नवसंवत्सर पर विशेष : शुभत्व के नव जागरण का उत्सव
July 15, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

नवसंवत्सर पर विशेष : शुभत्व के नव जागरण का उत्सव

by
Mar 27, 2017, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 27 Mar 2017 15:29:29

जब किसी ने पहली जनवरी को मोरारजी देसाई को नववर्ष की बधाई दी तो उन्होंने उत्तर दिया था, ''किस बात की बधाई? जब मेरे देश की सांस्कृतिक पहचान और सम्मान का कोई भी संदर्भ इस नववर्ष से जुड़ा ही नहीं तो कैसा नववर्ष और कैसी शुभकामना?'' यही बात हमें भी समझनी चाहिए कि नववर्ष से हमारी राष्ट्रीय अस्मिता बेहद गहराई से जुड़ी हुई है। यह शुभ दिन हमारे अंदर राष्ट्र प्रेम और स्वाभिमान को जागृत करता है।   
भारत के महान खगोल शास्त्रियों ने ग्रहों, तारों, नक्षत्रों, चांद-सूरज आदि की गति का गहन अध्ययन कर छह ऋतुओं एवं 12 माह पर आधारित जो पंचांग बनाया, वह वाकई अद्भुत है। महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी दिन से सूयार्ेदय से सूर्यास्त तक दिन, महीना और वर्ष की गणना करते हुए पंचांग की रचना की थी। उन्होंने सूर्य की जगह चंद्रमा की गति को आधार बनाकर इसकी रचना की। उस समय सूर्य की रोशनी में नक्षत्रों को देखने का कोई साधन नहीं था, जबकि रात के समय नक्षत्रों से होकर गुजरते चंद्रमा की गति को देखकर अनपढ़ भी समय और तिथि का सहज अनुमान लगा सकता था। यह काल गणना युगों बाद भी पूरी तरह सटीक है। इसमें इतना सामंजस्य है कि तिथि वृद्धि, तिथि क्षय, अधिक मास, क्षय मास आदि भी व्यवधान उत्पन्न नहीं कर पाते। तिथि घटे या बढ़े, लेकिन सूर्य ग्रहण हमेशा अमावस्या को होगा और चंद्र ग्रहण हमेशा पूर्णिमा को ही होगा। हमारे खगोल शास्त्रियों ने इस गणना के आधार पर दिन-रात, सप्ताह, पखवारा, महीना, साल और ऋतुओं का निर्धारण किया। इसी आधार पर 12 माह और छह ऋतुओं को एक चक्र यानी पूरे वर्ष की अवधि को 'संवत्सर' नाम दिया। खास बात यह कि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि से नव संवत्सर यानी नववर्ष शुरू होता है। इसी तिथि को चैत्र प्रतिपदा कहते हैं।
विक्रम और शक संवत् की शुरुआत भी चैत्र प्रतिपदा तिथि को ही हुई। हालांकि देश में शक, हिजरी, ईस्वी और विक्रमी संवत् प्रचलित हैं।  देश में सांस्कृतिक दृष्टि से विक्रम संवत् और शासकीय दृष्टि से शक संवत् को मान्यता प्राप्त है। सनातन धर्म के हिन्दू परिवार सांस्कृतिक पर्व-त्योहारों, जन्म-मुंडन, विवाह संस्कार और श्राद्ध-तर्पण आदि विक्रमी संवत् के अनुसार ही करते हैं। इसके बावजूद देश की बड़ी आबादी नव संवत्सर की महत्ता और तिथि-माह की काल गणना की भारतीय पद्धति से अनजान है।
विक्रम संवत् को ही मान्यता क्यों?  
कहा जाता है कि 2073 वर्ष पूर्व चैत्र प्रतिपदा को उज्जयिनी नरेश विक्रमादित्य ने विदेशी आक्रांता शकों से देश की रक्षा की और शक, यवन, हूण, फारस तथा कंबोज आदि देशों पर विजय हासिल की। उसी महाविजय की स्मृति में चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को विक्रम संवत् का शुभारम्भ हुआ। अपने नाम का संवत् चलाने के लिए विक्रमादित्य ने राष्ट्र के सभी नागरिकों का कर्ज अपने कोष से चुकाया। दुनिया के इतिहास में ऐसा कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिलता। धन्वंतरि जैसे महान वैद्य, वराह मिहिर जैसे महान ज्योतिषी और कालिदास जैसे महान साहित्यकार को अपनी राजसभा के नवरत्नों में शुमार करने वाले इस यशस्वी शासक की गणना शूरवीर, प्रजावत्सल, न्यायप्रिय एवं संस्कृति प्रेमी कुशल प्रशासक के रूप में होती है। उनकी विद्वता और साहस की कहानियां आज भी भारतीय जनमानस में प्रचलित हैं। विक्रम संवत् की सर्वग्राह्यता का मूल कारण है कि यह संकुचित विचारधारा या किसी देवी-देवता, महापुरुष, जाति या संप्रदाय विशेष के नाम पर न होकर विशुद्ध रूप से खगोल शास्त्रीय सिद्धांतों पर आधारित है।  
नवसंवत्सर से जुड़ी महत्वपूर्ण तिथियां
सनातन हिन्दू मान्यता के अनुसार, इस दिन को सृष्टि रचना का पहला दिन माना जाता है। ब्रह्म पुराण के मुताबिक एक अरब 97 करोड़ 39 लाख 49 हजार 109 वर्ष पूर्व इसी दिन सृष्टि की रचना हुई थी। इसी दिन श्रीहरि विष्णु ने सृष्टि के प्रथम जीव के रूप में मत्स्यावतार लिया। इसीलिए सनातन हिन्दू जीवन मूल्यों में आस्था रखने वाले भारतीय चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नववर्ष मानते हैं। इसी तिथि से मंगल घट स्थापन के साथ शक्ति और भक्ति के नौ दिवसीय साधनाकाल नवरात्र का शुभारंभ होता है। त्रेता युग में लंका विजय के बाद अयोध्या में श्रीराम का राज्याभिषेक इसी शुभ दिन हुआ था। द्वापर काल मंे महाभारत के युद्घ में विजय के उपरान्त धर्मराज युधिष्ठिर भी इसी दिन राजगद्दी पर बैठे थे। इसी विशेष तिथि को ही सिंधी समाज के महान संत झूलेलाल का जन्म हुआ था जो वरुण देव के अवतार माने जाते हैं। सिख परंपरा के द्वितीय गुरु अंगददेव का जन्म भी इसी पावन दिन हुआ था। समाज से आडम्बरों का विनाश करने के लिए स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना के लिए चैत्र प्रतिपदा की तिथि ही निर्धारित की थी। इतना ही नहीं, देश की एकता, अखंडता एवं एकात्मता के संरक्षण की अलख जगाने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार का जन्म भी इसी    दिन हुआ।
प्रकृति के नवशृंगार एवं नव उपज का नववर्ष
चैत्र प्रतिपदा प्राकृतिक रूप से भी अत्यधिक समृद्ध है। यह पर्व वसंत ऋतु में आता है, इसीलिए वसंत को ऋतुराज भी कहा जाता है। वसंत उल्लास, उमंग, खुशी तथा पुष्पों की सुगंध से परिपूर्ण होता है। इस समय प्रकृति का नवशृंगार देखते ही बनता है। नवपल्लव धारण कर प्रकृति नवसंरचना के लिए ऊर्जावान दिखती है। मानव ही नहीं, बल्कि पशु-पक्षी और जड़-चेतन प्रमाद और आलस्य त्याग कर सचेतन हो जाते हैं। पुरातनता व जड़ता का त्याग तथा नवीनता व सक्रियता का स्वागत, इस पर्व का मूल आधार और गूढ़ संदेश है। इस समय पहाड़ांे पर बर्फ पिघलने लगती है। आमों पर बौर आ जाते हैं। प्रकृति की हरीतिमा नवजीवन का प्रतीक बनकर हमारे जीवन से जुड़ जाती है। यह फसल के पकने का समय होता है। हमारे अन्नदाता प्रसन्न रहें, धरती की उर्वरता को कुदृष्टि न लगे, सभी स्वस्थ और मिल-जुलकर रहें, इन्हीं शुभ भावों के साथ यह नववर्ष मनाया जाता है।
वर्ष प्रतिपदा और गुड़ी पड़वा
हिन्दू नववर्ष के विविध रूप-रंग हमारी बहुरंगी उत्सवधर्मिता के भी प्रतीक हैं। उत्तर भारत में इस अवसर पर नवरात्र में देवी मंदिर 'मानस' एवं 'सप्तशती' पाठ से गुंजायमान दिखते हैं। दक्षिण में आंध्र प्रदेश, केरल और कर्नाटक में इसे 'उगादी' के रूप में मनाया जाता है। कश्मीर में 'नवरोज', सिंध में 'चेटीचंड उत्सव', पूवार्ेत्तर के असम में 'बिहू'(नई फसल का पर्व) तथा महाराष्ट्र में इस दिन को 'गुड़ी पड़वा' के रूप में मनाया जाता है।
मराठी समाज गुड़ी पड़वा को अन्याय पर न्याय और विकार पर संयम की विजय के पर्व के रूप में मनाता है। यह पर्व स्वास्थ्य संचेतना का भी संदेश देता है। सूर्य इस सृष्टि के पालनहार हैं। हम उनकी तेजस्विता को अपने भीतर धारण कर ऊर्जावान हो सकें, इस कामना के साथ इस दिन सूर्य को जल अर्पित कर उनकी पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही, सुंदरकांड, रामरक्षा स्तोत्र और देवी भगवती के मंत्र जप भी किए जाते हैं। इस दिन गुड़ी (ध्वजा) पूजन का भी विशेष महत्व होता है। गुड़ी पड़वा के दिन श्रीखंड, पूरनपोली और नीम के विचित्र संयोग से निर्मित नैवेद्य (प्रसाद) चढ़ाकर आरोग्य, समृद्घि और पवित्र आचरण की कामना की जाती है। शरीर विज्ञानियों का कहना है कि इस प्रसाद का निराहार सेवन करने से मानव निरोगी रहता है। चर्म रोग भी दूर होता है। इस पेय में मिली वस्तुएं स्वादिष्ट होने के साथ-साथ आरोग्यप्रद होती हैं। महाराष्ट्र में पूरनपोली या मीठी रोटी बनाने में गुड़, नमक, नीम के फूल, इमली और कच्चा आम आदि चीजें मिलाई जाती हैं। गुड़ मिठास का, नीम के फूल तिक्तता तथा इमली-आम जीवन के खट्टे-मीठे स्वाद चखने का प्रतीक है। इस दिन घर-घर में विजय के प्रतीक स्वरूप गुड़ी (लकड़ी की छड़ी के ऊपरी सिरे पर तांबा आदि शुभ धातु का मुखौटा बना लोटा लटका कर उसे नवीन वस्त्राभूषण से सजाया जाता है।) लटकाई जाती है। महिलाएं रंगोली से घर-आंगन एवं गुड़ी लगाने के स्थान को सजाती हैं।
छत्रपति शिवाजी ने रखी हिंद साम्राज्य की नींव
मराठी समाज की मान्यता है कि मराठा साम्राज्य के अधिपति छत्रपति शिवाजी महाराज ने मुगल आक्रांताओं को परास्त कर गुड़ी पड़वा के दिन ही हिन्दू पदशाही का भगवा विजय ध्वज लगाकर हिंद साम्राज्य की नींव रखी थी। दक्षिण भारतीयों की एक अन्य मान्यता के अनुसार इसी दिन भगवान राम ने बाली के अत्याचार से दक्षिण की प्रजा को मुक्ति दिलाई। इस विजय में प्रजा ने उत्सव मनाकर घरों में गुड़ी (ध्वज) फहराया। तभी से यह दिन गुड़ी पड़वा के रूप में विख्यात हो गया। एक अन्य कथा के मुताबिक, एक बार कौशल राज्य पर शत्रुओं ने आक्रमण किया। तब मां शक्ति के उपासक शालिवाहन नामक एक कुम्हार के लड़के ने मिट्टी की एक सेना बनाई और उस सेना पर पानी छिड़क कर उनमें प्राण फूंक दिए। कहते हैं कि उस सेना ने दुश्मनों को युद्ध में परास्त कर दिया। उसी विजय के उपलक्ष्य में गुड़ी पड़वा का पर्व मनाने की परम्परा पड़ गई। -पूनम नेगी

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

समोसा, पकौड़े और जलेबी सेहत के लिए हानिकारक

समोसा, पकौड़े, जलेबी सेहत के लिए हानिकारक, लिखी जाएगी सिगरेट-तम्बाकू जैसी चेतावनी

निमिषा प्रिया

निमिषा प्रिया की फांसी टालने का भारत सरकार ने यमन से किया आग्रह

bullet trtain

अब मुंबई से अहमदाबाद के बीच नहीं चलेगी बुलेट ट्रेन? पीआईबी फैक्ट चेक में सामने आया सच

तिलक, कलावा और झूठी पहचान! : ‘शिव’ बनकर ‘नावेद’ ने किया यौन शोषण, ब्लैकमेल कर मुसलमान बनाना चाहता था आरोपी

श्रावस्ती में भी छांगुर नेटवर्क! झाड़-फूंक से सिराजुद्दीन ने बनाया साम्राज्य, मदरसा बना अड्डा- कहां गईं 300 छात्राएं..?

लोकतंत्र की डफली, अराजकता का राग

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

समोसा, पकौड़े और जलेबी सेहत के लिए हानिकारक

समोसा, पकौड़े, जलेबी सेहत के लिए हानिकारक, लिखी जाएगी सिगरेट-तम्बाकू जैसी चेतावनी

निमिषा प्रिया

निमिषा प्रिया की फांसी टालने का भारत सरकार ने यमन से किया आग्रह

bullet trtain

अब मुंबई से अहमदाबाद के बीच नहीं चलेगी बुलेट ट्रेन? पीआईबी फैक्ट चेक में सामने आया सच

तिलक, कलावा और झूठी पहचान! : ‘शिव’ बनकर ‘नावेद’ ने किया यौन शोषण, ब्लैकमेल कर मुसलमान बनाना चाहता था आरोपी

श्रावस्ती में भी छांगुर नेटवर्क! झाड़-फूंक से सिराजुद्दीन ने बनाया साम्राज्य, मदरसा बना अड्डा- कहां गईं 300 छात्राएं..?

लोकतंत्र की डफली, अराजकता का राग

उत्तराखंड में पकड़े गए फर्जी साधु

Operation Kalanemi: ऑपरेशन कालनेमि सिर्फ उत्तराखंड तक ही क्‍यों, छद्म वेषधारी कहीं भी हों पकड़े जाने चाहिए

अशोक गजपति गोवा और अशीम घोष हरियाणा के नये राज्यपाल नियुक्त, कविंदर बने लद्दाख के उपराज्यपाल 

वाराणसी: सभी सार्वजनिक वाहनों पर ड्राइवर को लिखना होगा अपना नाम और मोबाइल नंबर

Sawan 2025: इस बार सावन कितने दिनों का? 30 या 31 नहीं बल्कि 29 दिनों का है , जानिए क्या है वजह

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies