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बलोच छात्र संगठन पाकिस्तान में बलूची समुदाय का सबसे बड़ा छात्र संगठन है। दो साल पहले मार्च महीने में इसके छात्र नेता जाहिद बलोच का अपहरण कर लिया गया था। उसके बाद से 32 वर्षीया मनोविज्ञान की छात्रा करीमा बलोच छात्र संगठन के माध्यम से बलूचिस्तान के हक की लड़ाई लड़ रही हैं। करीमा का चेहरा पहले कभी नहीं देखा गया था। वह हमेशा नकाब में ही नजर आईं। उनके ऊपर गिरफ्तारी का खतरा लगातार मंडराता रहा। गिरफ्तारी से बचने के लिए उन्होंने बलूचिस्तान में रहते हुए कभी अपने चेहरेे से नकाब नहीं हटाया। हां, जब वह टोरंटो (कनाडा) पहुंचीं तो सबसे पहला काम उन्होंने अपने चेहरे से नकाब उतार कर फेंकने का किया।
करीमा बलोच अकेली नहीं हैं, जो बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सेना के अत्याचार का शिकार हैं। पाकिस्तानी सेना के अत्याचार का अंतहीन सिलसिला सालों से बलूचिस्तान में चल रहा है, क्योंकि बलूचिस्तान पाकिस्तान से आजादी चाहता है। बलूचिस्तान कभी पाकिस्तान का हिस्सा नहीं था, उस पर जबरन पाकिस्तान ने कब्जा किया है। ऐसा बलूचिस्तान का बच्चा-बच्चा कह रहा है।
करीमा बलोच की खासियत है कि वह बेबाक हैं। यही बेबाकी है जिसकी वजह से वे इतनी कम उम्र में पाकिस्तान की सेना की आंखों की किरकिरी बन गई हैं। करीमा कहती हैं, ''बलूचिस्तान की आबादी पर ईद के दिन बिना इस बात की परवाह किए कि वहां बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे हैं, बम गिराया गया।''
एक साक्षात्कार में करीमा ने बताया, ''पाकिस्तान जिन इलाकों में बम गिराता है, उन्हें कई दिन पहले से पाकिस्तानी सेना अपने घेरे में ले लेती है। वहां किसी को जाने नहीं दिया जाता। इसलिए मीडिया तक बलूचिस्तान की खबरें ज्यादा नहीं पहुंच पाती हैं। बलूचिस्तान में पाकिस्तानी बर्बरता जारी है। मानवाधिकार का हनन उससे कहीं ज्यादा है। बलूचिस्तान में अंतरराष्ट्रीय मीडिया का एक भी नुमाइंदा नहीं है।''
पाकिस्तान का इतिहास 70 साल का है और बलूचिस्तान का इतिहास 3,000 साल का है। बलूचिस्तान की अपनी तहजीब है, अपना इतिहास है। 1948 में पाकिस्तान जबरन बलूचिस्तान में घुस गया। वहां के नागरिकों की हत्या की और उस पर कब्जा कर लिया। बलूचिस्तानी खुद को पाकिस्तान का हिस्सा नहीं मानते।
करीमा कहती हैं, ''आज 21वीं सदी में भी हमारी आवाज दुनिया तक उस तरह नहीं पहुंच रही, जैसे पहुंचनी चाहिए थी। सोचिए 1948 के दौरान क्या आलम रहा होगा? मानवाधिकार संगठन भी बलूचिस्तान के लिए कुछ नहीं कर रहे। यहां तक कि उन्होंने एक लेख तक हमारे लिए नहीं लिखा। उनका कोई एक नुमाइंदा भी आज तक बलूचिस्तान नहीं आया यह देखने कि यहां हो क्या रहा है? मानवाधिकार वालों को पाकिस्तान की फौज जो कहती है, वे सुनते हैं और उसे ही वे सच मानते हैं। पिछले दिनों दक्षिणी बलूचिस्तान के तुर्बत क्षेत्र के अन्तर्गत गुमानी में बच्चों पर बम गिराए गए। उस वक्त बड़ी संख्या में महिलाओं ने घर से निकल कर सेना के लोगों से पूछा था- हमारे बच्चों पर तुम लोगों ने बम क्यों गिराया?
पाकिस्तानी सेना का जवाब था, ''आपके बच्चे दहशतगर्द हैं, आप दहशतगर्द हो। हम आपकी (बलूचिस्तानियों की) आखिरी नस्ल तक कुचल देंगे।''
करीमा बेहद साफ शब्दों में कहती हैं, ''पाकिस्तान में जम्हूरियत (लोकतंत्र) का ढोंग रचा जाता है। यहां सेना मुल्क को चलाती है और राजनीतिक पार्टियां कठपुतली हैं।''
करीमा जोर देकर कहती हैं, ''पाकिस्तान के साथ बैठकर बात नहीं हो सकती है, क्योंकि उसके हाथ हमारे लोगों के खून से रंगे हुए हैं। हम यह लड़ाई एक पंथनिरपेक्ष लोकतांत्रिक आजाद देश के लिए लड़ रहे हैं और आजादी हासिल होने तक लड़ते रहेंगे।''
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