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ाूर्व उप प्रधानमंत्री एवं भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी सार्वजनिक जीवन में यदि एक अनुकरणीय मिसाल कायम कर सके हैं तो इसका प्रमुख कारण उनके आवास और कार्यालय में देशभर से आने वाले पार्टी कार्यकर्ताओं तथा साधारण से साधारण आदमी से उनका अत्यंत आत्मीयतापूर्ण व्यवहार एवं उनकी समस्याओं के निराकरण हेतु पूर्ण मनोयोग से उनका सहयोग रहा है। नि:संदेह आडवाणीजी यह काम अकेले नहीं कर सकते थे। इसमें उनकी पत्नी स्व. कमला आडवाणी के स्नेहपूर्ण व्यवहार तथा उनके साथ काम करने वाले सहयोगियों की बहुत बड़ी भूमिका रही है। आडवाणीजी की इस मर्मस्पर्शी 'पब्लिक डीलिंग' के अनेक अनछुए पहलुओं को उजागर किया है 32 वर्ष तक उनके सार्वजनिक जीवन के प्रत्यक्षदर्शी रहे श्री विश्वंभर श्रीवास्तव ने अपनी पुस्तक ''आडवाणी के साथ 32 साल'' में। श्रीवास्तव 1973 में आडवाणीजी के साथ जुडे़ और 2005 तक उनके साथ काम करते रहे।
इस बेहतरीन 'पब्लिक डीलिंग' के रहस्य का जिक्र करते हुए वे लिखते हैं- ''भारत सरकार के गृह मंत्री बनने पर आडवाणी जी ने मुझसे कहा, विश्वंभरजी, अपनी समस्याएं लेकर जो लोग यहां आते हैं उन्हें हमारे व्यवहार और कायार्ें से ऐसा लगना चाहिए कि हम लोग उनकी सहायता करना चाहते हैं, उन्हें न्याय दिलाना चाहते हैं।'' आडवाणीजी ने यह बात इसलिए भी कही क्योंकि सरकारी कामकाज में व्यस्तता के कारण यदि वे स्वयं लोगों से न मिल सकें तो वह व्यक्ति उनके आवास अथवा कार्यालय से उपेक्षित महसूस करता हुआ न लौटे। 'पब्लिक डीलिंग' का यह ऐसा सूत्र वाक्य है जो सार्वजनिक जीवन में सक्रिय सभी नेताओं के लिए एक नजीर है।
वर्ष 1998 में जब आडवाणीजी केन्द्रीय गृह मंत्री और बाद में उप-प्रधानमंत्री बने तो उनके आवास एवं कार्यालय में समस्याएं लेकर आने वाले लोगों की संख्या कई गुणा बढ़ गयी। ज्यादातर शिकायतें पुलिस को लेकर होती। आमतौर पर अधिसंख्य लोगों का अनुभव रहता है कि पुलिस पीडि़त व्यक्ति के घावों पर मरहम लगाने की बजाए ताकतवर दोषियों का ही साथ देती है। लोगों की समस्याओं का समाधान करने के लिए आडवाणीजी ने एक पुलिस अधिकारी को विशेष रूप से नियुक्त कराया जो प्रतिदिन सुबह ही उनके कार्यालय में आकर बैठ जाता और वहां आने वाली पुलिस संबंधी शिकायतों को लेकर जाता और मामले की जांच-पड़ताल करके यथाशीघ्र उनके कार्यालय को सूचित करता।
इस पुस्तक में वैसे तो दर्जनों चर्चित मुद्दों का जिक्र है, जैसे- आपातकाल, टाइम्स ऑफ इंडिया समूह के रमेशचन्द्र जैन तथा जनता पार्टी सरकार, राधेश्याम श्रीवास्तव प्रकरण, दाउद इब्राहिम की संपत्ति की नीलामी आदि, लेकिन दो मामलों का जिक्र करना यहां समीचीन होगा। एक है आडवाणी और वाजपेयी के बीच अक्सर मीडिया की सुर्खियां बनने वाली मनमुटाव की खबरें। इस संबंध में श्रीवास्तव लिखते हैं, ''दोनों के बीच मनमुटाव की खबरें मनगढंत और कपोलकल्पित होती थीं। वाजपेयी आडवाणी के लिए सदैव राम सरीखे रहे हैं। यही नहीं अन्य नेताओं अथवा कार्यकर्ताओं के बीच आपसी मनमुटाव को आडवाणी जी बड़ी कुशलता एवं शांत मन से दोनों पक्षों को सुनकर निपटाते थे। उनकी संगठन क्षमता बेमिसाल थी।'' दूसरी घटना है अयोध्या में विवादित ढांचे के विध्वंस के संबंध में। ढांचे के विध्वंस के समय लेखक आडवाणीजी के साथ अयोध्या में मौजूद थे। वे लिखते हैं, ''एक छोटा सा एकमंजिला भवन था जिसमें एक हॉल और कुछ कमरे बने थे। उसी की छत को मंच के रूप में सजाया गया था। मंच के ठीक सामने बाबरी मस्जिद के तीनों गुबंद दिखायी दे रहे थे। आडवाणीजी का भाषण शुरू ही हुआ था कि किसी ने आकर बताया कि भगवा ध्वज फहराने के लिए कुछ स्वयंसेवक बाबरी मस्जिद के ढांचे पर चढ़ गये हैं। आडवाणीजी ने उनसे ध्वज फहराकर उतर जाने की बार-बार अपील की। उन्होंने कहा, आप लोग ध्वज फहराने के बाद नीचे उतर आएं। कोई भी ऐसा काम न करें जिससे हमें शर्मिंद्गी महसूस हो।''
श्रीवास्तवजी दो और प्रसंगों का जिक्र करते हैं जो आडवाणीजी के विशाल व्यक्तित्व की ओर इशारा करते हैं। एक प्रसंग है अहमदाबाद के तत्कालीन सांसद हरीन पाठक द्वारा आडवाणी के बेटे जयंत आडवाणी को गांधीनगर सीट से लोकसभा चुनाव लडाने की पेशकश के संबंध में। ''प्रस्ताव सुनते ही आडवाणीजी ने तुरन्त उसका विरोध किया। उन्होंने कहा, मुझे परिवारवाद नहीं चलाना है। भले जयंत आसानी से चुनाव जीत जाएं और सांसद बन जाएं, लेकिन मैं उन्हें लडने नहीं दूंगा।'' आज जब लगभग सभी राजनीतिक दलों में परिवारवाद चरम पर है यह प्रसंग आंखें खोलने वाला है। आडवाणीजी के सार्वजनिक जीवन से जुडे़ ऐसे और भी बहुत से अनछुए पहलू हैं जिनका लेखक इस पुस्तक में जिक्र किया है। यद्यपि पुस्तक में उनके निजी अनुभव संकलित हैं किन्तु पुस्तक उन्होंने आडवाणीजी को ही समर्पित की है। सार्वजनिक जीवन में सक्रिय सभी नेताओं एवं उनके सहयोगियों को यह पुस्तक कम से कम एक बार अवश्य पढ़नी चाहिए।
— प्रमोद कुमार
पुस्तक का नाम : आडवाणी के साथ 32 साल लेखक : विश्वंभर श्रीवास्तव
पृष्ठ : 280, मूल्य : 500 रु.
प्रकाशक : अनिल प्रकाशन, 2619, न्यू मार्किट, नई सडक, दिल्ली-110 006
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