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अनिल माधव दवे 18 मई को देव के पास चले गए। अभी नहीं जाना था। जाना तो सबको है, पर किसी होनहार का असमय जाना आध्यात्मिक नहीं कहा जा सकता। वे जनसंघ के प्रथम अध्यक्ष बड़े साहब दवे के पौत्र थे। उज्जैन का बड़नगर उनका पारिवारिक गृह नगर रहा है। इन्दौर उनकी शिक्षा-दीक्षा का स्थान रहा। वे छात्र राजनीति में भी अग्रणी रहे। वहीं से वे संघ के प्रचारक भी थे। मृदुभाषी, संयमवाणी और परिणामकारी कार्य उनके जीवन की
विशिष्टता थी।
मेरा उनका संपर्क लगभग 35 वर्ष का है। मैंने उन्हें संघ के प्रचारक के रूप में जहां इंदौर में देखा, वहीं वे भोपाल में हमारे विभाग प्रचारक थे। वे कठोर जीवन जीने के आदी थे। नपे-तुले शब्दों में वार्ता उनका नैसर्गिक स्वभाव था। वे नेपथ्य के पथ्य थे। अनेक गुणों के गुणी होने के बावजूद वे अपेक्षारहित भाव से काम करने के आदी थे। वे काम के धुनी थे। ऊर्जा का सकारात्मक प्रयोग करने में विश्वास करते थे। राजनीतिक क्षेत्र में जब वे आए तब उन्हें बहुत करीब से देखा। वे गणितज्ञ भाव से राजनीतिक क्षेत्र में कार्य करते थे। उन्हें जो भी कार्य दिया जाता, वे उस कार्य के चरित्र का अध्ययन करते थे, उसके बाद उस कार्य के चरित्र का अपने चरित्र से मेल-मिलाप कर कार्य को जमीन पर उतारते थे। अध्ययन, स्वाध्याय और विजयी भाव उनके स्वभाव में था। वे परास्त और अस्त की भावना से कोई कार्य नहीं करते थे। वे किसी भी कार्य को उदयजीत की भावना से प्रारंभ करते थे।
विचारधारा के प्रति प्रतिबद्ध, नैतिक साहस से युक्त और समय के साथ समयबद्ध रहकर कार्य के अनुरूप दवे जी व्यक्तियों को जुटाते थे। टोली बनाकर कार्य करना उनका स्वभाव था। वे समाज के हर क्षेत्र में व्याप्त प्रदूषण को दूर करने का प्रयत्न करते थे। समाज में व्याप्त प्रदूषण से ही उनका स्वभाव और प्रकृति पर्यावरण की ओर बढ़े। वे प्रकृति का संरक्षण भारतीय संस्कृति की पद्धति, जिनका वेद-पुराण और शास्त्रों में वर्णन है, से करने में विश्वास रखते थे। उनकी मूल मान्यता थी कि भारत की समस्याओं का निदान भारतीय पद्धति से होगा न कि पाश्चात्य पद्धति से। उनकी प्रकृति का अंदाजा इसी बात से लगता है कि वे भोपाल में जहां रहते थे, उसका नाम ही 'नदी का घर' रखा था। नदियों के संवर्धन और संरक्षण को उन्होंने अपने जीवन के कार्य की प्राथमिकता में रखा था।
बहुत कम लोगों को जानकारी होगी कि अनिल माधव दवे जी हवाई जहाज के पायलट थे। उन्होंने हवाई जहाज उड़ाया भी। लेकिन समाज की पीड़ा और दयनीय स्थिति ने उन्हें इस बात पर मजबूर किया कि जहाज उड़ाने से अच्छा समाज के पीडि़तों के लिए जमीन पर रह कर काम किया जाए। वे संघ से जब राजनीति में आए तो उनका पाला तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से पड़ा, जो लगातार 10 वर्ष से मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। उन्हें राजनीतिक तौर पर परास्त करना कठिन था। लेकिन उमा भारती जी के नाम को आगे कर राजनीतिक युद्ध की सारी तैयारियां एक छोटे-से बंगले में बैठकर दवे जी ने कीं और 2004 में मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी। तब से लेकर अब तक जितने चुनाव हुए, वे हर चुनाव में मनुष्य के शरीर में जिस प्रकार हड्डी की भूमिका होती है, उसका कार्य उन्होंने किया। वे अक्सर कहा करते थे कि किसी भी युद्ध को जीतने की आधी संभावना तब बन जाती है जब अंतिम दिन तक की कार्ययोजना बन जाती है।
दवे जी बहुगुणी थे। उनको लेखक के रूप में भी स्वीकार्यता मिली। उनके जीवन पर छत्रपति शिवाजी का प्रभाव था। उन्होंने उन पर एक पुस्तक 'शिवाजी व सूरज' लिखी। दूसरी पुस्तक 'सोलह संस्कार' और तीसरी पुस्तक 'अमरकंटक से अमरकंटक' लिखी। जब वे न सांसद थे, न मंत्री, तब भी सामाजिक कार्यों से जुड़े रहना उनकी मूल प्रकृति थी। वे विश्वपटल पर पर्यावरण के अनेक सम्मेलनों में पर्यावरणविद् के नाते न केवल भाग लेते थे, बल्कि इस बात को जोर से रखते थे कि प्रकृति, संस्कृति की रक्षा भारतीय संस्कृति से ही हो सकती है। उन्होंने बांद्राभान में ही अपने रहने के लिए मां नर्मदा के किनारे आश्रम बनाया। आश्रमी स्वभाव से ही उस आश्रम में रहते थे। उनके जीवन में दो ऐसे अवसर आए जिन्होंने उन्हें न केवल राष्ट्रीय, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समर्थ बनाया। भोपाल में विश्व हिंदी सम्मेलन और उज्जैन के महाकुंभ में वैचारिक कुंभ के आयोजन में उनकी भूमिका केन्द्र में थी। उनकी इस प्रकृति को देखकर ही प्रधानमंत्री ने मंत्रिमंडल के फेर-बदल में उन्हें पर्यावरण मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार दिया।
दवे जी जीवटधारी व्यक्ति थे। उनकी जीवटता का अनोखा उदाहरण समाज के समक्ष रखना जरूरी है जो हम सभी को प्रेरणा देगा। डॉक्टरों ने कुछ वर्ष पहले उन्हें कहा कि आप हृदय के रोगी हैं और आपकी ओपन हार्ट सर्जरी होनी है। दवे जी ने किसी को इसकी जानकारी न देते हुए डॉक्टर से कहा, 'मुझे ऑपरेशन के लिए कहां जाना है।' डॉक्टरों ने कहा कि ये मुुंबई में कराना है। वे अपने सहयेागी को लेकर मुंबई गए और डॉक्टर से कहा कि मेरे ऑपरेशन की तिथि तय कीजिए। डॉक्टर ने पूछा, आपके घर वाले कहां हैं तो उन्होंने कहा कि ऑपरेशन मेरा है, मैं उपस्थित हूं। डॉक्टर उन्हें ऑपरेशन थिएटर ले गए और उनकी ओपन हार्ट सर्जरी हुई। जब वे होश में आए तो अपने सहयोगी को कहा कि सबको बताओ कि मुंबई में मेरी हार्ट सर्जरी हो गई। जीवटता का ऐसा अनुपम उदाहरण शायद ही मिल सके।
दवे जी अनोखे थे। सामान्य परिवार के होने के बावजूद असामान्य और असाधारण कार्य करना उनकी विशेषता थी। लगातार उनके साथ रहने और कार्य करने के कारण लगता है कि उन्हें अभी और रहना चाहिए था। पर मनुष्य और विज्ञान यहीं परास्त हो जाता है।
हर अस्त का उदय होता है। अनिल माधव दवे अब हमारे बीच नहीं रहे। उनकी देह का अस्त हुआ है। उनकी देह का उदय होगा और वह देह जग-मग जरूर करेगा। -प्रभात झा-
(लेखक राज्यसभा सांसद हैं)
एक सात्विक कार्यकर्ता खो दिया : एक सात्विक कार्यकर्ता खो दिया
श्री अनिल माधव दवे जब भोपाल में विभाग प्रचारक के नाते कार्य देख रहे थे तब से मेरी उनके साथ अच्छी मित्रता थी। इसलिए उनका हृदयाघात से अचानक परलोक सिधार जाना मेरे लिए व्यक्तिगत हानि व वेदना का अनुभव है। विभाग प्रचारक, भारतीय जनता पार्टी के विभिन्न पदों का कार्यभार संभालने वाले कार्यकर्ता, नर्मदा तथा अन्य नदियों के जलप्रबंधन व पर्यावरण को लेकर जागरण अभियान चलाने वाले कार्यकर्ता, छत्रपति शिवाजी महाराज के कतृर्त्व व नेतृत्व के अभ्यासक तथा केन्द्र में सांसद व मंत्री के नाते काम करते हुए मैंने उनकी योजना, कुशलता, अध्ययनशीलता, स्पष्ट दृष्टि, संवेदनशीलता, सौम्य व्यवहार तथा दूर-दृष्टि को निकट से देखा है। केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने, भारतीय जनता पार्टी ने तथा समाज ने एक कुशल, अदम्य इच्छाशक्ति वाला सात्विक कार्यकर्ता खो दिया है। नियति की इच्छा के आगे मनुष्य का विचार व प्रयास हतबल ही होता है। उनके अभाव का दु:ख झेलते हुए कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ना ही हम सबके लिए अनिवार्य प्राप्तकर्तव्य है। हम सभी को वह धैर्य प्राप्त हो तथा दिवंगत जीव को उत्तम गति व शांति प्राप्त हो, यह प्रार्थना करते हुए स्वर्गीय अनिल जी की स्मृति में मैं अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।
—मोहनराव भागवत, सरसंघचालक, रा.स्व.संघ
वे पर्यावरण परिवार के सदस्य थे
अनिल माधव दवे जी, मेरे मित्र थे और संगठन में सहयोगी भी। वे प्रचारक भी रहे थे। उनका व्यक्तिगत, सांगठनिक और सामाजिक जीवन बहुत ही अनुशासित था। समाज जीवन के हर पहलू, विशेषकर पर्यावरण और नदी संरक्षण के प्रति वे संवेदनशील रहते थे। जंगल, जमीन के प्रति भी वे सदैव सजग रहे। वे पर्यावरण परिवार के सदस्य थे। यही कारण था कि उन्होंने नदी उत्सव मनाया और नर्मदा नदी के संरक्षण के लिए काम करते रहे। उन्होंने एक घर का नाम भी 'नदी का घर' रखा था। वे सृजनात्मक व्यक्ति थे। उन्होंने अनेक पुस्तकों का लेखन भी किया। शिवाजी महाराज पर लिखी गई उनकी पुस्तक बहुत ही चर्चित है। सामान्य लोग तो शिवाजी महाराज के संघर्ष के बारे में जानते हैं, लेकिन अनिल जी ने शोध के जरिए बताया कि शिवाजी महाराज ने सुराज और स्वशासन की स्थापना के लिए किस प्रकार का कार्य किया था। उन्होंने अपने कार्यों से 'सत्यं शिवं सुंदरम्' को चरितार्थ किया। जो भी किया, बहुत ही सुंदर किया। वे समाज और राष्ट्र को समर्पित व्यक्ति थे। उन्होंने विभाग प्रचारक का दायित्व बखूबी निभाया था। बाद में वे मध्य प्रदेश भाजपा के उपाध्यक्ष भी रहे। राज्यसभा में वे दो बार रहे। उनका सबसे पसंदीदा विषय था पर्यावरण। संयोग से उन्हें वन एवं पर्यावरण मंत्री का ही दायित्व मिला था। 'नर्मदा समग्र' के नाम से उन्होंने एक संस्था भी बनाई थी। इसके जरिए उन्होंने नदी संरक्षण और पर्यावरण के लिए काम किया। उनमें अद्भुत प्रतिभा थी। उनकी प्रतिभा की छाप अनेक जगहों पर दिखती है। वे एक प्रशिक्षित पायलट भी थे। वे पर्यावरण मित्र के साथ-साथ देश के मित्र भी थे। ऐसा मित्र हर किसी को मिले। प्रभु से प्रार्थना है कि उन्हें अपने श्रीचरणों में स्थान दें और उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें।
—दत्तात्रेय होसबाले, सह सरकार्यवाह, रा.स्व.संघ
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