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आतंकी संगठन आईएसआईएस शिया समुदाय को मजहबद्रोही मानता है। उसका मानना है कि शिया मुसलमान नहीं हैं और उन्होंने सुन्नियों के साथ हमेशा धोखा किया है। इसलिए इस्लामिक स्टेट में उनके लिए कोई जगह नहीं है। उन्हें शिया जहां भी मिलते हैं, वहीं उनकी हत्या कर दी जाती है। विश्व के सबसे कुख्यात आतंकी संगठन से निर्णायक लड़ाई के दौर में उसके अल्पज्ञात पहलू को सामने रखती रिपोर्ट
सतीश पेडणेकर
शिया दुर्गम बाधा है। वे घास में छुपे सांप, धोखे और द्वेष के बिच्छू, शिकार की तलाश में घूमने वाले दुश्मन और जानलेवा जहर हैं। यहां हमें दो स्तरों पर लड़ाई लड़नी होगी। एक आक्रामक दुश्मन और स्पष्ट कुफ्र के खिलाफ खुला युद्ध। दूसरा युद्ध ज्यादा मुश्किल और तीव्र होगा। साजिश करने वाले दुश्मन के साथ जो दोस्त का स्वांग करता है, हां में हां मिलाता है, एकता की बात करता है, जबकि द्वेष भावना को छुपाता है, दिन-रात साजिश करता रहता है।
– जरकावी, संस्थापक, आईएसआईएस (यह बात उसने बिन लादेन को लिखे पत्र में कही थी)
पश्चिमी देशों में हुए विश्लेेषणों के विपरीत आईएसआईएस ने सभी शियाओं के सफाए की अपील करके शिया-सुन्नी विभाजन को बढ़ाया है और वहाबियों से अलग सोच वाले सुन्नियों के खिलाफ तकफिर (अनास्थावादी) का ऐलान कर उन्हें अस्वीकार्य और मौत की सजा का दोषी मानकर इस्लाम में एक गृह युद्ध को जन्म दिया है।
-अहमद रशीद, पाकिस्तानी पत्रकार
आईएसआईएस और उसका कहना है कि केवल अमेरिका पर हमला करने से काम नहीं चलेगा। आपको वास्तव में जरूरत है खासतौर पर शिया और सुन्नियों के बीच गृह युद्ध पैदा करने की। यदि आप शिया और सुन्नियों के बीच गृह युद्ध पैदा कर सके तो आप सुन्नी मुसलमानों को इतना कट्टर बना सकेंगे कि वे आखिर में इस्लामिक स्टेट के लिए एकजुट हो जाएं।
-बर्नार्ड हाईकेल, प्रोफेसर, प्रिंस्टन विश्वविद्यालय
वानियत का दूसरा पर्याय बन चुका है आईएसआईएस। 21वीं शताब्दी में ऐसी जघन्यता और क्रूरता इस विश्व ने शायद ही देखी हो। इस क्रूरता के कारण आईएसआईएस का मूल चरित्र लोगों के सामने कम आया है। बुनियादी तौर पर आईएसआईएस शिया विरोधी सुन्नी क्रांति है। इस संगठन का गंभीरतापूर्वक अध्ययन करने वाले कई लेखकों, पत्रकारों और बुद्धिजीवियों ने इस हकीकत को गहरे रेखांकित किया है। पाकिस्तानी पत्रकार और 'तालिबान','डिस्केंट इन केआस' जैसी पुस्तकों के लेखक अहमद रशीद कहते हैं, ''पश्चिमी देशों में हुए विश्लेेषणों के विपरीत आईएसआईएस ने सभी शियाओं के सफाए की अपील करके शिया-सुन्नी विभाजन को बढ़ाया है और वहाबियों से अलग सोच वाले सुन्नियों के खिलाफ तफकीर (अनास्थावादी) का ऐलान कर उन्हें अस्वीकार्य और मौत की सजा का दोषी मानकर इस्लाम में एक गृह युद्ध को जन्म दिया है।'' प्रिंस्टन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और लेखक बर्नार्ड हाईकेल की टिप्पणी है, ''सलफी जिहादियों की दूसरी धारा है। आईएसआईएस और उसका कहना है कि केवल अमेरिका पर हमला करने से काम नहीं चलेगा। आपको वास्तव में जरूरत है खासतौर पर शिया और सुन्नियों के बीच गृह युद्ध पैदा करने की। यदि आप शिया और सुन्नियों के बीच गृह युद्ध पैदा कर सके तो आप सुन्नी मुसलमानों को इतना कट्टर बना सकेंगे कि वे आखिर में इस्लामिक स्टेट के लिए एकजुट हो जाएं। यही आईएसआईएस चाहता है।'' 'द लूमिंग टावर : अल कायदा एंड रोड टू 9/11' के लेखक लॉरेस राइट की टिप्पणी भी कुछ ऐसी ही है, ''मैनेजमेंट ऑफ सेवेजरी(अल कायदा की क्लासिक)' पुस्तक का लेखक अबु बक्र नाजी ऐसा मानता था कि इस्लाम के अंदर बड़ा गृह युद्ध ही सुन्नी खिलाफत की राह प्रशस्त करेगा।''
पिछले 30-40 वर्ष से इस्लाम में एक अंदरूनी संघर्ष चल रहा है, लेकिन आईएसआईएस के उदय ने उसे एक गृह युद्ध बना दिया है। पहले जिहाद होता था काफिरों के खिलाफ। अब मुसलमानों को काफिर घोषित कर उनके खिलाफ जिहाद किया जा रहा है। वैसे तो सभी इस्लामी संगठन जिहादी हैं, मगर एक अंतर है ओसामा बिन लादेन के अलकायदा और अबू बगदादी के आईएस आईएस में। इस समय आईएसआईएस पश्चिम के खिलाफ युद्ध नहीं छेड़े हुए है। यह उसे अलकायदा से अलग करता है जिसका बुनियादी उद्देश्य पश्चिमी पूंजीवाद को ध्वस्त करना है ताकि अरब विश्व की कमान खुद ब खुद उसके हाथों में आ जाए। अलकायदा दूर के अपने दुश्मन को पहले नष्ट करना चाहता था, ताकि अपने पास के दुश्मन अरब शासकों को आखिर में गिराया जा सके। मगर आईएस का नजरिया अलग है। उसे लगता है कि मध्य-पूर्व को जीतने के लिए राजनीतिक सत्ता और क्षेत्रीय सत्ता आवश्यक है। वह तभी संभव है जब शिया और सुन्नियों के बीच गृह युद्ध पैदा किया जाए, तभी सुन्नी आईएसआईएस के नेतृत्व में एकजुट होंगे। इसके लिए वह तकफिर का तरीका ही अपनाता है। यहां आपको बता दें कि आईएसआईएस के गुर्गों को तकफिरी जिहादी भी कहा जाता है।
आप यदि आईएसआईएस द्वारा प्रकाशित सामग्री को देखें तो यह समझते देर नहीं लगेगी कि वह खुद को जिहादी सलफी कहते हैं, जो अपने आपको सुधारवादी मानते हैं। जिनका मानना है कि गुजरते वक्तके साथ इस्लाम में कई विकृतियां आ गई हैं। वे उन्हें हटाकर इस्लाम को उसके 'शुद्ध' रूप में स्थापित करना चाहते हैं। इसके लिए पहले उनका तर्क था कि शियाओं के साथ-साथ सुन्नियों के सूफियों से मुक्ति पानी होगी। शियाओं से मुक्ति पाने के लिए सलफी जिहादी दुनियाभर में न केवल उनके खिलाफ युद्ध छेड़े ही हुए हैं, वरन् उनका सफाया भी करना चाहते हैं। आईएस आईएस इस बात को मुखर रूप से कहता है। उसके लिए यह सिद्धांत भी है और रणनीति भी। जैसे तालिबान ने अफगानिस्तान में हाजरा और अन्य शिया कबीलों का नरसंहार किया, मगर कभी इसे अपने सिद्धांत के तौर पर पेश नहीं किया। अलकायदा भी सलफी जिहादी संगठन था। वह भी यह मानता था कि शिया मजहबद्रोही हैं। लेकिन वह यह भी मानता था कि शियाओं की मजहबी गलतियों के लिए आम शियाओं को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। अलकायदा ने जरकावी के इराक के अलकायदा का नेता बनने से पहले शियाओं के खिलाफ कभी कुछ नहीं कहा। दूसरी तरफ जरकावी को शियाओं का कत्लेआम करने की छूट भी दी। लेकिन अलकायदा कभी आईएसआईएस की तरह खुलेआम शिया विरोधी नहीं रहा। मगर आईएसआईएस ईरान की शिया क्रांति के बाद अरब देशों में बढ़ते शिया वर्चस्व और सुन्नियों के घटते प्रभाव से बहुत आतंकित है और उसने कट्टर शिया विरोध को अपना ब्रांड बना लिया है, जबकि आबादी के लिहाज से शियाओं का सुन्नियों से कोई मुकाबला ही नहीं है। सुन्नी मुस्लिम जगत में 85 प्रतिशत हैं तो शिया 15 प्रतिशत। आईएसआईएस के संस्थापक जरकावी ने अलकायदा के नेताओं को लिखे पत्रों में साफ कहा है कि वह इसलिए शियाओं का सफाया करना चाहता है क्योंकि तभी सुन्नी जागेंगे और इस्लामिक स्टेट के ईदगिर्द एकजुट होंगे। बगदादी ने उसके सपने को पूरा कर दिखाया। उसने इराक की शिया सरकार द्वारा सुन्नियों के साथ भेदभाव का पूरा-पूरा लाभ उठाया और सुन्नियों की मदद से इस्लामिक स्टेट बनाया, जिसमें शियाओं के लिए कोई जगह नहीं है और इस्लामिक स्टेट ने न केवल इराक के शिया बहुल राज्य को विभाजित कर कमजोर किया, वरन् इस्लामिक स्टेट में सबसे ज्यादा हत्या शियाओं की ही हुई है। उसने किसी शिया को किसी कीमत पर इस्लामिक स्टेट में नहीं बख्शा। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आईएसआईएस इराक की शिया सांप्रदायिक सरकार के खिलाफ सुन्नी सांप्रदायिक क्रांति थी। दरअसल, पिछले कई दशकों से मुस्लिम देशों में शिया और सुन्नियों के बीच गृह युद्ध चल रहा था, मगर आईएसआईएस ने मुखर शिया विरोध के जरिए उसे बहुत तेज कर दिया। आईएसआईएस केवल शियाओं का ही विरोधी नहीं है, बल्कि वह सुन्नियों के सूफियों का भी घोर विरोधी है। उसने सूफियों की कुछ दरगाहें तोड़ी हैं, लेकिन शियाओं की तरह सूफियों का नरसंहार किया हो, ऐसा नजर नहीं आता। वह केवल शियाओं और सूफियों के खिलाफ गृह युद्ध तेज करके संतुष्ट नहीं है। वह सुन्नी मुस्लिम समाज में इस्लामी बनाम गैर-इस्लामी का संघर्ष भी तेज कर रहा है। उसका मानना है कि शरिया एकमात्र इस्लामी या ईश्वरीय व्यवस्था है, बाकी सारी व्यवस्थाएं मानव निर्मित हैं। फिर चाहे लोकतंत्र हो, अधिनायकवाद या राजतंत्र, समाजवाद हो या साम्यवाद या राष्ट्रवाद।
इसलिए उसने सऊदी अरब के खिलाफ भी संघर्ष करने की घोषणा की है और तुर्की के खिलाफ भी। वह दुनिया के सारे मुस्लिम देशों के शासकों के खिलाफ है। इस तरह वह इस्लाम को एकजुट करने के बजाए उसमें कई दरारें पैदा कर रहा है। लेकिन आईएसआईएस का तर्क अलग है कि वह तो इस्लाम को 'शुद्ध' रूप में स्थापित करना चाहता है, केवल विकृतियों को खत्म करना चाहता है। दूसरी तरफ आईएसआईएस के विरोधी मानते हैं कि इससे मुस्लिमों को तो नुकसान ही पहुंचेगा। बात कुछ हद तक सही है। अलकायदा और आईएसआईएस में एक बहुत बड़ा फर्क रणनीति को लेकर भी है। अलकायदा पहले दूर के अमेरिका जैसे दुश्मनों को खत्म करना चाहता है, ताकि पास के अमेरिका संचालित देश अपने आप ही उसका वर्चस्व स्वीकार कर लें। लेकिन आईएसआईएस की रणनीति उलटी है। वह पहले पास के दुश्मन से लड़ना चाहता है और अपने लिए एक भूभाग चाहता है। कुछ आतंकवादी अमेरिका और पश्चिमी देशों के खिलाफ कुछ जिहादी गतिविधियां कर रहे होंगे, मगर आईएसआईएस का अमेरिका और पश्चिम के खिलाफ लड़ने का कोई इरादा नहीं है। उसे दूर के दुमश्न के बजाए पास के दुश्मन, शिया और सूफियों से लड़ना महत्वपूर्ण लगता है। इसलिए वह अमेरिका और पश्चिमी देशों के वजूद के लिए कोई खतरा नहीं है। उससे खतरा तो इस्लाम या मुस्लिम समाज को है।
इस्लाम में चल रहे विश्वव्यापी गृह युद्ध के पीछे बहुत हद तक तकफीर यानी बहिष्कार की अवधारणा काम कर रही है। इसके तहत एक मुसलमान दूसरे मुसलमान को मजहबद्रोही कहकर गैर मुस्लिम करार दे सकता है। आईएसआईएस की विचारधारा के मुताबिक हर वह मुस्लिम मजहबद्रोही है, जो इस्लाम में संशोधन करता है। कुरान या मोहम्मद के कथनों को नकारना पूरी तरह से मजहबद्रोह माना जाता है। इस्लाम में ऐसे समूहों की लंबी परंपरा रही है जो लोगों को बर्ताव के आधार पर यानी, धूम्रपान करना, शराब पीना, सूअर का मांस खाना, गैर-मुस्लिम को मित्र बनाने और उसे संरक्षण देने आदि के आधार पर मुस्लिमों को काफिर या गैर-मुस्लिम घोषित करते हैं। खराजी इस पर अमल करते थे। वहाबी संप्रदाय के संस्थापक मोहम्मद इब्न वहाब, इब्ने तैमियाह की शिक्षा को मानने वाले कुछ सलफी, मुस्लिम ब्रदरहुड के दार्शनिक सईद कुत्ब और आईएसआईएस के संस्थापक अबु मुसाब अल जरकावी इसका पालन करते थे। शिया ईरान भी तकफिर पर अमल करता रहा है। अयातुल्लाह खुमैनी ने सलमान रुशदी को काफिर घोषित किया था। तकफिर का खेल सबसे ज्यादा पाकिस्तान में खेला गया। पहले शिया और सुन्नियों ने मिलकर अहमदियाओं को कानूनन गैर-मुस्लिम घोषित किया। इसके बाद सुन्नी संगठनों ने शियाओं को गैर-मुस्लिम करार देने के लिए आंदोलन शुरू कर दिया। पाकिस्तान में कई हजार शियाओं की हत्या हुई। यह तथ्य इस बात को दर्शाता है कि सुन्नियों का एक बड़ा तबका तफकीरियों की तर्ज पर शियाओं को गैर-मुसलमान मानता है। वह शियाओं के अंतरराष्ट्रीरय स्तर पर बढ़ते वर्चस्व को बर्दाश्त नहीं कर पा रहा। कई आतंकवादी संगठन तकफिरी हैं। अलजीरिया में जीआईए अलकायदा नेटवर्क का हिस्सा था। वह भी तकफिर पर अमल करता था। और वह भी आईएसआईएस की तरह जुल्म करता था। लश्कर ए झांगवी पाकिस्तान के उन सबसे हिंसक सुन्नी चरमपंथी समूहों में से एक है, जिसका नाम ज्यादातर शिया विरोधी हमलों में सामने आता है। यह अलकायदा का सहयोगी संगठन है।
लेकिन इराकी मूल का अबु मुसाब अल जरकावी इस सदी में तफकीरियों का सबसे बड़ा मसीहा था। अक्तूबर, 2004 में जरकावी ने अलकायदा के सरगना ओसामा बिन लादेन के प्रति अपनी वफादारी जाहिर की और उसका संगठन जेटीजे अलकायदा इन इराक के नाम से जाना जाने लगा और उसने इराक में चल रहे गृह युद्ध में, सुन्नियों से किए जा रहे भेदभाव के नाम पर विभिन्न चरमपंथी सुन्नी गिरोहों के साथ मिलकर, अमेरिका के खिलाफ मुहिम चलाई। जरकावी ने अलकायदा नेतृत्व के सामने इराक में गृह युद्ध कराने के मकसद से इस देश के शिया समुदाय को निशाना बनाने की रणनीति पेश की। 2004 में जरकावी ने अलकायदा नेतृत्व को शियाओं पर मजहबी और राजनीतिक नजरिए से हमले करने वाले पत्र लिखे, जो अमेरिका के हाथ पड़ गए। इन पत्रों में जरकावी ने शियाओं के सफाए के लिए जो दलील दी थी, वही आज भी आईएसआईएस की मुख्य दलील है। शियाओं के बारे में जरकावी ने इब्न तमैया समेत कई सुन्नी मौलवियों के उद्धरण देते हुए कहा कि शिया गैर-इस्लामी हैं। वे इस्लामी इतिहास में हमेशा दोहरा खेल खेलते रहे हैं। उसने इस सिलसिले में सफविद राजवंश का उदाहरण दिया। यह राजवंश 16वीं -17वीं सदी में शिया बना। उसने इस्लाम और मुस्लिमों की पीठ में छुरा घोंपा। जरकावी ने कहा कि मौजूदा संदर्भ में शियाओं की धोखाधड़ी की आदत मध्य-पूर्व में 'सुपर स्टेट' बनाने की इच्छा के रूप में सामने आई है। उनकी ईरान से इराक, सीरिया और लेबनॉन तक फारस की खाड़ी में अलग राज्य बनाने की महत्वाकंक्षा बढ़ती ही जा रही है।
जब उसने यह पत्र लिखा था तब इराक में अमेरिका का राज चल रहा था। तब भी जरकावी ने शियाओं को बड़ा खतरा माना। उसका कहना था कि क्रूसेडर ताकतें (ईसाई ताकतें) तो कल या परसों आंखों से ओझल हो जाएंगी मगर शिया सुन्नियों के खतरनाक दुश्मन बने रहेंगे। शियाओं का खतरा ज्यादा बड़ा है, उनके द्वारा किया गया नुकसान अमेरिका द्वारा किए नुकसान से ज्यादा खतरनाक होगा। जरकावी के मुताबिक शियाओं की ऐतिहासिक नफरत को सद्भावना से नहीं जीता जा सकता। जरकावी का विश्वास था कि शिया सत्ता हथियाने के लिए खुद आगे होकर अमेरिकियों की मदद करेंगे। अपने पत्र में उसने इराक में गृह युद्ध भड़काने और सुन्नियों को जिहाद के लिए संगठित करने के लिए शियाओं पर हमले की वकालत की थी। जरकावी का कहना था कि शियाओं को राजनीतिक, मजहबी और सैनिक तौर पर गहरे तक चोट पहुंचाने पर उनके सीने में सुलग रहे घाव बाहर आएंगे। यदि हम उन्हें सांप्रदायिक युद्ध में खींचने में कामयाब हो गए तो लापरवाह सुन्नियों को जगाना संभव होगा, क्योंकि तब वे शियाओं के हाथों मारे जाने के आसन्न खतरे को समझ पाएंगे।
जरकावी ने अपनी इस रणनीति पर इराक में पूरी तरह से अमल भी किया। अलकायदा का दूसरा सर्वोच्च नेता अल अयमान जवाहिरी उसे शियाओं को निशाना बनाने के खिलाफ समझाता रहा। जवाहिरी की दलील होती थी कि आम शिया मजहबद्रोही नहीं होता इसलिए उससे क्यों लड़ा जाए? शियाओं ने अज्ञानतावश मजहबी गलतियां की हैं।
जरकावी को इराकी अलकायदा का नेता माना जाता था। यही संगठन बाद में आईएसआईएस बना। अपनी मौत से पहले जरकावी ने वहाबी पंथ के संस्थापक मोहम्मद इब्न अब्द अल वहाब के एक बयान को उद्धृत किया था, जिसमें उसने अपने अनुयायियों से इराक के शियाओं की हत्या की अपील की थी और उन्हें सांप कहा था। अलकायदा से जुड़ी एक वेबसाइट में इराक के शियाओं के खिलाफ पूर्ण युद्ध की अपील की गई थी। इसके जवाब में शिया उलेमाओं ने आत्मघाती हमलों को हराम करार दिया। इराक में लंबे समय तक दोनों समुदायों में युद्ध चला और उसमें बड़े पैमाने पर लोग मारे गए। इस कारण लोग इसे इराक का गृह युद्ध भी कहते हैं। कई अनुमानों के मुताबिक शिया मिलिशिया संगठनों और सेना ने मिलकर लगभग एक लाख सुन्नियों की हत्या की तो सुन्नी आतंकवादियों ने लगभग डेढ़ लाख शिया नागरिकों की।
आज बगदादी ने इस्लामिक स्टेट बनाया है, मगर उसकी कल्पना जरकावी ने की थी और उसे अलकायदा नेतृत्व के सामने उठाया था।
खलीफा अबू बगदादी ने जरकावी के सपने को ही आगे बढ़ाया है। खलीफा बनने के बाद उसने घोषणा की कि नई खिलाफत में शिया मुसलमानों और गैर-मुसलमानों के लिए कोई स्थान नहीं होगा और इराक स्थित शियाओं के सभी मजहबी स्थानों का नामोनिशान मिटा दिया जाएगा। जरकावी ने अलकायदा के नेताओं को लिखे पत्रों में साफ कहा है कि वह इसलिए शियाओं का सफाया करना चाहता है, क्योंकि तभी सुन्नी जागेंगे और इस्लामिक स्टेट के ईदगिर्द एकजुट होंगे। बगदादी ने उसके सपने को पूरा कर दिखाया। उसने इराक की शिया सरकार द्वारा सुन्नियों के साथ किए गए भेदभाव का पूरा-पूरा लाभ उठाया और सुन्नियों की मदद से इस्लामिक स्टेट बनाया। इस्लामिक स्टेट ने न केवल इराक के शिया बहुल राज्य को विभाजित कर कमजोर किया, वरन् इस्लामिक स्टेट में सबसे ज्यादा हत्या शियाओं की ही हुई है।
अभी आईएसआईएस चारों तरफ से घिरा हुआ है। अमेरिका के नेतृत्व में 60 देश उसके खिलाफ युद्ध छेड़े हुए हैं। आईएसआईएस के सरगना बगदादी को जहर दिए जाने के कारण वह इलाज करा रहा है। मगर इस बार मोहर्रम के आसपास आईएसआईएस शियाओं पर हमले करना नहीं भूला। मोहर्रम के समय काबुल में शिया मस्जिद पर हुए आईएसआईएस के हमले में 14 लोग मारे गए। इसके बाद इराक में शियाओं पर हुए हमले में 44 लोग मारे गए। वह विदेशों में भी शियाओं को निशाना बना रहा है। यमन में पिछले साल 20 मार्च को आईएसआईएस ने दो शिया मस्जिदों पर हमले कराए, जिनमें 153 शिया मारे गए और 260 घायल हुए। सऊदी अरब में एक शिया मस्जिद पर हमला कर 20 शियाओं की हत्या कर दी गई। अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में पिछले दिनों हुए आत्मघाती हमले में कम से कम 80 लोगों की मौत हो गई। धमाके जिस जगह पर हुए वहां हजारा शिया समुदाय के हजारों लोग प्रदर्शन कर रहे थे। यह हमला अफगानिस्तान के आईएसआईएस ने करवाया था। इससे पहले भी आईएसआईएस सात हाजराओं की हत्या कर चुका है। इराक में तो वह अक्सर हमले करके शियाओं को मौत के घाट उतारता रहता है। अपने प्रकाशनों में आईएसआईएस खुलकर जहर उगलता है। अपने मुखपत्र 'दबिक' के 13 वें अंक में उसने किसी भी और दुश्मन की तुलना में शियाओं की हत्या का औचित्य सिद्ध करने पर ज्यादा बल दिया है। उसमें इस मुद्दे पर बल दिया गया है कि शियाओं को मुस्लिम मानने के बजाय मजहबद्रोही मानना चाहिए। उनमें से सभी की हत्या की जा सकती है। आईएसआईएस कुछ सुन्नियों की इस बात से सहमत नहीं है कि आम शिया मुस्लिम हैं इसलिए उनकी हत्या नहीं की जानी चाहिए।
दबिक के 13 वें अंक में आईएसआईएस ने साफ-साफ कहा है कि वह मध्य-पूर्व से शिया आबादी के सफाए की कोशिश करेगा। पत्रिका में आगे कहा गया है कि शिया इस्लाम से उसी तरह से नफरत करते हैं जैसे यहूदी ईसाइयत से नफरत करते थे। वे इस्लाम में अल्लाह के लिए नहीं आए हैं, वरन् उसको नुकसान पहंुचाने के लिए आए हैं। यहूदी और शिया एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। पत्रिका का दावा है हालांकि अमेरिका भी प्रमुख दुश्मनों में से है, मगर शिया अमेरिकियों से ज्यादा खतरनाक और हत्यारे हैं। यह सब कहते हुए 'दबिक' जरकावी को बार-बार उद्धृत करना नहीं भूला। बिन लादेन को लिखे पत्र में जरकावी ने कहा था, ''शिया दुर्गम बाधा है। वे घास में छुपे सांप, धोखे और द्वेष के बिच्छू, शिकार की तलाश में घूमने वाले दुश्मन और जानलेवा जहर हैं। यहां हमें दो स्तरों पर लड़ाई लड़नी होगी। एक आक्रामक दुश्मन और स्पष्ट कुफ्र के खिलाफ खुला युद्ध। दूसरा युद्ध ज्यादा मुश्किल और तीव्र होगा। साजिश करने वाले दुश्मन के साथ जो दोस्त का स्वांग करता है, हां में हां मिलाता है, एकता की बात करता है, जबकि द्वेष भावना को छुपाता है, दिन-रात साजिश करता रहता है।''
दूसरी जगह जरकावी कहता है कि हर युग में और सारे इतिहास में शिया गद्दारों की पार्टी रहे हैं। यह वह संप्रदाय है जिसका सुन्नियों से युद्ध चलता रहता है। उसके इस बयान पर काफी बवाल हुआ था। सऊदी अरब के मजहबी नेताओं ने इसे मुस्लिमों में विभाजन कराने की अपील बताया था।
दरअसल, आईएसआईएस और सुन्नी संगठनों के अंध शिया विरोध का असर शियाओं पर नजर आने लगा है। शिया सरकारंे सुन्नियों के खिलाफ तलवारंे भांजने का कोई मौका नहीं चूकतीं। ईरान ने पिछले दिनों 20 सुन्नी आतंकियों को सजाए मौत दी है। इराक के पूर्व प्रधानमंत्री नूरी अल मलिकी ने जो बयान दिया था वह इस्लाम के अंदर औपचारिक विभाजन का संकेत है। उन्होंने कहा था कि मुस्लिम विश्व को कर्बला की तरफ मुंह करके नमाज पढ़नी चाहिए जहां इमाम हुसैन को दफनाया गया था। कुछ दिन पहले ही शिया ईरान और सुन्नी सऊदी अरब में ईरानी हाजियों के मारे जाने पर विवाद हुआ। सऊदी अरब ने ईरान के आरोप को नकारते हुए उसे अग्निपूजक या काफिर करार दिया। अग्निपूजक काफिर इसलिए है क्योंकि वह अल्लाह के अलावा और किसी की पूजा करता है। इस तरह सऊदी अरब सारे ईरान को ही काफिर मानता है। इसे शिया और सुन्नियों की दरार और चौड़ी हो गई है।
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