आवरण कथा - दहले धौंसबाज
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आवरण कथा – दहले धौंसबाज

by
Oct 10, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 10 Oct 2016 13:18:11

वे '65 की जंग हारे लेकिन पाकिस्तानियों के सामने जीत का जश्न मनाया। '71 में उन्होंने बंगलादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान ) में हैवानियत का नया अध्याय लिखा लेकिन पाकिस्तान में उसे बलिदान की गाथा बनाकर प्रचारित किया। जब कारगिल में उनके सैनिकों की लाशें गिरीं तो उन्होंने उन्हें पहचानने से इनकार कर दिया। आज पाकिस्तानी फौज एक बार फिर नकार रही है। 28 सितंबर को रात के ढलने के  पहले भारत के विशेष कमांडो दस्ते ने नियंत्रण रेखा के पार हमला बोलकर 57 आतंकियों को वहां मौजूद उनके मद्दारों समेत मौत की नींद सुला दिया। इस सर्जिकल स्ट्राइक में आतंकवादियों  के कई लॉन्चपैड तबाह हो गए। भारत सरकार ने इस जानकारी को सार्वजनिक करने का फैसला किया। डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल रणबीर सिंह ने विदेश मामलों के प्रवक्ता विकास स्वरुप के साथ एक प्रेसवार्ता को संबोधित किया और देश एवं दुनिया को भारत की कार्रवाई का समाचार मिला। देश में उत्साह की लहर दौड़ गई। चीन ने भी पाकिस्तान के प्रत्यक्ष समर्थन से संकोच किया।
उधर पाकिस्तान के लिए यह 12 घंटे के अंदर दूसरा झटका था। पीओके में हमारे 'घातक कमांडो दल' की धमक से वे अभी उबरे नहीं थे कि भारत द्वारा हमले की आधिकारिक घोषणा ने उन्हें चकित कर दिया। इस्लामाबाद ने रावलपिंडी की ओर नजरें उठाकर देखा और सहमति मिलने पर सर्जिकल स्ट्राइक होने से ही इनकार कर दिया। पाकिस्तान का मुकर जाना इस बात का साफ इशारा था कि पाकिस्तानी फौज भारत से सीधे उलझने के पक्ष में नहीं है। इसी का पूर्वानुमान लगाकर मोदी सरकार ने यह घोषणा करवाई कि भारत के पास इस कार्रवाई के वीडियो सबूत हैं जिन्हें आवश्यकता पड़ने पर ही उजागर किया जाएगा। साथ ही उसने 'किसी भी अप्रिय स्थिति से निपटने के लिए तैयार' होने के संकेत भी दिए। पाकिस्तानी फौज ने उसे उपलब्ध करवाई गई आड़ की ओट लेना स्वीकार किया, और सर्जिकल स्ट्राइक से इनकार कर दिया। हकीकत से मुकर जाना पाकिस्तानी सेना की मजबूरी है। पाकिस्तान में उनकी सारी चौधराहट इसी गवार्ेक्ति पर टिकी है कि वे 'काफिर' हिंदुस्थान की फौज को चबा जाने के लिए हर पल तैयार बैठे हैं। पाकिस्तान की जनता उन्हें अपनी ही पूंछ चबाते देखने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं है।
पाकिस्तानी 'ब्लैकमेलिंग' की सर्जरी
सर्जिकल स्ट्राइक ने पाकिस्तान की दो दशक पुरानी परमाणु धमकी की हवा निकाल दी है। इन बीते सालों में पाकिस्तान ने अपने गैरजिम्मेदार देश होने की छवि को भारत के खिलाफ ब्लैकमेलिंग का हथियार बना रखा था। वे बार-बार दुनिया को संदेश दे रहे थे कि 'हम तो पागल लोग हैं, बिना बात के ही बम मार देंगे।' लेकिन प्रतीत होता है कि भारत के नए नेतृत्व ने इस धमकी का नए सिरे से विश्लेषण कर लिया था और वे सही मौके की प्रतीक्षा में थे। इसके लिए पिछले दो साल से तैयारियां जारी थीं। एनएसजी समेत विभिन्न नाभिकीय समझौतों को लेकर की गई उठापटक का परिणाम यह है कि आज भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए यूरेनियम परिष्करण के लिए स्वतंत्र है। इस कारण भारत के घरेलू यूरेनियम भंडार का सैन्य साधनों  हेतु उपयोग किया जा सकेगा, जो कि अंतरराष्ट्रीय कानूनों के दायरे से बाहर है। पर यह मामला परमाणु अस्त्रों की संख्या तक सीमित नहीं है।
दरअसल जब परमाणु युद्ध रणनीति की बात आती है तो सटीक और मारक हमला करने तथा दुश्मन द्वारा पहला हमला होने के बाद बदले की प्रभावी और त्वरित वार करने की क्षमता का महत्व होता है। क्योंकि परमाणु हमले  का  उद्देश्य दुश्मन को पंगु बनाकर घुटने टिकवाना होता है। तब जिसके पास ज्यादा विकल्प होते हैं, उसका पलड़ा भारी होता है, क्योंकि वह ज्यादा विध्वंस करने और स्वयं पर हुए हमले से  उबरकर दुश्मन को निर्णायक चोट देने में सक्षम होता है। इसे एक उदाहरण से  समझते हैं। दृश्य एक, घोर युद्घ के बीच एक देश, दुश्मन देश की राजधानी और सैन्य मुख्यालय पर परमाणु बम गिरा देता है और युद्ध करने की उसकी क्षमता को ही समाप्त कर देता है, इस प्रकार युद्ध का परिणाम पहले परमाणु हमला करने वाले के पक्ष में जाता है। दृश्य दो, एक देश दूसरे देश के महत्वपूर्ण शहरों पर परमाणु हमला करता है, लेकिन वह देश अपने ज्यादा उन्नत और बिखरे हुए परमाणु अस्त्रों से भीषण बदला लेता है और आक्रमणकर्ता धुएं और राख में बदलकर रह जाता है। परमाणु युद्ध की भाषा में इसे जवाबी हमला करने की क्षमता कहा जाता है। यहां भारत का पलड़ा काफी भारी है, क्योंकि नाभिकीय युद्ध की स्थिति में भारत पहला हमला करे या जवाबी हमला, पाकिस्तान दुनिया के नक्शे से मिट जाएगा।
परमाणु अस्त्रों को दुश्मन की जमीन तक पहुंचाने के लिए भारत के पास पाकिस्तान से कहीं ज्यादा और उन्नत विकल्प हैं। परमाणु हथियार तीन तरीकों से चलाए जा सकते हैं-लड़ाकू विमानों द्वारा, मिसाइल द्वारा और बैलिस्टिक पनडुब्बी द्वारा। इस क्षमता को किसी देश का परमाणु त्रिक (न्यूक्लिअर ट्राइड) कहते हैं। भारत के पास पूरा परमाणु त्रिक है, पर पाकिस्तान के पास नहीं है। शुरुआत नभ से करते हैं।
जहां तक लड़ाकू विमान द्वारा अस्त्र दागने की क्षमता की बात है, भारत के पास ऐसी क्षमता वाले ज्यादा और कई प्रकार के विमान है। भारत के फ्रेंच डसाल्ट, मिराज, सुखोई और जगुआर के विशाल बेड़े की तुलना में पाकिस्तान के पास चीन निर्मित एकल इंजिन जेएफ-17 और चंद एफ-17 विमान हैं। इसीलिए पाकिस्तान अमेरिका से और एफ -16 खरीदने को बेताब रहा है जबकि अमेरिका ने नए सामरिक समीकरणों और भारत की कूटनीतिक घेराबंदी के चलते उसे धता बता दी है। उधर रूस ने भी पाकिस्तान की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। सर्जिकल स्ट्राइक के हफ्ते भर बाद रूस भारत के समर्थन में खुलकर सामने आ गया। मिसाइल द्वारा परमाणु बम गिराने के लिए पाकिस्तान के पास चीन और उत्तर कोरिया से प्राप्त तकनीक के सहारे निर्मित शाहीन, नस्र एवं हत्फ मिसाइलों जैसे कई विकल्प हैं और वह भारत के किसी भी कोने तक  पहुंच सकता है, लेकिन यहां भी भारत के पास बहुआयामी विकल्प हैं। अकेले अग्नि ही दो हजार से लेकर आठ हजार किलोमीटर की मारक क्षमता रखती है। यानी हम भारत के किसी भी कोने से पाकिस्तान के किसी भी कोने में मार कर सकते हैं। साथ ही भारत की नयी उपलब्धि बराक-8 और ब्रह्मोस मिसाइल उसे लड़ाकू विमानों और मिसाइलों द्वारा किये जाने वाले हमलों के विरुद्ध प्रभावी कवच प्रदान करती हैं।
भारत के पास समुद्र से पनडुब्बी द्वारा परमाणु हमला करने की क्षमता है, पर पाकिस्तान के पास नहीं है। हमारी परमाणु पनडुब्बी आईएनएस अरिहंत समुद्र की गहराई से पाकिस्तान को चौंकाने वाला हमला कर पाकिस्तान के अंदर साढे तीन हजार किलोमीटर तक नाभिकीय अस्त्र से मार कर सकती है। बहुप्रतीक्षित आईएनएस अरिदमन भारत की नौसेना को तकनीकी रूप से रूस-अमेरिका और चीन के समक्ष ला खड़ा करेगा। परमाणु पनडुब्बी हासिल करने के लिए पाकिस्तान के पास न तो तकनीक है, न पैसा। अरब सागर के नीले पानी में समुद्र की  सतह के नीचे फिरती, पहला या जवाबी आक्रमण करने  में समर्थ, भारत की परमाणु पनडुब्बियां ही पाकिस्तान को दु:स्वप्न देती रहेंगी और किसी भी प्रकार के परमाणु दुस्साहस से रोकेंगी। ये पनडुब्बियां भारत के दुश्मनों के लिए चेतावनी हैं कि यदि भारत का पूरा सुरक्षा तंत्र परमाणु हमले से तबाह भी हो जाए (जो कि संभव नहीं है) तो भी भारत भयंकर बदला लेने में सक्षम है। कई साल पहले पाकिस्तान के एक कामेडी शो में पाकिस्तान के कागजी शेरों की खिल्ली उड़ाई गई थी। इस एपिसोड में पाकिस्तान के प्रसिद्ध भारत द्वेषी तथाकथित सुरक्षा विशेषज्ञ जाएद हामिद का डमी उसकी नकल उतारते गुर्राता है कि हमारे हाथ में मिसाइल है। जवाब में हास्य कलाकार खिल्ली उड़ाता है -तो क्या भारत के हाथ में मोबाइल है? जाएद फिर ललकारता है -हम न्यूक्लिअर पावर है। उधर से सवाल दागा जाता है-तो क्या इंडिया हॉर्सपॉवर है? और ठहाके लगते हैं।
भारत के प्रति वैश्विक विश्वास
खैर! जब भारत ने पाकिस्तान की परमाणु धमकी की हवा निकाल दी तो उसका असर सब तरफ हुआ। अमेरिका के विदेश विभाग के उपप्रवक्ता मार्क टोनर ने भारत पर परमाणु हमले का राग अलापने पर पाकिस्तान को डपटा है, और जिम्मेदारी से पेश आने को कहा है। राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन ने एक संप्रभु राज्य के रूप में पाकिस्तान की अक्षमता को उघाड़ते हुए बयान दिया कि ''पाकिस्तान भारत से दुश्मनी के चलते पूरी ताकत से टैक्टिकल परमाणु हथियार (टैक्टिकल न्यूक्लिअर वेपन या छोटे आकार के परमाणु हथियार) विकसित कर रहा है। परंतु भय यह है कि वहां तख्तापलट हो सकता है, जिहादी सत्ता पर कब्जा कर सकते हैं, परमाणु हथियार जिहादियों के हाथ लग सकते है और तब आपको आत्मघाती परमाणु जिहादियों से निपटना होगा।'' क्लिंटन का यह बयान आज पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय मंच पर कितनी इज्जत है, उसकी पोल खोल देता है। हालांकि सचाई यह है कि पाकिस्तान में परदे के पीछे तख्तापलट हो चुका है, और आज की तारीख में नवाज शरीफ सेनाध्यक्ष राहिल शरीफ की कठपुतली से ज्यादा कुछ नहीं हैं।
  भारत पाकिस्तान को अलग-थलग करने में काफी कामयाब रहा है। सार्क देशों ने पाकिस्तान में होने जा रहे सार्क सम्मेलन का बहिष्कार किया। सबसे ज्यादा आश्चर्य उसे अरब जगत की ओर से हुआ। अब सर्जिकल स्ट्राइक्स पर मिल रही अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं पाकिस्तान को कुंठित करने वाली हैं। जर्मनी के राजदूत डॉक्टर मार्टिन नेय ने इन शब्दों के साथ भारत का समर्थन किया कि ष्यह बिल्कुल स्पष्ट है कि आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए हम अपने सामरिक साझीदार भारत के साथ बराबरी से खड़े हैं, और यह कोई कोरा राजनैतिक बयान नहीं है।
यूरोपीय संसद के उपाध्यक्ष रिजार्द जारनेकी ने 5 अक्तूबर को कहा कि ''पीओके में भारत द्वारा की गई सैन्य कार्रवाई को अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा समर्थन दिया जाना चाहिए और प्रशंसा की जानी चाहिए। पाकिस्तान पोषित आतंकवाद के विरुद्घ लड़ाई में भारत वैश्विक सहयोग का हकदार है, क्योंकि यदि इन व्यक्तियों और समूहों को यूं ही छोड़ दिया गया तो कल ये यूरोप पर भी हमला करेंगे। यूरोपियन यूनियन को आतंकियों पर कार्रवाई करने के लिए पाकिस्तान पर दबाव बनाना चाहिए। पाकिस्तान के सुरक्षा संस्थान तथा अफगान तालिबान एवं हक्कानी नेटवर्क के निकट संबंध को सब जानते हैं। पाकिस्तान के सैन्य इस्टैब्लिशमेंट और आतंकी संगठनों के संबंधों के कारण इस्लामी आतंक फैला रहे संगठनों को राज्य का संरक्षण मिला हुआ है।'' भारत में रूस के राजदूत ने  सर्जिकल स्ट्राइक पर वक्तव्य दिया कि भारत को अपनी रक्षा करने का पूरा अधिकार है।  
कुल मिलाकर पाकिस्तान अपनी चोट को सहला रहा है और उससे सहानुभूति के दो शब्द बोलने वाला भी कोई नहीं है। पाकिस्तान में कई समझदार लोग हैं जो अपने देश को बराबर सावधान करते आए हैं। पाकिस्तान के पत्रकार और विचारक हसन निसार उनमें से एक हैं जो कहते हैं कि यहां (पाकिस्तान में ) अनपढ़ों का टोला है। ये भारत के साथ न्यूक्लिअर वार की बात करते हैं। इन्हें पता ही नहीं है कि न्यूक्लियर वार चीज क्या है। परमाणु युद्ध हुआ तो पाकिस्तान तबाह हो जाएगा। हसन निसार सवाल उठाते हैं कि ''ईस्ट पाकिस्तान तो था आपके पास, उसे नहीं संभाल सके। कश्मीर तो लेना है। किससे लेना है, कैसे लेना है, ख्वामख्वाह की बातें हैं। आपसे बलूचिस्तान नहीं संभल रहा। कराची नहीं संभल रहा। किस मुंह से बात करते हो कि कश्मीर लेना है। क्या करोगे कश्मीर लेकर?'' मजहबी कट्टरता के ऊपर वैज्ञानिक सोच को तरजीह देने की अपील करने वाले परवेज हुडबॉय पाकिस्तानियों को समझाने की कोशिश करते दिखते हैं कि भारत का मंगलयान एटम बम से कहीं बड़ी और जीवन को बदल देने वाली उपलब्धि है।  लेकिन यह नक्कारखाने में तूती की आवाज है। पाकिस्तान की असली सत्ता हाफिज सईद और मसूद अजहर पर फिदा है जो शायद पाकिस्तान के एक राज्य के रूप में अस्त होने तक रुकने वाले नहीं हैं। वहीं भारत अतीत की धूल झाड़कर नए तेवरों के साथ खड़ा है। उसका आत्मविश्वास नए मित्रों को उसकी ओर आकर्षित कर रहा है। सेना के जवान उत्साहित हैं।
यह संयोग ही है कि इस समय सारे देश में शक्ति उपासना का पर्व चल रहा है। यह साल गुरु गोविन्द सिंह का 350वां प्रकाशोत्सव भी है। शक्ति के अखण्ड उपासक गुरु गोविन्द   सिंह अपनी रचना 'चंडिका' में हमें दुष्ट निग्रह और सज्जन अनुग्रह का स्मरण दिलाते हुए कहते हैं-
सिंह वाहिनी धनुष धारिणी कनक सेवत सोहिनी
रुण्ड माल अरोल राजत् मुनिन के मन मोहिनी।
आज भारत दुनिया को बतला रहा है कि यह शक्ति उपासकों का देश है। उसे अपने वीर सैनिकों पर गर्व है।    -प्रशांत बाजपेई

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