छोटे चुनाव के बड़े सबक
July 15, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

छोटे चुनाव के बड़े सबक

by
May 8, 2017, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 08 May 2017 12:16:28

हाल में दिल्ली में नगर निगम चुनाव संपन्न हुए। महाराष्ट्र में बैठे किसी व्यक्ति को लग सकता है कि इससे मुझे क्या?
अगर हमारे देश में होने वाली छोटी-छोटी उथल-पुथल और इससे उभरते संकेतों में हम रुचि नहीं रखेंगे तो कौन रखेगा? क्या विदेशी! क्या फिलिप ओल्डनबर्ग?
चौंकिए मत, विविधता से भरे इस देश में स्थानीय निकाय के चुनाव और वह भी दिल्ली जैसे निगम चुनाव का क्या महत्व है, यह फिलिप ओल्डनबर्ग जैसे विशेषज्ञ समझते रहे हैं। कभी तरुण भारत के पूर्व संपादक मा.गो. वैद्य (उपाख्य बापूराव) के विदेशी मेहमान रहे फिलिप को शिकागो विश्वविद्यालय से 1969 में जिस पीएच.डी. के लिए शिष्यवृत्ति (फैलोशिप) मिली, उसका विषय ही था ‘म्युनिसिपल पालिटिक्स इन इंडिया-विद स्पेशल रेफरेंस टू दिल्ली कॉर्पोरेशन’ सो, हैरान मत होइए, जागिए! बहरहाल, फिलिप इस चुनाव का क्या विश्लेषण करते, यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन फिर लगता है, निगम चुनाव के चार  स्पष्ट और गहरे संकेत हैं और यह दिल्ली या किसी एक राजनीतिक दल की बजाय सबके लिए हैं।
पहला सबक है- लॉलीपॉप पालिटिक्स नहीं चलेगी!
‘लोकलुभावन’ पैंतरे का पिट जाना भारत के लिए चौंकाने वाली बात है। हमेशा एक कमजोर, गरीब और विकासशील देश के तौर पर निरूपित किए जाने वाले देश की राजनीति के लिए यह ऐसा झटकेदार सबक है जिसका आकलन नेताओं को जरूर करना चाहिए। दिल्ली में ‘गृहकर’ (हाउस टैक्स) की राशि ठीक-ठाक बैठती है और मतदाताओं की अच्छी-खासी संख्या को प्रभावित करती है। ऐसे में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का यह कहना कि यदि निगम में भी उनकी पार्टी को बहुमत मिलता है तो दिल्लीवालों को गृहकर चुकाना ही नहीं पड़ेगा—बहुत ललचाऊ दांव था। लेकिन राजनीति के उस दौर में जहां जनता काम और करतूतों में अंतर करने के लिए पर्याप्त समझदारी के उदाहरण दे रही हो, लुभावने वादों  का फुग्गा फूटना तय था। दिल्ली ने शायद यह इशारा दे दिया है कि जिस दौर में कार्यशीलता कसौटी पर हो, वहां जनता ‘करतब’ पर रीझने की बजाय ‘कर’ चुकाना बेहतर समझती है।
दूसरा सबक भारतीय जनता पार्टी द्वारा अपने कार्यकर्ताओं को दिया गया। यह सबक है-काम स्थायी है, कुर्सी नहीं। अपने सभी वर्तमान पार्षदों की उम्मीदवारी की संभावनाओं पर विराम लगा भाजपा ने उस स्वाभाविक नाराजगी के बादल छांट दिए जो सत्ता के प्रति मतदाताओं के मन में स्वाभाविक रूप से जगह बनाने लगती है। साथ ही दोहरा संदेश भी दे दिया। पहला था- नए चेहरों के लिए पार्टी में बढ़ने की भरपूर संभावनाएं हैं। दूसरा, राजनीतिक दल सिर्फ सत्ता का ही नाम नहीं है और सत्ता में पदों पर रहे चेहरों को स्थानीय स्तर पर अज्ञात रहकर या संगठन में परदे के पीछे से भी पार्टी के लिए काम करने की खातिर स्वयं को प्रस्तुत करना चाहिए। यानी नेता छोटा या बड़ा नहीं होता और नेता सिर्फ वह नहीं होते जो सरकार में होते हैं। यानी यह भी कि भाजपा जैसी पार्टी में सबको यह समझना चाहिए कि कुर्सी आनी-जानी चीज है, यह विचारधारा है जो राजनीति में तरंगें उठाती है और यात्रा को गति देती है।
तीसरा सबक लोकतांत्रिक प्रक्रिया में नेतृत्वकारी भागीदारी के लिए उत्साह बढ़ाने वाला है। यह सबक है- कोटरी नहीं कद स्वयं बढ़ाइए। कुनबा और कोटरी की लल्लो-चप्पो एक समय तक भले फलती लगे लेकिन समझदार होते लोकतंत्र में यह टिकाऊ नहीं हो सकती। कुनबा कांग्रेस की कहानी हमारे सामने है। राहुल गांधी और उनके करीबियों की विफलता की बात अगर कई बार दोहराई जा चुकी हो तो अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसौदिया के प्रभाव दायरे में आकर स्वयं को प्रदीप्त अनुभव करने वालों का हश्र बता रहा है कि नेताजी का 'तेज' लपकने वालों के हिस्से में उनके ग्रहण और कलुष कथाएं भी आती हैं। इस चुनाव का चौथा और निर्णायक सबक संपूर्ण राजनीति के लिए है और यह उस राजनीतिक दल को सबसे ज्यादा समझना चाहिए जो चला तो अन्य को दर्पण दिखाने था, लेकिन इतने से काम में स्वयं उस दर्प से भर उठा कि अब बैठना ही इसका भविष्य है। यह सबक है— अड़ने और लड़ने नहीं, बढ़ने की राजनीति करो। डार्विन का सिद्धांत सही होता तो निगम में भी उसी पार्टी की तूती बोलती जो राज्य में सबसे बलवान है।
यहां समन्वय और सकारात्मकता के संवेदनशील ऐसे तंतु होते हैं जो जगाए जाने पर बड़े से बड़े राजनीतिक परिवर्तन को संभव बना देते हैं। आम आदमी पार्टी की सरकार राजनीति की सफाई का (भले थोथा साबित हुआ) सकारात्मक वादा करते हुए ही तो आई थी! लेकिन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने तमाम वादे और सकारात्मक छवि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उपराज्यपाल पर ओछे आरोप लगाते हुए गंवा दी। एक वॉट्सअप चुटकुला चला था कि दिल्ली में इस चुनाव में किसी को (संकेत समझ जाइए) चांटा नहीं पड़ा! दरअसल, इस निकाय चुनाव के परिणाम अपने आप में नकारात्मकता की राजनीति करने वालों के लिए करारे तमाचे से कम नहीं हैं। सो, इस चुनाव को हल्के में मत लीजिए। राजनीतिक प्रयोगों को धार देने वाली जनता, राजनीति की धूर्तता को धूल भी चटा रही है। राष्ट्रहित में संकल्प लेने वालों को आगे बढ़ा रही है। उपरोक्त चारों संकेत किसी एक राज्य और वहां की जनता के लिए नहीं हैं क्योंकि ‘ग्लोबल’ होती दुनिया में राजनीति भी ‘लोकल’ के भूगोल से आजाद हो रही है। परिवर्तन के गहरे संकेत दे रही है। फिलिप ओल्डनबर्ग और शिकागो विश्वविद्यालय जो जिज्ञासा 1969 में दिखा चुके हैं उन मुद्दों पर स्वतंत्रता के 69 वर्ष बाद भी अगर कोई जागना न चाहे तो यह छूट भी क्षणिक है। क्योंकि दिन चढ़े सोने वाला चाहे कितनी चादर ताने, कोई न कोई चादर खींच ही लेता है।

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

समोसा, पकौड़े और जलेबी सेहत के लिए हानिकारक

समोसा, पकौड़े, जलेबी सेहत के लिए हानिकारक, लिखी जाएगी सिगरेट-तम्बाकू जैसी चेतावनी

निमिषा प्रिया

निमिषा प्रिया की फांसी टालने का भारत सरकार ने यमन से किया आग्रह

bullet trtain

अब मुंबई से अहमदाबाद के बीच नहीं चलेगी बुलेट ट्रेन? पीआईबी फैक्ट चेक में सामने आया सच

तिलक, कलावा और झूठी पहचान! : ‘शिव’ बनकर ‘नावेद’ ने किया यौन शोषण, ब्लैकमेल कर मुसलमान बनाना चाहता था आरोपी

श्रावस्ती में भी छांगुर नेटवर्क! झाड़-फूंक से सिराजुद्दीन ने बनाया साम्राज्य, मदरसा बना अड्डा- कहां गईं 300 छात्राएं..?

लोकतंत्र की डफली, अराजकता का राग

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

समोसा, पकौड़े और जलेबी सेहत के लिए हानिकारक

समोसा, पकौड़े, जलेबी सेहत के लिए हानिकारक, लिखी जाएगी सिगरेट-तम्बाकू जैसी चेतावनी

निमिषा प्रिया

निमिषा प्रिया की फांसी टालने का भारत सरकार ने यमन से किया आग्रह

bullet trtain

अब मुंबई से अहमदाबाद के बीच नहीं चलेगी बुलेट ट्रेन? पीआईबी फैक्ट चेक में सामने आया सच

तिलक, कलावा और झूठी पहचान! : ‘शिव’ बनकर ‘नावेद’ ने किया यौन शोषण, ब्लैकमेल कर मुसलमान बनाना चाहता था आरोपी

श्रावस्ती में भी छांगुर नेटवर्क! झाड़-फूंक से सिराजुद्दीन ने बनाया साम्राज्य, मदरसा बना अड्डा- कहां गईं 300 छात्राएं..?

लोकतंत्र की डफली, अराजकता का राग

उत्तराखंड में पकड़े गए फर्जी साधु

Operation Kalanemi: ऑपरेशन कालनेमि सिर्फ उत्तराखंड तक ही क्‍यों, छद्म वेषधारी कहीं भी हों पकड़े जाने चाहिए

अशोक गजपति गोवा और अशीम घोष हरियाणा के नये राज्यपाल नियुक्त, कविंदर बने लद्दाख के उपराज्यपाल 

वाराणसी: सभी सार्वजनिक वाहनों पर ड्राइवर को लिखना होगा अपना नाम और मोबाइल नंबर

Sawan 2025: इस बार सावन कितने दिनों का? 30 या 31 नहीं बल्कि 29 दिनों का है , जानिए क्या है वजह

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies