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मानसून आते ही ब्रह्मपुत्र नदी समूचे पूर्वोत्तर क्षेत्र को अपनी चपेट में ले लेती है। बाढ़ से बड़े पैमाने पर तबाही मचती है और इनसानों के साथ ही जीव-जन्तुओं के लिए भी सुरक्षित ठिकाना ढूंढना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में इनसानों को तो मदद मिल जाती है, पर वन्यजीवों पर दोहरी मुश्किल आ जाती है। बिनोद बोरा वर्षों से वन्यजीवों के संरक्षण में जुटे हुए हैं। इन दिनों उनका काम इतना बढ़ जाता है कि रात को भी चैन नहीं मिलता। निधि सिंह ने उनसे मौजूदा हालात पर बातचीत की। प्रस्तुत हैं बातचीत के मुख्य अंश –
आपने पिछले 15 दिनों में कितने जानवरों को बचाया है?
मैंने पिछले 15 दिनों में ‘कार्बी आंगलोंग’ की पहाड़ियों के आसपास दो किंग कोबरा, 3 मोनोक्लेद कोबरा और एक पिट वाइपर सांप को पकड़ कर जंगल में सुरक्षित स्थान पर छोड़ा है। इनमें से एक किंग कोबरा तो पास के ही जिया जारी लेबरलाइन में था, जबकि दूसरा कार्बी आंगलोंग पहाड़ियों से करीब 5 किलोमीटर पहले मिला था।
जब आप जानवरों को बचाने जाते हैं तो किस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है?
बाढ़ के दौरान तो लोग वैसे ही परेशान रहते हैं। ऐसी स्थिति में जब घर के अंदर अचानक उन्हें कोई सांप दिख जाता है तो लोग यह जाने बिना ही कि वह जहरीला है भी या नहीं, उसे मारने दौड़ते हैं। इसलिए अपने गांव के आसपास रहने वाले लोगों को मैंने अपना फोन नंबर दे रखा है ताकि ऐसी स्थिति आने पर वे तुरंत मुझे सूचना दे सकें। जिन लोगों ने मेरे काम को देखा है, वे तत्काल ही मुझे फोन करके सूचना दे देते हैं। कई बार तो ऐसा भी होता है कि वन्यजीव अधिकारी मुझसे कहते हैं कि ‘तुम चलो, हम पहुंच रहे हैं, क्योंकि लोगों से निबटने में वे इतने सक्षम नहीं हैं।’ बचाव कार्य के दौरान कुछ लोग मुश्किलें खड़ी कर देते हैं। खासकर वैसे लोग जो नशे में धुत होते हैं। ऐसी स्थिति में मुझे उन्हें कुछ रुपये देकर वहां से हटाना पड़ता है। कुछ तो ऐसे होते हैं कि जिद पर ही अड़ जाते हैं कि मुझे सांप दिखाओ। इसलिए हमें बचाव कार्य की तस्वीरें भी लेनी पड़ती हैं जिसे दिखाकर हम ऐसे लोगों को शांत करते हैं।
लोग सांपों को मारें नहीं, इसके लिए भी कोई तरकीब अपनाते हैं?
हां, मैं लोगों से कहता हूं कि यह ‘बोल बम’ का महीना है और सांप भोलेनाथ का रूप होते हैं। अगर किसी ने इन्हें मारा तो वह अच्छा नहीं होगा। ऐसा कहने पर ही वह बात समझ पाते हैं।
यह तो चाय बागान के पास के गांव की बात है। लेकिन ऊपर कार्बी पहाड़ियों पर हालात कैसे होते हैं?
घास के मैदानों में पानी भरने पर हिरण आदि जानवर वन विभाग द्वारा संरक्षित कार्बी पहाड़ियों की ओर चले जाते हैं लेकिन वे वहां की स्थानीय जातियों के निशाने पर आ जाते हैं। दूसरे, बाढ़ से फसलें तबाह हो जाती हैं और वे भोजन के लिए जानवरों का शिकार करने लगते हैं।
क्या साल के बाकी समय में ऐसी कोई दिक्कत नहीं आती?
ऐसा नहीं है। करीब दो साल पहले हाथी का एक बच्चा मां से बिछड़ गया, जिसे गांव के एक परिवार ने पकड़ कर अपने पास रख लिया। इसके बाद उन्होंने अफवाह फैला दी कि गणेश जी खुद उनके घर आए हैं। स्थानीय लोग अंधविश्वास में रातभर कुछ-कुछ करते रहे। ऐसे में पहले उस परिवार से निबटना पड़ा। काफी समझाने के बाद सुबह किसी तरह उनके चंगुल से हाथी के बच्चे छुड़ाया। इस दौरान वन विभाग के अधिकारी भी आ गए थे। सुबह को जब हम हाथी के बच्चे को मां से मिलाने की कोशिश कर रहे थे तो पहले मां हिचकचाई। लेकिन हम प्रयास करते रहे। कुछ देर बाद में जब हमने हाथी के बच्चे को उसकी मां के पास छोडाÞ तो वह मेरे पीछे-पीछे आने लगा। हमने बहुत मुश्किल से उस बच्चे को उसके झुंड में भेजा।
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