वे लोग अपना विषय पहले उठाएंगे। इसकी वजह से इस बार सत्र दो दिन तक नहीं चला। मैंने बार-बार अनुरोध किया मगर विपक्ष ने मेरा अनुरोध अस्वीकार कर दिया।
ऐसा भी देखा गया है कि विपक्ष द्वारा समानांतर सदन चलाया जाता है?
यह भी एक बहुत गंभीर प्रकरण है। पिछले सत्र में सदन का उपहास किया गया। विधायक मथुरा पाल के निधन पर शोक व्यक्त करने के लिए विधानसभा में प्रस्ताव आया। इसके बाद विपक्षी सदस्यों ने परिसर में ही सभा भवन से अलग समानांतर सदन चलाया। इसकी शिकायत विधायक मनीष असीजा ने की। मैंने इस विषय पर विपक्ष से लिखित स्पष्टीकरण मांगा। आश्चर्य है कि विपक्ष ने तमाम तर्क देकर बताया कि ऐसा तो पहले भी हुआ है। मैंने उनसे कहा कि यह गलत है, आगे से ऐसा ना करें।
यह जनधारणा बन गयी है कि विपक्ष का काम सदन में हंगामा करना है, ऐसा क्यों?
कुछ लोगों के हंगामा करने से यह सन्देश जनता में जा रहा है। मगर सचाई यह है कि जनादेश से सत्ता पक्ष बनता है और उसी जनादेश से विपक्ष। जनता बहुमत पक्ष को सरकार चलाने का जिम्मा सौंपती है और विपक्ष को आलोचना करने का। विपक्ष को खुलकर आलोचना करनी भी चाहिए। लेकिन विपक्ष आलोचना के बजाय बाधा और शोर जैसे तरीके अपना कर सदन की गरिमा को ठेस पहुंचाता है।
आपके अनुसार विपक्ष का आचरण कैसा होना चाहिए ?
सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों विकास के मुद्दे पर बहस करें। कई बार ऐसा देखा गया है कि सदन में ‘गलत शब्द’ के प्रयोग से भी बहस की दिशा बदल जाती है। संसदीय परिपाटी में सुन्दर और सम्माननीय शब्द का प्रयोग भारतीय संस्कृति का हिस्सा हैं।
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