सैनिकों के तिरस्कार का खेल कब तक?
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सैनिकों के तिरस्कार का खेल कब तक?

by
May 1, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 01 May 2017 12:30:27

जन गण मन

सेकुलर नेता, पत्रकार और बुद्धिजीवी कश्मीर के पत्थरबाजों और नक्सलियों के मानवाधिकारों की बात तो करते हैं, लेकिन उन्होंने आज तक सुरक्षाकर्मियों की शहादत पर कुछ नहीं कहा। यह दोमंुहापन बंद होना चाहिए

तरुण विजय

अभी कश्मीर में सीआरपीएफ के जवानों पर पत्थरबाजों के हमलों की क्षोभजनक खबरों तथा बच्चों और स्त्रियों को आगे कर कश्मीरी जिहादी कायरों द्वारा जवानों से मारपीट के वायरल हो रहे वीडियो का सिलसिला बंद नहीं हुआ था कि छत्तीसगढ़ में सुकमा का दर्दनाक हादसा सामने आया जिसमें 25 जवान शहीद हो गए।

वे तमाम लोग जो गोरक्षकों की आतंकवादियों से तुलना करते नहीं थकते, सैनिकों द्वारा एक पत्थरबाज को जीप से बांधकर सैनिकों और कश्मीरियों की जान बचाने की कोशिश पर जो पत्रकार और संपादक सैनिकों के खिलाफ अग्रलेख एवं टिप्पणियां लिखते-लिखते नहीं थके, वे एक बार भी कम्युनिस्ट आतंकवादियों के खिलाफ एक शब्द तक नहीं कह पाए। हमें समझ नहीं आता कि सरकारी वेबसाइटों पर इन कम्युनिस्ट आतंकवादियों के लिए भ्रामक लेफ्ट विंग एक्स्ट्रीमिज्म यानी वामपक्षीय अतिवाद (ँ३३://ेँं.ल्ल्रू,्रल्ल/ल्लं७ं'_ल्ली६) क्यों लिखा जाता है? यह सीधे-सीधे कम्युनिस्ट आतंकवाद का एक वहशी रूप है जिसे वैसा ही लिखा जाना चाहिए। वे लोग अपने को माओवादी, नक्सलवादी या किसी भी वाद का सदस्य क्यों न बताएं, परंतु मूल सत्य यह है कि वे कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के विभिन्न घटकों का हिस्सा हैं जैसा कि गृह मंत्रालय की वेबसाइट पर बताया गया है कि 'भारत में सबसे बड़ा माओवादी समूह कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) है जो 2004 में दो दलों के मिलन से जन्मा—एक कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी-लेनिनवादी), पीपुल्स वार तथा माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर ऑफ इंडिया।' इसी वेबसाइट पर आगे बताया गया है कि कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) तथा उसके तमाम मुखौटा संगठन प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों की सूची में शामिल  हैं। इन संगठनों के मूल मुखौटा समूह ग्रामरक्षक दल तथा आत्मरक्षक दल कहे जाते हैं।

क्या सेकुलर पत्रकारों और मीडिया के प्राइम टाइम प्रसारणों में इन आतंकवादी हथियारों तथा उनके संगठनों का कोई भी जिक्र कहीं आपने सुना है? क्या इन संगठनों के भारत विरोधी आक्रमणों पर कोई चर्चा या बहस या प्रथम पृष्ठ के अग्रलेख कभी देखे गए हैं? ये तमाम कम्युनिस्ट आतंकवाद समर्थक मीडिया के लोग उनके विरुद्ध लामबंद हो जाते हैं जो सैनिकों, भारतीयता एवं प्रखर राष्ट्रीय भाव का समर्थन करते हैं। यह लामबंदी माफिया गुटों जैसी होती है। जैसे जीप के सामने पत्थरबाज को बांधने वाले मेजर के विरुद्ध कार्रवाई की मांगें उठीं, वैसे ही गोरक्षकों के विरुद्ध एकजुट आवाजें हवा में तैरीं और योगी आदित्यनाथ के विरुद्ध इसलिए स्वर उठाए गए क्योंकि वे संन्यासी हैं और भगवा वस्त्र पहनते हैं। पिछले दिनों अलजजीरा चैनल पर ऐसे ही सेकुलरों द्वारा भारत तथा भारतीयों को नस्लवादी घोषित करने की कोशिश का सामना करते हुए मेरे एक वक्तव्य को इस तरह दक्षिण विरोधी रंग देकर प्रस्तुत किया गया कि उसका आघात अभी तक झेलना पड़ रहा है।

इनके लिए मीडिया का जिहादी उद्देश्य केवल एक है—जो भी राष्ट्रीयता एवं देशभक्ति की बात करे, उसके विरुद्ध किसी भी बात को उठा कर अपराध बना देना। जिस दिन सुकमा में सीआरपीएफ के जवानों की शहादत का समाचार छपा, उस दिन सुबह देश के एक बड़े अंग्रेजी दैनिक के संपादक ने पहला ट्वीट किया, 'सेना ने बाबा रामदेव द्वारा आंवला के उत्पादकों की सैनिक कैंटीनों में आपूर्ति को रद्द किया।' सेना की किस कैंटीन ने किस कारण से क्या आपूर्ति रद्द की, यह जानकारी किसी को नहीं होगी और क्या यह छोटा व्यापारिक मामला एक बड़ी राष्ट्रीय घटना है? नहीं, लेकिन चूंकि विषय केसरिया परिवार के एक बड़े सम्मानित अग्रणी संत से संबंधित है इसलिए सेकुलर संपादक की सुबह हिन्दुत्व विचारधारा के एक प्रतीक पर चोट करने से शुरू हुई। उनके लिए सुकमा का हत्याकांड, जवानों की शहादत और कम्युनिस्ट आतंकवादियों की बर्बरता किसी भी टिप्पणी का विषय नहीं हो सकती। उनके लिए महत्वपूर्ण सैनिक या राष्ट्र विरोधी कम्युनिस्ट विचारधारा नहीं,  बल्कि बाबा रामदेव का आंवला सैनिक कैंटीन में जाने से रुका, यह घटना है।

ये वही लोग हैं जो हिंदुओं को सुधारने के लिए पुस्तकें लिखते हैं और उनके सबसे आदरणीय एवं श्रद्धास्पद साहित्य सृजन केन्द्र गीता प्रेस के खिलाफ घृणित और झूठे आरोपों से भरी पुस्तक लिखते हैं, लेकिन मुस्लिम महिलाओं को दारुण दु:ख देने वाली तीन बार तलाक की कुप्रथा पर चुप रहते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि सेकुलरिज्म का अर्थ तो केवल हिंदू विरोध है। कट्टरवादी इस्लामवादियों के तलवे चाटना तो सेकुलरिज्म का शानदार प्रमाणपत्र है। अजान के लिए लाउडस्पीकर के उपयोग को अनावश्यक मानने वाले सोनू निगम की सबसे ज्यादा हंसी कट्टरवादी मुसलमानों ने नहीं, बल्कि सेकुलर पत्रकारों ने ही उड़ाई।

यह समय बहुत ही कठिन चुनौती से भरा है। एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विकास के नए सोपान तय कर रहे हैं और हर घर रोशनी, हर घर खुशहाली लाने की साधना में रत हैं, दूसरी ओर विनाश और अंधेरे के प्रतिनिधि हमारे सैनिकों पर आघात कर रहे हैं। देश के सैनिक की वर्दी का रंग चाहे कोई भी हो लेकिन उनके अपमान में उठे हाथ और आवाजें सहन नहीं होनी चाहिए।

 

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