चौथा स्तम्भ / नारद - एक ट्वीट ने मीडिया का पाखंड उधेड़ा
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चौथा स्तम्भ / नारद – एक ट्वीट ने मीडिया का पाखंड उधेड़ा

by
Apr 24, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 24 Apr 2017 15:24:16

बीते हफ्ते गायक सोनू निगम के एक ट्वीट ने मीडिया के पाखंड की धज्जियां उड़ा दीं। कई चैनल और अखबार अचानक अजान के मजहबी महत्व के बारे में बताने लगे। यह बताया जाने लगा कि अजान कितनी सुरीली होती है। मसला लाउडस्पीकर के इस्तेमाल का था, लेकिन खबर आने के दो घंटे के अंदर ही मीडिया ने इसे मजहबी मामला बना दिया। एक चैनल ने लिखा—'नमाज से नाराज सोनू निगम।' क्या वाकई सोनू निगम नमाज से नाराज थे? उनकी दिक्कत सिर्फ लाउडस्पीकर से अजान पर थी। सोनू ने अजान ही नहीं मंदिरों और गुरुद्वारों में भी लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर सवाल उठाया था। लेकिन उस बात को अनदेखा कर दिया गया। न्यूज18 चैनल ने अनुवाद में हेराफेरी करके बताया कि सोनू निगम ने कहा है कि मुझे नहीं लगता कि मंदिर और गुरुद्वारे इस तरह से लोगों को जगाते हैं। इसी समूह का अंग्रेजी चैनल तो सारी मर्यादाएं तोड़कर आगे निकल गया। चैनल के एंकर ने सोनू निगम का बचाव कर रहे फिल्मकार विवेक अग्निहोत्री से कहा कि अगर आपको दिक्कत है तो घर बदल लीजिए। किसी पत्रकार को ऐसी टिप्पणी करने की छूट किसने दी है? तो क्या जो लोग दिवाली के पटाखों का विरोध करते हैं उन्हें इसी तर्क के आधार पर घर बदलने को कहा जा सकता है?
असली दिक्कत यही है कि मुख्यधारा मीडिया में कांग्रेस और वामपंथ पोषित पत्रकारों की पूरी जमात है। इन्हें शाहरुख और आमिर खान का देश को कोसना बोलने की आजादी लगता है और ये सोनू निगम जैसे तार्किक बात करने वाले को अपने एजेंडे के तले रौंदने की कोशिश करते हैं। इसी किस्म की पत्रकारिता का नतीजा है कि आईआईटी, दिल्ली के छात्रावास के नोटिस बोर्ड पर लगा एक पर्चा भी राष्ट्रीय खबर बन गया। कहा गया कि छात्रावास में ड्रेस कोड लागू करने की कोशिश की जा रही है। यह खबर दिखाते हुए लगभग सभी चैनलों ने उन नेताओं के बयान सुनाए जो इसके लिए केंद्र सरकार को दोषी ठहरा रहे थे। थोड़ी ही देर में खबर आ गई कि वह पर्चा किसी छात्र ने शरारत के लिए लगाया था। इस तरह से कोई भी अपुष्ट समाचार बिना जांच-पड़ताल के दिखाना मीडिया की आदत बना हुआ है। ऐसी गलतियां अनजाने में नहीं, बल्कि विवाद पैदा करने की पूरी तैयारी के साथ की जाती हैं।
 अफवाहों को समाचार और बयानों को तथ्य की तरह पेश करने की ये बीमारी बीते दिनों तब अपनी सारी हदें पार कर गई, जब इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन खराब होने की बात को साबित करने के लिए झूठी खबरें गढ़ी गईं। जब चुनाव आयोग ने जांच के बाद घोषित कर दिया कि मशीन में कोई गड़बड़ी नहीं पाई गई, तो अपनी खबर के लिए माफी मांगने के बजाय तमाम चैनलों और अखबारों ने यह कहना शुरू कर दिया कि वे खबरें स्थानीय संवाददाताओं की गलती से चलीं।
देश के लोकतंत्र को कलंकित करने वाली झूठी खबर फैलाई गई और कोई जवाबदेही लेने को राजी नहीं। पत्रकारिता के आदशोंर् पर बड़े-बड़े भाषण देने वाले और आत्मनियंत्रण के पैरोकार इस सवाल पर चुप्पी साध गए कि ईवीएम में खराबी की खबर किसके दिमाग की उपज थी।  ऐसा नहीं है कि इसके बाद भी काम बंद हो गया हो। कई पत्रकार अब भी वोटिंग मशीनों में गड़बड़ी की कहानी को सच साबित करने में जुटे हुए हैं।
उधर, उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार के बने महीना भर हुआ है कि मीडिया ने वही काम शुरू कर दिया, जो अब तक वह केंद्र सरकार के साथ करती आई है। आज तक और एबीपी न्यूज जैसे चैनलों ने बीते पांच महीने में कानपुर की गोशाला में गायों की मौत पर योगी सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया। समझ नहीं आता कि ऐसी खबरों में एजेंडा चलाने की क्या जरूरत? वैसे यह अच्छी बात है कि मीडिया गोशालाओं की बुरी स्थिति पर ध्यान दे रही है। इससे सरकारों और प्रशासन पर भी दबाव बनेगा। लेकिन बिना तुक के किसी को दोषी ठहरा देने की आदत सही नहीं है।
उधर, तीन तलाक के सवाल पर पीडि़तों का दर्द चैनलों और अखबारों के जरिए सामने आ रहा है। हैरानी होती है कि लाखों महिलाएं इस कुप्रथा की शिकार हैं और आज तक कभी राष्ट्रीय मीडिया का ध्यान इस ओर नहीं गया। चैनलों के जरिए बुर्के के अंदर बंद आवाजें बाहर आने लगी हैं। हालांकि ऐसा भी लग रहा है कि मीडिया का एक तबका बड़ी चतुराई से पूरी बहस को राजनीतिक रंग देने में जुटा है। इस मुद्दे पर होने वाली बहसों में मुस्लिम समाज के विद्वानों को बुलाने के बजाय मीडिया कुछ गिने-चुने कठमुल्लों तक ही सीमित है। क्या यही कठमुल्ले पूरे मुस्लिम समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं? एक सामाजिक समस्या को हल करने में ये मजहबी कट्टरपंथी कितना योगदान कर सकते हैं? यह बात समझ से परे है। वहीं,दिल्ली के मुख्यमंत्री कई चैनलों पर एक साथ इंटरव्यू के लिए अवतरित हुए। मीडिया में सबको पता है कि आजकल वह उन्हीं पत्रकारों को इंटरव्यू देते हैं जो उनसे मुश्किल सवाल न पूछें। लगभग सभी इंटरव्यू में पहले से तय प्रश्न पूछे गए जिनके जवाब में लंबे-लंबे विज्ञापननुमा उत्तर दिए गए। साथ ही वोटरों से अपील भी कि वह उन्हीं की पार्टी को वोट दें। सोशल मीडिया पर कई लोगों ने इस बात पर ऐतराज जताया है और पूछा है कि कहीं ये पेड न्यूज का मामला तो नहीं है?    ल्ल 

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