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असम के 46 मौलवियों की कट्टरपंथी सोच को 16 वर्षीया गायिका नाहिद आफरीन ने करारा जवाब दिया है। नाहिद ने कहा कि खुदा ने उसे गायकी का हुनर दिया है। संगीत की अनदेखी का मतलब खुदा की अनदेखी करना होगा। वे किसी फतवे से नहीं डरती और मरते दम तक संगीत से जुड़ी रहेंगी।
इंडियन आइडल-2015 से प्रसिद्ध हुईं नाहिद ने हाल में आतंकवाद और आईएसआईएस के विरोध में गीत गाए थे, जो कट्टरपंथियों को अच्छे नहीं लगे। कट्टरपंथियों ने इस सुरीली आवाज का गला घोंटने के लिए 46 फरमान जारी कर संगीत कार्यक्रम मेें प्रस्तुति नहीं देने के लिए नाहिद को धमकाया। उसके खिलाफ मध्य असम के होजई और नगांव जिलों में पर्चे बांटे गए, जिनमें असमिया भाषा में फरमान और इन्हें जारी करने वालों के नाम हैं। इन पर्चों के अनुसार, 25 मार्च को असम में लंका इलाके के उदाली सोनई बीबी महाविद्यालय में नाहिद को गीत गाना है, जिसे पूरी तरह से शरिया के खिलाफ बताया गया है। इन मौलवियों की मानें तो संगीत संध्या जैसी चीजें पूरी तरह से शरिया के खिलाफ हैं।
इन मौलवियों के दिमाग में शरिया के प्रति ऐसा फितूर भरा है कि उन्हें एक बच्ची की प्रतिभा दिखाई नहीं दे रही। इन्हें भारत में इस्लाम और संगीत के रिश्ते की समझ भी नहीं है। 21वीं सदी में आगे बढ़ने की जगह इस्लाम के ठेकेदार अपनी कौम को पीछे धकेलने के लिए निंदनीय कृत्य कर रहे हैं। वे अभी भी कूप-मंडूक बने रहना चाहते हैं। एक समाचार चैनल पर बहस के दौरान एक मुस्लिम प्रतिभागी ने मौलवी से पूछा- ''इस्लाम में तो फोटो खिंचवाना भी मना है … फिर आप वीडियो कैमरे के सामने क्यों आए?'' शरिया के मुताबिक संगीत और नाहिद की प्रतिभा को अनुचित करार देने वाले मौलाना इस सवाल पर अपनी बगलें झांकते नजर आए। वास्तव में ये लोग अपनी कट्टर सोच के प्रचार-प्रसार के लिए हर साधन का प्रयोग कर सकते हैं, भले ही वह इस्लाम के मुताबिक हराम क्यों न हो। लेकिन मासूम नाहिद का गाना, तस्लीमा नसरीन का लिखना, क्रिकेटर मोहम्मद सामी की पत्नी का फोटो खिंचवाना, क्रिकेटर मोहम्मद कैफ का सूर्य नमस्कार करना, संगीतकार एआर रहमान का संगीत और सना अमीन शेख का अभिनय इन्हें पसंद नहीं है। इस घटना से पहले कर्नाटक की सुहाना सईद को एक कन्नड़ रियलिटी शो मंे हिंदू भजन गाने पर सोशल मीडिया के जरिये बलात्कार की धमकी दी गई। सुहाना और उसके परिवार के खिलाफ भद्दी टिप्पणियां लिखी गईं। इसके बावजूद इस कट्टरपंथी सोच के खिलाफ आवाज बुलंद नहीं हुई। इस तरह की घटनाएं हमारे प्रगतिशील बौद्धिक जगत, अभिव्यक्ति की आजादी का नारा लगाने वाले समूहों और सहिष्णु गैंग के दोहरे चरित्र को उजागर करती हैं। दुर्भाग्य की बात यह है कि अभिव्यक्ति की आजादी का नारा लगाने वाले समूह इस कट्टर सोच का विरोध करने की जगह उसका बचाव करते नजर आते हैं। मौलानाओं के फरमानों और फतवों में तथाकथित प्रगतिशील एवं बौद्धिक जगत को न तो अभिव्यक्ति की आजादी पर खतरा नजर आता है, न सांप्रदायिकता-कट्टरपंथ और न ही महिला विरोधी सोच नजर आती है।
नाहिद आफरीन के मामले में 46 मौलानाओं के फरमानों का यह कह कर बचाव किया जा रहा है कि उसके खिलाफ कोई 'फतवा' जारी नहीं हुआ है। तकनीकी तौर पर यह सही हो सकता है कि नाहिद के खिलाफ बांटे गए पर्चे 'फतवा' न हों। लेकिन क्या इस तरह के जहरीले पर्चे किसी फतवे से कम हैं? तथाकथित बुद्धिजीवी इस प्रकार का बचकाना तर्क देकर कट्टरपंथी सोच को प्रोत्साहित और संगीत के क्षेत्र में कदम रखने वाली सैकड़ों मुस्लिम युवतियों को हतोत्साहित करते नजर आ रहे हैं। हमें याद करना होगा कि कट्टरपंथियों के विरुद्ध खड़े नहीं होने के कारण जम्मू-कश्मीर में मुस्लिम लड़कियों का पहला रॉक बैंड 'प्रगाश' दम तोड़ चुका है।
कश्मीर की तीन मुस्लिम लड़कियों ने इस रॉक बैंड की शुरुआत की थी, जिसे हर तरफ से सराहा जा रहा था। लेकिन जम्मू-कश्मीर के प्रमुख मुफ्ती बशीरुद्दीन अहमद ने 15-16 साल की इन लड़कियों के गाने को गैर-इस्लामी करार देकर उनके खिलाफ फतवा जारी कर दिया था। बैंड के फेसबुक पेज पर लड़कियों के लिए घृणा से भरी और भद्दी टिप्पणियां की गईं, जिसके बाद उन्होंने संगीत से हमेशा के लिए तौबा कर ली। इस बार अच्छी बात यह है कि नाहिद इस कट्टरपंथी सोच के खिलाफ साहस के साथ खड़ी है। असम सरकार और देशभर से लोग भी उसके साथ खड़े हैं। हम सबको देश, समाज और मानवता के लिए कट्टरपंथी सोच के खिलाफ खड़ा होना ही पड़ेगा। -लोकेंद्र सिंह
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