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खेल/ भारतीय महिला हॉकी-एशिया में हम-सा न कोई-

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Nov 20, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 20 Nov 2017 11:11:11

इस बार तो कुछ अजीब-सा जादू किया हमारी महिला हॉकी टीम ने। जापान में एशिया कप के खेल में मैदान में अपना कमाल दिखाते हुए एशिया चैंपियन बनना कोई कम  हैरतअंगेज बात नहीं है। अब आगे है विश्व कप और राष्टÑकुल खेल की चुनौती, जिसके लिए शुरू हो चुकी है तैयारी
प्रवीण सिन्हा
जापान में एशिया कप शुरू होने से पहले शायद ही किसी को उम्मीद थी कि 13 साल के लंबे अंतराल के बाद भारतीय महिला हॉकी टीम चैंपियन बनकर लौटेगी। हॉकी प्रेमियों को लगा था कि यह टूर्नामेंट भी अन्य टूर्नामेंटों की तरह रहेगा जिसमें भारतीय टीम ‘अथक प्रयास’ के बाद अंतत: असफल रहेगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। भारतीय टीम न केवल एशिया कप चैंपियन बनी, बल्कि अगले साल ब्रिटेन में होने वाले विश्व कप के लिए उसने क्वालीफाई कर लिया। इस दोहरी खुशी के बीच भारतीय टीम का स्वदेश वापसी पर गजब का स्वागत हुआ। टीम की इस सफलता ने नए मानक तय कर दिए हैं।
हालांकि चंद दिनों पहले तक इस टीम से ज्यादा आशाएं न पालने के पीछे कुछ जायज कारण थे। 2004 में एशिया कप जीतने के बाद सुर्खियों में आई हमारी महिला हॉकी टीम उसके बाद कोई विशेष सफलता हासिल नहीं कर सकी थी। 2010 में अर्जेंटीना में हुए विश्व कप में नौवें स्थान पर रहने के बाद 2014 में नीदरलैंड में हुए विश्व कप के लिए भारतीय टीम प्रतियोगिता में नाम तक न दर्ज करा पाई थी। यही नहीं, हमारी लगभग यही एशिया कप विजेता टीम 4 महीने पहले दक्षिण अफ्रीका में हुई हॉकी विश्व लीग में 10 टीमों के बीच आठवें स्थान पर रही थी। यह निराशा भरा दौर था। लेकिन हरियाणा की बेहद प्रतिभाशाली कप्तान रानी रामपाल के नेतृत्व में भारतीय टीम ने हार नहीं मानी। उन्हें पूरा भरोसा था कि सफलता और असफलता के बीच एक महीन रेखा है जिसे उन्हें बस एक बार मिटाने की देर है। हॉकी  इंडिया ने भारतीय पुरुष टीम के वर्तमान कोच जोर्ड मारिजिन की जगह हरेन्द्र सिंह को महिला टीम के कोच की जिम्मेदारी सौंपी, जिसके बाद टीम का कायाकल्प हो गया।
बेशक मारिजिन एक बेहतरीन कोच हैं। वे पिछले दिनों पुरुष हॉकी टीम को एशिया कप चैंपियन बनाकर अपनी सार्थकता साबित कर चुके हैं। लेकिन हरेन्द्र सिंह ने महज दो माह पहले महिला टीम की जिम्मेदारी संभालने के बाद खिलाड़ियों की मानसिकता बदलने में अथक मेहनत की। उन्होंने टीम में विश्वास जगाया कि उसमें विश्व की किसी भी टीम को हराने का माद्दा है।
 हरेन्द्र ने टीम को एक इकाई के रूप में मैदान पर उतारा और किसी स्थान विशेष की विशेषज्ञ खिलाड़ी की जगह उन्हें हरफनमौला खिलाड़ी बनाने पर ध्यान केन्द्रित किया। उन्होंने टीम के अंदर विश्वास जगाने के अलावा पेनल्टी कॉर्नर को गोल में बदलने और टीम की रक्षापंक्ति को मजबूत करने पर विशेष जोर दिया। शायद उनकी यह रणनीति कारगर साबित हुई और भारतीय टीम एक जूझते हुए हारने वाली टीम से विजेता इकाई के रूप में बदल गई।
टीम में प्रतिभाशाली खिलाड़ियों की लंबी सूची है। उनके पास ऐसा कोच है जो टीम की मानसिकता को समझता है। यही कारण है कि एशिया कप में भारत ने चीन, कोरिया और जापान जैसी सशक्त टीमों को पीछे छोड़ते हुए चैंपियन बनने का गौरव हासिल किया। आज पूरे देश को उन पर गर्व है। हो भी क्यों न, अगर भारतीय महिला टीम का यही प्रदर्शन, यही जोश कायम रहा तो बुलंदियों को छूने से उसे कोई रोक नहीं सकता ल्ललय,

 तालमेल और रणनीति के साथ जीतेंगे विश्व कप : रानी रामपाल

शांत व सौम्य स्वभाव की भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान रानी रामपाल इन दिनों बेहद खुश हैं और अपनी टीम की सफलताओं को खुलकर बयान कर देने को आतुर नजर आ रही हैं। हो भी क्यों न। उन्होंने अपने प्रेरणादायी प्रदर्शन के बल पर भारतीय टीम को एक ऊंचाई जो प्रदान की है। प्रस्तुत है, एशिया कप जीतने के बाद रानी रामपाल से हुई बातचीत के प्रमुख अंश—
ल्ल    भारतीय टीम की एशिया कप की जीत क्या मायने रखती है?
यह जीत हमारे लिए काफी महत्वपूर्ण है। हम सभी बेहद खुश हैं। एशिया कप जीतना खुद में एक बड़ी उपलब्धि है, लेकिन अपने दम पर विश्व कप के लिए पात्रता हासिल करना उससे भी बड़ी बात है। हम नहीं चाहते थे कि कोई देश महाद्विपीय चैंपियन बने और उसकी खाली हुई जगह पर हमें विश्व कप में खेलने का मौका मिले। अब हम, एक बढ़े हुए मनोबल के साथ एशियाई चैंपियन के रूप में विश्व कप में खेलेंगे, जो ज्यादा संतोषप्रद है।
हमें यह सफलता उस समय मिली है, जब इसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी। 2004 में एशिया कप जीतने के बाद इस खिताब को दोबारा जीतने में हमें 13 साल लग गए। इस दौरान हम 2014 के एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीतने के अलावा और कोई विशेष सफलता हासिल नहीं कर सके थे। विश्व कप में भी हमारा प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं था। टीम जीत के करीब आकर भी पिछड़ रही थी। उस स्थिति में हमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ी सफलता की सख्त जरूरत थी। मुझे खुशी है कि टीम ने आत्मविश्वास बनाए रखा और शारीरिक, मानसिक व तकनीकी स्तर पर अन्य टीमों से बेहतर साबित हुई।
ल्ल    क्या कोच के रूप में हरेन्द्र सिंह का जुड़ना भाग्यशाली साबित हुआ ?
मैं कहना चाहूंगी कि हरेन्द्र सर का टीम के साथ जुड़ना प्रेरणादायी रहा। हमें यह मालूम था कि उन्होंने पिछले साल ही भारतीय पुरुष जूनियर टीम को विश्व चैंपियन बनाया था। उनका टीम से जुड़ना, हममें विश्वास जगाने के लिए काफी था कि हम विश्व विजेता टीम के कोच की देखरेख में एशिया की किसी भी टीम को हरा सकते हैं। कोई भी कोच जादू की छड़ी लेकर रातोरात टीम को नहीं बदल देता। हर कोच को टीम से सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन निकलवाने के लिए समय देना होता है। हमें बेहद खुशी है कि हमने कोच के साथ बहुत कम समय में एक बड़ी सफलता हासिल की है। हरेन्द्र सर की देखरेख में आगे हम और अच्छा प्रदर्शन करने में सफल रहेंगे, ऐसा विश्वास है। उन्होंने एशिया कप से पहले टीम की रक्षापंक्ति को मजबूत करने व पेनल्टी कॉर्नर को गोल में बदलने का जमकर अभ्यास कराया। खिलाड़ियों ने हर मैच के लिए बनी रणनीति पर अमल किया और शानदार प्रदर्शन करते हुए सफलता हासिल की। हमने पेनल्टी शूटआउट जैसी संभावित परिस्थितियों के लिए भी पूरी तैयारी कर रखी थी। शायद यही वजह थी कि फाइनल में पेनल्टी शूटआउट में हमने चीन को मात दी।
ल्ल अगले साल भारतीय टीम के सामने कई चुनौतियां हैं, उसके लिए क्या तैयारियां करेंगी ?
विश्व कप, राष्ट्रकुल खेल और एशियाई खेलों जैसे बड़े टूर्नामेंटों के लिए हमें ठंडे दिमाग से अभ्यास शिविर में कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी। फिटनेस ट्रेनर या वैज्ञानिक सलाहकार के रूप में दक्षिण अफ्रीका के वेन से टीम को काफी मदद मिल रही है। टीम में अब भी सुधार की काफी गुंजाइश है जिसे कोच अपने हिसाब से सुधारने की कोशिश करेंगे। एक टीम इकाई के रूप में हम सभी को कड़ी मेहनत करने की जरूरत है। अभ्यास शिविर के दौरान टीम में एक सामंजस्य व लय स्थापित करनी होगी। इसके अलावा, पेनल्टी कॉर्नर विशेषज्ञों की तरह हमें अन्य पोजीशन के लिए भी सभी खिलाड़ियों को तैयार करना होगा। हमारे पास एक बेहतरीन युवा टीम है। हमारा मनोबल काफी बढ़ा हुआ है। जरूरत है इसी आत्मविश्वास और प्रेरणा को साथ लेकर आगे बढ़ने की ताकि हम एक मजबूत टीम के तौर पर मैदान में उतरें।  

बढ़ाएंगे ताकत, देंगे मात: हरेन्द्र
उत्साह से लबरेज भारतीय महिला हॉकी टीम के कोच हरेन्द्र सिंह के साथ बातचीत के प्रमुख अंश-

आपने महज 50 दिनों में भारतीय महिला हॉकी टीम को क्या घुट्टी पिलाई जो एशिया की दिग्गज टीमों को परास्त कर चैंपियन बन गई?
मैंने ऐसी कोई जादू की छड़ी नहीं घुमाई। यह टीम की बदलती मानसिकता और कठिन परिश्रम का नतीजा है। लंबे समय बाद भारतीय टीम ने वह उपलब्धि हासिल की है, जिसकी वह वास्तव में हकदार है। टीम युवा व अनुभवी खिलाड़ियों का मिश्रण है, जो एक अच्छी बात है। खिलाड़ियों ने कड़ा अभ्यास किया था। टीम दृढ़निश्चय के साथ मैदान पर उतरी। खिलाड़ियों के सामने विश्व कप के लिए क्वालिफाई करने का लक्ष्य था जिसे हासिल करने के लिए उन्होंने दिल लगाकर पूरा प्रयास किया।

 अगले साल विश्व कप, एशियाई खेल और राष्ट्रकुल खेलों के लिए  क्या रणनीति बनाएंगे?
    अभी तो शुरुआत है। आगे लंबा सफर तय करना है। टीम का मनोबल काफी बढ़ा हुआ है। जाहिर है, विश्व कप या अगले साल होने वाले अन्य बड़े टूर्नामेंटों में खिलाड़ियों के मन में यह बात रहेगी कि उनकी टीम एशियाई चैंपियन है। अब उनके पास एक कदम आगे बढ़ने का लक्ष्य होगा। मैं इसी दिशा में अपनी आगे की रणनीति तय करूंगा। सुधार एक सतत प्रक्रिया है। टीम ने अगर ईमानदारी से प्रयास जारी रखा तो मुझे नहीं लगता कि विश्व कप या एशियाई खेलों में हमें कोई विशेष परेशानी होगी।   

 टीम में किस दिशा में सुधार करने की आवश्यकता है ?
टीम का प्रदर्शन देखें तो मुझे कोई कमी नजर नहीं आती। हां, एक बात मैं खिलाड़ियों से जरूर चाहूंगा कि वे विपक्षी टीम की कमजोरी की जगह अपनी ताकत के बल पर खेलें। हमें अपनी रणनीति के हिसाब से खेल पर नियंत्रण रखना होगा। हमारी ताकत सिर्फ गोल स्कोर करने की ही नहीं, बल्कि हमारी रक्षापंक्ति भी उतनी ही मजबूत होनी चाहिए। पूरे मैच के दौरान अगर टीम एक-दो गोल करके भी उस बढ़त को बनाए रखने में सफल होती है तो अंतत: मैदान में जीत हासिल करके लौटती है। टीम की जो ताकत है, उसको और बढ़ाते हुए विपक्षी टीमों को मात देने की रणनीति तैयार की जाएगी। टीम में जीत की भूख उसकी बहुत बड़ी ताकत है। मुझे उस निरंतरता को बनाए रखने की कोशिश करनी है। मैं टीम को एक विजेता इकाई के रूप में तैयार करना चाहूंगा।

 इस बाबत तैयारी की क्या  योजना है?
एक रणनीति के तहत पूरे जी-जान के साथ तैयारी में जुट जाना है। शॉर्ट टर्म योजनाओं के तहत अगले साल होने वाले विश्व कप की तैयारी करनी है। एक लंबे अभ्यास शिविर में तालमेल बनाए रखने की कोशिश करनी है। अब हर खिलाड़ी अपनी जिम्मेदारियों को समझकर उन्हें अमल में ला रही है।
टीम को हॉकी इंडिया और सरकार का भरपूर साथ मिल रहा है। पूरी टीम को विदेश में ज्यादा से ज्यादा खेलने का अनुभव मिले तो उससे विश्व कप या राष्ट्रकुल खेलों में काफी मदद मिलेगी।   

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