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सेकुलर निशाने पर ‘महामना का मंदिर’!

by
Oct 2, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 02 Oct 2017 10:56:11

 

महामना मदनमोहन मालवीय द्वारा स्थापित काशी हिंदू विश्वविद्यालय पर सेकुलरों की बुरी नजर।
पिछले दिनों वहां हुए हंगामे की सचाई को दबाकर चलाई गई नफरत भरी मुहिम से तो ऐसा ही लगा।

  पीयूष द्विवेदी
काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) अपनी शैक्षणिक गतिविधियों और भारतीय संस्कृति के संवर्द्धन के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। शायद यही बात सेकुलर मीडिया में बैठे वामपंथियों और सेकुलरों को पसंद नहीं है। इसलिए ये लोग एक कथित छेड़छाड़ के मामले को लेकर पिछले कुछ दिनों से बीएचयू और उसके कुलपति के विरुद्ध गलत खबरें चला रहे हैं। इसके अनेक उदाहरण हैं। इस समाचार को जब लिखा जा रहा था तब एक चैनल खबर चला रहा था कि बीएचयू के कुलपति प्रो. गिरीश चंद्र त्रिपाठी को जबरन छुट्टी पर भेजा गया। वहीं सोशल मीडिया पर यह खबर भी चली कि कुलपति से सारे अधिकार छीन   लिए गए हैं।
इन खबरों के बारे में जब विश्वविद्यालय के प्रवक्ता डॉ. राजेश सिंह से पूछा तो उन्होंने कहा कि ये सारी खबरें फर्जी हैं। कुछ सत्ता विरोधी तत्व विश्वविद्यालय को घृणित राजनीतिक हथकंडों का अखाड़ा बनाना चाहते हैं। ये तत्व सोशल मीडिया पर गलत समाचार फैला रहे हैं और चैनल तथा वेबसाइट वाले सोशल मीडिया से ही खबरें लेकर चला रहे हैं। तो यह है इनका हाल। इसलिए पिछले दिनों बीएचयू में जो हंगामा हुआ और जिस तरह से उसकी खबरें चलाई गर्इं, उसके    पीछे की मंशा को समझना कोई मुश्किल   काम नहीं है।  
कहा गया कि पीड़ित लड़की की बात को विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा गंभीरता से नहीं लिया गया। मगर, ये सब बातें सिर्फ कहे-सुने पर आधारित थीं, इनमें से किसी बात का कोई ठोस प्रमाण नहीं है। यहां तक कि पीड़ित लड़की द्वारा छेड़छाड़ के आरोपी लड़कों तक की भी शिनाख्त नहीं हो सकी है। लेकिन बिना जांच-पड़ताल और तथ्यों के परीक्षण के ही सुनी-सुनाई बातों के आधार पर  ऐसा हंगामा खड़ा किया गया जैसे कि देश के किसी विश्वविद्यालय में पहली बार इस तरह का कोई मामला सामने आया हो। खाली बैठे विपक्ष को भी अवसर मिल गया और विश्वविद्यालय के इस प्रकरण को आधार बनाकर अनर्गल ढंग से सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा गया। इसमें सेकुलर मीडिया से जुड़े लोगों और कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों का हाथ रहा। जेएनयू की पूर्व छात्रा ममता बीएचयू प्रकरण पर कहती हैं, ‘‘ये वही लोग हैं जो जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के ‘अनमोल रत्नों’ के बलात्कारी कारनामों, हिमाचल प्रदेश के जघन्य बलात्कार काण्ड, हैदराबाद में काजियों द्वारा शेखों को लड़कियां बेचे जाने आदि मामलों पर खामोशी की चादर ओढ़े रहते हैं, लेकिन बीएचयू में कथित तौर पर छेड़छाड़ की बात सामने क्या आ गई, पूरा आसमान ही सिर पर उठा लिया।’’
इस मामले में बीएचयू के कुछ छात्रों का कहना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन की सुस्ती तो रही, मगर उनका यह भी कहना है कि विरोध का कुछ लोगों ने जान-बूझकर राजनीतिकरण कर दिया। वहीं कुलपति गिरीश चंद्र त्रिपाठी (साक्षात्कार बॉक्स में पढ़ें) कहते हैं कि पीड़ित लड़की ने खुद उनसे मिलकर कहा कि वह सिर्फ उन लड़कों के विरुद्ध कार्रवाई चाहती है, जबकि बाहर विरोध कर रहे लोग जबरन उसे विरोध का हिस्सा बनाए हुए हैं। दूसरी चीज कि कुलपति जब छात्राओं से मिलने के लिए त्रिवेणी छात्रावास जा रहे थे, तो उनका रास्ता रोक दिया गया। उन्हें छात्राओं से मिलने नहीं दिया गया। लड़कियों के आंदोलन का नेतृत्व करने वाली एकता सिंह कहती हैं कि हमें लड़कियों ने बताया कि कुलपति को छात्रावास में बुलाया है और वे आ भी रहे हैं।  फिर जब मैं दो मिनट के लिए अपने कमरे में गई, तब मुझे पता चला कि कुलपति आए थे, मगर उनका इतना विरोध हुआ कि उन्हें लौटना पड़ा। यह विरोध उन लोगों ने किया जो जबरन इस आंदोलन का हिस्सा बने थे। उन्हीं लोगों ने कुलपति और लड़कियों के बीच संवाद नहीं होने दिया। एकता ने यह भी बताया कि उनके आंदोलन पर कुछ वामपंथी संगठनों ने कब्जा कर लिया। इस तरह आंदोलन का मुद्दा नेपथ्य में चला गया और इसे प्रधानमंत्री मोदी, भाजपा और राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ के विरोध का उपक्रम बनाकर रख दिया गया।
यहां समझने वाली बात यह है कि जब कुलपति त्रिवेणी छात्रावास गए तब यदि उनकी छात्राओं से मुलाकात हो जाती तो यह बिगड़ा मामला फिर भी संभल जाता। लेकिन कुलपति से लेकर एकता तक की बातों से जाहिर है कि यह मुलाकात होने नहीं दी गई यानी यह उन तत्वों को पसंद नहीं था, जो इस बहाने संघ और भाजपा का विरोध करना चाहते थे। अब मीडिया पर प्रश्न यह उठता है कि जब कुलपति छात्राओं से मिलने गए थे, (यह अलग विषय है कि मुलाकात नहीं हो पाई), फिर ऐसी खबरें क्यों चलीं कि कुलपति छात्राओं से मिलने को तैयार नहीं हैं!
इन सब बातों को देखने से यही प्रतीत होता है कि विश्वविद्यालय प्रशासन के कुछ कर्मचारियों की भूलों के कारण इस मामले में छात्राओं को आंदोलन के लिए बाध्य होना पड़ा, मगर उसके बाद उनको नेपथ्य में करते हुए इसे पूरी तरह से राजनीतिक रंग देने का काम विशेष तौर पर वामपंथियों और दिल्ली में बैठ मीडिया के एक धड़े द्वारा किया गया। इसका वहां के छात्र और शिक्षक विरोध भी कर रहे हैं।
बीएचयू को बदनाम करने के विरोध में इन लोगों ने प्रदर्शन भी किया है। बहरहाल, अब इस मामले में प्रदेश सरकार द्वारा न्यायिक जांच का आदेश दिया गया है। उम्मीद है कि इस जांच से सभी वास्तविक दोषियों के चेहरे से नकाब उतर जाएगी।    

 

‘बीएचयू के माहौल को खराब करने
की कोशिश की जा रही है’
बीएचयू प्रकरण पर कुलपति प्रो. गिरीश चंद्र त्रिपाठी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश-

छेड़खानी से शुरू हुआ मामला इतना कैसे बिगड़ गया?
हंगामे में पहले दिन से ही बाहरी तत्व शामिल थे। मैं उस दिन प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में था। जब लौटा तो विरोध कर रहे लोगों से बार-बार आग्रह किया कि आइए, हम जो कर सकते हैं, करेंगे। लेकिन ये लोग नहीं आए। बाद में पीड़ित लड़की और उसकी कुछ सहेलियां मुझसे मिलीं। लड़की ने अपनी पूरी बात बताई, साथ ही यह भी बताया कि मैं यह नहीं चाहती जो ये लोग कर रहे हैं। लेकिन ये मुझे वहां से आने नहीं दे रहे हैं, जबरदस्ती बिठाए हुए हैं। मैं कोई बहाना बनाकर यहां आई हूं। खैर, उन लड़कियों से मेरी बात हुई। मैंने उन्हें भरोसा दिया और एफआईआर की बात कही।  लड़कियां चाहती थीं कि ये सुनिश्चित किया जाए कि आगे से फिर ऐसा नहीं होगा। मैंने कहा कि हम अपने सुरक्षा इंतजामों का पुनरावलोकन करेंगे और उसमें लड़कियों को भी शामिल करेंगे। यह भी तय हुआ कि मैं त्रिवेणी छात्रावास जाऊंगा और लड़कियों से बात करूंगा। इसके बाद महिला महाविद्यालय की लड़कियां भी मुझसे मिलीं। मैंने कहा कि मैं आपके यहां भी आऊंगा। मैं जब त्रिवेणी छात्रावास जा रहा था, तो अचानक पता नहीं कहां से चालीस-पचास लड़के-लड़कियों का दल आकर उसके बाहर धरने पर बैठ गया। मुझे लौटना पड़ा। मैंने महिला महाविद्यालय जाने की सोची तभी वहां पथराव होने लगा। आगजनी हुई, पेट्रोल बम चले।  

 आप बाहरी तत्वों के शामिल होने की बात किस आधार पर कह रहे हैं?
आम आदमी पार्टी के संजीव सिंह, ‘आइसा’ से जुड़े सुनील यादव आदि लोग पहले दिन से लगे हुए थे। मेरे पास वीडियोग्राफी है, जिसमें संजीव सिंह पहले दिन भाषण दे रहे हैं। बाहरी लड़कियां भी थीं। पहले दिन हमारे डीन, विश्वविद्यालय के कई अधिकारी उन्हें समझाते रहे। लड़कियां मान जातीं, लेकिन ये जो बाहरी लोग थे, उन्हें रोक रहे थे। आखिर वे जाकर उस जगह धरने पर बैठ गए जहां से प्रधानमंत्री गुजरने वाले थे। एक और मामले पर ध्यान दीजिए, जब धरना दे रहे लोगों में से कुछ ने महामना की प्रतिमा पर कालिख पोतने की कोशिश की (पोती नहीं गई) और विश्वविद्यालय के नाम की जगह ‘शेम बीएचयू’ का बैनर लगाना चाहा तो उनके बीच ही दो गुट हो गए। विद्यार्थी ऐसा करने वालों को रोकने लगे कि विश्वविद्यालय के प्रति हम ऐसी अभद्रता नहीं होने देंगे। मैं अपने कार्यकाल के अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि बीएचयू का विद्यार्थी महामना और बीएचयू के प्रति सम्मान का भाव रखता है, वह उनके प्रति अपमान कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता। इस मामले से भी जाहिर है कि उसमें बाहरी लोग थे।

 पूरे प्रकरण के दौरान मीडिया का रवैया कैसा रहा?
खुद को मुख्यधारा कहने वाले मीडिया के एक बड़े हिस्से का बेहद नकारात्मक और एकपक्षीय नजरिया रहा। बस बुराई की गई, विश्वविद्यालय की अच्छाई पर किसी ने चर्चा तक नहीं की। मेरे कई बयानों को गलत ढंग से प्रस्तुत किया गया। वास्तव में, लड़कियों को आगे करके संस्थान का माहौल खराब करने की कोशिश लगातार की जा रही है। इस मामले में अवसर मिल गया तो मीडिया के एक धड़े ने इसे बढ़ा-चढ़ाकर दिखा दिया कि देखो, हम जो पहले से कह रहे थे, वही बात है। बिना बात मामले को राष्टÑीय रूप दे दिया गया।    

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