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पंजाब में कांग्रेस की नहीं, बल्कि कैप्टन अमरिंदर सिंह की जीत हुई है। उन्होंने अपना भरोसा दिलाते हुए वोट मांगे और लोगों ने भी उन्हें निराश नहीं किया। वहीं, जिस आम आदमी पार्टी को सत्ता का प्रबल दावेदार माना जा रहा था, वह अपनी सहयोगी पार्टी के साथ 22 सीटों पर ही सिमट गई। सबसे अहम बात यह रही कि इस पार्टी को लेकर लोगों में जो उत्साह था, वह निराशा में बदल गया
राकेश सैन
पंजाब विधानसभा चुनाव में जीती तो कांग्रेस है, लेकिन जनता ने कांग्रेस पार्टी पर नहीं, बल्कि कैप्टन अमरिंदर सिंह में विश्वास जताया है। 1965 में भारत-पाक युद्ध में भाग ले चुके पटियाला रियासत के महाराजा यादविंदर सिंह के पुत्र कैप्टन अमरिंदर सिंह के नाम पर कांग्रेस ने यह चुनाव लड़ा था। पार्टी का नारा ही था ‘चाहुंदा है पंजाब, कैप्टन दी सरकार।’ 11 मार्च, 1942 को जन्मे कैप्टन अमरिंदर सिंह को 75वें जन्मदिन पर 77 विधानसभा सीटों का उपहार मिला। अमरिंदर सिंह ने पटियाला के साथ-साथ लंबी विधानसभा क्षेत्र से भी चुनाव लड़ा। पंजाब में सत्तारूढ़ शिरोमणि अकाली दल (बादल) और भाजपा की दस साल पुरानी सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर देखने को मिली और गठजोड़ 72 सीटों से घट कर 18 सीटों पर सिमट गया। इस चुनाव में सबसे बड़ा धक्का सत्ता की सबसे मजबूत दावेदार होने का दावा करती आई दिल्ली की आम आदमी पार्टी को लगा, जो अपनी सहयोगी लोक इंसाफ पार्टी के साथ महज 22 (20+2) सीटों पर ही जीत हासिल कर सकी। पूर्व मुख्यमंत्री और शिअद के वरिष्ठ नेता प्रकाश सिंह बादल के खिलाफ लंबी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे दिल्ली के विधायक और कांगे्रस नेता एवं पूर्व गृह मंत्री पी. चिदंबरम पर जूता फेंकने वाले जरनैल सिंह अपनी जमानत तक नहीं बचा सके।
पंजाब चुनाव में पराजित होने वाले बड़े नेताओं में कांग्रेस की पूर्व मुख्यमंत्री बीबी राजिंदर कौर भट्ठल, विपक्ष के पूर्व नेता चौधरी सुनील कुमार जाखड़, कैबिनेट मंत्री एवं भाजपा के अनिल जोशी, चौधरी सुरजीत कुमार ज्याणी, मनोरंजन कालिया, तरुण चुघ, अकाली दल के डॉ. दलजीत सिंह चीमा, सिकंदर सिंह मलूका, आम आदमी पार्टी के सांसद भगवंत सिंह मान, गुरप्रीत सिंह वड़ैच, हिम्मत सिंह शेरगिल के नाम प्रमुख हैं।
सत्ता विरोधी लहर
पंजाब में बारी-बारी से अकाली दल और भाजपा गठबंधन तथा कांग्रेस सत्ता पर काबिज होती रही है, लेकिन 2012 के विधानसभा चुनाव में गठबंधन की सरकार ने इस परंपरा को तोड़ कर लगातार दूसरी बार सत्ता हासिल की थी। इस बार जीत की तिकड़ी बनाने के लिए शिअद और भाजपा गठबंधन अपने कार्यकाल में होने वाले विकास को मुद्दा बनाकर चुनावी समर में उतरा। लेकिन सत्ता विरोधी लहर के चलते उसे सफलता नहीं मिली। विगत पांच वर्षों में राज्य की राजनीति में उस समय बदलाव महसूस किया गया जब दिल्ली में पैदा हुुई आम आदमी पार्टी ने मई, 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में पूरे देश में से केवल पंजाब में 4 सीटें जीत कर प्रदेश की राजनीति को त्रिकोणीय बनाने का प्रयास किया। आम चुनाव में मिली इस सफलता से उत्साहित होकर आम आदमी पार्टी ने राज्य में अपनी गतिविधियां बढ़ा दीं। ‘आआपा’ की अतिसक्रियता से राजनीतिक विश्लेषकों को भी भ्रम होने लगा था कि भले ही पार्टी राज्य में 100 सीटें जीतने के अतिशयोक्तिपूर्ण दावे कर रही है, परंतु वह बहुत आसानी से यह आंकड़ा जुटा सकती है।
अहंकार ले डूबा
2016 के श्रीमुक्तसर साहिब के माघी मेले और तलवंडी साबो के बैसाखी मेले में पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल के राजनीतिक कार्यक्रमों में जिस तरह से भीड़ जुटी, उससे ‘आआपा’ को सत्ता के करीब माना जाने लगा। विश्लेषक मानते हैं कि इन कार्यक्रमों से जहां पार्टी का उभार सामने आया, उसके पतन की शुरुआत भी वहीं से हुई। इन कार्यक्रमों की सफलता ने पार्टी नेताओं को अहंकारी बना दिया।
चर्चा थी कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपनी राष्ट्रीय राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति पंजाब के माध्यम से करने की इच्छा पाले बैठे थे और उन्होंने अपनी योजना को मूर्त रूप देना भी शुरू कर दिया था।
केजरीवाल का पैंतरा
अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए केजरीवाल ने पहले पंजाब में पार्टी के स्थानीय लोकप्रिय नेताओं को किनारे लगाना शुरू किया। इस कड़ी में सुच्चा सिंह छोटेपुर द्वारा कथित तौर पर रिश्वत लेने की सीडी जारी कर उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया गया। इसके बाद मुख्यमंत्री पद के अन्य दावेदार और सांसद भगवंत मान को पूर्व उप-मुख्यमंत्री और शिअद अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल के खिलाफ जलालाबाद (पश्चिम) और हिम्मत सिंह शेरगिल को अकाली-भाजपा सरकार के तीसरे नंबर के नेता बिक्रम सिंह मजीठिया के विरुद्ध मजीठा सीट से चुनावी समर में उतार दिया। पार्टी के सिख चेहरे जरनैल सिंह को लंबी विधानसभा क्षेत्र से प्रकाश सिंह बादल के विरुद्ध उतारा गया। मुख्यमंत्री पद के तीनों दावेदारों की हार से केजरीवाल की आधी योजना तो सफल हो गई लेकिन शेष योजना धराशायी हो गई, क्योंकि उनकी पार्टी अपनी सहयोगी के साथ 22 सीटों पर ही सिमट गई। इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं कि दिल्ली से चला ‘आआपा’ का राजनीतिक तूफान पंजाब में थम गया और गोवा में पूरी तरह नेस्तनाबूद हो गया। पंजाब और गोवा ने केजरीवाल की राष्ट्रीय राजनीति की महत्वाकांक्षा को धूल धूसरित कर दिया।
आरोपों में घिरी पार्टी
चुनाव प्रक्रिया शुरू होने तक पंजाब में आम आदमी पार्टी की स्थिति मजबूत मानी जा रही थी, परंतु टिकटों के आवंटन में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं पर 5-5 करोड़ रुपये रिश्वत लेने के आरोप, महिला कार्यकर्ताओं के यौन शोषण, पूरी तरह नकारात्मक प्रचार, प्रचार के दौरान सिख मर्यादाओं के हुए उल्लंघन, स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं की पूरी तरह उपेक्षा ने पार्टी की छवि को दागदार बना दिया। पार्टी पर खालिस्तानी आतंकियों की मदद लेने के आरोप तो काफी समय से लगते रहे, परंतु मतदान के एक सप्ताह पहले अरविंद केजरीवाल के मोगा स्थित एक पूर्व आतंकी के घर रुकने की घटना ने उनकी पार्टी की छवि को बिलकुल तार-तार कर दिया। ऊपर से बठिंडा जिले के मौड़ विधानसभा क्षेत्र में हुई बम विस्फोट की घटना ने तो पंजाब के लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया। इस घटना के बाद लोगों को लगने लगा कि कहीं ‘आआपा’ के रूप में खालिस्तानी आतंकी सत्ता पर काबिज हो गए तो राज्य को एक बार फिर आतंक के काले दिनों का सामना करना पड़ सकता है। ऊपर से दिल्ली सरकार के मंत्रियों की स्तरहीन हरकतें, वहां की सरकार का खराब प्रदर्शन, अरविंद केजरीवाल की विध्वंसात्मक राजनीति, उनके मंत्रियों की दागदार छवि ने भी पंजाब के मतदाताओं पर विपरीत असर डाला, क्योंकि पंजाब-दिल्ली के लोगों के बीच करीबी और घनिष्ठ संबंध हैं। कांग्रेस ने न केवल केजरीवाल और उनकी पार्टी की कमजोरियों, बल्कि आम आदमी पार्टी की आतंकवाद समर्थक छवि के साथ अकाली-भाजपा के सत्ता विरोधी रुझान का भी लाभ उठाया। ल्ल
कैप्टन अमरिंदर सिंह
प्रचार-पंजाब प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए कांग्रेस हाईकमान को चुनौती देने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह का प्रचार मुख्यत: रोजगार, आरक्षण, किसान और भ्रष्टाचार पर केंद्रित रहा। गुरुग्रंथ साहिब का अपमान और नशाखोरी जैसे मुद्दे भी उनके चुनाव प्रचार का हिस्सा रहे। सबसे बड़ी बात कि उन्होंने अपना भरोसा दिलाते हुए जनता से वोट मांगे।
प्रबंधन-कैप्टन ने अपने दम पर कांग्रेस को बड़ी जीत दिलाई। चुनाव से पहले कई दलों के नेताओं (नवजोत सिंह सिद्घू) को कांग्रेस में शामिल कर उन्हें टिकट भी दिया।
परिणा-पंजाब की 117 सीटों में से कांगे्रस को 77 सीटों पर जीत हासिल हुई।
अरविंद केजरीवाल
प्रचार-आम आदमी पार्टी ने नशीले पदार्थों, बेरोजगारी और किसानों की बदहाली के मुद्दे को चुनावी हथियार बनाया और पंजाब में जमकर प्रचार किया। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, उनके मंत्रियों और कार्यकर्ताओं के साथ कनाडा में रह रहे एनआरआई पंजाबियों ने भी प्रचार किया। लेकिन प्रचार का तरीका नकारात्मक रहा।
प्रबंधन- पार्टी नेताओं की विभिन्न मामलों में गिरफ्तारी, एमसीडी हड़ताल, सांसद भगवंत मान का वीडियो जैसी घटनाओं से ‘आआपा’ का ग्राफ गिरा। सुच्चा सिंह का पार्टी से निष्कासन और टिकट बंटवारे से कार्यकर्ताओं में असंतोष लचर प्रबंधन की कलई खोल गया।
परिणा-20 सीटों पर जीत मिली।
नवजोत सिंह सिद्धू
प्रचार-चुनाव से ठीक पहले भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल होने वाले नवजोत सिंह सिद्धू के निशाने पर मुख्यत: बादल परिवार, आम आदमी पार्टी व केजरीवाल ही रहे।
प्रबंधन-भाजपा से नाता तोड़ने के बाद अफवाह उड़ी कि सिद्धू ‘आआपा’ की ओर से मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे। उन्होंने अपनी पार्टी भी बनाई। कांग्रेस में भी उन्हें मुख्यमंत्री और फिर उपमुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बताया गया।
परिणाम-अमृतसर पूर्व से जीते और सरकार में कैबिनेट मंत्री बने।
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