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राज्य/बिहार
सुशासन बाबू की नाक के नीचे लालू प्रसाद यादव के पुत्रों द्वारा किया गया घोटाला बिहार में चर्चा का विषय बना हुआ है। इसके बाद भी भ्रष्टाचार को जड़ समाप्त करने का दंभ भरने वाले नीतीश कुमार अभी तक 'मिट्टी घोटाले' पर चुप्पी साधे हुए तमाशा देख रहे हैं।
संजीव कुमार
बिहार के लोगों के मन से चारा घोटाले की याद अभी मिटी भी नहीं थी कि राज्य में एक नई तरह का घोटाला उजागर हुआ है, जिसके केन्द्र में लालू प्रसाद यादव का परिवार ही है। पर इस बार उनके लोगों का तरीका थोड़ा हट कर है- ''तुम मुझे जमीन दो, मैं तुम्हारा काम करूंगा।'' लालू प्रसाद यादव पर आरोप लगे कि उन्होंने अपने रुतबे का प्रयोग करके काम करने के बदले जमीन हड़पी और आज अरबों रुपये की जमीन के मालिक बन बैठे।
दरअसल राबड़ी सरकार के कार्यकाल के दौरान (2000-05) ओम प्रकाश कात्याल तथा अमित कात्याल की कंपनी आईसबर्ग इंडस्ट्री प्राइवेट लिमिटेड ने बिहटा में शराब की फैक्टरी लगाई। इस फैक्टरी का उद्घाटन लालू प्रसाद यादव ने स्वयं किया था। 28 सितंबर, 2006 को ए.के़ इन्फोसिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड नामक एक अन्य कंपनी गठित हुई जिसमें अमित कात्याल एवं उनके भाई राजेश कात्याल निदेशक थे। इस कंपनी में लालू प्रसाद के बेटे तेजस्वी प्रसाद यादव, तेज प्रताप यादव, चंदा यादव एवं रागिनी जून, 2014 में निदेशक नियुक्त किये गये। 13 जून, 2014 को अमित कात्याल ने अपने सारे शेयर राबड़ी देवी और तेजस्वी प्रसाद यादव को हस्तांतरित कर दिये। 3,500 शेयर राबड़ी देवी को तथा 1,500 शेयर तेजस्वी प्रसाद यादव को दिये गये। वहीं एक दूसरे प्रमुख अंशधारक राजेश कात्याल ने अपने 500 शेयर पहले 24 सितंबर, 2011 से 29 सितंबर, 2012 के बीच महेश शर्मा को दिये जिन्हें बाद में उन्होंने राबड़ी देवी को हस्तांतरित कर दिया। इस प्रकार अमित कात्याल व राजेश कात्याल की कंपनी पर पूरी तरह से लालू परिवार का कब्जा हो गया।
दरअसल इस कंपनी में दो निदेशक थे। अमित कात्याल व राकेश कात्याल। लेकिन 1 अगस्त, 2008 को राकेश कात्याल ने इस्तीफा दे दिया तथा 19 जनवरी, 2015 को अमित कात्याल भी निदेशक पद से हट गये। इस कंपनी में 6 अतिरिक्त निदेशक थे। इस बीच 19 जून, 2014 से कंपनी में लालू प्रसाद के पुत्र व पुत्रियों का विचित्र तरीके से प्रवेश हुआ। इस दिन तेजस्वी प्रसाद यादव, तेज प्रताप और चंदा यादव अतिरिक्त निदेशक बनाए गए। 23 नवंबर, 2015 को लालू यादव की सुपुत्री रागिनी लालू अतिरिक्त निदेशक बनीं। 30 सितंबर, 2016 से ये चारों इस कंपनी के निदेशक बन बैठे। बिहार विधानसभा चुनाव का परिणाम 8 नवंबर, 2015 को आया। चुनाव परिणाम आने के एक दिन बाद ही तेजस्वी प्रसाद यादव तथा तेज प्रताप ने इस कंपनी के निदेशक पद से इस्तीफा दे दिया। वर्तमान में कंपनी की निदेशक लालू प्रसाद की दो सुपुत्रियां – चंदा यादव और रागिनी लालू हैं। इस प्रकार सिर्फ 55 हजार रु. खर्च कर लालू परिवार इस कंपनी का मालिक बन बैठा। आज इस कंपनी के पास पटना शहर में करोड़ों की जमीन है जिसका पूरा मालिकाना हक लालू परिवार के पास है। विपक्ष ने आरोप लगाया है कि कात्याल परिवार ने बिहार में शराब फैक्टरी लगाने की मदद करने की एवज में लालू यादव को करोड़ों की जमीन सौंप दी। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार यह परिवार डिलाइट मार्केटिंग को होटल दिलाने के एवज में 200 करोड़ की दो एकड़ जमीन का मालिक बन बैठा था।
डिलाइट मार्केटिंग से जुड़ा घोटाला भी विचित्र है। पहले इस घोटाले की शुरुआत मिट्टी घोटाले के सामने आने से हुई। लेकिन जैसे-जैसे तहकीकात बढ़ती गई, वैसे-वैसे विवाद बढ़ता गया। प्रारंभ में इस घोटाले की राशि 90 लाख रु. तक ही आंकी जा रही थी लेकिन इससे जुड़ी धोखाधड़ी की राशि 750 करोड़ रु. से अधिक की हो गई। यह घोटाला प्रारंभ में तो सिर्फ मिट्टी घोटाला ही था लेकिन अब इसका स्वरूप जमीन व मॉल घोटाले के रूप में उभरा है। इस घोटाले की जद में लालू प्रसाद के परिवार वाले ही हैं। साथ ही घोटाले की सुई 1,अणे मार्ग (मुख्यमंत्री आवास) की ओर भी मुड़ी है।
बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी विधानमंडल दल के नेता सुशील कुमार मोदी ने इस संदर्भ में जो दस्तावेज प्रस्तुत किये हैं, वे काफी चौंकाने वाले हैं। राजधानी पटना में बिहार का सबसे बड़ा मॉल बनाया जा रहा है। इस मॉल की कर्ताधर्ता डिलाइट मार्केटिंग कंपनी प्राइवेट लिमिटेड है। कंपनी में राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के दोनों पुत्र-राज्य के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव तथा वन एवं पर्यावरण मंत्री तेज प्रताप यादव और उनकी बेटी चंदा यादव निदेशक हैं। इस मॉल का निर्माण कार्य राजधानी के सगुना मोड़ के समीप लगभग 52 कट्ठा (2.5 बीघा) के प्लॉट पर चल रहा है। मोदी के अनुसार लाख घनफुट मिट्टी को 3 महीनों में पटना के संजय गांधी जैविक उद्यान पहुंचाया गया। यह मिट्टी इस निर्माणाधीन मॉल के दो भूमिगत तलों की खुदाई से निकाली गई थी। मिट्टी के बदले 90 लाख रुपये की राशि बिहार वन्य संरक्षण कोष से चुकाई गई। 334़ 41 करोड़ रु. से गठित बिहार वन्य संरक्षण कोष के ब्याज की राशि केवल वन्य प्राणियों के संरक्षण पर ही खर्च की जाती है।
मोदी के आरोपों के बाद बिहार की राजनीति गरमा गई। लालू यादव ने दावा किया कि वे मिट्टी घोटाले का आरोप लगाने वाले मोदी पर मान-हानि का मुकदमा करेंगे। पर मोदी ने पलटवार करते हुए कहा कि वे तो जैविक उद्यान को मुफ्त में गोबर देते हैं। उधर विपक्ष के हंगामेदार तेवर को देखते हुए अफवाह उड़ी कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस पूरे मामले पर जांच बिठा दी हैं। जबकि वास्तव में मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह ने मामले से जुड़ी फाइल मांगी थी। बकौल सिंह मिट्टी आपूर्त्ति से संबंधित निविदा प्रक्रिया को समझने के लिए उन्होंने फाइल मंगाई थी। विपक्ष इसे सचाई पर परदा डालने की कोशिश बताने पर आमादा है। मोदी ने अधिकारियों को ईमानदारी से अपने कार्य निर्वहन करने की ताकीद की है ताकि चारा घोटाले की तरह
इस घोटाले में मदद करने वालों पर भी कार्रवाई हो।
डिलाइट माकेर्टिंग कंपनी प्राइवेट लिमिटेड में लालू प्रसाद के दोनों पुत्र तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव तथा उनकी सुपुत्री चंदा यादव को 26 जून, 2014 को निदेशक बनाया गया। यह वही कंपनी थी जिसको लेकर वर्ष 2008 में वर्तमान जल संसाधन मंत्री और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सबसे निकटस्थ राजीव रंजन सिर्फ उर्फ ललन सिंह ने आरोप लगाया था कि तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने रेलवे के रांची (झारखंड) और पुरी (ओडिशा) के दो होटलों को गलत तरीके से होटल सुजाता के हर्ष कोचर को बेच दिया था। इसके बदले में कोचर ने डिलाइट माकेर्टिंग कंपनी को एक ही दिन में 10 निबंधन के जरिये पटना में जमीन हस्तांतरित की थी। 30 सितंबर, 2016 को लालू प्रसाद की एक अन्य सुपुत्री रागिनी को भी डिलाइट मार्केटिंग कपंनी का निदेशक बनाया गया।
लालू के रेल मंत्री रहते समय इस घोटाले की शुरुआत हुई थी। 2010 में लालू प्रसाद के परिवारजन इस कंपनी में शामिल हुए। 12 नवंबर, 2016 को कंपनी का नाम बदलकर 'लारा' प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड कर दिया गया। 'लारा' का तात्पर्य लालू प्रसाद और राबड़ी देवी से है। इसमें राबड़ी देवी के पास 2,402 तथा तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव के पास 800-800 शेयर हैं। इस विवादास्पद शॉपिंग मॉल का निर्माण राजद से सूरसंड के विधायक सैयद अबू दोजान की कंपनी कर रही है।
तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव बिहार के 6 मंत्रालयों के प्रभारी मंत्री हैं। इन दोनों पर धोखाधड़ी कर 750 करोड रु. के जमीन व मॉल के घोटाले में संलिप्त होना बताया जा रहा है। हैरतअंगेज बात तो यह है कि चंदा यादव ने कंपनी के निदेशक बनते समय मुख्यमंत्री आवास 1, अणे मार्ग, सचिवालय थाना, जीपीओ पटना, पटना-800 001 का पता बताया था। भाजपा ने पूछा है कि तेज प्रताप और तेजस्वी यादव को कंपनी रजिस्ट्रार के यहां दिये गये डिलाइट के कागजात पर बतौर निदेशक हस्ताक्षर करते वक्त क्या यह नहीं मालूम था कि उनका वर्तमान पता मुख्यमंत्री आवास नहीं है। 2005 में ही राबड़ी देवी मुख्यमंत्री के पद से हट चुकी थीं। फिर 9 वर्ष बाद लालू परिवार द्वारा मुख्यमंत्री आवास के पते का दुरुपयोग करने का क्या निहितार्थ है? क्या इस पते का दुरुपयोग जान-बूझकर हैसियत और धौंस दिखाने के लिए किया गया है? विपक्ष ने मुख्यमंत्री से भी सवाल पूछा है कि क्या उनके नाम और मुख्यमंत्री आवास के पते का दुरुपयोग करने वालों पर कार्रवाई
की जायेगी?
डिलाइट मार्केटिंग की तरह इस घोटाले के केन्द्र में भी लालू यादव का ही परिवार है और उनके दोनों बेटे जो वर्तमान में राज्य सरकार के प्रमुख मंत्री हैं। यह सवाल सबके मन में है कि आखिर क्यों कात्याल परिवार निदेशक पद से हटा और उसने अपने सारे शेयर राबड़ी और तेजस्वी को हस्तांतरित किये? किन कारणों से कात्याल परिवार ने जमीन खरीदने के कुछ वषार्ें के बाद जमीन सहित पूरी कंपनी लालू परिवार को सौंप दी? ऐसे में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की रहस्यमयी चुप्पी काफी संदेहास्पद है। इतने बड़े घोटाले के खुलासे के बावजूद अभी तक सुशासन की दुहाई देने वाले नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल में तेजस्वी यादव एवं तेज प्रताप यादव कैसे मंत्री पद पर बने हुए हैं?
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