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सेल्फी विद डॉटर की शुरुआत हरियाणा की उसी धरती से हुई थी, जहां कभी बेटियों को हिकारत की नजर से देखा जाता था। सकारात्मक बदलाव की बयार के चलते सूबे में बेटियां बोझ नहीं बल्कि आन-बान-शान की प्रतीक मानी जाने लगी हैं
राजीव जैन
उन्नीस सौ छियासठ में हरियाणा गठन के बाद प्रदेश की विकास यात्रा धीमी गति से सुधार की ओर आगे बढ़ रही थी। राजनीतिक दलों के अलग-अलग प्रयोगों के बावजूद महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षणिक स्थिति को सुधारने की ओर गंभीर प्रयास नहीं हुए। समाज के अंदर प्रतिबंधों की बेडि़यों से बंधी महिला के कामों के घंटे में, पुरुष के मुकाबले दैनिक कार्य 4-5 गुना अधिक करने और सोने के घंटों में कमी, बुजुर्ग, बच्चों और परिवार की देखभाल करने जैसे कारकों से स्थिति चिंताजनक हो रही थी। मुख्यमंत्री बंसीलाल के शासन काल में आर्थिक विकास, शिक्षा, बिजली एवं सड़कों के निर्माण में तेजी ऐसे कारक रहे, जिससे महिलाओं के क्रियाकलापों को अप्रत्यक्ष तौर पर राहत मिली। देश की सत्ता इंदिरा गांधी के हाथों में जाने के बाद महिलाओं की उम्मीदें बहुत बढ़ गई थीं। उन्होंने बहुत सी योजनाएं बनाईं भी, लेकिन योजनाएं जमीनी स्तर पर पिछड़ गईं। नतीजतन रीति-रिवाजों से बंधकर घरेलू काम करने और दसवीं, बारहवीं के बाद शादी की विचारधारा से भी महिलाओं के उत्थान में बाधा आई। बाल विवाह के बढ़ते मामले और लिंगानुपात की बढ़ती खाई पूर्व सरकारों के असरदार प्रयास नहीं करने की कहानी कहती हैं। हरियाणा बनने के पांच दशक में भी महिलाएं राजनीतिक तौर पर आगे बढ़ने के बेहतर मौके नहीं पा सकीं, जिससे उनका आर्थिक और शैक्षणिक विकास तेज नहीं हो पाया। बीते एक दशक में वैश्विक स्तर पर महिलाओं के उत्थान के लिए बड़े प्रयास हुए, लेकिन हरियाणा में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा महिलाओं की स्थिति सुधारने की बात करते रहे और गंभीर प्रयास करने से चूक गए। नतीजतन महिलाओं ने विरोध का रास्ता अपनाते हुए सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्तर पर अपनी स्थिति को मजबूत करने की दिशा में निजी प्रयास तेज किए। यह ऐसा दौर रहा, जिसमें महिलाओं के अंदर आत्मनिर्भरता हासिल करने की इच्छा प्रबल हो चली थी। अच्छा माहौल पाने की कोशिश में महिलाओं ने जद्दोजहद करते हुए विभिन्न क्षेत्र में अपनी
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