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बिहार में फिरौती, हत्या, जबरन वसूली, डकैती जैसी कई थर्राने वाली घटनाओें के बावजूद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार निश्चय यात्रा के दौरान दावा कर रहे हैं कि राज्य में अपराध में भारी कमी आई है। अपराधियों का दुस्साहस इतना बढ़ चुका है कि वे जेल में रहकर भी किसी की हत्या करवा रहे हैं
अवधेश कुमार
हार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इन दिनों अलग-अलग चरणों में प्रदेश में निश्चयों यात्रा पर हैं। निश्चय यात्रा का अर्थ है चुनाव के पूर्व उन्होंने जो सात निश्चय की घोषणा की थी उस संदर्भ में अब तक उनकी नजर में हुई प्रगति को जनता के बीच रखना। चंपारण और मिथिलांचल की उनकी यात्रा समाप्त हो गई है। इस यात्राा में चेतना सभाएं होती हैं जिनमें वे दावा कर रहे हैं कि खोखले वायदों से परे उन्होंने जो सात निश्चय किए थे, उस दिशा में काम कर रहे हैं। उन्होंने बेतिया से इस यात्रा की शुरुआत की और वहां कहा कि उनकी महागठबंधन सरकार ने अपनी एक साल पूरा होने के पूर्व ही प्रदेश में शराबबंदी को लागू करने के साथ हर घर में बिजली, नल का पानी, शौचालय का निर्माण तथा हर गली में पक्की सड़क और नली के निर्माण के अपने सात निश्चयों पर काम करना शुरू कर दिया है। इसके साथ ही वे दो दावे और कर रहे हैं। बिहार में शराबबंदी लागू होने के बाद से अपराध, खासकर जघन्य अपराधों में कमी आई है तथा रसगुल्ला जैसी मिठाई एवं दूध, खोया आदि की बिक्री बढ़ी है। नीतीश ने कहा कि पिछले वर्ष 2015 के 1 अप्रैल से 31 अक्तूबर की तुलना में 2016 में इस अवधि के दौरान हत्या के मामलों में 36 प्रतिशत की कमी आई है। इसी तरह से डकैती में 25 प्रतिशत, दंगों के मामले में 40 प्रतिशत, फिरौती के लिए अपहरण के मामले में 56 प्रतिशत और सड़क दुर्घटना के मामलों में 21 प्रतिशत की कमी आई है।
आंकड़ों में हम मुख्यमंत्री के दावों का खंडन नहीं कर सकते। हम भी पुलिस मुख्यालय से अपराध के आंकड़े मांगेंगे तो यही मिलेगा। लेकिन क्या इससे यह मान लिया जाए कि बिहार में कानून-व्यवस्था की स्थिति ठीक है, लोग सुकून से जी रहे हैं, अब किसी को किसी समय अपने ऊपर हिंसा की कोई आशंका नहीं है? लेकिन ऐसा दावा वही कर सकता है जिसने सच को झूठ बनाने का विशेष प्रशिक्षण लिया हो। वस्तु स्थ्िति यह है कि बिहार के आम लोग एक साथ अपराधियों, माफिया और माओवादियों या उनके नाम पर वसूली करने वालों के भय के साये में जी रहे हैं। सीवान के पत्रकार राजदेव की हत्या का मामला अभी सुलझा नहीं है। सीबीआई उसकी जांच कर रही है। इसी बीच 12 नवंबर को सुबह सासाराम में बाइक सवार अपराधियों ने दैनिक भास्कर के पत्रकार धर्मेन्द्र सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी। घटना मुफस्सिल थाना के अमरा तालाब की है। सुबह वे अपने घर के पास ही चाय की दुकान में चाय पी रहे थे, तभी एक बाइक पर सवार तीन अपराधी वहां पहुंचे और दनादन उनके सीने में गोलियां मारकर चलते बने। बिहार की स्वास्थ्य सेवा की हालत देखिए कि सासाराम के सदर अस्पताल में उनके इलाज की कोई व्यवस्था नहीं थी। वैसी हालत में उन्हें वाराणसी ले जाने का कहा गया। गोलियों से घायल व्यक्ति सासाराम से वाराणसी तक कहां जीवित रह सकता है। लिहाजा उनकी मौत हो गई।
इस तरह दिनदहाड़े एक पत्रकार की हत्या हुई और मुख्यमंत्री दावा कर रहे हैं कि जघन्य अपराध घट रहे हैं। गोली से घायल व्यक्ति के इलाज की व्यवस्था नहीं है और नीतीश का दावा है कि सात निश्चयों के संदर्भ में उनकी सरकार तेजी से काम कर रही है। क्या स्वास्थ्य सेवाओं का परिष्करण और सशक्तीकरण सरकार के निश्चय में नहीं होना चाहिए? बिहार में जिस ढंग से चारों ओर गोलियां चल रही हैं उनमें इस तरह से घायल मरीज के इलाज की व्यवस्था तो कम से कम जिला सदर अस्पतालों में होनी ही चाहिए पर राज्य के किसी जिला सदर अस्पताल में इसकी व्यवस्था नहीं है और न करने की कोशिश है। जब यह निश्चय में ही नहीं तो हैं फिर होगा कहां से? और सबसे बढ़कर उस निश्चय में अपराध पर लगाम तो है ही नहीं। शराबबंदी एक सही कदम है और हर कोई उसकी सफलता की कामना करेगा, लेकिन इस एक कदम से बिहार की दूसरी दुश्वारियां खासकर गली-गली में अपराध से पैदा भय के माहौल को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता।
हालांकि मामला एक बड़े अखबार के पत्रकार का था। इसलिए सरकार ने आनन-फानन में विशेष जांच दल का गठन कर दिया। इस मामले में पुलिस ने दो लोगों को गिरफ्तार कर लिया है। इस पर भी गहराई से विचार करिए। गिरफ्तार हुए आरोपी की पहचान राधिका रमन राय और मनीष सिंह के रूप में हुई है। राय रोहतास जिले का रहने वाला है, जबकि मनीष उत्तर प्रदेश के वाराणसी का। दोनों कई मामलों में वांछित हैं। वांछित होने के बावजूद यदि वे इस तरह का अपराध कर डालते हैं तो इसे क्या कहेंगे? क्या यह कानून के राज के भय का प्रमाण है? उधर यह तथ्य सामने आया है कि पत्रकार धर्मेन्द्र और पप्पू सिंह नाम के एक व्यक्ति के बीच किसी मामले को लेकर रंजिश थी जिस वजह से यह हत्या की गई। ध्यान दीजिए, पप्पू जिले के मुफस्सिल पुलिस थाना क्षेत्र के डुमरिया गांव का रहने वाला है और इस समय जेल में बंद है। कोई जेल में बंद व्यक्ति बाहर वांछित अपराधियों से इस तरह एक पत्रकार की हत्या को अंजाम देने में सफल हो रहा है और मुख्यमंत्री कहें कि कानून और व्यवस्था की स्थिति सुधरी है तो आप उस पर क्या प्रतिक्रिया देंगे? हो सकता है इन दोनों के अलावा शेष चार नामजद अपराधी भी पकड़े जाएं, किंतु कुल मिलाकर यह अपराधरहित प्रदेश का प्रमाण तो नहीं हो सकता। पता नहीं, कौन, कहां जेल में बैठा हुआ भी अनेक प्रकार के अपराधों को अंजाम दे रहा हो और उसकी सूचना तक पुलिस के पास न पहुंचती हो।
कुछ अन्य घटनाओं का विश्लेषण करें तो बिहार की स्थिति ज्यादा साफ हो जाएगी। धर्मेन्द्र की हत्या के अगले दिन यानी 13 नवंबर को बेगूसराय जिले के बेगमपुर गांव स्थित एक आरा मिल के समीप सुबह अपराधियों ने एक दैनिक समाचार पत्र के हॉकर की गोली मारकर हत्या कर दी। हॉकर सिकंदर सिंह (42) छतौना गांव के निवासी थे। इसके बाद 15 नवंबर को बांका जिले की कामतपुर पंचायत के मुखिया उपेंद्र मंडल (60) की देर रात गोली मारकर हत्या कर दी गई। पुलिस के अनुसार, उपेंद्र मंडल कुंथु गांव से देर रात अपने भाई शषिभूषण मंडल के साथ वापस गांव लौट रहे थे। घोसपुर गांव के पास पहले से घात लगाए अपराधियों ने उन पर ताबड़तोड़ गोलीबारी कर दी। गोली लगने से घटनास्थल पर ही उपेंद्र की मौत हो गई। इसके एक दिन पूर्व दरभंगा जिले की केवटगामा पंचायत के मुखिया और कांग्रेस के कुशेश्वरस्थान पूर्वी प्रखंड के अध्यक्ष रामचंद्र यादव की अपराधियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसके चार दिन पूर्व यानी 11 नवंबर को मुंगेर में अपराधियों ने एक दर्दनाक घटना को अंजाम दिया। मुंगेर जिले के सफियासराय सहायक थाना क्षेत्र में गोशाला में देर रात सो रहे एक पिता और उसके पुत्र को एक साथ गोली मार दी गई। हेरू दियारा गांव के निवासी देवेंद्र यादव (55) अपने पुत्र छोटू यादव (22) के साथ डकरा नाला स्थित अपनी गोशाला में सोए हुए थे। इस दौरान दोनों को गोली मार दी गई। देवेन्द्र यादव की मौके पर मौत हो गई और छोटू मरनासन्न अवस्था मंें अस्पताल में है। ध्यान रखिए, जिस दिन यह घटना हुई उसी दिन नीतीश की निश्चय यात्रा आरंभ हुई थी जिसमें उन्होंने उपरोक्त दावे किए।
यह तो हुई हत्या की बात। इस बीच न जाने रास्ते में लूट और डकैती के कितने मामले हुए, उनमें से ज्यादातर तो पुलिस के खाते में दर्ज ही नहीं हैं। 4 नवंबर को नवादा जिले के सिरदला थाना क्षेत्र में देर रात हथियारबंद नक्सलियों ने खरौंद रेलवे स्टेशन के पास प्लेटफर्म और ब्रिज निर्माण करा रही कंपनी सज्जन कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड के आधार शिविर पर ने हमला कर चार वाहनों को फूंक दिया। पुलिस इस हमले के पीछे लेवी (जबरन पैसा वसूली) की आशंका जता रही है।
यह घटना एक उदाहरण मात्र है कि माओवादी कैसे बिहार में वसूली और हमला कर रहे हैं। आप उनको मुंहमांग रकम दीजिए नहीं तो आपका काम करना असंभव है। इसी तरह आपको क्षति पहुंचाई जाएगी और फिर भी न माने तो हत्या तक को अंजाम दिया जाएगा। वहां काम करने वाली कंपनियां, ठेकेदार, व्यापारी और यहां तक कि संपन्न किसान भी इन तथाकथित माओवादियों के साथ समझौता कर चुके हैं। उनके फोन और चिट्ठियां लेवी के लिए आती हैं और लोग जाकर देते हैं। उनके सामने पुलिस भी अपनी लाचारी जताती है। यह बिहार में आम स्थिति है। आप किसी से पूछ लीजिए वह यह कहेगा कि हां, ऐसा होता है।
लेेकिन पुलिस के रिकॉर्ड एवं नीतीश कुमार के संज्ञान में तथाकथित माओवादियों का अपराध है ही नहीं। इसे आप क्या कहेंगे? मुख्यमंत्री से हमारा निवेदन है कि उनको अगर निश्चय करना है तो अपराध मुक्ति का करें, माओवाद का और उनके नाम पर जबरन लेवी लेने वालों के अंत का करें। यात्रा इनके लिए निकालें तथा पुलिस प्रशासन को अभियान में झोंके। लेकिन शायद वे ऐसा चाह कर भी नहीं कर पाएंगे। लोगों का मानना है कि सरकार में ही ऐसे लोग बैठे हैं, जो अपराधियों और माओवादियों को शह दे रहे हैं। ऐसे लोग कभी यह नहीं चाहेंगे कि उनके पाले गए लोगों का बाल भी बांका हो। नीतीश कुमार की यही मजबूरी बिहार में अपराध को बढ़ाने में सहायक हो रही है। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
अपराध कम होने का मुख्यमंत्री का दावा हास्यास्पद है। शराबबंदी के पहले महीने अप्रैल से लेकर अगस्त तक सभी तरह के अपराधों में 25 से लेकर 200 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है। अपहरण की घटनाओं में 200 प्रतिशत, रोड डकैती में 92 प्रतिशत, दुष्कर्म में 79 प्रतिशत, चोरी और दंगा की घटनाओं में 26-26 प्रतिशत और हत्या में 19 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसी का परिणाम है कि एक साल के अंदर बिहार में चार पत्रकारों की हत्या हो गई है।
-सुशील कुमार मोदी, पूर्व उप मुख्यमंत्री, बिहार
बिहार में कानून-व्यवस्था की स्थिति निरंतर गिरती जा रही है। छह महीने में दो पत्रकारों की हत्या से लोग दहशत में हैं।
-सत्य नारायण सिंह, सचिव, भाकपा, बिहार
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