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Anशशांक द्विवेदी
भारत अंतरिक्ष तकनीक में कामयाबी की नई इबारत लिखने की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) 2018 की पहली तिमाही में बड़े मानवरहित अभियान के तहत चंद्रमा पर दूसरा मिशन ‘चंद्रयान-2’ भेजने वाला है। इसरो के अध्यक्ष ए.एस. किरण कुमार के अनुसार, चंद्रमा पर अंतरिक्ष यान को उतारने का परीक्षण चल रहा है। इसरो इसके लिए एक विशेष इंजन विकसित करेगा जो ‘लैंडिंग’ को नियंत्रण कर सके। फिलहाल चंद्रमा की सतह जैसी आकृति और वातावरण बनाकर प्रयोग जारी है, जबकि चंद्रमा पर जाने वाला उपग्रह तैयार है। चंद्रयान-2 नई तकनीकी से लैस है और चंद्रयान-1 से काफी उन्नत है। गौरतलब है कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 2003 में चंद्रयान-1 अभियान की घोषणा की थी, जिसे 2008 में भेजा गया था। वह भारत का पहला सफल चंद्र अभियान था।
चंद्रयान-2 की विशेषताएं
इस अभियान में भारत में निर्मित एक चंद्रयान, एक रोवर एवं एक लैंडर शामिल होंगे। इसे जीएसएलवी-एमके-2 से छोड़ा जाएगा। उड़ान के समय इसका वजन करीब 2,650 किलो होगा। इसरो के अनुसार, अभियान में नई प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल के अलावा परीक्षण और नए प्रयोग भी किए जाएंगे। पहियों वाला रोवर चंद्रमा की सतह पर चलेगा तथा आॅन-साइट विश्लेषण के लिए मिट्टी या चट्टान के नमूने एकत्र करेगा और उनका रासायनिक विश्लेषण कर डाटा आॅर्बिटर के पास भेज देगा जहां से इसे पृथ्वी के स्टेशन पर भेजा जाएगा। आॅर्बिटर का डिजाइन इसरो तैयार करेगा। यह 200 किलोमीटर की ऊंचाई पर चन्द्रमा की परिक्रमा करेगा। आॅर्बिटर को पांच पेलोड के साथ भेजने की योजना है। तीन पेलोड नए हैं, जबकि दो चंद्रयान-1 आॅर्बिटर पर भेजे जाने वाले पेलोड के उन्नत संस्करण हैं। चंद्रयान-1 के ‘लूनर प्रोब’ के विपरीत, लैंडर धीरे-धीरे नीचे उतरेगा।
लैंडर व रोवर का वजन करीब 1250 किलो होगा, जो सौर ऊर्जा से संचालित होगा। इसरो चंद्रयान-2 के साथ एक टेलीस्कोप भेजने की योजना पर भी गंभीरता से काम कर रहा है। अगर योजना कामयाब हो गई तो भारत की तीसरी आंख पृथ्वी से 3,84,400 किमी दूर चंद्रमा पर होगी, जो अंतरिक्ष में नई खोज में मददगार होगी। भारत बीते साल सितंबर में वेवलेंथ पर काम करने वाला टेलीस्कोप एस्ट्रोसैट अंतरिक्ष में लगा चुका है जो ब्लैक होल्स व न्यूट्रॉन स्टार का अध्ययन कर रहा है। चंद्रमा पर भेजा जाने वाला टेलीस्कोप नासा के हबल टेलीस्कोप जैसा होगा। यह मिशन भारत को अंतरिक्ष अनुसंधान के और ऊंचे पायदान पर ला खड़ा करेगा। हमारे लिए यह निस्संदेह गर्व की बात है।
(लेखक मेवाड़ विश्वविद्यालय में उपनिदेशक, और टेक्निकल टुडे पत्रिका के संपादक हैं)
इसरो के भावी अभियान
मंगल यान और चंद्रयान -1 की सफलता के साथ ही अंतरिक्ष में प्रक्षेपण का शतक लगाने के बाद इसरो कुछ और महत्वपूर्ण अभियानों पर तेजी से काम कर रहा है। पहले प्रस्तावित अभियान के तहत है अंतरिक्ष में मानव को भेजना। दूसरा अभियान चंद्रमा की सतह पर एक रोवर उतारना और तीसरा सूर्य के अध्ययन के लिए आदित्य उपग्रह का प्रक्षेपण करना है। इन सभी महत्वपूर्ण अभियानों को अगले चार वर्ष के भीतर अंजाम दिया जाएगा। मंगल की कक्षा में मंगलयान के सफलतापूर्वक पहुंचने के बाद इसरो के वैज्ञानिक भविष्य के सभी अभियानों की सफलता को लेकर आश्वस्त हैं।
इसरो का मानवयुक्त अंतरिक्ष कार्यक्रम
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) इतिहास रचने की दिशा में एक और कदम बढ़ाने जा रहा है। अब यह अपने सबसे वजनी रॉकेट जीएसएलवी मार्क-3 का जल्द ही प्रक्षेपण करने वाला है। यह इसरो द्वारा निर्मित अब तक का सबसे भारी उपग्रह है, जिसका वजन 3,136 किलोग्राम है। इस उपग्रह की खासियत यह है कि जिस रॉकेट से इसे छोड़ा जाएगा, उसके लिए क्रायोजेनिक इंजन भारत में ही तैयार किया गया है। इसे इसरो के वैज्ञानिकों ने विकसित किया है। अगर यह प्रक्षेपण सफल रहा तो भारत अंतरिक्ष में मानवयुक्त यान भेजने में भी सक्षम हो जाएगा।
जीएसएलवी मार्क-3 की सफलता के बाद इसरो अंतरिक्ष में इनसान को भेजने का अपना सपना पूरा कर सकेगा। फिलहाल अमेरिका और रूस ही अंतरिक्ष में इनसान को भेजने में सफल हुए हैं। जीएसएलवी मार्क-3 के साथ भेजे जाने वाले क्रू मॉड्यूल के सफल परीक्षण से भारत को उम्मीदें बंधी हैं। चंद्रयान-1 और मंगलयान की कामयाबी के बाद भारत की निगाहें अब सुदूर अंतरिक्ष पर हैं। इसरो ग्रहों की तलाश और उनके व्यापक अध्ययन के लिए मानवयुक्त अंतरिक्ष अभियान की योजना बना रहा है। इस अभियान का मकसद पृथ्वी की निचली कक्षा में एक चालक दल को ले जाने और पृथ्वी पर पूर्व निर्धारित गंतव्य तक उन्हें सुरक्षित वापस जाने के लिए एक मानवयुक्त अंतरिक्ष अभियान शुरू करना है। कार्यक्रम को इसरो द्वारा तय चरणों में लागू करने का प्रस्ताव है। वर्तमान में इसरो क्रू मॉड्यूल, पर्यावरण नियंत्रण और लाइफ सपोर्ट सिस्टम, क्रू एस्केप सिस्टम आदि महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के विकास पर काम कर रहा है। केंद्र सरकार द्वारा आवश्यक मंजूरी मिलने के बाद मानवयुक्त अंतरिक्ष यान के निर्माण की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। अंतरिक्ष में जाने वाले इसरो के पहले मानवयुक्त यान में दो यात्री होंगे। इस यान को पृथ्वी की कक्षा से 100 से 900 किलोमीटर ऊपर अंतरिक्ष में भेजे जाने की योजना है।
सूर्य को खंगालेगा ‘आदित्य’
इसरो के वैज्ञानिकों की नजर सूर्य पर भी है। वैज्ञानिक सूर्य अभियान की तैयारियों में जुटे हुए हैं। इस अभियान के तहत, इसरो आदित्य-1 उपग्रह का प्रक्षेपण करेगा, जो सूर्य के करोना का अध्ययन एवं धरती पर इलेक्ट्रॉनिक संचार में व्यवधान पैदा करने वाली सौर-लपटों की जानकारी हासिल करने में मदद करेगा। हालांकि इस उपग्रह का प्रक्षेपण 2012-13 में ही किया जाना था, लेकिन इसरो ने इसके प्रक्षेपण के लिए नया कार्यक्रम तैयार किया है। इसरो के अध्यक्ष किरण कुमार ने कहा है कि आदित्य-1 का प्रक्षेपण अगले तीन साल के दौरान किया जाएगा। यह उपग्रह सोलर ‘कैरोनोग्राफ’ यंत्र की मदद से सूर्य के सबसे भारी भाग का अध्ययन करेगा। इससे कॉस्मिक किरणों, सौर आंधी और विकिरण के अध्ययन में
मदद मिलेगी।
अभी तक वैज्ञानिक सूर्य के कैरोना का अध्ययन केवल सूर्यग्रहण के समय में ही कर पाते थे। इस अभियान के जरिये सौर वलयों और सौर हवाओं के अध्ययन में नई जानकारी मिलेगी कि ये किस तरह से धरती पर इलेक्ट्रॉनिक प्रणालियों और संचार नेटवर्क पर असर डालती हैं। इससे सूर्य के कैरोना से धरती के भू-चुम्बकीय क्षेत्र में होने वाले बदलावों से जुड़ी घटनाओं को समझा जा सकेगा। इसके अलावा, इस सौर अभियान के जरिये उपग्रहों और अंतरिक्षयानों को बचाने के उपायों के बारे में पता लगाया जा सकेगा। इस उपग्रह का वजन 200 किलोग्राम होगा। यह उपग्रह कृत्रिम ग्रहण द्वारा कैरोना का अध्ययन करेगा। इसका अध्ययन काल 10 वर्ष रहेगा। यह नासा द्वारा 1995 में प्रक्षेपित ‘सोहो’ के बाद सूर्य का अध्ययन करने वाला सबसे उन्नत उपग्रह होगा।
शुक्र ग्रह पर भी नजर
इसरो के वैज्ञानिकों की नजर शुक्र ग्रह पर भी टिकी है। विशेषज्ञ शुक्र ग्रह पर अंतरिक्ष अभियान को खासा महत्वपूर्ण मानते हैं क्योंकि धरती के बेहद करीब होने के बावजूद इस ग्रह के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। हालांकि शुक्र अभियान महज आॅर्बिटर भेजने तक सीमित हो सकता है। अब तक केवल अमेरिका, रूस, यूरोपीय स्पेस एजेंसी और जापान ही शुक्र ग्रह तक कामयाब मिशन छोड़ पाए हैं।
शून्य से शिखर तक…
करीब 42 साल पहले साइकिल और बैलगाड़ी से इसरो के उपग्रहों को खड़ा करने का सफर शुरू हुआ। आज अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत दुनिया के सबसे शक्तिशाली पांच देशों में से एक है।
1969 में विक्रम साराभाई के निर्देशन में गठित इसरो ने 19 अप्रैल, 1975 को स्वदेश निर्मित उपग्रह आर्यभट्ट का सफल प्रक्षेपण किया था।
इस साल पीएसएलवी की 39वीं उड़ान में इसरो ने एक साथ सर्वाधिक 104 उपग्रह प्रक्षेपित कर विश्व कीर्तिमान बनाया था।
अमेरिका, चीन, जापान और यूरोप के मुकाबले भारत से उपग्रह प्रक्षेपण कई गुना सस्ता पड़ता है।
इसरो ने जुलाई 2014 तक 19 देशों के 40 उपग्रह भेज कर करीब 513 करोड़ रुपये की कमाई की।
वैश्विक उपग्रह बाजार 200 अरब डॉलर का है। फिलहाल अमेरिका की हिस्सेदारी 41 फीसदी
है जबकि भारत की हिस्सेदारी 4 फीसदी से भी कम है।
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