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28 मई, 2017
‘जनता की सरकार’ से स्पष्ट होता है कि केन्द्र की राजग सरकार ने तीन साल में विकास के प्रतिमानों को ऊंचा रखते हुए लोगों के दिल को जीतने का काम किया है। इन अल्पावधि में सरकार ने अपनी नीतियों, योजनाओं एवं कार्यों से जन-जन में लोकप्रियता प्राप्त की। अब विश्व के देशों को भी पता चलने लगा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत निरंतर प्रगति पथ पर बढ़ रहा है।
—कृष्ण वोहरा, सिरसा (हरियाणा)
अगर आज विदेशी बाजारों में भारत की पूछ-परख बढ़ रही है तो उसके पीछे केन्द्र में बदली सरकार का नतीजा ही है। देश में विदेशी निवेश भी बढ़ा है और आर्थिक सुधार की दिशा में सरकार ने बड़े स्तर पर व्यापक कदम बढ़ाए हैं। कांग्रेस शासनकाल में आए दिन भ्रष्टाचार और घोटालों की खबरों ने देश के लोगों को परेशान करके रखा था लेकिन मोदी सरकार के 3 साल में ऐसा कोई आरोप दूर-दूर तक दिखाई नहीं देता। यह अपने आप में किसी बड़ी उपलब्धि से कम बात नहीं है।
—नूतन सिंह, ई-मेल से
राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार ने हाल ही में तीन वर्ष पूरे किए। इन तीन वर्षों में देश की जनता ने बदलाव भी देखा और महसूस किया। बात चाहे भ्रष्टाचार समाप्त करने की हो या विकास की, हर कदम पर राजग सरकार खरी उतरी है। कुछ समय पहले तक नेताओं के लिए राजनीति के मायने अलग हुआ करते थे लेकिन मोदी सरकार आने के बाद इसके मायने बदले हैं। अब सभी मिलकर राष्ट्र निर्माण में लगे हुए हैं। तो वहीं दूसरी ओर विदेशों में भारत की धमक बढ़ रही है और देश भारत को एक सशक्त राष्ट्र के रूप में देखना शुरू कर चुके हैं।
—प्रतिमान शुक्ल, इलाहाबाद (उ.प्र.)
हिंसा भड़काने वाले कौन?
‘नफरत की आग, राजनीति की रोटियां (28 मई, 2017)’ रपट से यह स्पष्ट हो गया कि कैसे सहारनपुर में योजनाबद्ध तरीके से माहौल बिगाड़ने का कुत्सित प्रयास किया गया। सहारनपुर सहित पश्चिम उत्तर प्रदेश में उन्मादी माहौल बिगाड़ने के लिए हिन्दू समाज को निशाना बनाये हुए हैं और एक तबके को भड़काकर अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहे हैं। हिन्दू समाज को ऐसे उपद्रवी तत्वों से सचेत रहना होगा क्योंकि ये सब अपनी राजनीति चमकाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। विचारणीय यह है कि इस क्षेत्र में सपा के दबंगों का कब्जा रहा है जो भाजपा की राज्य में सरकार आने के बाद खिसियाए बैठे हैं। राज्य सरकार को ऐसे उन्मादियों को चिह्नित करके कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए क्योंकि यही लोग समूची कानून-व्यवस्था के लिए संकट हैं।
—हरीशचन्द्र धानुक, लखनऊ (उ.प्र.)
कुछ लोग हैं जो नहीं चाहते कि समाज में शांति-व्यवस्था स्थापित रहे। इसमें न केवल राजनीति से जुड़े लोग हैं बल्कि हमारे अपने ही बीच में रहने वाले भी हैं। ये सभी अपने तुच्छ स्वार्थों के लिए किसी को बलि का बकरा बनाने में देर नहीं लगाते। और जब कहीं हिंसा या माहौल बिगड़ जाता है तो यही उपद्रवी तत्व इतनी सफाई से मामले को हिन्दू समाज के ऊपर मढ़कर पल्ला झाड़ लेते हैं कि जांच एजेंसियां भी चकरा जाती हैं। सहारनपुर का मामला इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है लेकिन इसके अतिरिक्त देश के छोटे-छोटे स्थानों पर इस तरह के कुत्सित प्रयासों के जरिए समाज में विष घोलने का काम किया जा रहा है। अब हिन्दू समाज को जागकर, चीजों को समझकर स्व विवेक से निर्णय लेना होगा और किसी के भी बहकावे में आने से बचना होगा।
— पी. जयाप्रदा, कोठापेट (हैदराबाद)
सहारनपुर और पश्चिम उत्तर प्रदेश में एक बड़ा तबका ऐसा रहता है जो न केवल कट्टरवादी है बल्कि देश के विरुद्ध कार्य करने में उसे जरा भी हिचक नहीं लगती। पहले भी यहां से उन्मादपूर्ण कार्य होते रहे हैं और दर्जनों उन्मदियों को भी चिह्नित किया गया। लेकिन बात वही ढाक के तीन पात। ऐसे उपद्रवियों को चिह्नित करने के बाद भी उन पर कोई कड़ी कार्रवाई शासन-प्रशासन द्वारा नहीं की जाती। जिसके चलते उनके हौसले और बुलंद हो जाते हैं। प्रशासन को चाहिए कि समाज के माहौल को बिगाड़ने में जिस किसी का भी नाम सामने आए उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे क्योंकि यह नासूर समाज में जहर घोलने का काम कर रहा है।
—राममोहन चन्द्रवंशी, हरदा (म.प्र.)
धर्म का अर्थ है मानवता और त्याग। किन्तु मुल्ला-मौलवी इस्लाम को श्रेष्ठ और अन्य मत-पंथों को निकृष्ट मानकर देश-दुनिया में खून-खराबा करवा रहे हैं। इससे भारत भी परेशान और विश्व भी। आए दिन विश्व के किसी न किसी देश में कट्टरवादियों द्वारा आतंक का माहौल कायम करके निरीह लोगों की हत्या की जाती है। और मजे की बात यह है कि मुस्लिम समाज के तथाकथित ठेके दार इस हिंसा को खामोशी से देखते रह जाते हैं। पूरा विश्व तरक्की की राह पर दौड़ रहा है लेकिन मुस्लिम समुदाय जिहाद की ओर। लेकिन मुस्लिम समाज को अब इस विषय पर सोचना ही होगा। तरक्की और अमन पसंद मुसलमानों को इस रक्तपात और जिहाद के विरुद्व आवाज उठानी होगी और उनका विरोध करना होगा जो इस तरह के कार्य को हवा देते हैं।
—मनोहर मंजुल, प.निमाड़ (म.प्र.)
देश की सीमाओं पर जहां कुटिल पड़ोसी हर क्षण भारत को क्षति देने के लिए तैयार रहता है तो वहीं देश के भीतर से भी इसी तरीके देश का माहौल बिगाड़ने का काम किया जाता है। सांप्रद्रायिक उन्माद की आड़ में देश में अशांति, विद्वेष, विघटन, विद्रोह का सुनियोजित छद्म युद्ध चलाया जा रहा है। यह स्थिति न केवल समाज के लिए बल्कि राष्ट्र के लिए घातक है।
—गिरीश चन्द्र शर्मा, संगरिया (राज.)
इन दिनों जोर-शोर से दलित- दलित का नाम लेकर हिन्दू समाज में फूट डालने का काम किया जा रहा है। 7 जून, 1932 को बम्बई के गवर्नर रोडिक्स ने तत्कालीन वायसराय वेलिंगटन को एक पत्र लिखा था, जिसमें उसने लिखा था कि राजनीतिक उद्देश्यों के लिए दलितों को हिन्दू समाज में पृथक समुदाय के रूप में गिना जाना चाहिए। हिन्दू समाज को तोड़ने का उनका इरादा बहुत ही स्पष्ट था। तब से अब तक सतत यही कार्य देश में चला आ रहा है और हमारे नेता उन्हीं के पद चिह्नों पर चलते चले आ रहे हैं। लेकिन किसी ने अंग्रेजों की कुटिल चाल पर प्रहार नहीं किया। समाज आज भी टूट रहा है। तब भी सभी कुर्सी के चरम स्वार्थों में लिपटकर वोट बटोरने में लगे थे और आज भी लगे हुए हैं।
—डॉ. प्रणव कुमार बनर्जी, बिलासपुर (छ.ग.)
हिन्दुओं की सबसे बड़ी कमजोरी है कि वह संगठित नहीं है। बस इसी के चलते खाते हैं। इसी समाज में से कुछ लोग हैं जो स्वार्थ के झांसे में आकर अपने ही समाज के दुश्मन बन बैठते हैं। ऐसे लोगों को समझना चाहिए कि राष्ट्र की उन्नति के लिए इस तरह के कार्य अनैतिक हैं। और किसी भी समाज में इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। सहारनुपर में दलित-दलित का नाम लेकर कुछ उन्मादी हिन्दू समाज के ताने-बाने को तोड़ने में शामिल थे। यह कार्य सिर्फ यहीं नहीं हो रहा समूचे भारत में इस तरह के कार्य होते हैं और
हिन्दू समाज इसे समय पर समझ नहीं पाता और अपनों से ही लड़ जाता है। समाज एक रहे और देश तोड़ने वालों के
मंसूबे पूरे न हो, इसके लिए जागरूक
होना होगा।
—आनंद मोहन भटनागर, लखनऊ (उ.प्र.)
कड़ी कार्रवाई का समय
‘जिहाद के सौदागर (30 अप्रैल, 2017)’ रपट से स्पष्ट हुआ कि पाकिस्तान कैसे कश्मीर में आतंक की फसल को खाद पानी देने का काम कर रहा है। इसलिए ही तो चंद पैसों के लालच में पत्थरबाज अपने ईमान को बेचकर भारत के विरुद्ध छद्म युद्ध छेड़े हुए हैं। अब तो यह साबित भी हो चुका है कि अलगाववादी गुट कश्मीरी युवा लड़कों के सहारे भारत के खिलाफ पाकिस्तान और अरब देशों से आए चंदे के बल पर कश्मीर का वातावरण खराब करने का काम कर रहे हैं।
—हरिहर सिंह चौहान, इन्दौर (म.प्र.)
असलियत आती सामने
रपट ‘ढहने लगा ताश का महल (21 मई, 2017)’ से जाहिर होता है कि अरविंद केजरीवाल की आआपा जिस उफान के साथ सत्ता में आई थी उसी उफान के साथ ढह रही है। घोटालों की लंबी फेहरिस्त ने उनके चाल-चरित्र और चेहरे को जनता के सामने ला दिया है। अब उनको भी इसे देखकर लगने लगा है कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती।
—बी.एल.सचदेवा, आईएनए बाजार (नई दिल्ली)
पेश करें नया उदाहरण
यूं तो सृष्टि में उत्पन्न सभी जीव एक दूसरे के पूरक हैं और एक दूसरे पर निर्भर होकर अपनी जीवन यात्रा पूर्ण करते हैं। किन्तु पशुधन और मनुष्य एक दूसरे के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। इनमें भी दुधारू पशु का स्थान महत्वपूर्ण है। इसी के चलते अनादिकाल से इनके पालन-पोषण की परंपरा चली आ रही है। भगवान श्रीकृष्ण के काल में तो ये तय करना कठिन था कि मानवों की संख्या अधिक है अथवा गोवंश की। समय परिस्थिति एवं विचार परिवर्तन के चलते इसमें घोर परिवर्तन आया लेकिन इसके बाद भी पशु पालन की प्रथा बदस्तूर जारी रही। भारत में हर जाति-वर्ग एवं संप्रदाय के लोग इनका पालन पोषण करते रहे हैं और आज भी कर रहे हैं। कुछ प्रदेशों में तो मुस्लिम गोपालन में अग्रणी हैं। लेकिन जब कोई सरकार गोवध बंदी की बात करती है तो उसे मुस्लिम विरोधी कहकर आम जनता को भ्रमित किया जाता है। और ऐसे प्रेषित किया जाता है जैसे गोवध बंदी होने से मुस्लिमों के लिए कोई बड़ा खतरा उत्पन्न हो जाएगा। जबकि यह सरासर गलत और तथ्यहीन बात है। महज कुछ स्वार्थी किस्म के लोग गोवंश पर राजनीति करके समूचे मुस्लिम समाज को ही कठघरे में खड़ा कर देते हैं। बात-बात पर मांसाहार का हवाला देते हैं। जबकि ऐसे लोगों को पता होना चाहिए आधुनिक विज्ञान ने एक नहीं कई बार शोध के माध्यम से बताया है कि मांसाहार स्वास्थ्य के लिए कितना अधिक हानिकारक है। लेकिन ऐसे लोगों को इस बात से कोई मतलब नहीं रह जाता। खैर, ऐसे लोगों को समझना चाहिए कि हिन्दू समाज में गाय आस्था का केन्द्र बिन्दु है। हिन्दुओं की आस्था का सम्मान करते हुए मुस्लिमों को चाहिए कि वे गोपालन के क्षेत्र में तेजी के साथ आगे आएं और ऐसी मिसाल स्थापित करें जिस पर समाज को गर्व हो।
—श्याम सुंदर
के 4/21, लालघाट, वाराणसी(उ.प्र.)
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