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नीतीश सरकार ने अनुसूचित जाति के 1,11,000 छात्रों की छात्रवृत्ति मानो छीन ही ली है। एक लाख रुपए वार्षिक की बजाए अब सिर्फ 15 हजार रुपए सालाना। क्या हैदराबाद प्रकरण के 'हमदर्द' इन छात्रों के दर्द को आवाज देंगे? जो लोग दौड़ते हुए ऊना गए, वे भी इन छात्रों का हालचाल नहीं ले रहे
संजीव कुमार
इन दिनों भाजपा शासित किसी राज्य में अनुसूचित जाति के किसी व्यक्ति के साथ कोई घटना हो जाती है तो देश के सेकुलर नेता चिल्लाने लगते हैं। संसद से सड़क तक हंगामा मच जाता है। मायावती, मुलायम, लालू, नीतीश, राहुल, केजरी, येचुरी सभी प्रधानमंत्री और भाजपा को अनुसूचित जाति का विरोधी बताने लगते हैं। लेकिन जब ऐसी कोई घटना किसी गैर-भाजपा शासित राज्य में होती है तो ये लोग ऐसी चुप्पी साध लेते हैं, मानो इनकी जुबान पर ताला लग गया हो। इन लोगों को बिहार सरकार का अनुसूचित जाति विरोधी वह फैसला नहीं दिख रहा जिसके कारण इस जाति के अनेक छात्रों का भविष्य अंधकारमय हो गया है। उल्लेखनीय है कि 16 मई, 2016 को बिहार सरकार ने अनुसूचित जाति के छात्रों को दी जाने वाली छात्रवृत्ति में भारी कटौती कर दी। इन छात्रों को पहले प्रतिवर्ष एक लाख रुपए की राशि छात्रवृत्ति के रूप में मिलती थी, अब केवल 15,000 रुपए दिए जा रहे हैं। इससे अनुसूचित जाति के 1,11,000 छात्रों की पढ़ाई प्रभावित हुई है। ये छात्र बिहार और बिहार से बाहर के तकनीकी संस्थानों में तकनीकी शिक्षा ले रहे थे। सरकार द्वारा छात्रवृत्ति कम कर देने से इनमें से लगभग सारे छात्र पढ़ाई छोड़कर घर वापस आ गए हैं।
इन्हीं छात्रों में से एक हैं मशरख (छपरा)का गंगौली ग्राम निवासी रामबाबू मांझी। इसके पिता राजकुमार मांझी महाराष्ट्र में राजमिस्तरी का काम करते हैं। रामबाबू उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद स्थित महाराजा अग्रसेन इंजीनियरिंग कॉलेज से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था। राज्य सरकार से मिल रही छात्रवृत्ति के बल पर ही वह वहां पढ़ाई कर रहा था, लेकिन अब अपने भविष्य को लेकर निराश है। एक वर्ष की पढ़ाई करने के बाद उसे पता चला कि अब उसे 45,000 रुपए प्रतिवर्ष शुल्क तथा 2,000 हजार रुपए प्रतिमाह भोजन और छात्रावास का शुल्क देना होगा। यह जानकर वह बेचैन हो गया। भला एक गरीब घर का युवा इतना शुल्क कहां से भरता। दो भाई और तीन बहनों में सबसे बड़ा रामबाबू थक-हार कर वापस अपने गांव गंगौली आ गया।
छात्रवृत्ति बहाली की मांग के साथ ऐसे छात्र 3 अगस्त को बिहार के विभिन्न क्षेत्रों से पटना पहुंचे। भारतीय छात्र कल्याण संघ के बैनर तले इन छात्रों का समूह गांधी मैदान से जेपी गोलंबर तक पहुंचा ही था कि पुलिस ने उन पर लाठियां बरसा दीं। छात्रों का समूह विधानसभा का घेराव करने जा रहा था। पुलिस की पिटाई से दर्जनभर से अधिक छात्र गंभीर रूप से घायल हो गए। अजय पासवान, संजय कुमार, राजेश कुमार इत्यादि पुलिस की बर्बरता में बुरी तरह जख्मी हुए। इन सबका इलाज पीएमसीएच में चल रहा है।
राज्य के पूर्व उप मुख्यमंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने छात्रों की पिटाई की निंदा करते हुए कहा है कि छात्रवृत्ति में कटौती के मामले को बार-बार उठाने के बावजूद सरकार ने इस मसलें पर ध्यान देना उचित नहीं समझा।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् (अभाविप) ने इस घटना के विरोध में 4 अगस्त को आक्रोश मार्च निकाला और मुख्यमंत्री का पुतला दहन किया। मार्च को संबोधित करते हुए अभाविप के राष्ट्रीय मंत्री निखिल रंजन ने बिहार सरकार को छात्र, युवा और अनुसूचित जाति विरोधी बताया।
पटना के एक छात्र रंजन कुमार कहते हैं, ''बिहार में भले ही समाजवाद का दंभ भरने वाले लोगों की सरकार हो, लेकिन जेपी के स्वघोषित चेलों के शासन में अनुसूचित जाति वर्ग सबसे असुरक्षित है।'' वरिष्ठ पत्रकार कृष्णकांत ओझा इसे विरोधाभासी बताते हैं। वे कहते हैं, '' समाजवादी अनुसूचित जाति के उत्थान की बात करते हैं, लेकिन उन्हें अधिकार देने में कोताही बरतते हैं। इनका उत्थान तभी संभव है जब उनके लिए शिक्षा के बेहतर अवसर उपलब्ध कराए जाएं, अच्छी सुविधाएं दी जाएं। इन सबकी बजाए सरकार इनकी छात्रवृत्ति में ही कटौती कर रही है।''
पटना उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता रवींद्र कुमार 'रवि' कहते हैं, ''बिहार में एक नया वर्ग उभरा है जो शासन में है, वह अनुसूचित जाति के कल्याण की बात करता है, उनका वोट लेता है, परंतु इस वर्ग के सशक्तिकरण पर उसका ध्यान नहीं है। यह वर्ग अनुसूचित जाति के लोगों का शोषक है।''
उनकी इस बात में दम है। पिछले दिनों मुजफ्फरपुर में अनुसूचित जाति के युवकों को खंभे से बांधकर मुत्र पिलाया गया, लेकिन इस सरकार ने अभी तक दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं की है।
ऊना और हैदराबाद जाने वाले नेता बिहार नहीं जा रहे हैं। इसी से पता चलता है कि ये लोग इस वर्ग के कितने हमदर्द हैं।
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