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भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद हुए 70 साल हो गए, पर आज भी समाज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों पर भले सरसरी निगाह ही डालें तो ब्रिटिश राज की व्याधियां अब भी हावी दिखती हैं। उस क्षेत्र में काम कर रहे लोगों और उनकी रचनाओं, कृत्यों या व्यवहार में। कारण साफ है। आजाद भारत की पहली सरकार में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भले बाने से देशी थे पर सोच अंग्रेजों या कहें उनसे भी ज्यादा अंग्रेजियत वाली ही थी। तिस पर चीनी-रूसी साम्यवाद का मुलम्मा चढ़ा था। लिहाजा जहां देश को स्व-भाव और स्व-संस्कारों के दम पर आगे बढ़ना था वहीं वह पर-भाव, पर-संस्कारों की राह चलाया गया। नीतिकार भी वही चुने गए जो भारत की चिति से अनभिज्ञ थे और विदेशी मॉडल के पैरोकार थे। बात बिगड़ी तो अर्थतंत्र से लेकर राजनीति, शिक्षा, साहित्य, पत्रकारिता, कला, न्याय, चलचित्र, इतिहास जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भी घुन लगती चली गई। बाद की कांग्रेसी सरकारों ने उन्हीं भ्रष्ट नीतियों और भ्रष्टाचारी नौकरशाहों को हवा देने का ही काम किया। फलश्रुति के तौर पर आज हमारा देश विश्व बिरादरी में उस स्थान पर नहीं दिखता जिस पर उसे होना चाहिए था।
इस बार के स्वतंत्रता दिवस विशेषांक में स्वतंत्रता बनाम स्वच्छंदता विषय के जरिए हमने उपरोक्त विभिन्न समाज क्षेत्रों के विशेषज्ञों की कलम के माध्यम से इसी गुत्थी की तह में झांकने और समाधान की राह खोजने का प्रयास किया है।
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