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अपनी तकरीरों से देश-दुनिया में इस्लाम से इतर सभी मत-पंथों के प्रति नफरती आग उगलने वाले जाकिर नाईक की हकीकत दुनिया के सामने आने लगी है। खुफिया एजेंसियों ने जाकिर के अतिरिक्त दर्जनों अन्य मजहबी उपदेशकों और संस्थाओं की सूची बनाई है जो समाज की आंख में धूल झोंककर आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे हैं। इनके पास अथाह पैसा कहां से आ रहा है, इसकी पड़ताल करने में जुटी हैं एजेंसियां
सतीश पेडणेकर
जाकिर नाईक आज ऐसा विवादित नाम बनकर उभरा है जो मजहबी उपदेशक के बाने में जिहादी जुनून का जहर फैला रहा है। एक ऐसी दिमागी बीमारी जो सिर्फ और सिर्फ मजहब के नाम पर मासूम लोगों का कत्ल करने पर राजी होती है। जाकिर नाईक के बारे में ज्यादातर लोग मानते हैं कि उन पर पाबंदी लगनी चाहिए, क्योंकि वे 'दवा' के नाम पर 'जहर' बेच रहे हैं। मगर कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह सरीखे उनकी मिजाजपुर्सी में लगे कुछ लोग उनके काम को 'ईमान का काम' बताते नहीं थकते। कहीं इसके पीछे जाकिर की संस्था द्वारा राजीव गांधी फाउंडेशन को दिया 50 लाख रु. का वह चंदा तो नहीं जो जाकिर ने अपनी जहरबुझी करतूतों को पर्दे में रखने के लिए 2011 में दिया था, जब मनमोहन सिंह की सरकार थी? जब पहली बार जाकिर नाईक का विवाद सामने आया, तब एक टेलीविजन चैनल पर एक दृश्य दिखाया जा रहा था, जिसमें जाकिर नाईक के एक कार्यक्रम में दिग्विजय कह रहे थे, ''मैंने जाकिर साहब का बहुत नाम सुना था। मिलने का मौका भी मिला और इस बात की खुशी है कि वे शांति का संदेश पूरे विश्व में फैला रहे हैं। शांति से ही प्रगति होगी।'' इस दौरान उन्होंने यह भी कहा, ''आज इस बात को स्वीकार करना पड़ रहा है कि कई कारण ऐसे बने जिस वजह से हमारे मुसलमान भाई और बहनों में एक भावना पैदा हुई कि हमारे साथ इंसाफ नहीं हो रहा, जो सही है। इसकी सारी जिम्मेदारी हमारी है।'' दिग्विजय आगे बोले, ''देश में हर पंथ के लोग मिलकर रहना चाहते हैं लेकिन कुछ फितरती लोग हैं जो ऐसा नहीं चाहते। कुछ लोग हैं जो इस्लाम को गलत तरीके से पेश करते हैं। आज जरूरत है कि डॉ. साहब का शांति का संदेश मुल्क के कोने-कोने में पहुंचे। डॉ. साहब आप विदेश जाएं लेकिन हमारे मुल्क के उन कोनों में भी जाएं जहां फितरती लोग असुरक्षा बढ़ा रहे हैं।'' यहां दिग्विजय का इशारा किस ओर था, समझना मुश्किल नहीं है।
अब जब जाकिर के आतंकवादी 'कनेक्शन' सामने आ रहे हैं तो दिग्विजय सफाई देते घूम रहे हैं। खैर, तब लोगों को लगा था कि 'दिग्विजय सिंह हैं ही मुस्लिमपरस्त इसलिए उन्हें जाकिर नाईक के भाषण में शांति का संदेश सुनाई दिया। लोग बिना वजह ही कहते हैं कि वे तो आतंकवादी पैदा कर रहे हैं। लोग उनका पैगाम सुनकर अगर आतंकवादी बन जाते हैं तो यह लोगों की गलती है। इसमें जाकिर नाईक क्या करें।' मगर अब जो खबरें आ रही हैं, उनसे लगता है कि बात केवल दिग्विजय की ही नहीं है। कांग्रेस के पूरे कुएं में ही भांग पड़ी है। यह भी पता चलता है कि जाकिर नाईक जैसे कट्टरवादी तत्वों के साथ कांग्रेस के कितने गहरे रिश्ते हैं। स्पष्ट होता है कि इन कट्टरवादी ताकतों को कांग्रेस ही एकमात्र दल दिखता है जो उनके 'हितों' की रक्षा कर सकता है। शायद तभी जाकिर नाईक की संस्था इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन (आईआरएफ) द्वारा राजीव गांधी फाउंडेशन को 50 लाख रुपये का चंदा दिया गया था। कहा यह जा रहा है कि इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन ने अपनी अवैध गतिविधियों को छिपाने के लिए 'रिश्वत' के तौर पर वह पैसा दिया था। हालांकि अब कांग्रेस कह रही है कि उसने पैसे लौटा दिए थे, जबकि आईआरएफ का कहना है कि उसे पैसे मिले ही नहीं। इस बात पर अचरज जताया जा रहा है कि जब सुरक्षा एजेंसियों ने जाकिर नाईक के 'पीस टीवी' के बारे में नकारात्मक रपट दी थी, फिर 2012 में कांग्रेस ने खुद पैसे क्यों नहीं वापस किए?
गौरतलब है कि राजीव गांधी फाउंडेशन की अध्यक्ष कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी थीं और तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री पी. चिदंबरम, राहुल गांधी तथा प्रियंका गांधी वाड्रा इसके सदस्य थे। 4 अक्तूबर, 2012 को तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने संसद में कहा था कि सुरक्षा एजेंसियों ने 24 अवैध विदेशी चैनलों की पहचान की है, जिन पर परोसी जा रही सामग्री आपत्तिजनक है और यह सुरक्षा के लिहाज से खतरनाक साबित हो सकता है। नाईक का 'पीस टीवी' भी उसमें शामिल था। कुछ जानकार कहते हैं कि जाकिर नाईक के फाउंडेशन के पास सऊ दी अरब और खाड़ी के देशों से बहुत पैसा आता है। क्या उसके जरिये यह पैसा कांग्रेस को पहुंचाया जाता है? आखिर कोई मजहबी प्रसारक राजीव गांधी फाऊंडेशन जैसी संस्था को चंदा क्यों देता है?
जब से जाकिर नाईक का भांडा फूटा है, तबसे उनके बारे में जो खबरें आ रही हैं, वे बहुत ही चौंकाने वाली हैं। सामने आया है कि वह दुनियाभर के कई आतंकवादियों का प्रेरणास्रोत है। उसकी संस्था ने केरल में कई बार सामूहिक रूप से कन्वर्जन कराया है। सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि कई आतंकवादियों ने कहा या उनके बारे में पता चला कि जाकिर नाईक उनके प्रेरणास्रोत हैं। ऐसे लोगों की सूची बहुत लंबी है। पिछले दिनों बंगलादेश की राजधानी ढाका में हुए आतंकी हमले में एक सनसनीखेज खुलासा हुआ था। एक फिदायीन हमलावर जाकिर की तकरीरों से प्रभावित होकर ही आतंकी बना था। जाकिर नाईक लंबे समय से अपने जहरबुझे भाषणों के कारण भारत में भी विवादों के घेरे में रहे हैं। लेकिन तब किसी ने उनके इस पहलू पर गौर ही नहीं किया था। पर अब इस मजहबी प्रसारक के आतंकी जुड़ाव को लेकर नए-नए तथ्य सामने आ रहे हैं। भारत को दहलाने की साजिश रच रहे आतंकियों को भी जाकिर नाईक की तकरीरों से कट्टरपंथी खुराक मिल रही है। खुफिया एजेंसी एनआईए की पूछताछ में आईएस के हैदराबाद मॉड्यूल के सरगना मोहम्मद इब्राहिम याजदानी ने बताया है कि जाकिर नाईक के भाषण सुनकर ही उसने आतंक की राह पकड़ी थी। याजदानी 2010 में मुंबई में पूरे 10 दिन तक जाकिर नाईक के शिविर में रहा था, जहां से उसका झुकाव कट्टरपंथ की ओर हुआ। शिविर से लौटने के बाद याजदानी सीरिया में सक्रिय आईएस के आतंकियों के संपर्क में आया और इसके बाद भारत को दहलाने की तैयारी में जुट गया। जयपुर में पकड़े गए आईएस एजेंट सिराजुद्दीन की गिरफ्तारी के बाद भी पता चला था कि उस पर जाकिर नाईक के भाषणों से काफी जुनून सवार हुआ था।
पिछले कई साल से जाकिर नाईक पूरी दुनिया में घूम-घूम कर इस्लाम पर तकरीरें दे रहे हैं। यही नहीं, वह जिस रफ्तार से ऐसा कर रहे हैं, उसी रफ्तार से उनकी तकरीरों को सुनकर युवक आतंकी गतिविधियों में शामिल भी हो रहे हैं। 2009 में न्यूयॉर्क के भूमिगत मार्ग में फिदायीन हमले की साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार नजीबुल्ला जाजी के दोस्तों ने बताया कि वह काफी समय से टी.वी. पर जाकिर के भाषण सुन रहा था। 2006 में मुंबई की उपनगरीय रेलगाडि़यों में हुए बम धमाकों के मामले में आरोपी राहिल शेख भी नाईक से प्रभावित था। 2007 में बंगलुरू का एक आदमी कफील अहमद ग्लासगो एयरपोर्ट को उड़ाने की कोशिश करते हुए घायल हो गया था। जांच में पता चला कि जिन लोगों की बातों से वह प्रभावित था उनमें से जाकिर भी एक हैं। हिज्बुल मुजाहिद्दीन के जिस आतंकी बुरहान वानी को सुरक्षाबलों ने कश्मीर में मुठभेड़ में मार गिराया, वह भी नाइक का ही 'फैन' था। पिछले दिनों बुरहान ने जाकिर की एक फोटो ट्वीट भी की थी। उसके साथ लिखा था-''जाकिर नाइक को सपोर्ट कीजिए, वरना ऐसा वक्त भी आ जाएगा, जब कुरान पढ़ने पर भी पाबंदी लगा दी जाएगी।''
ये खबरें सामने आने के बाद इस्लाम के इस झंडाबरदार ने अपनी सफाई में कहा कि उनकी बातों का गलत अर्थ निकाला गया और उनके कई वीडियो के साथ छेड़छाड़ की गई है। उन्होंने कहा, ''मैंने कहा था कि हर मुस्लिम को एक आतंकी होना चाहिए ताकि वह असामाजिक तत्वों के मन में आतंक भर सके। मैंने हमेशा कहा है कि किसी भी मुस्लिम को इंसान के लिए आतंक पैदा नहीं करना चाहिए। ओसामा न तो मेरे लिए दोस्त है और न दुश्मन। मैं तो उसे जानता तक नहीं था। मैंने उसे न कभी आतंकी कहा और न ही फकीर।''
जाकिर ने कहा,''मेरे कई फॉलोअर हैं इसलिए मैं लोगों को प्रभावित करता हूं। लेकिन यह कहना बेतुका है कि मैं आतंकवाद को 'प्रमोट'करता हूं।'' नाईक के रिश्ते किसी आतंकवादी गिरोह से सीधे हंै कि नहीं, यह तो तय नहीं है, पर उनके बारे में एक इससे गंभीर बात कही जाती है कि वे लोगों को आतंकवाद के लिए प्रेरित करते हैं। उनके भाषण आतंक के लिए उकसाते हैं, मुस्लिम युवक आतंकवादी बनते हैं। और यह प्रवृत्ति आतंकवादियों से रिश्ते होने से भी ज्यादा खतरनाक है।
दरअसल नाईक इसलिए भी खतरनाक हैं क्योंकि वे कट्टरपंथी इस्लाम को बढ़ावा देते हैं। सवार्ेच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू उनके बारे में कहते हैं, ''मैं नहीं मानता कि जाकिर नाईक एक आतंकवादी है, वह एक मजहबी कट्टरपंथी है लेकिन यह मजहबी कट्टरपंथ ही आतंकवाद को जन्म देता है।''
जाकिर के जहरे बुझे भाषणों में सबसे जहरीली बात यही रहती है कि, 'इस्लाम ही एकमात्र सच्चा और सर्वश्रेष्ठ मजहब है।' इसे ठीक साबित करने के लिए उन्हें बाकी मत-पंथों को झूठा साबित करना होता है। यह काम वे अपने तरीके से करते हैं। दूसरे मत-पंथों को इस्लाम के मुकाबले तुच्छ साबित करने के लिए वे अन्य 'मत-पंथों के कुछ खास नेताओं' को अपने कार्यक्रमों में बुलाते थे और उनके मत-पंथ में कमियां बताकर इस्लाम की महानता को सिद्ध करने की कोशिश करते। आम मुसलमान दूसरे मत-पंथों के कुछ 'प्रमुखों' को जवाब में यहां-वहां होते देखकर जाकिर से बहुत प्रभावित होते। उनके 'पीस टीवी' पर भी ऐसे शो आते हैं।
जाकिर की लोकप्रियता का मुख्य कारण यह है कि वह हर सवाल का जवाब 'मजहबी किताबों' के हवाले से देते हैं। उनके चाहने वालों को यही चीज सबसे ज्यादा लुभाती है कि वे अपने तकोंर् को सिर्फ कुरान या हदीस ही नहीं बल्कि बाइबिल से लेकर वेद, पुराण, गीता और उपनिषद् तक के उदाहरण देकर सही साबित करते। सिर्फ कुरान या हदीस ही नहीं बल्कि कई मत-पंथों की किताबों के हिस्से जाकिर नाईक ने कंठस्थ कर लिए हैं। वे किसी भी सवाल के जवाब में इन ग्रंथों का हवाला देते हुए उससे संबंधित पेज और पैरा नंबर तक बताते हैं। लेकिन इसके बावजूद उनके तथ्य गड़बड़ होते हैं। इंटरनेट पर जाकिर नाईक से जुड़ा-'25 मिस्टेक्स इन फाइव मिनिट'-नामक एक दिलचस्प वीडियो आसानी से मिल जाता है जिसमें उनके एक भाषण की समीक्षा करते हुए बताया गया है कि कैसे उन्होंने 5 मिनट के वीडियो में 25 गलत हवाले दिए। ऐसे कई वीडियो और भी हैं जिनमें लोग उनसे उनके गलत तथ्यों वाले भाषणों का जवाब मांग रहे हैं और वे उन सवालों से बचते नजर आ रहे हैं।
जाकिर नाईक पूरी दुनिया में प्रचार-प्रसार करते हैं कि इस्लाम सर्वश्रेष्ठ है, लेकिन जैसे ही दूसरे मत-पंथों की बात आती है तो फिर वह उनकी कमियां गिनाने लगते हैं। एक बार उन्होंने श्री श्री रविशंकर को अपने कार्यक्रम में बुलाया। श्री श्री ने पहले तो कुछ जवाब दिए लेकिन फिर वे चुप हो गए। कार्यक्रम खत्म होने के कई दिनों बाद जब विवाद बढ़ा तो उन्होंने कहा कि रटे हुए कुतकोंर् का जवाब वे कैसे देते। लेकिन मामला इससे शांत नहीं हुआ था। जाकिर नाईक अब श्री श्री रविशंकर का नाम ले-लेकर भाषण देने लगे कि 'हिंदू धर्मगुरु' ने मान लिया है कि मूर्ति पूजा की मनाही है। इसके बाद श्री श्री को जवाब देना ही पड़ा। उन्होंने कहा,''मक्का में काबा शरीफ का चक्कर लगाना और पत्थर को चूमना क्या है? क्या काबा की परिक्रमा मूर्ति पूजा नहीं है?''
जाकिर नाइक इस तरह 'इस्लाम की श्रेष्ठता' साबित करते हैं। वह अक्सर कहते हैं कि केवल मुसलमान को ही जन्नत मिलती है। उनसे जब यह पूछा गया कि यदि कोई गैर मुस्लिम सारी उम्र दान-पुण्य का कार्य करे, कोई पाप न करे तो क्या तब भी वह जन्नत में जाएगा? इसके जवाब में जाकिर नाईक कहते हैं, ''मान लीजिये आपको दसवीं क्लास की परीक्षा देनी है। इस परीक्षा में आपके कुल पांच विषय हैं। यदि आप चार विषयों में पूरे सौ अंक हासिल कर लेते हैं और एक विषय में फेल हो जाते हैं तो क्या आप दसवीं क्लास पास कर पाएंगे? ठीक उसी तरह जन्नत जाने के लिए इस्लाम में विश्वास सबसे महत्वपूर्ण है। जिसे इस्लाम में विश्वास नहीं है, वह चाहे कितनी भी भलाई करे, जन्नत नहीं जा सकता।'' इस तरह के कुतर्कों के सहारे वह लोगों को बताते हैं कि जन्नत पाने के लिए आपका अच्छा होना नहीं, मुसलमान होना जरूरी है। बिना मुसलमान हुए स्वर्ग का टिकट नहीं मिलता। नाईक यह तो कहते हैं कि इस्लाम सर्वश्रेष्ठ है पर यह नहीं कहते कि कौन-सा इस्लाम सर्वश्रेष्ठ है-सुन्नी इस्लाम, शिया इस्लाम, सूफी इस्लाम, तालिबानी इस्लाम, अहमदिया इस्लाम या खराजियों का इस्लाम। क्योंकि अब एक इस्लाम तो रहा नहीं, कई इस्लाम हैं और सब एक दूसरे के खिलाफ तथा एक दूसरे के खून के प्यासे हैं।
वैसे जाकिर की बातों में कोई नयापन नहीं है। वे वही सारी बातें दोहराते हैं जो बाकी मुल्ला-मौलवी दोहराते हैं। लेकिन जाकिर फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते हैं जिससे लोग प्रभावित हो जाते हैं। जैसे, एक वीडियो में जाकिर नाईक बोलते हैं कि यदि कोई व्यक्ति मुस्लिम से गैर-मुस्लिम बन जाता है तो उसकी सजा मौत है, यहां तक कि इस्लाम में आने के बाद वापस जाने की सजा भी मौत है। नाईक कहते हैं कि चूंकि यह एक प्रकार की गद्दारी है इसलिये जैसे किसी देश के किसी व्यक्ति को अपने राज दूसरे देश को देने की सजा मौत होती है, वही सजा इस्लाम से गैर-इस्लाम अपनाने पर होती है। इसका एक मतलब यह भी है कि इस्लाम में आना वन-वे ट्रैफिक है, कोई इस्लाम में आ तो सकता है, लेकिन जा नहीं सकता ।
नाईक के तकोंर् के हिसाब से ऐसा कट्टरतावादी इस्लाम ही एकमात्र सच्चा मजहब है। केवल इस मजहब को ही दुनिया में रहना चाहिए, बाकी सबको खत्म हो जाना चाहिए। एक वीडियो में वे यहां तक कहते हैं कि मुस्लिम देशों में किसी अन्य मतावलम्बी को किसी प्रकार के मानवाधिकार प्राप्त नहीं होने चाहिये, यहां तक कि किसी अन्य मत-पंथ के पूजास्थल भी नहीं बनाये जा सकते। सऊदी अरब आदि का उदाहरण देते हुए वे दोहराते हैं कि 'इस्लाम ही एकमात्र मजहब है, बाकी सब बेकार हैं।' इसकी वकालत वे इस तरह करते हैं कि 'जब आपको पता है कि दो और दो चार होते हैं तो आप ऐसे किसी व्यक्ति को टीचर क्यों रखेंगे जो कहता है दो और दो पांच होते हैं।' तो ऐसे होते हैं जाकिर के बचकाने तर्क। उनकी नजर में पंथिक स्वतंत्रता तो कोई मुद्दा ही नहीं है। इसके जरिये वे इस्लाम की असहिष्णुता की तारीफ ही करते हैं।
जब इस्लाम एकमात्र सच्चा और सर्वश्रेष्ठ मजहब है तो उसकी पाक किताबों का तो कहना ही क्या? आज जिस शरिया कानून को लागू करने के लिए सारी दुनिया में कट्टर इस्लामवादी हिंसा मचाए हुए हैं, वह कुरान और हदीस का ही निचोड़ बताया जाता है। उसके बारे में कहा जाता है वह 'ऊपर वाले की कानून संहिता' है। इस तरह कोशिश चल रही है कि लोग अपनी बुद्धि और विवेक को छोड़कर पोथीनिष्ट बन जाएं। इन 1400 साल पुरानी किताबों में कही बातों को आज के जमाने में जस का तस लागू करें। शरिया कानून को लागू कराने के लिए खूनखराबा हो रहा है। जिहाद हो रहा है। यह जिहाद ही तो आतंकवाद है। सारे आतंकवादी संगठनों को जिहादी संगठन कहा जाता है। इसलिए कई इस्लामी विचारक तो कहते हैं कि 'जिहाद (यानी आतंकवाद) तो इस्लाम का स्वभाव है। मुस्लिमों को काफिरों से हमेशा संघर्ष करते रहना चाहिए। जब आप बहुत कमजोर स्थिति में हों उसे छोड़कर हमेशा जिहाद करना चाहिए क्योंकि वह मजहबी साधना है। इस तरह इस्लाम की सवार्ेच्चता का कट्टरतावादी तर्क आखिरकार जिहाद या आतंकवाद तक जाता है।' फिर भी जाकिर नाईक कहते हैं कि इस्लाम शांति का मजहब है जिसमें कहा गया है कि किसी भी निदार्ेष की हत्या करना पूरी मानवता की हत्या करने के समान है। इसके बावजूद आज दुनियाभर में सौ से ज्यादा इस्लामी आतंकवादी संगठन हैं जो कुल आतंकवादी संगठनों का 85 फीसद हैं। हर साल आतंकवादी हमलों में होने वाली कुल हत्याओं में से 90 प्रतिशत हत्याएं इन्हीं संगठनों द्वारा की जाती हैं। मगर कुरान कहती है कि एक निदार्ेष की हत्या सारी मानवता की हत्या है। यह कहने वाले जाकिर नाईक कभी आतंकवादी संगठनों के खिलाफ जुबान नहीं खोलते। वे तालिबान द्वारा बुद्ध की मूर्तियां तोड़े जाने की तारीफ करते नहीं अघाते, मगर उन तालिबानों के खिलाफ उनकी जुबान से चार शब्द नहीं निकलते जो अफगानिस्तान को पाषाण युग में ले गए। जिन्होंने विजयी होने पर हजारों हाजरा शियाओं का नरसंहार किया, महिलाओं की स्थिति गुलामों से बदतर
कर दी।
जाकिर ओसामा बिन लादेन के बड़े हमदर्द हैं। किसी ने उनसे पूछा कि वे ओसामा के बारे में क्या सोचते हैं तो उन्होंने कहा,''अगर ओसामा ने सबसे बड़े दहशतगर्द अमेरिका को खौफजदा किया है तो मैं उसके साथ हूं।'' चलो, अमेरिका तो दहशतगर्द ठहरा सो ठहरा, भारत (जो कि जाकिर का अपना मुल्क है) को धमकाने वाले के खिलाफ जाकिर कुछ क्यों नहीं बोले?
जब कोई आदमी अपनी बुद्धि को कुछ मजहबी पोथियों के पास गिरवी रखता है तो अजीबोगरीब बातें करने लगता है। यदि आप जाकिर नाईक के भाषणों को सुनें तो एक बात महसूस होती है कि उनकी बहुत सारी बातें या तो बैसिरपैर की होती हैं या कुतर्क होती हैं। यह जवाब सुनकर तो आपको हंसी आएगी। किसी ने सवाल किया-'इस्लाम में शूकर का मांस खाना क्यों हराम है'? वे पूरी विद्वता झाड़ते हुए जवाब देते हैं, ''शूकर गंदगी खाता है लिहाजा उसका गोश्त खाने से 70 तरह की बीमारियां हो सकती हैं।'' साथ ही इस मांस के नैतिक और मनोवैज्ञानिक परिणामों के बारे में वे बताते हैं, ''विज्ञान आज ये कहता है कि शूकर इस पृथ्वी का सबसे बेशर्म जानवर है। जो आप खाते हैं उसका असर आपके बर्ताव में होता है। अमेरिका में अधिकतर लोग शूकर खाते हैं। इसलिए वहां अक्सर डांस-पार्टियों के बाद वाइफ-स्वैपिंग' होती है। ''
औरतों के बारे में जाकिर नाईक के जवाब और चौंकाने वाले हैं। एक बार उन्होंने पत्नी को पीटने तक का समर्थन किया था। उन्होंने कहा, ''पत्नी पर हाथ उठा सकते हंै मगर हलके से, इस मार के कोई निशान नहीं रहने चाहिए।'' यह कहकर वे इस्लाम की कट्टरपंथी सोच की वकालत ही करते हैं।
आखिर में वह बात, जो तकरीबन आधी मुस्लिम आबादी के जाकिर नाईक से नफरत करने की वजह है, वह है उनका महिलाओं के प्रति रवैया। उनका कहना है कि महिलाओं को सदा हिजाब और बुर्का पहनना चाहिए। डॉ. जाकिर के एमबीबीएस साथी डॉक्टर यह मानते हैं कि इस तरह के रिवाज महिलाओं में विटामिन डी की कमी की वजह बनते हैं। मगर इससे उन्हें क्या? इस्लाम पर भाषण देते हुए उनके अंदर का डॉक्टर दुबक कर छुप जाता है। जाकिर का मानना है कि महिलाओं को दफ्तरों में काम नहीं करना चाहिए क्योंकि वहां पर मुमकिन है कि उन्हें गैर मदोंर् के साथ अकेले में मिलना पड़े। उनके मुताबिक केवल 'वही मर्द किसी औरत के साथ अकेले रह सकता है जो या तो उसका शौहर हो या बेटा।' साथ ही, वह इतने पर ही नहीं रुकते, आगे कहते हैं कि मर्द का एक से ज्यादा बीवियां रखना जायज है लेकिन इसका उल्टा उन्हें कुबूल नहीं। कहते हैं कि 'दुनिया में औरतें मदोंर् से ज्यादा हैं इसलिए ज्यादा बीवियां रखी जा सकती हैं! औरतों का दिमाग मर्दों से कमजोर होता है और इसलिए दो औरतों की गवाही एक मर्द के बराबर होती है।' यही नहीं, उनका मानना है कि दोजख में जलने वाली ज्यादातर औरतें ही होंगी क्योंकि वे आदमियों के दिमाग फेर देती हैं और धोखेबाज होती हैं!
आज दुनिया को सौहार्द की जरूरत है। यह तभी संभव है जब सभी मत-पंथों के बीच सद्भाव और मेलजोल बढ़े। लेकिन जाकिर नाईक जैसे लोग नफरत फैलाने पर आमादा हैं। वे मुसलमानों से कहते हैं कि हिन्दुओं से प्रसाद ग्रहण करना हराम है। अपने किसी दोस्त को 'मेरी क्रिस्मस' कहकर शुभकामनाएं देना हराम है। यहूदियों के बारे में तो कहते हैं कि वे तो हमेशा इस्लाम के दुश्मन रहे हैं। इस तरह दिग्विजय सिंह ने जिन जाकिर नाईक को 'शांति का दूत' कहा था, वह असल में 'नफरत और कट्टरपंथ के दूत' हैं। नफरत के इस प्रसारक को दुनिया में कट्टरपंथ और आतंकवाद का उद्गाता कहा जाने वाला देश यानी सऊदी अरब सम्मान से नवाजता है। सऊदी अरब ने जाकिर नाईक को अपने यहां का सवार्ेच्च सम्मान दिया है। इससे पता चलता है कि जाकिर नाईक की असलियत क्या है। उसका झुकाव किसकी तरफ है। सऊदी अरब को कोई आतंकवादी देश नहीं कहता पर सभी जानते हैं कि सऊ दी अरब का कट्टरपंथ, उसका वहाबीवाद और पैट्रो डालर दुनियाभर में फैले आतंकवाद को खाद-पानी मुहैया कराते हैं।
जाकिर के बारे में समय के साथ और खुलासे होने की संभावना है। लेकिन फिलहाल जितना सामने आया है उससे इतना तय है कि इस व्यक्ति के मन में गैर मुस्लिमों के प्रति कितनी नफरत भरी है और वह किस तरह अपनी तकरीरों से मुस्लिम युवकों को गलत राह पर ले जा रहे हैं।
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