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प्रेरणा
पिता और
दादी
उद्देश्य
अपने आपको इतना काबिल बनाना कि समाज में स्वीकार्यता बढ़े
जीवन का अहम मोड़
मां की असामयिक मृत्यु
ज्ञान और धन के प्रति दृष्टि
ज्ञान आपका है। पैसा आपका नहीं है। मुझे सम्मान सिर्फ मेरे ज्ञान, हुनर और व्यक्तित्व की वजह से मिला। सुबह के 5 बजे हैं। उत्तर प्रदेश में मथुरा के पास गोवर्धन स्थित मानसी गंगा के किनारे घंटे-घडि़यालों की आवाज, ब्रज के स्वामी को भजन संकीर्तन और अपने लाला (श्रीकृष्ण) को जगाने के प्रयत्न उनके भक्तों द्वारा किए जा रहे हैं। सुबह से लेकर मध्यरात्रि तक यहां ऐसा ही भक्तिमय माहौल रहता है। मानसी गंगा के पास एक शिव मंदिर है। ठीक उसी के पास रहती हैं शास्त्रीय नृत्यांगना गीतांजलि शर्मा। ब्रज के संस्कारों में पली-बढ़ी शर्मा आज राष्ट्रीय स्तर पर नृत्य क्षेत्र का जाना-पहचाना नाम है, लेकिन नृत्य की इस यात्रा की कहानी बड़ी दिलचस्प है। 13 बरस की छोटी सी अवस्था से शुरू हुई यह यात्रा आज भी अनथक रूप से जारी है। वे अब तक 150 से ज्यादा कॉर्पोरेट और सरकार की ओर से आयोजित होने वाले 700 से ज्यादा सांस्कृतिक कार्यक्रमों में प्रस्तुतियां दे चुकी हैं। वह हर साल 50 से ज्यादा श्रीकृष्ण रासलीला करती हैं। इन कार्यक्रमों से वे अच्छी-खासी कमाई कर लेती हैं। उनका वार्षिक 'टर्नओवर' करीब 30 लाख रुपए है। वे बताती हैं, ''सरस्वती शिशु मंदिर ने मेरे जीवन में शिक्षा की नींव स्थापित की। घर पहले से ही संस्कारमय था। दादी और मां से शुरू से ही श्रीकृष्ण और राधा जी की लीलाएं सुनती आ रही थीं। लेकिन एक दिन श्रीरास देखने परिवार के साथ गई तो एक बात ने मेरे मन में उथल-पुथल मचाई कि राधा जी के रूप में कोई पुरुष ही क्यों है? मेरे मन में उसी समय से चल रहा था कि कोई लड़की अगर राधा जी का किरदार निभाएगी तो उसमें कितनी जीवंतता होगी। बस फिर क्या था, लग गई इसी को करने।''<br>वे कहती हैं,''मैंने नृत्य करना शुरू किया। किसी लड़की को रास करते और नृत्य करते देख लोगों ने बहुत विरोध किया कि मैं नृत्य न करूं। घर में मुझे शुरू से बेटों जैसा प्यार मिला। एक तरफ बहुत से लोग विरोध करते थे तो दूसरी ओर मेरी प्रस्तुति से मेरा उत्साहवर्धन भी करते थे। कई लोगों ने व्यंग्य किया कि मां-बाप बेटी को मंच पर नचवा रहे हैं। लेकिन समाज के विरोध और माता-पिता की इच्छा के बिना मैंने नृत्य में पैर जमाए। मैंने ब्रज के लोक नृत्य और रास में जमने के लिए मुंबई में गुरु उमा डोगरा से कथक नृत्य की विधिवत शिक्षा-दीक्षा ली। और आज जब मैं राधा जी का स्वरूप धारण करके श्रीरास करती हूं तो वही लोग जो कल विरोध करते थे, मेरी प्रस्तुति से भावविभोर हुए बिना नहीं रह पाते।''<br>अपनी सफलता और बड़े आयोजन के बारे में वे कहती हैं, ''2001 में जब मैं 17 बरस की अवस्था में थी तब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी के आवास पर रास की प्रस्तुति के लिए आमंत्रण मिला। मैंने प्रधानमंत्री आवास पर अटल जी जैसी महान विभूति के समक्ष जो प्रस्तुति दी, वह आज भी भुलाये नहीं भूलती। ऐसे ही 2006 में वाइब्रेंट-गुजरात में मैंने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के समक्ष भी प्रस्तुति दी।'' <br>उन्हें कई पुरस्कार मिल चुके हैं। इनमें प्रमुख हैं भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला राष्ट्रीय युवा पुरस्कार (2010), उस्ताद बिस्मिल्लाह खान पुरस्कार, संगीत नाटक अकादमी (2011) पुरस्कार, उत्तर प्रदेश का सर्वोच्च यश भारती सम्मान (2015) एवं स्वामी श्री हरिदास संगीत कला रत्न सम्मान।
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