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विकास-विरोधी नक्सलियों की बर्बरता के निशाने पर है अनुसूचित जनजातीय समाज। छत्तीसगढ़ में इस वामपंथी नृशंसता पर प्रभावी कार्रवाई आवश्यक
प्रियंका कौशल/ अश्वनी मिश्र
छत्तीसगढ़ के सुकमा में 24 अप्रैल को नक्सलियों के पूर्वनियोजित हमले में 25 सीआरपीएफ जवान शहीद हो गए, जबकि 6 गंभीर रूप से घायल हैं। इस हमले से जहां नक्सली हत्यारों की नृशंसता उजागर हुई, वहीं एक बार फिर विकास के नाम पर भोले-भाले वनवासियों को बरगलाने का पैंतरा सामने आया है। इस घटना के बाद से न सिर्फ छत्तीसगढ़ बल्कि पूरा देश आक्रोश से उबल रहा है। सीआरपीएफ की 74वीं बटालियन के करीब 33 जवानों की टुकड़ी पर नक्सलियों ने उस वक्त हमला बोला, जब वे सड़क निर्माण के लिए सुरक्षा चक्र के नाते इलाके में गए थे। पहले हुए बड़े हमलों की तरह कहा जा रहा है कि यह हमला भी जवानों की टुकड़ी के आवागमन के बारे में पूर्व जानकारी होने पर किया गया। छत्तीसगढ़ में वनवासी बहुल बस्तर में नक्सली अर्धसैनिक बलों के काफिलों या पैदल दस्तों को निशाना बनाते रहे हैं। ताजा हमला इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जो केवल इसलिए किया गया कि इलाके में सड़क ना बन पाए। यानी सड़कें नक्सलवाद के लिए सबसे बड़ा खतरा बनकर उभर रही हैं।
दरअसल, सुकमा में जगरगुंडा को दोरनापाल से जोड़ने के लिए तीन सड़कों का निर्माण किया जा रहा है, ताकि इस इलाके में सड़क के जरिए विकास कार्य हो सकें। जाहिर है, उग्र वामपंथ से प्रभावित इस इलाके में सड़क संजाल बनने से स्कूल, अस्पताल और राशन जैसी अन्य बुनियादी सुविधाएं पहुंचाना आसान हो जाएगा। नक्सलियों के गढ़ में सड़क बन सके, इसलिए सीआरपीएफ के जवान श्रमिकों को सुरक्षा देने के लिए तैनात किए गए हैं। बीजापुर, किंरदुल और सुकमा को जोड़ने के लिए तीन अलग-अलग सड़कें बनाई जा रही हैं। इन सड़कों से नक्सली इतने खौफजदा हैं कि वे इसे रोकने के लिए पांच बार सीआरपीएफ के जवानों पर हमला कर चुके हैं। इसी महीने में यह दूसरा हमला था। इसी साल 11 मार्च को नक्सलियों ने घात लगाकर सीआरपीएफ के 13 जवानों को मार डाला था।
तीन निर्माणाधीन सड़कों में से पहला राष्ट्रीय राजमार्ग 30 है जो सुकमा को कोंटा के साथ जोड़ता है। यह 75 किलोमीटर लंबा मार्ग है। दूसरा इंजीराम और भेज्जी को जोड़ता है। जिस स्थान पर 24 अप्रैल को नक्सली हमला हुआ, वह सड़क दोरनापाल को जगरगुंडा से जोड़ने के लिए बनाई जा रही है। यह इलाका धुर नक्सल प्रभावित है और राज्य सरकार इस इलाके में बुनियादी ढांचे का विकास कर इसका कायाकल्प करना चाहती है ताकि सघन जंगलों में रहने वाले वनवासी भी समाज की मुख्यधारा से जुड़ सकें।
बस्तर में काम कर रहे सामाजिक संगठन अग्नि से जुड़े संपत झा कहते हैं कि यह ऐसा इलाका है, जहां माओवादी लोकतंत्र की अवधारणा को नकारते हुए अपनी समानांतर सरकार चलाते हैं। वे अपनी जन अदालत में मासूम और निरीह वनवासियों पर मुखबिर होने का आरोप लगाकर उन्हें मौत के घाट उतार देते हैं। सुकमा में हुए हमले से एक बात स्पष्ट है कि नक्सली नहीं चाहते कि इस इलाके में विकास हो। इससे माओवादियों और उनके कथित पैरोकारों का दोगला चरित्र भी उजागर होता है, जो एक तरफ तो यह आरोप लगाते हैं कि राज्य और केंद्र सरकारें बस्तर का विकास नहीं चाहतीं और वनवासियों को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित रखना चाहती हैं।
छत्तीसगढ़ का सुकमा जिला, जो दक्षिण में ओडिशा के मलकानगिरि और आंध्र प्रदेश की सीमाओं से लगा हुआ है, घने जंगलों से ढका है। रायपुर से सुकमा जाते हुए रास्ते में कई घाटियां, जंगल, नदियां दिखाई देती हैं। लेकिन प्रकृति के इन खूबसूरत नजारों पर आप चाहकर भी आनंदित नहीं हो पाते, क्योंकि इस सफर में एक अनजाना खौफ आपके अंदर बसा होता है। बस्तर के प्रवेश द्वार कांकेर, केशकाल घाटी से होते हुए जगदलपुर और यहां से राष्ट्रीय राजमार्ग 30 के जरिए सुकमा पहुंचा जा सकता है। सूबे की राजधानी रायपुर से सुकमा 400 किमी. दूर है। जगह-जगह से क्षतिग्रस्त सड़कें और विस्फोट में लगभग जर्जर पुल-पुलिया आपको एहसास कराती हैं कि आप नक्सली इलाके में हैं।
रास्ते में कांटेदार तारों से घिरे सीआरपीएफ शिविर और पुलिस थाने देखकर शायद आप थोड़ा डर जाएं, क्योंकि शिविर और पुलिस थानों की संरचना देखकर आपको अंदाजा होता है कि आप देश के सबसे खतरनाक भू-भाग पर खड़े हैं। 24 अप्रैल को जिस स्थान पर मुठभेड़ हुई, उस 56 किमी. लंबी निर्माणाधीन सड़क पर पांच पुलिस थाने और 15 सीआरपीएफ शिविर हैं। मतलब हर किलोमीटर पर या तो आपको थाना मिलेगा या सीआरपीएफ शिविर। इससे यह तो समझ में आ ही जाता है कि यहां चप्पे-चप्पे पर खतरा है। कहीं लैंडमाइन्स (नक्सली अधिकांश इलाके में जमीन में बारूद या बम लगाकर सुरक्षा बलों को निशाना बनाते हैं, अक्सर आम लोग भी इसका शिकार हो जाते हैं), तो कहीं पेड़ों के पीछे से अचानक होने वाली गोलीबारी, आप किसी का भी शिकार हो सकते हैं। सुकमा पहुंचने पर सुरक्षा बलों के जवान आप से बार-बार आग्रह करते हैं, कृपया सड़क के बीच में चलें, किनारे नहीं, कहीं भी जमीन के भीतर विस्फोटक हो सकता है। यानी आपका पैर पड़ा और परखच्चे उड़े की स्थिति होती है। बहरहाल, डरते-सहमते जब हम ग्राउंड जीरो पर पहुंचे तो वहां बिखरा खून, पेड़ों में धंसीं गोलियां बता रहीं थीं कि मुठभेड़ का वह मंजर कितना खौफनाक रहा होगा। जहां-तहां जवानों के सामान बिखरा नजर आ रहा था। कहीं किसी के जूते तो कहीं किसी की टोपी। जंगल इतना घना कि बार-बार लगता है कि कोई पेड़ों के पीछे छिपकर देख रहा है
खैर, ग्राउंड जीरो पर पहुंचने से पहले हमने कुछ घायल जवानों से रायपुर और जगदलपुर में मुलाकात भी की। उन्हीं में से एक सीआरपीएफ जवान शेर मोहम्मद ने बताया कि सुबह से स्थानीय ग्रामीण जवानों की रेकी कर रहे थे। कभी बकरी चराने के बहाने तो कभी यूं चहलकदमी करते। पहले तो जवानों को समझ नहीं आया। लेकिन फिर उन्होंने देखा कि काली वर्दी पहने कुछ लोगों की भी उस इलाके में आवाजाही चल रही है। जब तक जवान संभल पाते, करीब 300 की संख्या में नक्सलियों ने हमला कर दिया। उनके पास एके-47 जैसे हथियार थे। हमला करने वाले दल में महिला नक्सली बड़ी संख्या में थीं। साथ ही सादे कपड़ों में गांव वालों को भी हमले में शामिल किया गया था। एक अन्य घायल जवान ईश्वर सोनेवालियाना का कहना है कि हमने भी नक्सलियों को निशाना बनाया। गोली लगने के बाद भी ईश्वर नक्सलियों से लड़ रहे थे। जवानों का दावा है कि उन्होंने करीब 10 नक्सली मार गिराए। छत्तीसगढ़ में महानिदेशक (नक्सल ऑपरेशन) डी.एम. अवस्थी कहते हैं, ''सड़क बनेगी तो सुरक्षा बल आसानी से उस इलाके में आवाजाही कर पाएंगे। सरकार सड़क के बाद स्कूल, अस्पताल जैसी बुनियादी सुविधाएं देने में सक्षम हो सकेगी। माओवादी यही नहीं चाहते। इसलिए वे सड़क निर्माण में लगे जवानों को निशाना बना रहे हैं। ''
कल्लूरी के रहते नहीं हुई कोई बड़ी घटना
बताते हैं कि एस.आर.पी. कल्लूरी के बस्तर के आईजी रहते कोई बड़ी घटना नहीं हुई थी। 2014 से 2017 के शुरुआती महीनों तक लगने लगा था कि नक्सली पीछे हट रहे हैं। पूरे बस्तर में सुरक्षाबलों की गश्त होती थी, लेकिन नक्सली कहीं भी बड़ा नुकसान नहीं पहुंचा पाए थे। लेकिन कल्लूरी के हटते ही बस्तर अपने पुराने ढर्रे पर लौटता दिख रहा है। इस साल बस्तर के हालात पर 30 जनवरी को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के समक्ष मुख्य सचिव विवेक ढांड और गृह विभाग के प्रमुख सचिव सुब्रमण्यम उपस्थित हुए तो उन्हें तीन घंटे तक सवालों का सामना करना पड़ा। तब ही तय हो गया था कि कल्लूरी अब बस्तर में ज्यादा दिन नहीं रह पाएंगे। कथित मानवाधिकारी कार्यकर्ताओं ने कल्लूरी के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था। राज्य सरकार ने कल्लूरी को रायपुर भेजने के साथ ही पी़ सुंदरराज को दंतेवाड़ा का नया डीआईजी (रेंज) बनाकर वहां भेजा। इस रेंज में सुकमा, दंतेवाड़ा और बीजापुर जिले आते हैं, लेकिन पहली बार सरकार ने इस रेंज में बस्तर के सातों जिलों को शामिल किया। लेकिन कल्लूरी के बस्तर छोड़ते ही नक्सलियों के हौसले फिर बढ़ गए। फिर सरकार ने बस्तर में पूरे समय के लिए आईजी के रूप में विवेकानंद सिन्हा को भेजा।
शिवराम प्रसाद कल्लूरी के बस्तर आईजी रहते नक्सलियों के सूचना तंत्र की कमर पूरी तरह टूट गई थी। पुलिस ने सिविल एक्शन प्लान के तहत स्थानीय ग्रामीणों का विश्वास जीतना शुरू कर दिया था। ग्रामीणों ने पुलिस पर पूरा भरोसा जताते हुए नक्सलियों के खिलाफ ही आवाज उठानी शुरू कर दी थी। कल्लूरी के रहते जगदलपुर में अग्नि नाम से सामाजिक संगठन की शुरुआत हुई, जिसमें विभिन्न समाज और वगोंर् के लोगों ने साथ आकर नक्सलवाद के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था।
कल्लूरी की कार्यशैली को लेकर सुकमा के निवासी फारुख अली बताते हैं कि वे जुनून की हद तक काम कर रहे थे। उनकी आक्रामक कार्यशैली को देखते हुए नक्सल प्रभावित इलाके के युवा उनके साथ खड़े हो गए थे। वे अक्सर अपने मुख्यालय जगदलपुर से आधी रात को सड़क मार्ग से कभी सुकमा तो कभी कोंटा और कभी बीजापुर पहंुच जाते थे। उनके सतत आवागमन से नक्सलियों में डर पैदा हो गया था।
रंगे सियारों का रुदन
उधर, बस्तर में नक्सलियों ने जवानों के लहू से धरती लाल कर दी, तो दूसरी तरफ उनके कथित समर्थकों ने अपनी तरफ से सफाई देनी भी शुरू कर दी। दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर नंदिनी सुंदर ने एक राष्ट्रीय समाचार चैनल पर सीआरपीएफ के जवानों पर गंभीर आरोप लगाए। नंदिनी सुंदर का कहना था कि 2 अप्रैल को कुछ जवानों ने एक बच्ची से बलात्कार किया। एक सवाल के जबाव में नंदिनी कहती हैं कि ''क्या सीआरपीएफ को खुली छूट इसलिए दे दी जाए कि वे बस्तर में लोगों को मारें और बलात्कार करें?'' वे नक्सली हमले में शहीद जवानों पर गोलमोल जवाब देती हैं। बता दें कि नंदिनी सुंदर ने ही छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के खिलाफ चल रहे वनवासियों के सलवा जुड़ूम नामक आंदोलन के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। नंदिनी की याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने सलवा जुड़ूम पर रोक लगा दी थी। उसके बाद से ही नंदिनी सुंदर बस्तर में सक्रिय हैं। छत्तीसगढ़ माकपा के सचिव संजय पराते का कहना है कि नक्सली गतिविधियों से निपटने के लिए राज्य सरकार एक आम राजनीतिक सहमति बनाने में नाकाम रही है। इसे केवल कानून व्यवस्था की समस्या मानते हुए उसके सैन्य समाधान पर ही बल दिया गया है।
पीयूसीएल की छत्तीसगढ़ इकाई के अध्यक्ष लाखन सिंह ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर राज्य सरकार को ही कोसा है। विज्ञप्ति में कहा गया है कि छत्तीसगढ़ में वनवासियों से संबंधित कानूनों का सही अनुपालन नहीं होने के कारण इस तरह की घटनाएं हो रही हैं।
बड़े नक्सली हमले
24 अप्रैल, 2017 को सुकमा के बुर्कापाल में 25 जवान शहीद।
11 मार्च, 2017 को सुकमा जिले में इंजीराम-भेज्जी में 12 जवान शहीद ।
झीरम में 11 मार्च, 2014 को 15 जवान शहीद ।
25 मई, 2013 को परिवर्तन यात्रा करके लौट रहे जनजातीय नेता महेंद्र कर्मा, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंद कुमार पटेल, पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल समेत 30 से अधिक लोगों की मौत
12 मई, 2012 को सुकमा में दूरदर्शन केंद्र पर हमला, 4 जवान शहीद।
जून, 2011 को दंतेवाड़ा में लैंडमाइंस के विस्फोट से 10 पुलिसकर्मी शहीद।
16 अप्रैल, 2010 को ताड़मेटला में बारुदी सुरंग फटने से 6 जवान शहीद
17 मई, 2010 को दंतेवाड़ा में बारूदी सुरंग की चपेट में आकर 36 की मौत।
29 जून, 2010 को नारायणपुर जिले में नक्सली हमले में 27 जवान शहीद ।
12 जुलाई, 2009 को राजनांदगांव के मानपुर में एसपी सहित 29 पुलिस जवान शहीद।
15 मार्च, 2007 को बीजापुर के पुलिस शिविर पर फायरिंग व आग में 55 जवान शहीद।
9 जुलाई, 2007 को एर्राबोर के उरपलमेटा में 23 पुलिसकर्मी शहीद।
भटनागर होंगे महानिदेशक
नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो प्रमुख राजीव राय भटनागर को सीआरपीएफ को नया महानिदेशक नियुक्त किया गया है। लगभग 50 दिनों से सीआरपीएफ महानिदेशक का पद खाली था जिसको लेकर सवाल खड़े हो रहे थे।
इसी पखवाड़े पहली बार आए थे एयर चीफ माशल
बस्तर में वायु सेना ने अपना ऑपरेशन केन्द्र स्थापित कर लिया है। इसके चलते बीते पखवाड़े पहली बार खुद वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल (एसीएम) बीरेंद्र सिंह धनोवा बस्तर पहुंचे थे। बस्तर में अभी तक वायु सेना का इस्तेमाल नक्सली हमले या मुठभेड़ के दौरान बचाव कार्य में होता आया है। बस्तर में वायुसेना बेड़े में तैनात गरुड़ और एमआई 17 श्रेणी के 6 हेलिकॉप्टर बमबारी समेत अन्य मारक क्षमताओं से युक्त हैं, जो सुरक्षा बलों के लिए कवच के रूप में काम आते हैं। नक्सली इसलिए इन्हें लगातार निशाना बनाते रहे हैं। कुछ साल पहले सुकमा के चिंतागुफा में नक्सलियों ने एमआई 17 हेलिकॉप्टर पर गोलियां बरसाकर उसे नीचे उतरने पर मजबूर कर दिया था। इसे गंभीरता से लेते हुए जांच बैठी और केंद्र सरकार ने जवाबी कार्रवाई के संबंध में समीक्षा की। ऑपरेशन केन्द्र इसी दिशा में बड़ा कदम है। नक्सली इस चीज से भी बौखला गए हैं।
'झोलेवालों' का षड्यंत्र
''बेला भाटिया नक्सलियों के समर्थन में काम कर रही हैं और उनका दिमाग नक्सली विष से भरा रहता है। ये लोग पुलिस बल के खिलाफ वनवासियों को भड़काने का काम करते हैं।'' आदिवासी सुरक्षा मंच के अध्यक्ष महेश कश्यप बेला पर यह आरोप लगाते हैं। दरअसल कथित सामाजिक कार्यकर्ता बेला भाटिया उन 'झोलेवालों' में से एक हैं, जो शोध के नाम पर बस्तर में रहकर सरकार और पुलिसबल के खिलाफ काम करती हैं। इस बात का खुलासा तब हुआ, जब कुछ दिन पहले स्थानीय वनवासियों ने उन्हें नक्सल समर्थक बताते हुए उनके बस्तर में रहने पर विरोध जताया। ये वनवासी यह भी आरोप लगाते हैं कि वे यहां के ग्रामीणों को उनकी सुरक्षा में लगे पुलिस बलों के खिलाफ भड़काती हैं और नक्सलियों की मदद करती हैं। महेश बताते हैं,'' बेला के पति जॉन दे्रज की गतिविधियां भी संदिग्ध हैं। शुरुआती दौर में तो इन्होंने ग्रामीणों के साथ मेल-मिलाप बढ़ाया लेकिन अब ये अपने भाषणों और परिचर्चाओं के माध्यम से सरकार और पुलिस बल के खिलाफ माहौल खड़ा कर रहे हैं और वनवासियों को बरगला रहे हैं।''
यह पहला मौका नहीं है जब इन कथित सामाजिक कार्यकर्ताओं पर नक्सलियों की मदद करने और सरकार और सुरक्षा बलों के खिलाफ ग्रामीणों को भड़काने के आरोप लगे हैं। इससे पहले भी हिमांशु कुमार, प्रोफेसर नंदिनी सुंदर, पत्रकार मालिनी सुब्रह्मण्यम, विनायक सेन पर आरोप लगते रहे हैं। इन सभी कथित सामाजिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ बस्तर का वनवासी समाज समय-समय पर मोर्चा खोलता रहा है।
हाल ही में सुकमा में हुए हमले में भी इन झोलेवालों की संलिप्तता पर सवाल उठे हैं। बस्तर क्षेत्र में काम करने वाले अधिकतर कथित सामाजिक कार्यकर्ताओं पर नक्सलियों को साथ देने के आरोप लगे हैं। बस्तर के लेखक राजीव रंजन प्रसाद मानते हैं कि जब भी कोई नक्सली हमला होता है तो बस्तर के लोग यहां छुपकर रह रहे इन कथित सामाजिक कार्यकर्ताओं को शंका की नजर से देखने लगते हैं। वे बताते हैं,''बस्तर क्षेत्र में अधिकतर शोधार्थी व विदेशी पैसों से पलने वाले स्वयंसेवी संगठनों के कार्यकर्ता यहां आते तो शोध करने हैं लेकिन कब वे अपने एजेंडे को बदल लेते हैं, पता ही नहीं चलता। धीरे-धीरे यही नक्सलियों के संपर्क में आते हैं और उनके एजेंडे को आगे बढ़ाने का काम अपने कंधों पर ले लेते हैं। कभी कोई अगर इनका विरोध भी करता है तो नक्सलियों की सहायता से उसका मंंुह बंद करवा दिया जाता है। बस इसी डर से कोई अन्य स्थानीय व्यक्ति उनके खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं करता है और उनका खेल यहां जारी रहता है।''
राजीव मानते हैं कि आए दिन छत्तीसगढ़ में जो नक्सली हमले होते हैं, उसे देखते हुए इन कथित सामाजिक कार्यकर्ताओं की संलिप्पता की जांच होनी चाहिए। ये सेवा के नाम पर यहां देश और समाज के खिलाफ षड्यंत्र कर रहे हैं। बस्तर में सालों से पत्रकारिता कर रहे कांकेर के वरिष्ठ पत्रकार विजय पाण्डे बताते हैं,''अपने समर्थकों के खदेड़े जाने से वे हताश और भड़के हुए हैं। उन्हें चिंता इस बात की है कि यदि इसी तरह उनके समर्थकों को छत्तीसगढ़ से भगा दिया गया तो वे किनके भरोसे हिंसा करेंगे? इसलिए सरकार और सुरक्षाबलों में अपना खौफ बरकारार रखो।''
छत्तीसगढ़ के लेखक और पत्रकार मानते हैं कि छत्तीसगढ़ में जो भी शोध या सामाजिक कार्यकर्ता के नाते आता है उनमें एक बड़ी संख्या नक्सलियों के बुलावे पर ही गए लोगों की होती है। 'देशबंधु' समाचार पत्र के संपादक रहे शंशाक शर्मा इस बात से सहमत हैं। वे बताते हैं,''एनजीओ के नाम पर यहां काम करने वाले कथित कार्यकर्ता नक्सलियों के लिए बौद्धिक तौर पर एजेंट के रूप में काम करते हैं। इन सभी स्वयंसेवी संगठनों को या तो विदेशों से चंदा मिलता है या फिर चर्च इन्हें पोषित करते हैं। स्वयंसेवी संगठनों के लोगों ने यहां पर आश्रम खोले हुए हैं जो नक्सलियों को बौद्धिक मदद देते हैं और उनके काम को आगे बढ़ाते हैं। जबकि स्थानीय वनवासियों का इनसे मोहभंग हो चुका है। वे समय-समय पर इनका विरोध भी करते हैं।'' वे स्पष्ट करते हैं,''जितने भी एनजीओ और उनके कार्यकर्ता यहां काम करते हैं वे सभी नक्सलियों के बौद्धिक तंत्र ही हैं। हिमांशु कुमार इसका उदाहरण है। वह बस्तर में 2006 में आया था लेकिन कुछ दिन के बाद उसकी संदिग्ध गतिविधियों के चलते स्थानीय लोगों ने उसका विरोध करके उसे बस्तर से खदेड़ा था।''
शंशाक कहते हैं कि यहां ढेरों पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता और शोधार्थी के बाने में ऐसे लोग भरे पड़े हैं जो बस्तर में चिनगारी भड़काने के लिए तैयार बैठे हैं, उन्हें बस मौका चाहिए।
इसी पखवाड़े पहली बार आए थे एयर चीफ माशल
बस्तर में वायु सेना ने अपना ऑपरेशन केन्द्र स्थापित कर लिया है। इसके चलते बीते पखवाड़े पहली बार खुद वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल (एसीएम) बीरेंद्र सिंह धनोवा बस्तर पहुंचे थे। बस्तर में अभी तक वायु सेना का इस्तेमाल नक्सली हमले या मुठभेड़ के दौरान बचाव कार्य में होता आया है। बस्तर में वायुसेना बेड़े में तैनात गरुड़ और एमआई 17 श्रेणी के 6 हेलिकॉप्टर बमबारी समेत अन्य मारक क्षमताओं से युक्त हैं, जो सुरक्षा बलों के लिए कवच के रूप में काम आते हैं। नक्सली इसलिए इन्हें लगातार निशाना बनाते रहे हैं। कुछ साल पहले सुकमा के चिंतागुफा में नक्सलियों ने एमआई 17 हेलिकॉप्टर पर गोलियां बरसाकर उसे नीचे उतरने पर मजबूर कर दिया था। इसे गंभीरता से लेते हुए जांच बैठी और केंद्र सरकार ने जवाबी कार्रवाई के संबंध में समीक्षा की। ऑपरेशन केन्द्र इसी दिशा में बड़ा कदम है। नक्सली इस चीज से भी बौखला गए हैं।
कई दिनों पहले बनी थी योजना
सूत्रों की मानें तो इस हमले की योजना नक्सलियों ने कई दिनों पहले बना ली थी, लेकिन वे सही समय और मौके के इंतजार में थे। सूत्रों के अनुसार हमले के वक्त 300-350 से अधिक नक्सली मौजूद थे, जो अत्याधुनिक हथियारों से लैस थे। नक्सलियों के पास मोर्टार और यूजीबीएल भी मौजूद था। स्थानीय मीडिया नक्सलियों के मूवमेंट की सूचनाएं भी प्रकाशित कर रहा था, लेकिन किसी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया।
हिडमा की कंपनी-1 की हरकत
सूत्रों की मानें तो इस घटना को नक्सलियों की मिलिट्री बटालियन की कंपनी-1 ने अंजाम दिया है और इस पूरे हमले का नेतृत्व नक्सली नेता 'सीटू' ने किया है। इस इलाके की पूरी कमान वैसे तो हिडमा के हाथों में है, लेकिन इसके अलावा अर्जुन और सीटू उर्फ सोनू भी यहां सक्रिय हैं। हिडमा और अर्जुन अन्य नक्सल हमलों के लिए वांछित हैं। ये पहले भी इस तरह की वारदातों को अंजाम दे चुके हैं। इनके गुट में इस वक्त महिला नक्सलियों की संख्या पुरुषों से ज्यादा है।
नक्सली-चर्च गठजोड़ बन रहा मुसीबत
छत्तीसगढ़ के वनवासी प्रकृति को ही पूजते हैं। दंतेवाड़ा की दंतेश्वरी देवी और राजनांदगांव के बूढ़ादेव इनकी आस्था के केन्द्र हैं। पर चर्च इस प्रकृति पूजक समाज को हिंसा और कन्वर्जन की राह पर धकेल रहा है। वह शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के नाम पर भोलेभाले वनवासियों को बरगलाकर या कुछ स्वार्थ देकर उनको अपने पाश में ले रहा है। इस काम में नक्सलियों का उसे भरपूर समर्थन भी मिलता है।
छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार रमेश नैय्यर मानते हैं कि राज्य में नक्सलियों और चर्च का एक ऐसा गठजोड़ बन चुका है जो भारत को तोड़ने का काम कर रहा है। वे इतिहास याद दिलाते हुए कहते हैं,''जब तक बस्तर के शासक प्रवीर चंद भंज देव रहे तब तक इस पर किसी की टेढ़ी नजर नहीं, पड़ी। लेकिन 25 जून, 1966 को उनकी हत्या के बाद यहां का माहौल ही बदल गया। ये नक्सली हमले इसका उदाहरण ही तो हैं। इस क्षेत्र के हर तीसरे-चौथे घर पर क्रॉस लटके दिखते हैं। यहां मारे गए नक्सलियों के गले में भी क्रॉस मिले। इससे साबित होता है कि कैसे बस्तर में नक्सली और ईसाई मिशनरी मिलकर विभाजक गतिविधियां चला रहे हैं। ताजा नक्सली हमले के बाद लोगों ने यहां के स्वयंसेवी संगठनों पर भी सवाल उठाए हैं। यहां सभी दिखावे के लिए काम करते हैं। ये नक्सलियों से कहते हैं कि सड़कें बन जाने पर तुम्हारा साम्राज्य खत्म हो जाएगा। समूचा बस्तर शेष भारत से जुड़ जाएगा। वनवासी जागरूक हो जाएंगे। यहां के वनवासी बाहर की आबोहवा से परिचित हो जाएंगे और तुम्हारा साथ नहीं देंगे। इसलिए सड़कें मत बनने दो। जो बनाए उसे मार दो।'' सामाजिक कार्यकर्ता अशोक गोलछा बताते हैं, ''वनवासी क्षेत्र में अप्रिय घटनाओं के पीछे सिर्फ नक्सली ही नहीं हैं। बाहरी शक्तियां भी उन्हें मजबूती देती हैं। इनमें पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता, एनजीओ के अलावा सबसे बड़ा मददगार चर्च है। चर्च और नक्सली देश को तोड़ना चाहते हैं।''
मैं इस हमले की कड़ी निंदा करता हूं। शहीदों को मेरी श्रद्घांजलि। उनके परिजनों के प्रति मेरी संवेदनाएं हैं।
— प्रणब मुखर्जी, राष्ट्रपति
सीआरपीएफ जवानों की बहादुरी पर हमें फख्र है, उनका बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा।
— नरेन्द्र मोदी, प्रधानमंत्री
नक्सली हमला जघन्य हत्याकाण्ड है। वे नहीं चाहते कि यहां विकास हो। ये मंसूबे कामयाब नहीं होंगे।
— राजनाथ सिंह, केन्द्रीय गृहमंत्री
जिन जिलों में हमले हो रहे हैं, वहां नक्सलियों पर काफी दबाव है। जवान पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। ये यह काफी गंभीर घटना है। अब ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत है।
— रमन सिंह, सीएम , छत्तीसगढ़
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