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भारतीय अर्थव्यवस्था में समान रूप से प्रवाहित हो रहे काले धन को रोकने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो साहसिक कदम उठाया है उसके दूरगामी परिणाम क्या होंगे, जानने के लिए पाञ्चजन्य संवाददाता मधुकर मिश्र ने प्रख्यात अर्थशास्त्री बजरंग लाल गुप्त से विस्तार से बातचीत की। प्रस्तुत हैं बातचीत के मुख्य अंश:
मोदी सरकार द्वारा उठाए गए इस कदम को आप किस रूप में देखते हैं?
अनेक वर्षों से यह महसूस किया जा रहा था कि भारतीय अर्थव्यवस्था में समानांतर रूप से बड़ी मात्रा में अघोषित काले धन का प्रवाह जारी है जिसके चलते सामाजिक जीवन और अर्थ जगत प्रभावित हो रहा है। ऐसे में काले धन को खत्म करने की दिशा में बहुत अच्छा कदम है। इन दिनों पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जन्म शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा है। पंडित जी नैतिक अर्थव्यवस्था और नैतिक योजनाओं की बात कहते थे, इसलिए मुझे लगता है कि उस दिशा में बहुत ज्यादा साहसिक कदम इस सरकार द्वारा उठाया गया है।
मुद्रा परिवर्तन की प्रक्रिया को सफल बनाने में कौन लोग अहम भूमिका अदा कर सकते हैं?
देखिए, इस प्रक्रिया को सफल बनाने के लिए समाचार से जुड़ी एवं सामाजिक संस्थाओं को आगे आना चाहिए। सही मायने में जो भी नैतिक अर्थव्यस्था के पक्षधर हैं उन्हें इसमें अहम भूमिका निभानी चाहिए। वर्तमान में किसी के पास छोटी-मोटी राशि यानी 40-50 हजार रुपए पड़े हैं तो वह बैंक जाएगा और नोट बदलकर चला आएगा लेकिन यदि वह बड़ी मात्रा में धन लेकर जाता है तो उसे आधार कार्ड या पैन कार्ड लेकर जाना होगा। अहम बात यह कि बड़ी मात्रा में मुद्रा बदलावाने की खबर स्वत: ही आयकर विभाग को पहुंच जाएगी और घोषित आय से अधिक मुद्रा बदलवाने वाले व्यक्ति की कभी भी जांच हो सकेगी।
क्या इस समय काले धन को सफेद बनाने वालों पर पैनी नजर रखने की जरूरत है?
काले को सफेद करना तो अब संभव ही नहीं होगा। 'अंडरग्राउंड ट्रांजेक्शन' की तो अब संभावना ही समाप्त हो गई है। अब पारदर्शिता के साथ धन का अदान-प्रदान करना होगा। हवाला के जरिए पैसा इधर-उधर करने वालों का तो धंधा ही खत्म हो जाएगा अब तक जितना भी पैसा 'अंडरग्राउंड सर्कुलेट' होता था, अब उसके कोई मायने नहीं रह जाएंगे।
तमाम संस्थाएं ट्रस्ट और अस्पताल आदि कालेधन को खपाने का एक बड़ा जरिया रहे हैं, इनको लेकर क्या सावधानी अपेक्षित है?
देखिए, किन संस्थानों में कहां पर कितने रुपए दिए गए यह किसी को नहीं मालूम होता है। ऐसे में सरकार को इन संस्थानों को अपने पास रखी गई रकम को घोषित करवाना चाहिए। अभी तक जो हुआ सो हुआ लेकिन आगे से उनके पास जाकर कोई औद्योगिक घराना या कोई दूसरा व्यक्ति अपने काले धन को सफेद न कर सके इस पर विशेष ध्यान रखना होगा। अन्य संस्थाओं को भी आगे आकर ऐसे कदम उठाने चाहिए। जिससे मुद्रा परिवर्तन की प्रक्रिया को सफल बनाया जा सके। साथ ही अभी तक दान में मिली नगद राशि की घोषणा करनी चाहिए।
हवाला के जरिए बड़ी मात्रा में काला धन इधर से उधर होता है, ऐसी जुगत लगाने वालों से कैसे निबटा जाए?
हवाला और आतंकी संगठनों की फंडिंग बड़े नोटों के जरिए ही होती रही है। केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए इस कदम के पीछे ये दो कारण भी जिम्मेदार रहे हैं। चूंकि हवाला के लेन-देन में छोटी राशि का इस्तेमाल नहीं होता है और आतंकवादी गतिविधियों के लिए भी फाइनेंस करने वाले लोग बड़े नोटों का इस्तेमाल करते थे। जम्मू-कश्मीर में पत्थरबाजी की घटना को अंजाम देने वाले लोगों के लिए इन्हीं बड़े नोटों का इस्तेमाल होता था। अब जबकि ये नोट प्रचलन में ही नहीं रहेंगे तो इन सभी पर असर पड़ेगा। इसी तरह नकली नोट भी बड़े नोटों के माध्यम से हमारे देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहे थे, वह भी अब बेअसर साबित होगा।
रीयल स्टेट, सोने के व्यापारी और जमाखोरी करने वालों पर कैसे नकेल कसी जाए?
देखिए, काले धन से संबंधित जो भी मूल स्थान हैं और जहां इसका प्रवाह बड़ी मात्रा में होता है, उन पर पूरी निगाह रखनी होगी ताकि वे इससे बचने का कोई रास्ता न निकाल लें। मेरा मानना है कि इस पूरी प्रक्रिया को भी अपनाते समय मानव संवेदना का भी पूरा ख्याल रखा जाना चाहिए क्योंकि इसमें सामान्य व्यक्ति से लेकर बड़े खिलाड़ी शामिल हैं। इस तरह काले धन का रास्ता बंद करते समय मानव संवेदना का भी पूरा ख्याल रखना होगा।
मुद्रा बदलाव को विपक्षी दल सख्त कदम बताते हुए आम लोगों को भ्रमित न करने पाएं, इसके लिए सरकार को क्या कदम उठाने होंगे?
विपक्षी दल विरोध करें या न करें, सरकार को चाहिए कि आमजन की आशंकाओं को दूर करने के लिए कदम उठाए। इसके लिए मीडिया की भी मदद ले और मीडिया का भी दायित्व है कि वह इस योजना के सकारात्मक पक्ष को सामने लाकर सामान्य आदमी को समझाए। साथ ही सरकार को दो काम करना पड़ेगा। मुद्रा बदलवाने के लिए बैंक और पोस्ट ऑफिस की सुविधा के अलावा अन्य काउंटर भी खोलने चाहिए, ताकि लोगों को किसी तरह की परेशानी न हो। इसके लिए अस्थायी रूप से भी लोगों को बिठाना पड़े तो बिठाना चाहिए। साथ ही महिलाओं और बुजुर्गों के लिए अलग काउंटर की व्यवस्था की जानी चाहिए। मुद्रा बदलवाने के लिए गए आम व्यक्ति के साथ बैंक कर्मचारी का व्यवहार अच्छा होना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता तो लोगों को तकलीफ उठानी पड़ेगी और आम जनता में इस व्यवस्था के प्रति रोष उत्पन्न होगा।
मुद्रा परिवर्तन की प्रकिया से मध्यमवर्गीय परिवारों को किस तरह की दिक्कतें उठानी पड़ सकती हैं?
निश्चित तौर पर जिनके घर में विवाह का आयोजन हो रहा होगा, उन्हें खरीददारी करनी होगी। यह समस्या सामने आ भी रही है। मेरा ख्याल है कि सरकार के ध्यान में यह बात होगी और वह इसका भी हल निकाल लेगी। चूंकि भारतीय अर्थव्यवस्था में सामान्य, मध्यमवर्गीय परिवार में महिलाएं अपने घरवालों से छिपाकर सालों-साल से रुपए बचत के रूप में जमा करती रही हैं। ऐसे में उनके द्वारा बचत के लिए इकट्ठा की राशि को नए नोट में तब्दील करते समय यदि ज्यादा पूछताछ होती है तो लोगों में रोष पैदा हो सकता है। इस दिशा में सावधानी अपेक्षित है। मेरा व्यक्तिगत मानना है कि सरकार द्वारा दी गई समय सीमा को बढ़ाना पड़ सकता है। अभी कहा गया है कि एक दिन में आप चार हजार रुपए ले सकते हैं, लेकिन यह बहुत छोटी राशि है। इसे भी बढ़ाना पड़ेगा, क्योंकि इतनी राशि तो गाड़ी में पेट्रोल भराते ही खत्म हो जाती है। हालांकि मुझे लगता है कि सरकार इस मुद्दे पर बहुत ही ज्यादा संवेदनशील है और वह किसी को परेशान नहीं करना चाहती है लेकिन उसकी कोशिश कालेधन को बाहर लाने की जरूर है। देखिए जब कोई साहसपूर्ण कदम उठाया जाता है तो उसमें कोई न कोई कमी-बेशी रह जाती है लेकिन लंबी अवधि में देखें तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था को काफी मजबूत करने वाला कदम है।
प्रधानमंत्री द्वारा उठाए गए इस ऐतिहासिक कदम को सफल बनाने के लिए आमजन से किस तरह की अपेक्षा रखते हैं?
समाचार माध्यमों के जरिए मैने पाया है कि 80-90 प्रतिशत नागरिक सरकार के इस कदम की प्रशंसा कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आलोचक भी उनके द्वारा उठाए गए इस कदम की अलोचना नहीं कर रहे हैं बल्कि इसके लिए समय सीमा आदि को कम आंकते हुए अपनी बात रख रहे हैं। नीतिगत रूप से कोई भी व्यक्ति सरकार के इस कदम पर सवाल उठाने का साहस नहीं कर पा रहा है।
क्या सरकार को आत्मप्रशंसा से बचते हुए इसके गुण-दोष का आंकलन करने के लिए आमजन पर छोड़ देना चाहिए?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में स्पष्ट कर दिया था कि इस प्रकिया को लेकर कोई हाय तौबा मचाने की जरूरत नहीं है। किसी भी प्रकार की शंका करने की जरूरत नहीं है। हालांकि सरकार की बाकी मशीनरी का ये काम है कि वह लोगों को विश्वास में लेते हुए मुद्रा परिवर्तन की प्रकिया को अच्छी तरह से समझाए और सही तरीके से इसे लागू करे। ऐसा करने से जनता का अधिक से अधिक सहयोग मिलेगा।
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