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शान्तनु श्रीवास्तव
55 वर्ष
ईशान इंटरनेशनल प्रा. लि.
प्रेरणा
किसी के अधीन नहीं रहने का विचार
उद्देश्य
मातृभूमि की सेवा करना
जीवन का अहम मोड़
वियतनाम जाना
ज्ञान और धन
के प्र्रति दृष्टि
ज्ञान ही सब कुछ है, धन तो क्षणिक है
-अरुण कुमार सिंह-
शान्तनु श्रीवास्तव की जीवन-यात्रा उन युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है, जो उद्योग जगत में उतरने की इच्छा रखते हैं। एक साधारण व्यक्ति शून्य से शिखर तक कैसे पहुंच सकता है, शान्तनु इसके जीवंत उदाहरण हैं। हैरान करने वाली बात यह है कि व्यापार से शान्तनु के परिवार का दूर-दूर तक कोई नाता-रिश्ता नहीं था। इसके बावजूद आज वे एक सफल व्यवसायी हैं। मात्र 852 डॉलर की पूंजी जेब में लेकर एक विदेशी धरती पर कारोबार का सपना देखने वाले शान्तनु आज 20 करोड़ रुपए का सालाना कारोबार कर रहे हैं। उनकी निर्यात कंपनी है। उन्होंने एक किताब लिखी है- '852 डॉलर'। इसमें उन्होंने अपने जीवन में आए उतार-चढ़ावों की पूरी दास्तान, अपने तमाम अनुभव और व्यापार के मंत्र दिए हैं।
शान्तनु की प्रारंभिक पढ़ाई अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश) के एक सरकारी स्कूल में हुई थी। बाद में उन्होंने आईआईटी, कानपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की। इसके कुछ समय बाद उन्हें
वियतनाम की राजधानी हनोई स्थित भारतीय दूतावास में द्वितीय सचिव के पद पर काम करने का मौका मिला। यह उन दिनों की बात है जब वियतनाम को आजाद हुए मात्र सात साल ही हुए थे, और वहां के हालात बेहतर नहीं थे। इसी दौरान वहां की सरकार ने आर्थिक नीति में बदलाव किया ताकि दुनियाभर के लोग वियतनाम में पंूजीनिवेश कर सकें। शान्तनु को वहां की आर्थिक नीति अच्छी लगी और उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ने का फैसला कर लिया। शान्तनु कहते हैं, ''जब से मुझे सोचने-समझने की शक्ति मिली है, तब से किसी के अधीन रहना पसंद नहीं है। हां, मजबूरीवश कभी किसी के अधीन रह लिया, वह अलग बात है। लेकिन जैसे ही मुझे मौका मिला मैंने अपने को स्वतंत्र कर लिया। सरकारी नौकरी भी इसी स्वभाव की वजह से छोड़ी थी।''
वियतनाम में कारोबार करते हुए तीस साल कैसे बीत गए। शान्तनु को वियतनाम के सबसे प्रतिष्ठित सम्मान 'फ्रेंडशिप अवॉर्ड' से भी नवाजा गया है। उनका मानना है कि कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी कुछ कर गुजरने की जिद इंसान को अपने तय लक्ष्य से भी कहीं आगे तक पहुंचा सकती है। शान्तनु कहते हैं, ''मेरा उद्देश्य है विदेशों में पैसा कमाना और उससे भारत की सेवा करना। अभी भी भारत में लाखों लोग हैं, जिन्हें दो जून की रोटी नहीं मिल रही है। करोड़ों बच्चे शिक्षा से मरहूम हैं। इन सबको को शिक्षा मिले और कोई भूखा न रहे, यह जिम्मेदारी केवल सरकार की नहीं है, यह हम सबकी है।'' इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ही उन्होंने भारत में एक स्वयंसेवी संस्था ईशान फाउंडेशन बनाई है। वे एसोचैम में आसियान बिजनेस प्रमोशन काउंसिल के चेयरमैन भी हैं। उन्होंने ही वियतनाम में मौजूद तमाम भारतीय उद्योगपतियों और व्यवसायियों को एकजुट करके वहां इंडियन बिजनेस चैम्बर की स्थापना की थी। ल्ल
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