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हम बोलने की आजादी की बात तो करते हैं, लेकिन इस आजादी में हमारी क्या जिम्मेदारी है, इसकी बात नहीं करते। हमें मौलिक कर्तव्यों की कितनी जानकारी है? जिस मुद्दे पर बोलना चाहिए, लोग उस पर चुप्पी साध लेते हैं। उमर फयाज की शहादत पर क्या हम एक सही और संतुलित पक्ष भी नहीं रख सकते
इस आजादी में हमारी जिम्मेदारी क्या है?
मैं टीवी नहीं देखती। अखबार भी लगभग नहीं पढ़ती हूं। मोबाइल एप पर ही दो अंग्रेजी अखबारों की खबरें कभी-कभी पढ़ती हूं। इसके अलावा, जरूरत पड़ने पर गूगल से भी जानकारी लेती रहती हूं। अखबार इसलिए नहीं पढ़ती कि सुबह-सुबह पढ़ने को सकारात्मक कुछ भी नहीं होता है। एक खबर तक नहीं। वाकई, एक भी खबर नहीं। मैं सुबह-सुबह इतनी बुरी चीजों को संभाल नहीं पाती। मुझे आप पलायनवादी कह सकते हैं। होता यह है कि चीजें मुझे बहुत प्रभावित करती हैं। इस हद तक कि मैं सामान्य काम तक नहीं कर पाती। बहुत ज्यादा संवदेनशील होने के अपने नुकसान भी हैं। मैं लगभग हेडलाइंस ही देख लेती हूं बस।
ऐसा नहीं है कि मुझे इस बारे में कोई खबर नहीं कि देश कहां जा रहा है। इन दिनों देखती हूं कि जगह-जगह अपनी देशभक्ति साबित करने की जरूरत पड़ती है। हम युद्ध के दिनों में नहीं जी रहे हैं। अपनी देशभक्ति से ज्यादा हमें बेहतर इनसान होने की जरूरत है, जो अपने हिस्से का काम ठीक से करे। संविधान जब हमें अधिकार देता है तो साथ में मूल कर्तव्यों की बात भी करता है। हम बोलने की आजादी की बात तो करते हैं, लेकिन इस आजादी में हमारी क्या जिम्मेदारी है, इसकी बात नहीं करते। हमें जितना अपने मौलिक अधिकारों के बारे में पता है, क्या हमें हमारे मौलिक कर्तव्यों के बारे में मालूम है? क्यों नहीं है? जब हमारी अभिव्यक्ति की आजादी का हनन होता है तो इस पर बहुत बात होती है। बहुत से लेख लिखे जाते हैं, लेकिन जब हमें बोलने की जरूरत होती है और हम चुुप्पी साध लेते हैं तो कोई कुछ नहीं कहता। इस पर न शोर होता है, न कोई चर्चा कि हम चुप क्यों हैं। कुछ दिन पहले खबर पढ़ी- आतंकवादियों ने लेफ्टिनेंट उमर फयाज को अगवा कर उनकी हत्या कर दी। इस खबर की शुरुआत कर्नल गौतम राजऋषि के शेर से होती है-
मिट गया एक नौजवां, कल फिर वतन के वास्ते
चीख तक उठी नहीं, इक भी किसी अखबार से।
इस शहादत में हम कुछ नहीं कर सकते, लेकिन हम इस बारे में लिख सकते हैं। आज जब सारी लड़ाई फेसबुक और ट्विटर पर लड़ी जा रही है तो हम थोड़ा वक्त निकाल कर एक सही और संतुलित पोस्ट क्यों नहीं लिख सकते? हमारी सेना को समर्थन नहीं, एकजुटता की जरूरत है। वो हमारे लिए लड़ रहे हैं। जान दे रहे हैं। मुश्किल ड्यूटी निभा रहे हैं। ट्विटर पर खानापूरी मत कीजिए। पत्थरबाजों पर जब पैलेट गन चलती है तो मानवाधिकार की बात होती है, यहां मानवाधिकार की बात क्यों नहीं होती। छुट्टी पर गए निहत्थे जवान की हत्या होती है, जो ममेरी बहन की शादी में गया था। वह अपने साथ कुछ और लोगों के लिए मिसाल बनता कि जिंदगी सिर्फ आतंक नहीं है, इससे अलग भी है … अच्छी है …बेहतर है। देखो, देश के सारे लोग हमारे साथ हैं, हम पर फख्र करते हैं।
लेकिन नहीं।
देश के अंदर से खतरों का सफाया जरूरी है। अगर अपने देश का जवान ही सुरक्षित नहीं है तो आम नागरिकों की रक्षा कौन करेगा।
मैं सदमे में हूं। गुस्से में भी। …और चूंकि मुझे इसके सिवा और कुछ नहीं आता, इसलिए मैं लिख रही हूं। लेफ्टिनेंट उमर फयाज को सलाम। प्रणाम।
(पूजा उपाध्याय की फेसबुक वॉल से)
फयाज के लिए किसी ने आंसू नहीं बहाए
रोहित वेमुला का जन्म 30 जनवरी, 1989 को हुआ था। उसने 17 जनवरी, 2017 को आत्महत्या कर ली। वह एक छात्र था और उसकी उम्र 27 साल थी। लेफ्टिनेंट उमर फयाज का जन्म 8 जून, 1994 को हुआ था। 10 मई, 2017
को आतंकियों ने उन्हें गोली मार दी। इस सैन्य अफसर की उम्र 23 साल थी।
रोहित की मौत पर नेताओं, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और अन्य लोगों सहित कई संगठनों ने शोक मनाया। पुरस्कार लौटाए गए। कैंडिल मार्च निकाले गए और इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद तक में उठाया गया। विभिन्न नेता और मीडिया विशेषज्ञ उसकी शोक संतप्त मां से भी मिलने गए। लेकिन उमर फयाज की शहादत पर उनके भाइयों (सेना के जवान) और परिवार ने ही शोक मनाया। इतने दिन बीत गए, फिर भी कोई कैंडिल मार्च नहीं निकला… न कोई राजनीतिक बयानबाजी हुई और न ही किसी ने आंसू बहाए। किसी भी पार्टी का एक भी नेता उनके जनाजे में शामिल नहीं हुआ। वे क्यों जाते? अगर वे जोखिम से भरे उन इलाकों में जाते तो क्या उनका अनमोल जीवन खतरे में नहीं पड़ जाता? ऐसे नेताओं के लिए रोहित वेमुला एक नायक था, जबकि उमर फयाज केवल एक आंकड़ा भर है। अन्य असंख्य लोगों की तरह, जिन्होंने देश के लिए अपनी जिंदगी को कुर्बान कर दिया और देश ने इसकी परवाह नहीं की। लेकिन हम गर्व से जो वर्दी पहन रहे हैं या अतीत में पहनी, इसकी परवाह करते हैं। मेरे अनुज! हमें तुम पर गर्व है। इस बहादुर की आत्मा को ईश्वर शांति प्रदान करें।
जय हिन्द! (गौरव झा की फेसबुक वॉल से)
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