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अमृतलाल वेगड़ जी नर्मदा के विशेषज्ञ हैं और सच्चे विशेषज्ञ की तरह वह पूरी विनम्रता से लिखते हैं। कोई वादक बजाने से पहले देर तक अपने साज का सुर मिलाता है, उसी प्रकार इस जन्म में तो हम नर्मदा परिक्रमा का सुर ही मिलाते रहे। परिक्रमा तो अगले जन्म में करेंगे। परिक्रमा नहीं की है, ऐसा कहने वाले वेगड़ इस किताब में लिखते हैं,''नर्मदा और उसकी सहायक नदियों के तटों पर 4 हजार किलोमीटर से भी ज्यादा पैदल चल चुका हूं। तीन पुस्तकें और यात्रा-वृत्तांत पहले ही दे चुका हूं। विगत चालीस सालों से मैं एक ही काम कर रहा हूं, फिर भी नर्मदा राशि-राशि सौंदर्य में से अंजुरीभर सौंदर्य ही ला सका हूं।़…नर्मदा के सौंदर्य की झलक पाने के लिए मैंने नर्मदा की पूरी परिक्रमा की। .़.़यहां तक कि खतरनाक शूलपाण झाड़ी में से भी गया जहां आज तक शायद ही कोई चित्रकार-लेखक गया हो।
हर इंसान को, सिर्फ भारतीय को ही नहीं,
हर इंसान को नर्मदा की परिक्रमा कर लेनी चाहिए, ऐसा भाव वेगड़ की नर्मदा पर लिखी गयी पुस्तकें पढ़कर आ सकता है। नर्मदा के प्रति जैसा आग्रह वेगड़ की किताबें विकसित करती हैं वैसा आग्रह मध्य प्रदेश पर्यटन निगम के इश्तिहार ना कर पाते, इसकी वजह है कि वेगड़ के लिए नर्मदा पर्याटन की जगह नहीं है। वेगड़ ने नर्मदा को जिया है, नर्मदा में समाहित हुए हैं। नर्मदा को समाहित किया है। उनकी हाल की किताब 'नर्मदा तुम कितनी सुंदर हो' मूलत नर्मदा केंद्रित चित्रों की किताब है। वे जब लिखते हैं, तो भी वह चित्र ही रच रहे होते हैं और जब वह चित्र रचते हैं, तो भी वह एकदम स्पष्ट लिख रहे होते हैं।
नर्मदा तुम कितनी सुंदर हो, पुस्तक तीन भाषाओं में हैं-एक अंग्रेजी, दूसरी हिंदी और तीसरी रेखाचित्रों की भाषा, जिसे ग्लोबल कहा जा सकता है। लोकल से ग्लोबल रचा जाता है। लोकल पर केंद्रित होकर ग्लोबल काम हो जाता है। वेगड़ की यह किताब बताती है कि नदी सिर्फ पानी का भंडार नहीं होती, सभ्यता होती है। बहुआयामी संस्कृतियों का समुच्चय होती है। नर्मदा के रेखाचित्र वस्तुत: संस्कृतियों और समाजों के रेखाचित्र हैं। यात्रा की शुरुआत अमरकंटक के नर्मदा कुंड से होती है। किताब के चित्र नर्मदा के किनारे नगाड़ा बजाते नगाड़ावादकों का उल्लास समेटते हैं और उदास लड़की को भी। रात में घाट कैसे दिखते हैं, यह झलक भी वेगड़ दिखाते हैं। नर्मदा के किनारे विश्राम, स्नान सब कुछ नर्मदा यात्रा में चलता रहता है। वानरलीला, दही मथती नारी, एक शांत पहाड़ी गांव,परकम्मावासी, अखंड कीर्तन, त्यौहार की भीड़, धान कूटती नारी, घाट पर नाई, ग्रामीण गायक, अलाव, सन्यासी, पनिहारिन, बरमानघाट, केश धोती नारी, मोर आदि के चित्रण से होती हुई यात्रा खंभात की खाड़ी पर खत्म होती है।
नदी की परिक्रमा के बहाने वे पुस्तक में जीवन की परिक्रमा कराते हैं। नदी की परिक्रमा के गहरे अर्थ हैं। दरअसल किसी नदी की परिक्रमा जीवन ही परिक्रमा है। बहुत कुछ ऐसा है जिसका संबंध नदी से है, जल से है। नदी की परिक्रमा करते हैं हम तो जीवन की भी परिक्रमा भी कर लेते हैं। जीवन के बहुआयामी होने को देख लेते हैं और देख लेते हैं कि सातत्य के बाद एक ठिकाना ऐसा भी आता है जब नर्मदा को खंभात की खाड़ी में चले जाना है। नर्मदा की पहचान खाड़ी में विलीन हो जानी है। गहरे आध्यात्मिक अर्थ हैं इसके। सारी उछलकूद, उठापटक, जीवन-कारोबार, वानरलीला, भजन-कीर्तन के बाद अंतत विलीन होना है। सारी यात्रा विलीन होने के लिए है। नदियां इस अर्थ में एक गहरा आध्यात्मिक संदेश देती हैं। इसलिए भारत में नदियों का ताल्लुक इस लोक से लेकर उस लोक तक होता है।
और यह संबंध बतानेवाले अमृतलाल वेगड़ जैसे सिद्धहस्त कथाकार हों, जो शब्दों से कथा कहते हों और कथाओं में चित्र रचते हों, तो नर्मदा सिर्फ नदी नहीं रहती, एक चेतना बनकर छा जाती है। उनकी नर्मदा-चेतना इस किताब से माध्यम से हम सब तक बहुत ही अच्छी तरह पहुंचती है। हर पढ़े-लिखे के घर में यह नर्मदा-चेतना पहुंचनी चाहिए। आलोक पुराणिक
पुस्तक का नाम : नर्मदा तुम कितनी सुंदर हो
लेखक : अमृतलाल वेगड़
मूल्य : 800 रु.
प्रकाशक : अमृतलाल वेगड़
1836 राईट टाऊन, जबलपुर-2
मध्य प्रदेश
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