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संघ की नित्य प्रार्थना में स्वयंसेवक की व्यक्तिगत -जातिगत पहचान गल गई है और शेष है मात्र हिन्दू समाज का अंगभूत घटक। समाज में इसे किंचित मात्रा में उतारने में स्वयंसेवक सफल भी हो रहे हैं। जो सारे समाज को एक करने चले हैं, उनके कार्य की सफलता की एक अनिवार्य कसौटी भेद रहित समाज है, होनी भी चाहिए।
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़, मिलकर भारत का मध्यभाग बनाते हैं। संघ कार्य की दृष्टि से इसे मध्य क्षेत्र कहा जाता है। यहां जनजातीय जनसंख्या देश के किसी भी भाग की तुलना में सर्वाधिक है। हिन्दू समाज की रंगबिरंगी विविधता के दर्शन यहां चटख रंगों में होते हैं। आजादी के बाद लंबे समय तक पिछड़े राज्यों की सूची में दर्ज रहने के कारण आर्थिक विषमताएं भी पर्याप्त हैं। परंतु अब परिवर्तन के शुभ लक्षण हो गए हैं। महाकौशल क्षेत्र में जातिगत विविधता अत्यधिक है। जातियों के अंतर्गत हजारों उपजातियां हैं। खान-पान में बड़ा विचार चलता आया है। 2017 के जनवरी माह में महाकौशल की सभी तहसीलों में सामाजिक समरसता सम्मेलन हुए जिनमें समाज के विभिन्न वगोंर् ने भाग लिया। सभी कार्यक्रमों में मंच पर समाज की सभी जाति-बिरादरी के श्रेष्ठ लोगों को स्थान दिया गया। साधु-संतों समेत अनेक वक्ताओं ने समरसता पर प्रकाश डाला। सहभोज के आयोजन हुए और बड़ी संख्या में समरसता साहित्य का वितरण हुआ।
आज हिन्दू समाज की दो विडंबनाएं हैं— इतिहास का उचित बोध न होना और महापुरुषों का जाति के आधार पर बंटवारा। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में जबलपुर में बलिदानियों में अग्रणी हैं राजा शंकरशाह और उनके पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह। दोनों को 18 सितंबर, 1858 को अंग्रेजों ने विप्लव भड़काने के अपराध में तोप के मुंह से बांधकर उड़ा दिया था। ये दोनों गोंड समाज से हैं। आजादी के बाद राजनैतिक स्वाथोंर् के चलते इन्हें भुला दिया गया और इनकी स्मृति गोंड समाज तक सीमित रह गई। गत 18 सितंबर को पूरे प्रान्त में स्वयंसेवकों ने उनका बलिदान दिवस मनाया। जबलपुर में एक साथ 17 स्थानों पर भव्य सार्वजनिक कार्यक्रम हुए जिनमें बलिदानियों का परिचय करवाया गया। गोंड महासभा के अध्यक्ष बोले कि हमें पता नहीं था कि आप भी बलिदानी राजा शंकरशाह का इतना सम्मान करते हैं।
8 फरवरी, 2017 को बैतूल जिले में संपन्न विराट हिन्दू सम्मेलन में सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत के समक्ष जिले के गांव-गांव से एक लाख बंधु एकत्रित हुए। इसके लिए 70 कार्यकर्ताओं ने अथक परिश्रम करके 1468 गांवों में चार लाख लोगों को स्पर्श किया। भोपाल और ग्वालियर संभाग के 9,000 गांवों में स्वयंसेवकों ने एक विस्तृत सर्वेक्षण किया। इसमें पाया गया कि आज भी 40 प्रतिशत गांवों में हिन्दू समाज मिलकर मंदिर में देवपूजन नहीं करता। 30 प्रतिशत गांवों में जल स्रोत जाति के आधार पर बंटे हुए हैं तो वहीं 35 प्रतिशत गांवों में श्मशान अलग-अलग हैं। इसे बदलने के प्रयास प्रारंभ हुए हैं। स्वयंसेवकों ने अनुसूचित जाति व जनजाति के बंधुओं को उनके संविधानप्रदत्त अधिकार दिलाने का अभियान चलाया है। उनके उत्थान के लिए आवंटित राशि का भी पूर्ण उपयोग हो सके, इसके लिए भी जागृति लाने और संवाद स्थापित करने के प्रयास जारी हैं। समरसता गतिविधियों के सिलसिले में मुरैना जिले के 333 गांवों और 99 झुग्गी बस्तियों से 3623 कार्यकर्ता एकत्र हुए और समरसता एवं सेवा कायोंर् की रूपरेखा बनाई।
जनवरी माह में उज्जैन के बड़नगर के जाबला गांव में कुछ लोगों ने वंचित समाज की बारात में दूल्हे के घोड़े पर बैठने पर रोक लगाईं और वातावरण खराब किया। जानकारी मिलने पर स्वयंसेवक उस गांव में पहुंचे और दोनों पक्षों को बिठालकर इस कुप्रथा को समाप्त किया। इस कार्य का आसपास के क्षेत्र में भी बहुत अच्छा संदेश गया। छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले के बोड़ला में विवेकानंद सार्द्धशती समारोह (2013 -14) में हुए समरसता यज्ञ में हिन्दू समाज के सभी वगोंर् ने आहुति डाली और तब से यह हर साल हो रहा है।
बिलासपुर जिले के मदकु में सभी के लिए मंदिर प्रवेश और एक ही जल स्रोत की मुहिम रंग लाई। बिलासपुर और राजधानी रायपुर में नवरात्र पर झुग्गी बस्तियों की कन्याओं का सारे समाज द्वारा अपने घर बुलाकर पूजन किया जाना एक नयी सुबह की ओर इंगित करता है। कवर्धा और रायगढ़ में भारतमाता पूजन के कार्यक्रमों ने हिन्दू समाज की जाति की दीवारों की नींव हिलाने का पुण्य कार्य किया है। बहुत कार्य शेष हैं, लेकिन ये प्रयास स्वप्न साकार होने का आश्वासन प्रतीत होते हैं। *
-प्रशांत बाजपेई
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