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तमाम देश आज भारत को आदर्श की तरह देख रहे हैं। खास तौर से विकासशील देश भारत के अक्षय ऊर्जा कार्यक्रम से प्रेरणा ले रहे
नरेन्द्र तनेजा
कांग्रेस अपने 10 साल में अक्षय ऊर्जा (रीन्युएबल एनर्जी) नीति तक का निर्माण नहीं कर पाई। जवाहरलाल नेहरू नेशनल सोलर मिशन मात्र एक लीपापोती थी, जिसे डॉ़ मनमोहन सिंह के कोपेनहेगेन क्लाइमेट सम्मिट के अवसर पर आनन-फानन में घोषित किया गया था। नतीजतन भारत अक्षय ऊर्जा में अन्य देशों से पिछड़ता चला गया।
भारत में अक्षय ऊर्जा का युग दरअसल दो साल पहले सत्ता शुरु हुआ अक्षय ऊर्जा आज भारत की सोच में एक मुख्य धारा बन कर बह रही है और देश में एक ऊर्जा क्रांति की जगह ले चुकी है। मई 2014 में पूरे देश में सौर ऊर्जा का उत्पादन मात्र 3,000 मेगावाट था और उसमें से 1,000 मेगावाट से ज्यादा मात्र एक राज्य गुजरात में था। लेकिन आज स्थिति यह है कि सौर ऊर्जा भारत में सबसे तेजी से बढ़ता हुआ ऊर्जा का स्रोत है। केन्द्र सरकार ने 2022 तक देश में अक्षय ऊर्जा से 1़75 लाख मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा है। इसमें से 1,00,000 मेगावाट का उत्पादन सौर ऊर्जा से व 60,000 मेगावाट पवन ऊर्जा से, 10,000 मेगावाट बायोमास से और 5,000 मेगावाट का उत्पादन में लघु पनबिजली योजनाओं से किया जायेगा।
आज पूरी दुनिया में भारत का अक्षय ऊर्जा कार्यक्रम सबसे बड़ा, सबसे महत्वाकांक्षी और सबसे ज्यादा विश्वसनीय कार्यक्रम है। नतीजतन अक्षय ऊर्जा के लिए दुनिया के तमाम देश आज भारत को रोल मॉडल की तरह देख रहे हैं। खास तौर से विकासशील देश भारत के अक्षय ऊर्जा कार्यक्रम से प्रेरणा ले रहे हैं। भारत स्थित इंटरनेशनल सोलर एलायंस ने अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में भारत को विश्व में अग्रणी बना दिया है।
सोलर टैरिफ जो पहले 12 से 16 रुपये प्रति यूनिट होता था, आज घट कर मात्र 4.50 रुपये प्रति यूनिट हो गया है। इसकी वजह से अक्षय ऊर्जा में निवेश की एक आंधी-सी चली है।
तेल, गैस और कोयला आने वाले 40 साल तक भारतीय संदर्भ में महत्वपूर्ण रहने वाले हैं। लेकिन अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी भारत के कुल ऊर्जा उत्पादन में तेजी से बढ़ रही है। आने वाले तीन दशक के बाद भारत में सबसे ज्यादा बिजली अक्षय ऊर्जा से ही मिलेगी।
साल 2070 आते-आते भारत की अधिकांश ऊर्जा अक्षय और परमाणु स्रोतों से आएगी। हमें यहां यह याद रखना होगा कि सूर्य भी एक आणविक रिऐक्टर है। अर्थात् सौर ऊर्जा भी अप्रत्यक्ष रूप से आणविक ऊर्जा ही है। ऊर्जा भारतीय अर्थव्यवस्था की धुरी है, बुनियाद है। पिछले दो साल में अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में हुई पहल की वजह से भारत आने वाले दशकों में ऊर्जा स्वतंत्रता हासिल कर सकेगा और आयातित तेल पर अपनी निर्भरता खत्म कर पायेगा। यही सही मायने में भारत की असली आजादी होगी।
केन्द्र की अक्षय ऊर्जा की पहल की वजह से भारत के तमाम राज्यों ने भी अपने-अपने अक्षय ऊर्जा के तमाम नये कार्यक्रम शुरू किये हैं। राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश के अक्षय ऊर्जा संबंधी प्रयास खास तौर से उल्लेखनीय हैं। माना जाता है कि आने वाले समय में अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में लाखों नये रोजगार पैदा होंगे और खास तौर से ग्रामीण इलाकों में महिलाओं और युवाओं को स्वरोजगार के नये अवसर प्राप्त होंगे।
यह अनुभव हो रहा है कि केन्द्र सरकार भारत को अक्षय ऊर्जा का एक वैश्विक उत्पादन केंद्र बनाने के बारे में सोच रही है, भविष्य की चुनौतियों को देखते हुए इसे बुद्धमत्तापूर्ण सोच मानना ही होगा। जिसके लिए अक्षय ऊर्जा के लिए जरूरी उपकरण, शिक्षा और प्रशिक्षण का एक जबरदस्त इन्फ्रास्ट्रक्टर तैयार किया जा रहा है।
अक्षय ऊर्जा से एक तरफ तो खास तौर से ग्रामीण इलाकों में ऊर्जा गरीबी का उन्मूलन हो रहा है, दूसरी तरफ विशेष तौर पर सौर ऊर्जा की वजह से शिक्षा का विस्तार, दूरसंचार की उपलब्धता एवं टेलीविजन से वहां एक नयी तरह की सामाजिक क्रांति हो रही है। कहा जाता है कि 2014 तक भारत में 35 करोड़ लोगों को बिजली उपलब्ध नहीं थी और दूरदराज के इलाकों में लोगों को अपना मोबाइल चार्ज करने के लिए भी 8 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था।
अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में आ रही क्रांति की वजह से वह दिन दूर नहीं जब ये सब बातें इतिहास का हिस्सा होंगी। लेकिन आवश्यक है कि उत्तर प्रदेश एवं बिहार जैसे राज्य, जहां ऊर्जा गरीबी सबसे ज्यादा व्यापक है, राजनीति को परे रखते हुए केंद्र सरकार के साथ कंधे से कंधा मिला कर आगे आयें और हर गांव, हर शहर, हर कस्बा अक्षय ऊर्जा क्रांति को सफल बनाए।
अक्षय ऊर्जा की पहल एक तरफ तो देश में जहां-जहां अंधकार है, उसे समाप्त करेगी और साथ ही दूसरी तरफ पर्यावरण की भी रक्षा करेगी।
(नरेन्द्र तनेजा विश्व-प्रसिद्घ ऊर्जा विशेषज्ञ हैं।)
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