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पिछले कुछ समय से एक खास विचारधारा के लोगों ने सुनियोजित ढंग से राष्ट्र और राष्ट्रीयता पर प्रश्न खड़े करनेे के प्रयास किए हैं। उन्होंने राष्ट्रीय विचार को उपेक्षित ही नहीं किया, बल्कि उसका उपहास तक उड़ाया है। जबकि खेत में खड़े किसान, कारखाने में काम कर रहे मजदूर, साहित्य सृजन में रत विचारक, कलाकार और यहां तक कि सामान्य नागरिकों के नित्य जीवन में राष्ट्रीय भाव प्रकट होता है। आजादी के 70 वषोंर् इस देश को मानसिक औपनिवेशिकता ने जकड़कर रखा है लेकिन अब समय आ गया है कि वह टूटना चाहिए। लोकमंथन इस मानसिक गुलामी को हटाने का माध्यम बनेगा। ये विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने व्यक्त किए। विश्व संवाद केन्द्र, भोपाल की ओर से 'लोक मंथन वैचारिक अवधारणा और कार्ययोजना' विषय पर आयोजित संगोष्ठी में श्री होसबाले मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित थे। उन्होंने कहा कि पश्चिम की अवधारणा के अनुरूप राष्ट्र को देखने पर दिक्कत है। राष्ट्र के संबंध में भारत की अवधारणा भौगोलिक नहीं है। भारत सदैव से सांस्कृतिक राष्ट्र रहा है। शताब्दियों से भारतीय संस्कृति ही हम करोड़ों भारतीयों को एक सूत्र और एक राष्ट्र में बांधे हुए है। संस्कृति हमेशा जोड़ने का काम करती है, भारतीय संस्कृति में तो यह गुण अपार और अथाह है। इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख श्री जे़ नंदकुमार ने कहा कि लोकमंथन, 'राष्ट्र सवार्ेपरि' की सघन भावना से ओतप्रोत विचारकों, अध्येताओं और शोधार्थियों के लिए संवाद का मंच है, जिसमें देश के वर्तमान मुद्दों पर विचार-विमर्श और मनन-चिन्तन किया जाएगा। इस परस्पर विचार-विमर्श से भारत के साथ विश्व को नई दृष्टि मिलेगी और यह हमारे राष्ट्र के उन्नयन में सहायक सिद्घ होगा। गौरतलब है कि लोक मंथन एक राष्ट्रीय कार्यक्रम है, जिसका आयोजन 12, 13 और 14 नवम्बर को भोपाल में होना है।
इस कार्यक्रम में देशभर के विचारक और कर्मशील आएंगे। -प्रतिनिधि
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