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नई दिल्ली में आयोजित विश्व पुस्तक मेले में 9 जनवरी को 'राष्ट्रीय पुस्तक न्यास' और 'मीडिया स्कैन' के तत्वावधान में एक परिचर्चा में शामिल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख श्री जे नंदकुमार, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव श्री अतुल कोठारी, भाजपा के महासचिव श्री मुरलीधर राव और फायनेन्शियल क्रोनिकल के संपादक (नीति) श्री केए बदरीनाथ ने इसका जवाब तलाशने का प्रयास किया।
केरल से यह खबर आती है कि आग से झुलस कर भाजपा के एक नेता की मौत। यह खबर बनती है लेकिन क्या खबर इतनी ही है या इसके पीछे विचारधारा का कोई संघर्ष है? यह सवाल पूछे जाने पर जे. नंद कुमार ने कहा कि संघ का कार्य केरल में 1942 में प्रारंभ हुआ। उस समय से ही मौजूद वामपंथी विचारधारा के लोग संघ पर लगातार हमला करते रहते थे। बिना किसी उकसावे के। उनके साथ सिर्फ वैचारिक मतभिन्नता है। वे अपने से अलग विचार रखने वालों को पूरी तरह खत्म करने का प्रयास करते हैंं। उनकी विचारधारा में दो-तीन शब्द हैं, जिनका वे इस्तेमाल करते हैं। जैसे वर्ग संघर्ष। केरल के संदर्भ में उन्होंने देखा, वर्ग शत्रु, इस रूप में उन्होंने संघ को देखा और उसे खत्म करने के प्रयास करने लगे। श्री नंदकुमार ने बताया कि 1968 से संघर्ष फिर से प्रारंभ हुआ। 1969 में संघ के एक कार्यकर्ता की केरल में हत्या हुई। उस हत्या के पीछे भी वजह सिर्फ मतभिन्नता थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री खुद इस मामले में शामिल थे। सबूतों के अभाव में वे छूट गए। उस समय से अब तक संघ और भाजपा के 262 कार्यकर्ता मारे जा चुके हैं।
श्री नंदकुमार ने यह भी बताया कि भाजपा युवा मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष जयकिशन मास्टर, द्वितीय वर्ष शिक्षित स्वयंसेवक थे। वे माकपा के प्रभाव वाले एक गांव के स्कूल में पढ़ाते थे। उनके शुभचिंतकों ने उनसे कई बार कहा था कि उस स्कूल में नहीं जाओ। जयकिशन कहते थे वहां मैं बच्चों को पढ़ाने जा रहा हूं। मेरे ऊपर कौन हमला करेगा? लेकिन ऐसा हुआ नहीं। भरी कक्षा में बच्चों के सामने ही आठ-दस गुंडों ने उनकी बहुत ही निमर्मता से हत्या कर दी। जयकिशन का खून पूरे क्लास रूम में फैल गया। वह खून बच्चों की किताबों पर और उनके चेहरे पर फैल गया। आज वे बच्चे तीस साल के हो गए हैं, लेकिन उस घटना के सदमे से बाहर नहीं आ पाए हैंं। आज भी वे बच्चे नींद की गोली खाए बिना सो नहीं पाते हैं। उस क्लास में सिर्फ जयकिशन मास्टर की हत्या नहीं हुई, बल्कि मानो क्लास रूम में मौजूद 42 बच्चों की भी हत्या की गई। इस हत्याकांड के बाद केरल के बुद्धिजीवियों ने सवाल उठाया और कहा कि यह नहीं होना चाहिए था। इसके जवाब वामपंथी बुद्धिजीवी एमएन विजयन ने कहा, ''क्लास रूम है तो क्या हुआ, फासिज्म को खत्म करने के लिए इस तरह की कार्रवाई बच्चों के सामने भी हो सकती है।'' वामपंथी ऐसी सोच रखते हैं, जहां विचार और चर्चा के लिए कोई जगह नहीं है। केरल की घटनाओं की चर्चा कोई नहीं करता है। अंत में श्री नंदकुमार ने यह सवाल कक्ष में मौजूद लोगों के लिए छोड़ दिया कि क्या जिस तरह का नरसंहार केरल में हुआ है, उसे सही प्रकार से मीडिया को रिपोर्ट करना चाहिए था या नहीं करना चाहिए था?
परिचर्चा के दौरान पत्रकार उमेश चतुर्वेदी द्वारा तैयार की गई शोध पुस्तिक 'अजमेर ब्लास्ट, मीडिया कवरेज का मायाजाल' का लोकार्पण भी हुआ।
-आशीष कुमार 'अंशु'
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