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एक दुर्घटना में दोनों हाथ कट जाने के बावजूद आमिर हुसैन लोन अपने जीवन से निराश नहीं हुए। अब वे भारतीय दिव्यांग क्रिकेट टीम के हरफनमौला खिलाड़ी हैं। उनकी जीवटता को दर्शाती एक विशेष रपट
मलिक असगर हाशमी
अलगाववादियों के बहकावे में आकर हिंसा का रास्ता अपनाने और सैनिकों पर पत्थरबाजी कर अनुचित मांगें मनवाने की कोशिशें करने वालों के लिए घाटी के दुबले-पतले साधारण कद-काठी के 27 वर्षीय आमिर हुसैन लोन किसी सबक से कम नहीं हैं। आतंकवाद से प्रभावित कश्मीर के अनंतनाग जिले के छोटे-से गांव वाघना का यह युवक प्यार-मुहब्बत से जंग जीतने चला है। इसके लिए उसने क्रिकेट को चुना है। यह कल्पना से परे है कि कोई बिना बाजुओं के क्रिकेट कैसे खेल सकता है, पर आमिर ने अपनी सकारात्मक सोच, लंबे संघर्ष और बुलंद हौसले से इसे संभव कर दिखाया। वे न केवल उंगली अपने दाहिने पैर की अंगुलियों में गेंद फंसाकर बल्लेबाजों को चक्करघिन्नी खिलाने वाली ‘स्पिग’ गेंदबाजी करता है, बल्कि जब गर्दन और कंधे के बीच बल्ला फंसाकर बल्लेबाजी करता है तो दर्शक भी उसके हुनर की कद्र किए बिना नहीं रह पाते। सचिन तेंदुलकर, नवजोत सिंह सिद्धू, आशीष नेहरा और रविंद्र जडेजा जैसे क्रिकेटर आमिर के कायल हैं। सिद्धू कहते हैं, ‘‘हमने केवल क्रिकेट खेला है, यह (आमिर) तो पूरा क्रिकेट ही जीता है।’’ आमिर और सचिन की अब तक मुलाकात नहीं हुई है, पर टीवी पर सचिन को देखकर उसने क्रिकेट के गुण सीखे हैं। आमिर की लगन, संघर्ष और क्रिकेट के प्रति जुनून से प्रभावित होकर एक टीवी कार्यक्रम के माध्यम से सचिन ने उसे अपना हस्ताक्षरयुक्त बल्ला और जर्सी तोहफे में दी थी। आमिर को उम्मीद है कि एक न एक दिन उसकी मुलाकात अपने क्रिकेट के प्रेरणास्रोत से अवश्य होगी।
आमिर आतंकवाद प्रभावित जम्मू-कश्मीर की नई उम्मीदों के चेहरों में से एक हैं। सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के असिस्टेंट कमांडेंट की परीक्षा में सर्वोच्च स्थान पाने वाले नबील अहमद वानी, शेख अदनान, फैसल और हाशिम जैसे कुछ और चेहरे हैं, जो आतंकवाद-ग्रस्त घाटी में रह कर नई इबारत लिखने में मशगुल हैं। उन्हें लगता है कि भारत के संग कदमताल किए बिना बड़े बदलाव की उम्मीद बेमानी है। आमतौर पर दिव्यांगों का क्रिकेट हो या अन्य खेल, इसे देखने के लिए दर्शक खेल मैदान में बहुत कम जुटते हंैंं, पर आमिर के साथ ऐसा नहीं है। कश्मीर में उनका खेल देखने के लिए दर्शक अच्छी-खासी संख्या में आते हैं। वे अपने राज्य की पारा क्रिकेट टीम के कप्तान भी हैं। उन्हें जम्मू-कश्मीर में दिव्यांग खिलाड़ियों को एकत्रित करने का श्रेय जाता है।
आमिर की जिंदगी में भारतीय सेना की अहम भूमिका है। वे बताते हैं कि मैं आज जो कुछ भी हूं वह सेना की बदौलत हूं। यदि सेना उन्हें बचाने आगे नहीं आती तो शायद आठ साल की उम्र में ही कश्मीर की उम्मीद का यह दीया बुझ चुका होता। उसके घर वाले मजदूरी कर जिंदगी की गाड़ी खींचते हैं। आमिर जब आठ वर्ष के थे तो उनके पिता क्रिकेट का बल्ला तैयार करने वाली एक आरा मशीन पर काम किया करते थे। आमिर कहते हैं, ‘‘एक दिन उनकी मां राजा बेगम ने उन्हें पिता के लिए दोपहर का भोजन देकर आरा मशीन पर भेजा। पिता जब खाना खाने लगे तो वह आरा मशीन के पास खेलने खेल-खेल में मशीन में हाथ आए और दोनों हाथ कंधे से अलग हो गए। वह बेहोश होकर दूर जा गिरा।’’ शरीर से इतना खून बहा कि आमिर के बचने की उम्मीद खत्म हो गई। इस बीच कुछ सैनिक फरिश्ता बनकर आए। उन्होंने उसे सेना की गाड़ी में डालकर अस्पताल पहुंचाया। तकरीबन तीन वर्ष तक उसका इलाज चला। इसमें घर की सारी जमा पूंजी खत्म हो गई। परिवार पर कर्ज का पहाड़ आ गया। गांव के लोग और नाते-रिश्तेदार दोनों बाजू कटे होने के कारण आमिर को बोझ समझने लगे। आमिर कहते हैं, ‘‘उस वक्त दादा-दादी सहारा बने।’’ गांव आते-जाते सैनिकों को देखकर आमिर का हौसला बढ़ा। पैर से पेड़ की टहनी पकड़ कर अखरोट तोड़ने के हुनर से आमिर को क्रिकेट खेलने की प्रेरणा मिली। दादा बशीर अहमद उन्हें बॉल कराते और आमिर बेलचे के डंडे को गर्दन और कंधे के बीच फंसाकर बल्लेबाजी करते। उसने छुप-छुपकर पड़ोसियों के टीवी पर सचिन की बल्लेबाजी देखकर रन बनाने की कला सीखी। फिर दाहिने पैर की अंगुलियों में गेंद फंसाकर गेंदबाजी करना सीखा। क्रिकेट खेलने में गांव के जहूर अहमद वानी ने भी भरपूर मदद की। जहूर के दोनों पैर नहीं हैं। उसने ही पहली बार आमिर को टीम बनाकर खेलने को प्रेरित किया। आज दोनों ही भारत की दिव्यांग क्रिकेट टीम के भरोसेमंद खिलाड़ी हैं। भारतीय दिव्यांग क्रिकेट टीम इस्लामाबाद (पाकिस्तान) की दिव्यांग टीम से दो-दो हाथ करने जा रही है, जहां तीन एकदिवसीय और दो टी-20 क्रिकेट मैच खेले जाने हैं। आमिर मानते हैं कि कश्मीर की छवि खराब करने के लिए वहां के युवाओं और नेताओं की एक जमात जिम्मेदार है। सैनिकों पर पत्थरबाजी के मामले पर उनका कहना है कि कोई किसी से असहमत हो सकता है, मगर विरोध लोकतांत्रिक तरीके से होना चाहिए, हिंसा से कतई नहीं। वे पूछते हैं, ‘‘क्या पिता की किसी बात से हम इत्तेफाक नहीं रखते तो उन पर पत्थर बरसाते हैं?’’
आमिर कहते हैं, ‘‘मैं कश्मीर की छवि बदलने की कोशिश में हूं। मैं अपने प्रदेश में जहां भी खेलने जाता हूं, वहां युवाओं को अमन का पैगाम देना नहीं भूलता।’’ आमिर बारहवीं पास हैं। जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने आमिर को खुद ही सरकारी नौकरी देने का वादा किया था। मगर साल बीतने को है, इस दिशा में अब तक कुछ नहीं हुआ। आमिर की मानें तो कश्मीर बदल रहा है। वहां के युवाओं की सोच में बदलाव आ रहा है। वे कहते हैं कि पहले के मुकाबले घाटी के नौजवानों में खेल, फिल्म और पढ़ाई के प्रति रुझान बढ़ा है। सरकार के प्रयास यूं ही जारी रहे तो यह राज्य बड़ा बदलाव देख सकता है।
(लेखक हिंदी दैनिक पायनियर के हरियाणा संस्करण के संपादक हैं)
यूट्यूब में आमिर की तारीफ
‘आमिर आप ग्रेट हैं’, ‘आपको देखकर हौसला मिला है’, ‘निराशावादियों और हिंसा के पैरोकारों को आप जैसों से सीख लेनी चाहिए।’ आमिर की तारीफ में इस तरह के अनेक वाक्य आपको यूट्यूब पर मिल जाएंगे। देश-विदेश के अनेक समाचार चैनल आमिर पर डॉक्युमेंट्री और विशेष रपट बना चुके हैं। एक विदेशी चैनल द्वारा उस पर पेश की गई रपट को देखने वालों की संख्या सवा लाख से ऊपर है।
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