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जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय को वामपंथियों का गढ़ माना जाता है। लोग बड़े अरमान के साथ अपने बच्चों को यहां पढ़ने भेजते हैं। लेकिन वामपंथी उन बच्चों को अपने जाल में फंसाकर उन्हें बर्बाद कर रहे हैं। लोग कह रहे हैं कि गायब नजीब भी वामपंथियों के चक्कर में फंस गया है
आशीष कुमार 'अंशु'
एक नवंबर की शाम मैं जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के प्रशासनिक खंड में उन छात्रों से मिलने गया था, जो नजीब के लिए लगातार धरने पर बैठे थे। नजीब जेएनयू का छात्र है जिसने हाल में ही विश्वविद्यालय में दाखिला लिया है। वह माही मांडवी छात्रावास के कमरा नंबर 106 में रहता था, जहां से उसे कमरा खाली करने का नोटिस दे दिया गया था। 14 अक्तूबर की रात उसने एक छात्र की पिटाई सिर्फ इसलिए कर दी क्योंकि उसके हाथ में कलावा बंधा हुआ था, जबकि उसके आस-पास कई ऐसे मुस्लिम चेहरे थे, जो इस्लामिक कायदे से दाढ़ी बढ़ा रहे हैं और जालीदार टोपी पहन कर पूरे जेएनयू परिसर में घूमते हैं, उनसे नजीब को कभी परेशानी नहीं हुई। बहरहाल, बात करते हैं, नजीब के लिए न्याय की लड़ाई लड़ रहे वामपंथी छात्र और प्रोफेसर की। एक नवंबर की शाम धरना स्थल पर बिखरी हुईं तख्तियां और बिस्तर तो थे, लेकिन धरना देने वाला कोई मौजूद नहीं था। वहीं मौजूद एक छात्र ने बताया कि जब मीडिया वाले आते हैं, उसके बाद वामपंथी प्रोफेसर और छात्र यहां तस्वीर खिंचवाने और बयान देने के लिए आते हैंं। इस घटना से पता चलता है कि तमाम वामपंथी छात्र संगठन नजीब को लेकर कितने गंभीर हैं।
इधर नजीब को लेकर घटिया राजनीति शुरू हो गई है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इसे हवा दे रहे हैं और जेएनयू के छात्रों को भड़का रहे हैं। यही वजह है कि जेएनयू के छात्र आए दिन प्रदर्शन कर रहे हैं, जबकि दिल्ली पुलिस का कहना है कि नजीब की तलाश की जा रही है।
नजीब की मां के दर्द को समझा जा सकता है, उनका बच्चा लापता हुआ है। लेकिन जैसा कि जेएनयू परिसर में गैर-वामपंथी छात्र बताते हैं, यह सब वामपंथी प्रोफेसर और उनके छात्रों का किया-धरा है। पहले भी देशद्रोह के आरोपी कॉमरेड प्रोफेसरों के घरों से निकले थे। जेएनयू के एक छात्र ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि एक बार दिल्ली पुलिस जेएनयू प्रशासन से अनुमति लेकर विवि परिसर में तलाशी अभियान चलाए तो नजीब के साथ-साथ बहुत कुछ बरामद होगा।
नजीब के मामले में एक खबरिया चैनल की रिपोर्टिंग संदिग्ध है। वह बार- बार इस मामले को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश कर रहा है और यदि वह ऐसा कर रहा है तो उसे यह बात भी बतानी चाहिए कि पूरा मामला नजीब की उस सनक से शुरू हुआ, जब उसने कलावा देखकर जेएनयू के एक छात्र को थप्पड़ मार दिया था। वह चैनल यह भी नहीं बताता कि नजीब के साथ रहने वाला कासिम भी उससे जान के खतरे की संभावना व्यक्त कर चुका था। चैनल का संवाददाता माही मांडवी छात्रावास के अध्यक्ष अलीमुद्दीन से भी नहीं मिलता, जो खुलेआम कहता है कि आइसा के एक छात्र ने नजीब को धमकी दी थी। अलीमुद्दीन पर आइसा के गुंडों ने हमला भी किया। उसके बाद से जेएनयू प्रशासन ने उसे सुरक्षा मुहैया करायी है। पर यह सब घटनाक्रम रिपोर्टिंग के दौरान गोल कर दिया जाता है?
कथित तौर पर नजीब के गायब होने के बाद जेएनयू छात्र संघ के पूर्व संयुक्त सचिव सौरभ शर्मा को जान से मारने की धमकी मिल चुकी है। इसकी चर्चा किसी मीडिया चैनल ने नहीं की। नजीब प्रकरण में उसके साथ कमरा साझा करने वाले आइसा के कार्यकर्ता मोहम्मद कासिम की भूमिका भी संदिग्ध है। कासिम ने माही मांडवी छात्रावास के वरिष्ठ वार्डन के नाम 14 अक्तूबर को एक पत्र लिखा, जिसमें उसने साफ-साफ लिखा है कि उसकी जान को नजीब से खतरा हो सकता है। वह उससे अलग रहना चाहता है।
अलीमुद्दीन ने बताया कि नजीब के गायब होने के संबंध में जब उसने मोहम्मद कासिम से बात की थी तो उसका जवाब संदिग्ध था। जेएनयू छात्रावास में दोपहर साढे़ बारह बजे से खाना मिलना शुरू होता है, जबकि कासिम और अलीमुद्दीन के बीच नजीब के कथित तौर पर गायब होने के बाद हुई पहली बातचीत के अनुसार कासिम 11 बजे खाना खा चुका था और उसके बाद एक घंटे तक उसने नजीब की तलाश की। बाद में जब अलीमुद्दीन ने उसके कहे पर सवाल उठाया तो कासिम ने अपना बयान बदल लिया। जेएनयू के छात्रों से हुई बातचीत के अनुसार, कासिम बार-बार नजीब को लेकर अपने बयान को बदल रहा है। ऐसे में नजीब के गायब होने में उसकी भूमिका भी संदिग्ध जान पड़ती है।
नजीब के कथित लापता प्रसंग में आइसा की तरफ से बार-बार अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का नाम घसीटा जा रहा है। इस संबंध में कुछ सवाल हैं जिनका जवाब जेएनयू के वामपंथी अध्यापकों और छात्रों को देने चाहिए।
वार्डन समिति जब नजीब के मामले को सुन रही थी, जिसमें उसे दोषी पाया गया और छात्रावास छोड़ देने का आदेश दिया गया, उस समय वहां मौजूद जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के किसी छात्र का नाम क्यों नहीं लिया? वामपंथियों द्वारा यू-ट्यूब पर एक वीडियो चलाया जा रहा है, जिसमें नजीब के सिर से खून निकलने की बात की जा रही है। यदि ऐसा हुआ था, (जो कि सरासर झूठ है) तो इस मामले की एफआईआर दर्ज हुई होगी। एफआईआर की प्रति कहां है? यदि नजीब को किसी तरह की चोट आई तो उसकी मेडिकल रिपोर्ट होगी। उसे अब तक सामने क्यों नहीं लाया गया? जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष ने जब नजीब को छात्रावास से बाहर निकालने की बात की जा रही थी तो उसका विरोध क्यों नहीं किया? उस वक्त तो वे छात्रावास से नजीब के निकाले जाने के समर्थन में थे।
वामपंथी छात्र संगठन बताएं कि नजीब के मामले को हिन्दू-मुस्लिम रंग देकर वे कहीं जेएनयू में उसे रोहित वेमूला बनाने की तैयारी तो नहीं कर रहे? या कन्हैया को मिल रही मीडिया कवरेज ने नए जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष को भी मीडिया में बने रहने के लिए प्रेरित किया है, जिसकी वजह से वे विवि में सांप्रदायिक राजनीति करने से भी बाज नहीं आ रहे?
यह पूरा मामला दो छात्रों के बीच हुई हाथापाई का है। विश्वविद्यालय के नियम के अनुसार, दोनों छात्रों को छात्रावास की इस घटना वार्डन समिति में को लेकर जाना चाहिए था और दोनों पक्षों को सुनने के बाद इस पर चीफ प्रोक्टर को अंतिम निर्णय लेना था। यह सारी प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद, जिस तरह नजीब गायब हुआ और उसके नाम पर राजनीति तेज हुई, उसके बाद जेएनयू के हालात को देखकर लगता है कि वह वामपंथी साजिश का शिकार हो गया है। जहां उसका सिर्फ इस्तेमाल हो रहा है और उसके कॅरियर की चिन्ता किसी को नहीं है।
'नजीब के नाम पर हो रही है उत्तर प्रदेश चुनाव की तैयारी'
वामपंथी संगठनों के लिए यह मान लिया गया है कि उन्हें षड्यंत्र में महारत हासिल है। पिछले कुछ समय से वामपंथी छात्र संगठन और प्रोफेसर जवाहरलाल नेहरू विवि के एक छात्र नजीब को लेकर विश्वविद्यालय परिसर में जिस तरह की राजनीति कर रहे हैं, उससे यह बात और अधिक पुष्ट हुई है। इस मुद्दे पर जेएनयू छात्र संघ के पूर्व संयुक्त सचिव सौरभ शर्मा से आशीष कुमार अंशु ने बातचीत की। प्रस्तुत हैं बातचीत के अंश:
ल्ल 14 अक्तूबर की रात क्या हुआ था?
विक्रांत, सुनील और अंकित माही छात्रावास समिति के लिए चुनाव प्रचार कर रहे थे। रात के 11 बजे का समय रहा होगा। नजीब ने विक्रांत के हाथ में कलावा देखा और गुस्से से लाल होकर थप्पड़ मार दिया। उसी वक्त अंकित इस बात की जानकारी वार्डन और सुरक्षाकर्मियों को देेते हैं। वार्डन, सुरक्षा अधिकारी, छात्रावास अध्यक्ष की एक समिति बनती है और उसी रात नजीब को दोषी पाया जाता है। नजीब ने खुद अपना अपराध कुबूल किया। उस समय वहां जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष, जो आइसा से हैं, भी मौजूद थे। नजीब को छात्रावास छोड़ने के लिए 21 अक्तूबर तक का समय दिया गया।
ल्ल जब सारी बातें इस तरह सुलझ गई थीं, फिर बात बिगड़ी कैसे?
उसी रात जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष सक्रिय हो गए। वे अलग-अलग छात्रावासों में घूम रहे थे। उन्होंने सुनील और अंकित, जो पिछड़ी जाति से ताल्लुक रखते हैं, को जातिसूचक संबोधन का प्रयोग करते हुए धमकाया कि तुम्हें छोड़ा नहीं जाएगा। विक्रांत को भी धमकी मिली।
ल्ल क्या विक्रांत, सुनील और अंकित किसी छात्र संगठन के प्रतिनिधि के नाते छात्रावास में वोट मांग रहे थे?
मेस समिति, छात्रावास समिति और छात्रावास अध्यक्ष का चुनाव न विचारधारा के स्तर पर होता है और न छात्र संगठन इसमें शामिल होते हैंं। इसमें जिस छात्र की इच्छा होती है, वह खुद आगे बढ़कर चुनाव लड़ता है।
ल्ल नजीब के अचानक गायब होने की घटना को आप किस रूप में देखते हैं?
15 अक्तूबर की सुबह से आइसा के जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष अपने वामपंथी मित्रों के साथ माही मांडवी छात्रावास के चक्कर लगा रहे थे। शाम को हमें यह जानकारी मिली कि नजीब गायब है। सुबह 11 बजे आनंद विहार रेलवे स्टेशन से नजीब की मां ने उससे बात की थी। जब वह एक बजे जेएनयू पहुंचीं तो वह नहीं था। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि 15 अक्तूबर को जेएनयू में जो हुआ, ग्यारह और एक के बीच में हुआ।
ल्ल अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का नाम इस पूरे प्रकरण में कैसे आया?
नजीब के कथित तौर पर गायब होने के पहले तक विद्यार्थी परिषद का कहीं नाम नहीं था। वामपंथी छात्र संगठनों ने उसे गायब कर एबीवीपी पर झूठा आरोप मढ़ दिया। फिर एबीवीपी को अपना पक्ष स्पष्ट करने के लिए सामने आना पड़ा।
ल्ल नजीब के नाम पर वामपंथी प्रोफेसर-छात्र राजनीति क्यों कर रहे हैं?
उन लोगों के पास करने के लिए परिसर में कुछ बचा नहीं है। वे पूरी दुनिया के सामने बेनकाब हो चुके हैं। इसलिए अब वे साम्प्रदायिक-आपराधिक राजनीति पर उतर आए हैं। नजीब के अपहरण की कहानी कितनी विश्वसनीय है? आइसा के प्रोफेसर और छात्रों के अलावा इस बात पर पूरे परिसर में कोई यकीन नहीं करेगा। वामपंथी प्रोफेसर, छात्रों और जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष से यह सीधा पूछा जाना चाहिए कि नजीब को तुमने कहां छुपा कर रखा है। यह वही परिसर है जहां उमर खालिद और अनिर्वाण जैसे देशद्रोहियों को दिल्ली पुलिस तलाश रही थी और वे इसी परिसर में प्रोफेसर के घरों से निकले। मुझे पूरा यकीन है कि वह जेएनयू के वामपंथी प्रोफेसर और जेएनयू छात्र संघ के पूरे पैनल की मिलीभगत से गायब है। सारे वामपंथी मिलकर जेएनयू से उत्तर प्रदेश चुनाव की पृष्ठभूमि तैयार करने की कोशिश में हैं। नजीब का ताल्लुक उत्तर प्रदेश से ही है।
कुछ छात्रों की राय
मैं जेएनयू में माही मांडवी छात्रावास के मेस के लिए चुनाव लड़ रहा था। यहां कमरों में जाकर चुनाव का प्रचार किया जाता है। मैं वही कर रहा था। प्रचार के दौरान मैं नजीब के कमरे में भी गया। मेरे साथ अंकित और सुनील थे। मैं नजीब से बात कर ही रहा था कि उसने मुझे थप्पड़ मार दिया। मैने पूछा, थप्पड़ क्यों मार रहे हो? उसने मां की गाली देते हुए कलावा हाथ से निकालने को कहा और एक थप्पड़ और मार दिया। उसे मेरे हाथ में बंधे कलावे से परेशानी थी।
— विक्रांत (नजीब प्रकरण का पीडि़त)
नजीब के साथ आइसा का कार्यकर्ता कासिम कमरा साझा करता है। कासिम ने मुझसे पत्र लिखवाया था कि उसे नजीब के साथ कमरे में रहने में डर लगता है। अब कासिम रोज-रोज अपना बयान बदल रहा है।
— आयुष आनंद (जेएनयू छात्र)
किसी छात्र संगठन के साथ पूरे मामले को जोड़ना मूर्खता है। विद्यार्थी परिषद को एक साजिश के तहत इस पूरे मामले में घसीटा जा रहा है। जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष का यह कर्तव्य बनता था कि वे दोनों पक्षों से मिलते, लेकिन वे सिर्फ नजीब और वामपंथी संगठनों से मिले। वे विक्रांत से कभी नहीं मिले। इस बात पर तो जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष को तो अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए।
— अलीमुद्दीन (माही मांडवी छात्रावास के अध्यक्ष)
जेएनयू के ज्यादातर प्रोफेसर वास्तव में वामपंथी हैं। उनका नए छात्रों पर जबरदस्त दबाव होता है। पढ़ाने में उनकी रुचि कम होती है। उनकी रुचि अपनी विचारधारा के नए रंगरूट तैयार करने में अधिक होती है।
—संतोष (छात्र जेएनयू)
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